प्रमोद जोशी।
अब्दुल ग़नी सरकार ने तालिबान के बढ़ते हमलों को रोकने में नाकाम रहे अफ़ग़ानिस्तान की सेना के प्रमुख जनरल वली मोहम्मद अहमदज़ई को बर्खास्‍त कर दिया है। उनकी जगह पर जनरल हैबतुल्‍ला अलीज़ई को अगला सेना प्रमुख नियुक्‍त किया गया है। जनरल वली को ऐसे समय पर बर्खास्‍त किया गया है जब तालिबान आतंकी देश के 65 फीसदी इलाके पर कब्जा कर चुके हैं। अफ़ग़ानिस्तान की एरियाना न्यूज़ ने सेना प्रमुख की बर्खास्तगी की पुष्टि की है। देश के वित्तमंत्री खालिद पायेंदा पहले ही इस्तीफा देकर देश छोड़ चुके हैं। तालिबान ने कुंदूज के हवाई अड्डे पर भी कब्जा कर लिया है, जहाँ खड़ा एक एमआई-35 अटैक हेलीकॉप्टर भी उनके कब्जे में चला गया है। यह हेलीकॉप्टर भारत ने अफगानिस्तान को उपहार में दिया था।


उधर दोहा में आज से तीन दिन की एक बैठक शुरू हुई है, जिसमें संरा, कतर, उज्बेकिस्तान और पाकिस्तान भाग ले रहे हैं। इसके अलावा आज ट्रॉयका की बैठक हो रही है, जिसमें रूस, चीन, अमेरिका सदस्य हैं। उनके अलावा इस बैठक में पाकिस्तान भी शामिल है।

गनी मजार-ए-शरीफ के दौरे पर

Afghan President Gani arrives at Mazar-i-Sharif to discuss security issues,  a spokesman said - Worldakkam

इन तनावपूर्ण हालात में राष्‍ट्रपति अशरफ गनी मजार-ए-शरीफ के दौरे पर पहुंचे हैं जहां उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान के बूढ़े शेर कहे जाने वाले अब्दुल रशीद दोस्तम से मुलाकात की है। तालिबान ने पहले ही देश के ग्रामीण इलाकों पर कब्जा कर लिया है और अब उसने शहरों पर कब्जा तेज कर दिया है। सुरक्षा बल तालिबानी हमलों के सामने बेबस नजर आ रहे हैं।

 सैनिकों ने हथियार डाले

Taliban captures three more Afghan provincial capitals in a day | Taliban  News | Al Jazeera

एक स्‍थानीय सांसद ने बताया कि कुंदूज शहर में सैकड़ों अफगान सैनिकों ने तालिबान के सामने हथियार डाल दिए हैं। तालिबान ने कुंदूज के एयरपोर्ट पर भी कब्जा कर लिया है। वे अब मजार-ए-शरीफ की दिशा में बढ़ रहे हैं। बीबीसी हिंदी की एक रिपोर्ट के अनुसार एक जमाने में नॉर्दर्न एलायंस के कमांडर अहमद शाह मसूद के भाई अहमद वली मसूद ब्रिटेन में अफ़ग़ानिस्तान के राजदूत रहे हैं। उन्होंने वॉल स्ट्रीट जर्नल से कहा है कि भ्रष्ट नेताओं और सरकार की खातिर लड़ने के लिए सैनिकों के मन में कोई उत्साह नहीं है। वे अशरफ ग़नी के लिए नहीं लड़ रहे हैं। उन्हें लगता है कि उनकी तालिबान के साथ बेहतर गुजर होगी, इसीलिए वे अपना पक्ष बदल रहे हैं।

सबसे बड़ी चुनौती

US launches airstrike on Kunduz after Taliban assault on key city | Arab  News

तालिबान इससे पहले साल 2015 और 2016 में भी कुछ समय के लिए कुंदूज पर कब्जा कर चुका है, लेकिन तब वह अपना नियंत्रण बरकरार नहीं रख पाया था। अफगान बलों के सामने सबसे बड़ी चुनौती कुंदूज से तालिबान को खदेड़ना होगा। अगर वह वहां लंबे समय तक काबिज रहा तो उसके पास आय का एक नया स्रोत विकसित हो जाएगा, जो अफगान सरकार के लिए मुश्किल खड़ी करेगा। यों भी तालिबान ने दूसरे देशों से जोड़ने वाली सड़कों के कई सीमांत चौकियों पर कब्जा कर लिया है और वहाँ टैक्स की उगाही कर रहे हैं।

तालिबान की बड़ी रणनीतिक जीत

Taliban tell President Ghani 'his time is up'

ईरान सीमा के पास जरांज पर कब्जा भी तालिबान के लिए बड़ी रणनीतिक जीत है। ईरान के रास्ते अफगानिस्तान को होने वाला कारोबार यहीं से गुजरता है। यह शहर उसी 217 किलोमीटर लंबे डेलाराम-जरांज हाइवे पर है जो भारत ने अफगानिस्तान में बनाया है। इस पर कब्जा अफगान सरकार के लिए एक बड़ा झटका है। इस कब्जे के बाद इस रास्ते के जरिए होने वाली कारोबारी गतिविधियां तालिबान के हाथ में आ जाएंगी।

