एस.के. सिंह।
आज मैं जब सुबह सुबह घूमने निकला, तो सामने से एक परिचित हिन्दू महानुभाव भी साथ हो लिये। देश- विदेश की चर्चा एवं राजनीतिक चर्चा आजकल प्रिय विषय है ही। तो वह बन्धु चर्चा करते करते कश्मीर से कैराना व केरल से बंगाल तक मानसिक व वाचालिक भ्रमण करने लगे। मैं चुप हो उनकी सुन रहा था। तभी अचानक बोले “वहां इन स्थानों पर हिन्दू परेशान है। आखिर संघ क्यों चुप है – इस मामले में आखिर संघ कर क्या रहा है?”
अब तो मुझे जवाब देना ही पड़ा। मैने कहा “संघ क्या है?”बोले “हिन्दुओं का संगठन।”
मैं बोला “तो आप हिन्दू हैं?”वह बोले “कैसा प्रश्न है यह आपका? मैं कट्टर सनातन हिन्दू हूं।”
तब मैने कहा तो क्या आप जुडे हैं संघ से?”वह बोले.. “नहीं तो”
तब मैने पूछा “आपका बेटा, पोता, नाती या परिवारजन कोई रिश्तेदार जुड़ा है क्या?”तब बोले “नहीं कोई नहीं। बेटा नौकरी पर है, फुर्सत नहीं मिलती उसे। पोता नाती विदेश में सैटल हो चुके हैं। रिश्तेदार बडे व्यवसायी हैं। उसी में व्यस्त हैं व शेष घर पर ही रहते हैं और बच्चों को तो कोचिंग से फुर्सत नहीं मिलती।”
मैने कहा – इसका मतलब यह हुआ कि संघ आपके व आपके परिवार व रिश्तेदारों को छोडकर शेष अन्य हिन्दुओं का संगठन है? वह चिढकर बोले “आज क्या हुआ है आपको? कैसी बात कर रहे हो आप? अरे भाई ऐसी स्थिति मेरी अकेले की थोड़े है। देश में 90% लोग ऐसे हैं जिनको अपने काम से फुर्सत ही नहीं मिलती है। तो यह आप केवल मुझ पर ही क्यों इशारा कर रहे हो? काम ही तो पूजा है, काम नहीं करेंगे तो देश कैसे चलेगा?”
मैने फिर कहा “तो मतलब आपके हिसाब से संघ से केवल 10% हिन्दू लोग ही जुड़े हैं।”
वह बोले “जी नहीं साहब, मेरे वार्ड में रहते सारे हिन्दू ही है। कुल 10000 की जनसंख्या है वार्ड में हिन्दुओं की। पर सुबह सुबह देखता हूं बस रोज तो उसमें से भी केवल 10-15 लोग ही नजर आते हैं संघ की शाखा में। बाकी कभी उत्सव त्योहार पर ही नजर आते हैं।”
मैने पूछ लिया कि कभी जाकर मिले उनसे? बोले “नहीं..”
मैंने पूछा कभी उनकी कोई मदद की?” बोले “नहीं”
मैं “कभी उनके उत्सवों कार्यक्रमों में भागीदारी की?” बोले “नहीं”
मैं “तो फिर आप की संघ से यह सारी अपेक्षा क्यों ?
मैं भी तो खीज गया था अन्दर से आखिर बोल ही पड़ा “तो ठेका लिया है संघ ने आप जैसे हिन्दुओं का? क्या वह संघ के सारे लोग बेरोजगार हैं? उनके पास अपना काम नहीं है,या उनका अपना कोई परिवार नहीं हैं क्या? आप तो अपने व्यवसाय व परिवार की चिन्ता करें, बस। और वह अपने व्यवसाय व परिवार की भी चिन्ता करें व साथ में आप जैसे अकर्मण्य, एकाकी, आत्मकेंद्रित हिन्दुओं की भी चिन्ता करें ?
यह केवल उनसे ही क्यों चाहते हैं आप ?
क्योंकि वह भारतमाता की जय बोलते हैं, देश से प्यार करते हैं, वन्देमातरम कहते हैं?
क्या यह करना गुनाह है उनका? इसलिये उन से आप यह जजिया वसूलना चाहते हैं? जो आप सभी समर्थ होकर भी नहीं करना चाहते वह सब कुछ वह करें। वही कश्मीर, कैराना व बंगाल तथा आप जैसों की चिन्ता करें? देश व समाज की हर तरह की आपदा व संकटों में वही अपना श्रम या धन व जीवन तक बलिदान करें? उनको क्यों आपकी तरह मूक या तटस्थ बने रहने का हक नहीं है ? क्यों वही अपना घर परिवार सब छोडकर केवल आप जैसों के लिये ही जियें ?
कभी सोचा है कि जब वह आप से चाहते हैं कि आप उनको बल दो, साथ दो, समर्थन दो, उन्हें ऐसे 10% पर ही अकेला मत छोड़ो। तब आप उनको निठल्ला, फालतू व पागल समझ कर उनकी उपेक्षा करते हो-और इतना ही नहीं उन्हैं साम्प्रदायिक कह कर गाली देते हो। अपने को सेक्यूलर मानकर अपनी शेखी बघारते हो। केवल अपने घर-परिवार, व्यवसाय को प्राथमिकता देते हो तथा अपने बच्चों का भविष्य बनाने में ही जुटे रहते हो।
अगर वह हिन्दू संगठन वाले हैं, तो आप जैसे भी तो सारे हिन्दू ही हैं। तो जो कर्तव्य उनका बनता है वह आपका क्यों नहीं बनता ? बस जरा यह तो स्पष्ट करें। कि क्या वही हिन्दू हैं आप हिन्दू नहीं है?
हमें यह याद रखना चाहिए कि भगतसिंह को फांसी केवल इसलिये हुई थी कि आप जैसे शेष 90% हिन्दू ‘हमें क्या करना’ कहकर सोये हुए थे। आजाद को भी इसीलिये अकेले लड़कर मौत को गले लगाना पडा था। अगर आप जैसे 90% हिन्दू आत्मकेन्द्रित हो ‘हमें क्या फर्क पड़ता है’ कहकर ना जी रहे होते, उनके समर्थन में खुलकर आये होते, तो उनको फांसी देने या मार सकने जितनी हिम्मत या औकात तब भी अग्रेजों में नहीं थी। अगर तब यह 90 % हिन्दू आपकी तरह तमाशा ना देखते, कभी इक्ठ्ठे होकर केवल एक बार अयोध्या पहुंच कर जय श्रीराम का नारा लगा देते तो मंदिर कब का बन गया होता। अगर हिंदुओ में जरा सी भी शर्म होती तो मात्र कुछ करोड़ गद्दार वंदेमातरम, भारत माता की जय का विरोध करने की हिम्मत नही कर पाते। (मीडिया स्कैन से साभार)