कोरोना संक्रमण के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। रोजाना मामलों में लगातार इजाफा तो हो ही रहा है, वहीं एक्टिव केस भी बढ़ रहे हैं। इस नई लहर में राहत की बात यह है कि महामारी के कारण जान गंवाने वाले मरीजों का तादात कम है। कोरोना के लगातार बढ़ते मामलों के लिए एक्सपर्ट्स बदलते मौसम को कारण मानते हैं। उनका यह भी कहना है कि H3N2 इंफ्लुएंजा का संक्रमण भी इसी करण बढ़ा है। दिल्ली के शालीमार बाग स्थित फोर्टिस हॉस्पीटल में पल्मोनोलॉजी एंड स्लीप डिसॉर्डर्स विभाग के डायरेक्टर और एचओडी डॉ. विकास मौर्या ने यह बात कही है।डॉ. विकास के मुताबिक, बदलते मौसम की वजह से संक्रमण बढ़ता है। इस दौरान हमारे श्वसन तंत्र को प्रभावित करने वाले वायरस बेहद सक्रिय हो जाते हैं। इसी वजह से कोरोना भी फिर एक्टिव हो रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि कोरोना लगातार अपना तेवर बदलने वाला वायरस है। उसमें हमेशा म्युटेशंस होते रहते हैं। नया वैरिएंट SBP 1.16 के रूप में हम देख रहे हैं जो कि ओमिक्रॉन का ही सबवैरिएंट है। हालांकि, उन्होंने इसे कम खतरनाक बताया।
वैक्सीन कितनी कारगर?
वैक्सीनेशन के सवाल पर उन्होंने कहा कि समय बीतने के साथ वैक्सीन से मिलने वाली इम्युनिटी भी कमज़ोर पड़ने लगती है। इस बदलते मौसम में और भी कई तरह के रेस्पिरेट्री वायरस सक्रिय होते रहे हैं। फ्लू वायरस के लिए हमें हर साल वैक्सीन लेनी होती है। जिन लोगों ने कोविड वैक्सीन ली थी, उनकी इम्युनिटी टीकाकरण के शुरुआती समय जैसी नहीं रह गई है। संभवत: इस वजह से भी कई लोग इस संक्रमण के शिकार बन रहे हैं।
कितना खतरनाक है नया वैरिएंट?
कोविड के इस नए सबवैरिएंट की गंभीरता के सवाल पर उन्होंने कहा कि यह अधिक संक्रामक तो है लेकिन ज्यादा खतरनाक नहीं है। उन्होंने कहा, ”कोरोना के जो ज्यादातर मामले सामने आ रहे हैं उनमें संक्रमण हल्का है। जिन मरीजों ने वैक्सीन की तीनों खुराक ली है और जिन्होंने अभी तक वैक्सीन नहीं ली है, दोनों में संक्रमण का स्तर लगभग एक जैसा ही है। कोरोना के कारण जो मरीज अस्पतालों में भर्ती हो रहे हैं, उनमें से अधिकांश या तो बुजुर्ग हैं या उन्हें पहले से कोई गंभीर बीमारी है।”
उन्होंने बताया कि जिन मरीजों को आईसीयू में एडमिट करने की नौबत आती है, उन्हें हम एंटीवायरस दे रहे हैं। कुछ ही दिन में वह स्वस्थ हो जा रहे हैं। डॉ. विकास ने बताया कि कोविड-19 काफी बदलने वाला वायरस है। अब भी इसमें म्युटेशन हो रहा है। हो सकता है कि कुछ महीनों या वर्षों के बाद कोई नया म्युटेशन हो जाए। उन्होंने कहा कि वैक्सीन के प्रभाव से जो हमारे शरीर में जो इम्युनिटी बनती है, वह करीब छह महीने तक रहती है।(एएमएपी)