सरकारी नियंत्रण बुरी तरह ध्वस्त

Ghani's accusation - The Statesman

वॉल स्ट्रीट जर्नल ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि हाल के हफ़्तों में सरकारी नियंत्रण बुरी तरह से ध्वस्त हुआ है लेकिन राष्ट्रपति ग़नी बेतहाशा आशावादी बयान दे रहे हैं। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि जब तालिबान ने शनिवार को प्रांतीय राजधानियों पर कब्ज़ा करना शुरू किया तो ग़नी सरकारी बैठकों में व्यस्त रहे। वॉल स्ट्रीट जर्नल ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, सोमवार को पूर्व सीनेटर और ताजिक जमीयत-ए-इस्लामी पार्टी के प्रमुख आसिफ़ आज़मी पाला बदलकर तालिबान के साथ चले गए। अहमद शाह मसूद के नेतृत्व में जमीयत-ए-इस्लामी 2001 में अमेरिका के हमले से पहले तालिबान के ख़िलाफ़ एक अहम गठबंधन था। कहा जा रहा है कि आज़मी के पाला बदलने का असर शेष राजनेताओं पर भी पड़ेगा।

हेरात में युद्ध जैसी स्थिति

अफगान मीडिया हाउस टोलो न्यूज़ के अनुसार तालिबान ने फराह शहर के ज़्यादातर हिस्सों को अपने नियंत्रण में ले लिया है। हेरात में अफ़ग़ान बलों के एक कमांडर अब्दुल रज़ाक अहमदी ने कहा है कि यहाँ युद्ध जैसी स्थिति है। उन्होंने कहा कि तालिबान ने अपने लड़ाकों को बड़ी संख्या में जुटा लिया है। इन लड़ाकों में विदेशी भी शामिल हैं। अफ़ग़ानिस्तान में काग़ज़ पर साढ़े तीन लाख सैनिक हैं। इतनी बड़ी संख्या तालिबान को हराने के लिए काफ़ी है लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा है। कहा जा रहा है कि तालिबान के साथ संघर्ष शुरू होने के बाद ढाई लाख अफ़ग़ान सैनिक ही सेवा में हैं। कई खबरों के मुताबिक़ सैनिक महीनों से बिना वेतन के काम कर रहे हैं।

अफगान सेना में भ्रष्टाचार

सवाल उठाया जा रहा है कि अफगान सेना तालिबान के मुकाबले लड़ क्यों नहीं पा रही है? पिछले महीने ह्वाइट हाउस में अपने भाषण में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इस बात से भी इनकार किया अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता पर तालिबान का कब्ज़ा कोई ऐसी बात नहीं है जिसे टाला नहीं जा सकता है। तीन लाख अफ़ग़ान सुरक्षा बलों के सामने 75 हज़ार तालिबान लड़ाके कहीं से नहीं टिक सकेंगे। इस बात के जवाब में अमेरिकी विशेषज्ञ ही बता रहे हैं कि अफगान सेना में भ्रष्टाचार बहुत ज्यादा है। वहाँ के सैनिक अपने हथियारों और उपकरणों को बाहर बेचने के आदी हैं। तालिबान के पास विशेष दूरबीनें, चश्मे, बंदूकें और गाड़ियाँ ऐसे ही नहीं आ गई हैं। तालिबान भारी हथियारों का इस्तेमाल भी कर रहे हैं। बेशक वे उन्हें बाहर से भी मिले होंगे, पर सम्भव है कि देश की सरकारी व्यवस्था के छिद्रों का लाभ उन्हें मिला हो।

लड़ाई 13 आतंकवादी समूहों से

Taliban capture Amry's highway built by India, Pakistan sends terrorists |  NewsTrack English 1

उपराष्ट्रपति अमीरुल्ला सालेह के प्रवक्ता रिज़वान मुराद कहते हैं, हमने एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय समुदाय को बताया है कि तालिबान और उसकी समर्थक पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने मदरसों से बीस हज़ार से अधिक लड़ाके अफगानिस्तान भेजे हैं। तालिबान के अल कायदा और दूसरे अन्य कट्टरपंथी समूहों से भी संबंध हैं। हमारे सैनिक कम से कम 13 आतंकवादी समूहों के खिलाफ लड़ रहे हैं।

तालिबान की धार्मिक वैधता को चुनौती

मानवाधिकार कार्यकर्ता और संयुक्त राष्ट्र में अफगानिस्तान का प्रतिनिधित्व कर चुकी श्कुला जरदान कहती हैं, हाल के दिनों में दो ऐसी चीजें हुई हैं जिनसे माहौल बदला है और लोगों को उम्मीद मिली है। पहला यह कि राष्ट्रपति अशरफ गनी ने स्पष्ट किया है कि सरकार तालिबान के खिलाफ पूरी ताकत के साथ लड़ेगी और दूसरा ये कि हेरात से शुरू हुआ ‘अल्लाह-हू-अकबर आंदोलन’ पूरे देश में फैल गया है। इससे तालिबान की धार्मिक वैधता को चुनौती मिली है। महिला अधिकार कार्यकर्ता और देश के चुनाव आयोग से जुड़ी रहीं जरमीना कहती हैं, अफगानिस्तान के लोग फिर से तालिबान का शासन नहीं चाहते हैं। उन्होंने अल्लाह-हू-अकबर का नारा लगाकर बता दिया है कि वे तालिबान की विचारधारा के समर्थक नहीं हैं।
(लेखक ‘डिफेंस मॉनिटर’ पत्रिका के प्रधान सम्पादक हैं)