2014 के बाद भारत का सांस्कृतिक वातावरण बदला है- महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि।
आपका अखबार ब्यूरो।
विश्व धरोहर दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के संस्कृति-संबंधी विचारों एवं भाषणों के संकलन ‘संस्कृति का पांचवां अध्याय’ का लोकार्पण इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) में हुआ। पुस्तक का लोकार्पण जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर पूज्य स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज ने किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता राज्यसभा के उपसभापति श्री हरिवंश ने की, जबकि आईजीएनसीए के अध्यक्ष श्री रामबहादुर राय विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे। इस अवसर पर आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी की भी गरिमामय उपस्थिति रही।
‘संस्कृति का पांचवां अध्याय’ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा विभिन्न अवसरों पर भारतीय संस्कृति, परपराओं, आध्यात्मिक मूल्यों तथा सांस्कृतिक विरासत पर दिए गए उद्बोधनों को संकलित किया गया है। पुस्तक का पुरोकथन लिखा है श्री राम बहादुर राय ने और संकलनकर्ता हैं डॉ. प्रभात ओझा। पुस्तक को प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किया गया है। यह पुस्तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उन भाषणों का संग्रह है, जिनमें उन्होंने भारत की संस्कृति के पुनरुत्थान को अपनी सरकार के प्रमुख लक्ष्य के रूप में रेखांकित किया है।

इस अवसर पर स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज ने कहा कि 2014 के बाद देश में सभी दिशाओं में नवाचार देखने को मिला है। वातावरण बदला है। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के सांस्कृतिक योगदान की प्रशंसा की। उन्होंने कहा, “2014 के बाद, जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने, मैंने एक ठोस बदलाव देखा है। लोग अब सांस्कृतिक विषयों पर अधिक गहराई और गर्व के साथ चर्चा करते हैं।” उन्होंने एक उदाहरण दिया- “2008 में, यूरोप में रहने वाले एक भारतीय गुरु ने अंतरराष्ट्रीय योग दिवस स्थापित करने के लिए कठिन प्रयास किए और भारत सरकार से सहायता मांगी, 2016 में नरेंद्र मोदी ने इसे संभव बनाया। आज, हर साल 21 जून को विश्व योग दिवस मनाता है, जो भारत की सांस्कृतिक विरासत के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का प्रमाण है।”
श्री हरिवंश ने रामधारी सिंह दिनकर की कृति संस्कृति के चार अध्याय का उल्लेख किया, जिसका प्राक्कथन जवाहरलाल नेहरू ने लिखा था। उन्होंने कहा कि यदि दिनकर आज जीवित होते, तो वे भी अपनी कई बातों में परिवर्तन करते। वे अपनी कृति में कुछ बदलाव कर उसे और समृद्ध करते। हरिवंश ने कहा कि 1952 के बाद हमने संस्कृति पर चर्चा करनी बंद कर दी। 2014 के बाद ये चर्चा फिर से शुरू हुई है। 2014 के बाद भारत अपनी संस्कृति, अपनी पुरानी चीजों पर फ़ख़्र के साथ चर्चा कर रहा है। इसका श्रेय प्रधानमंत्री को जाता है। दुनिया उनकी बातों के किस प्रकार गौर से सुन रही है, इसके कुछ उदाहरण भी उन्होंने दिए। उन्होंने श्री रघुबीर नारायण के प्रसिद्ध बटोहिया गीत ‘सुंदर सु भूमि भैया भरत के देशवा में/ मोर प्राण बसे हिम खोह रे बटोहिया’ से अपने भाषण का समापन किया।

श्री राम बहादुर राय ने नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व के दो आयामों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी के दो रूप हैं – एक प्रशासक व राजनेता और दूसरा, एक संतहृदय प्रधानमंत्री। उन्होंने मोदी के आलोचकों पर हल्के-फुल्के अंदाज में तंज कसते हुए कहा, नरेंद्र मोदी का व्यक्तित्व कई लोगों में रासायनिक प्रतिक्रियाएं उत्पन्न करता है – सकारात्मक सोच वाले उनकी अच्छाइयों को देखते हैं, जबकि नकारात्मक सोच वाले आलोचना में उलझ जाते हैं। उन्होंने कहा कि हम नरेंद्र मोदी की कई तस्वीरें बनाते रहते हैं। इस पुस्तक से हम प्रधानमंत्री की अलग तस्वीर देखेंगे। वह तस्वीर एक संत की है। इस पुस्तक में राजनेता नहीं है, एक संतहृदय प्रधानमंत्री है। प्रधानमंत्री पर पुस्तकों का जितना भंडार है, उसमें यह पुस्तक सर्वश्रेष्ठ है। इस पुस्तक में वह चमकीला कोहिनूर है, जो ‘बैताल पचीसी’ के राजा विक्रमादित्य को एक संत देता है। वह कोहिनूर है, भारत की संस्कृति।

डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने स्वागत भाषण देते हुए कहा कि प्रधानमंत्री द्वारा दिया गया ‘विरासत भी, विकास भी’ नारा बहुत महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने विश्व धरोहर दिवस पर पुस्तक के लोकार्पण के महत्त्वपूर्ण बताते हुए कहा कि यह पुस्तक नए भारत की तस्वीर प्रस्तुत करती है। पुस्तक के संकलनकर्ता डॉ. प्रभात ओझा ने पुस्तक का परिचय देते कहा कि इसमें प्रधानमंश्री के 34 उद्बोधनों के साथ परिशिष्ट में दो धर्म-मनीषियों के उद्गार भी लिए गये हैं। ये दोनों प्रधानमंत्री जी के संस्कृति-सम्बंधी दृष्टिकोण को स्वीकृति देते हुए लगते हैं। कार्यक्रम का संचालन प्रभात प्रकाशन के प्रभात कुमार ने किया और अंत उन्होंने अतिथियों और आंगतुकों के प्रति धन्यवाद ज्ञापन भी किया।
पुस्तक के बारे में
श्री रामबहादुर राय द्वारा लिखे गए पुस्तक के विस्तृत पुरोकथन के अंत की दो-तीन पंक्तियां इस तरह हैं- “अगर हम भारतीय संस्कृति के सुपर कंप्यूटर का की-बोर्ड खोज रहे हैं, तो वह खोज इस पुस्तक से शुरू होती है और पूरी भी होती है। इस अर्थ में यह चरण मोदी-युगीन भारत में अपनी संस्कृति से प्रेरित है। यह सांस्कृतिक यात्रा के लिए आमंत्रण भी है।” यह विचार प्रधानमंत्री के संस्कृति-सम्बंधी भाषणों के पुस्तक के रूप में प्रकाशित करने के उद्देश्य को स्पष्ट रूप से बयां करता है।

सांस्कृतिक यात्रा के कुछ पड़ाव हैं। पाठक स्वयं प्रधानमंत्री के इन भाषणों में उन पड़ावों को समझ सकता है। भाषण तिथि क्रम में दिए गये हैं। पहला भाषण स्वाधीनता दिवस, 2015 का है और अंतिम 20 अक्टूबर, 2024 को वाराणसी में आर. जे. शंकर नेत्र चिकित्सालय के शुभारम्भ के अवसर पर दिया गया है। यानी पहला भाषण लाल किले की प्राचीर से, जब प्रधानमंत्री देश के हालात, जन कल्याणकारी योजनाओं और सरकार की दूसरी उपलब्धियों की बात करते हैं। अंतिम भाषण स्वाभाविक है कि जन-स्वास्थ्य के सरोकार से जुड़ा है। संस्कृति बहुत व्यापक है और हमारे काम करने का ढंग भी इसमें शामिल किया जाना चाहिए। पहले भाषण में प्रधानमंत्री देश की कार्य-संस्कृति के बारे में विस्तार से बताते हैं। अंतिम भाषण देशवासियों के स्वास्थ्य से तो जुड़ा ही है, प्रधानमंत्री श्री कांची कामकोटि परम्परा के तीन शंकराचार्यों के प्रति अपना सम्मान प्रकट करते हैं।

इन दोनों भाषणों को मिलाकर इस पुस्तक में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के विभिन्न अवसरों पर दिए 34 भाषण संकलित हैं। इनमें श्री केदारनाथ धाम, श्रीराम जन्मभूमि, काशी विश्वनाथ मंडपम्, ओंकारेश्वर जैसे पवित्र तीर्थों में दिए उद्बोधन हैं, तो श्रीमद्भगवद्गीता के कई संस्करणों के सार के लोकार्पण के अवसर पर दिया वक्तव्य भी है। साथ ही गुरु नानक जयंती, ग्लोबल बुद्धिस्ट कांफ्रेंस, विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज की जयंती और विश्व सूफी सम्मेलन के अवसर पर प्रधानमंत्री के उद्बोधन इस पुस्तक में हैं।
विश्व सूफी सम्मेलन में प्रधानमंत्री के भाषण का एक अंश इस तरह से है-
“पाक कुरान और हदीस में मजबूत जड़ें जमाये हुए सूफीवाद भारत में इस्लाम का चेहरा बना। सूफीवाद भारत के खुलेपन और बहुलतावाद में पनपा और यहां की पुरानी आध्यात्मिक परम्पराओं से जुड़कर अपनी एक भारतीय पहचान बनायी। इसने भारत की एक विशिष्ट इस्लामिक विरासत को स्वरूप देने में मदद की।”
प्रधानमंत्री के ये भाषण विभिन्न मतावलंबियों के भारतीयत्व की खोज करते हुए लगते हैं। इस तरह के 34 उद्बोधन के साथ परिशिष्ट में दो धर्म-मनीषियों के उद्गार भी लिए गये हैं। पहला आचार्य श्री प्रज्ञा सागर जी महाराज का और दूसरा कांची कामकोटि के शंकराचार्य श्री शंकर विजयेंद्र सरस्वती स्वामी जी का है। ये दोनों प्रधानमंत्री जी के संस्कृति-सम्बंधी दृष्टिकोण को स्वीकृति देते हुए लगते हैं।