एक और नायाब विचार लेकर आए राहुल गांधी।
प्रदीप सिंह
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और इस समय कांग्रेस के सर्वेसर्वा ही कहिए राहुल गांधी एक से एक नायाब योजनाएं और एक से एक नायाब विचार लेकर आते हैं। उनकी पार्टी में कौन उनको यह विचार बताता है और राहुल गांधी क्यों और कैसे स्वीकार कर लेते हैं, यह समझ से परे है।
इस सबको देखकर उनकी राजनीतिक परिपक्वता पर संदेह होता है। जिस तरह से वह उत्साह के साथ इन योजनाओं, विचारों की घोषणा करते हैं उससे लगता है कि वह इस बात को समझे नहीं हैं। दरअसल होता यह है कि बाद में वह एक तरह से हंसी का पात्र बनते हैं। मजाक का पात्र बनते हैं। लेकिन राहुल गांधी को इस सबसे कोई फर्क नहीं पड़ता। इस सबका उन पर कोई असर होता नहीं है। सबसे ताजा उदाहरण है उनकी खटाखट खटाखट खटाखट पैसा योजना। आलू से सोने वाला मामला अभी तक शांत नहीं हुआ है। हालांकि कांग्रेस पार्टी ने उस पर बड़ी सफाई दी कि उनकी बात को कहीं से काटकर कहीं जोड़कर दिखाया गया था और उन्होंने ऐसा नहीं कहा था। लेकिन पब्लिक परसेप्शन में यह है कि उन्होंने कहा कि एक तरफ से आलू डालो दूसरी तरफ से सोना निकलेगा। यह पब्लिक परसेप्शन बन चुका है। जो आम जन धारणा है उसमें यह बात बैठ चुकी है कि यह बात राहुल गांधी ने कही।
मैं हमेशा कहता हूं कि परसेप्शन और रियलिटी में कई बार फर्क होता है। परसेप्शन जरूरी नहीं है कि रियलिटी हो। लेकिन परसेप्शन का असर सार्वजनिक जीवन में ज्यादा होता है। इस बात को सभी राजनीतिक दलों और राजनीतिक दलों के नेताओं को समझना चाहिए। उनको नुकसान वाला कोई परसेप्शन न बने इसका प्रयास उनको करते रहना चाहिए। लेकिन राहुल गांधी इस मामले में सबसे असावधान नजर आते हैं। वो ऐसी बातें बोलते हैं जिसका उनको फायदा मिलना दूर, नुकसान ज्यादा होता है।
अभी कांग्रेस पार्टी का चुनाव घोषणा पत्र आया। उसमें एक योजना की घोषणा की गई है। उस योजना में कहा गया है कि बीपीएल परिवार की एक महिला को हर महीने 8500 यानी साल में एक लाख रूपये दिए जाएंगे। उन्होंने कहा कि यह खटाखट खटाखट खटाखट पैसा आएगा, आता रहेगा जिस अंदाज में वह बोल रहे थे उससे लग रहा था कि जैसे वह एटीएम चला रहे हैं। एटीएम से नोट निकाल रहे हैं और देने जा रहे हैं। उनको लगता है कि इस योजना से एक झटके में गरीबी खत्म हो जाएगी।
सवाल यह है कि उनको यह तो सोचना चाहिए था कि अगर यह इतनी आसान योजना थी तो पंडित जवाहरलाल नेहरू के दिमाग में क्यों नहीं आई? इंदिरा गांधी के दिमाग में क्यों नहीं आई? राजीव गांधी के दिमाग में नहीं क्यों नहीं आई। और दुनिया के बड़े अर्थशास्त्रियों में गिने जाने वाले मनमोहन सिंह के दिमाग में क्यों नहीं आई। या तो इन लोगों को इस तरह की बात समझ में नहीं आती थी- या राहुल गांधी ही हैं जिनको इस तरह की बात समझ में आती है। ऐसा भी नहीं है कि यह पहली बार हो रहा हो। राहुल गांधी अपने पिछले व्यवहार, उनकी घोषणाएं, उनका बोलने का तरीका- उससे कोई सबक भी नहीं सीखते।
आपको 2019 के लोकसभा चुनाव की याद दिला दें। 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले भी कांग्रेस के घोषणा पत्र में एक न्याय योजना की घोषणा हुई थी। वह लगभग इसी तरह की थी। उसमें प्रत्येक बीपीएल परिवार को- हालांकि उसमें बीपीएल स्पेसिफाई नहीं किया गया था यह तय था कि आय की एक सीमा रेखा तय की जाएगी उससे नीचे जो आएंगे उनको 6000 रूपये प्रतिमाह कैश दिया जाएगा। यह एक तरह से लोगों के हाथ में कैश पहुंचाने की योजना थी। इस योजना में कोई बुराई नहीं है। सवाल यह है कि इसका पैसा कहां से आएगा और यह कैसे दिया जाएगा? इसकी जो लॉजिस्टिक्स है उसके बारे में कांग्रेस पार्टी ने न उस समय कुछ स्पष्ट किया था, न इस समय।
उस समय कांग्रेस पार्टी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा था कि ये मास्टर स्ट्रोक है। इस योजना की घोषणा के बाद पूरा चुनाव बदल जाएगा और कांग्रेस के पक्ष में हवा बहने लगेगी। कांग्रेस को बड़ा समर्थन मिलेगा। लेकिन हुआ क्या? 2019 के चुनाव का नतीजा आपको याद दिलाने की जरूरत नहीं है। कांग्रेस बुरी तरह से औंधे मुंह गिरी। उसे लोकसभा की 543 में केवल 53 सीटें मिली। कांग्रेस पार्टी को लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता का दर्जा पाने लायक भी सीटें नहीं मिलीं। राहुल गांधी की उस योजना का यह परिणाम हुआ।
एक और ताजा उदाहरण राजस्थान विधानसभा के चुनाव का है। बड़े जोर शोर से घोषणा की गई कि कल प्रियंका वाड्रा आने वाली हैं। वह ऐसी नायाब योजना की घोषणा करेंगी जिसके बाद पूरा चुनाव बदल जाएगा। वह गेम चेंजर योजना होगी। वो गेम चेंजर योजना यह थी कि प्रत्येक परिवार में 18 साल से ऊपर की एक महिला को 8000 रूपये प्रतिमाह दिया जाएगा। राजस्थान विधानसभा चुनाव के नतीजे पर उसका कोई असर नहीं पड़ा। किसी को विश्वास नहीं हुआ किसी ने नहीं माना। ऐसी घोषणाओं का असर नहीं होता। असर जो बोल रहा है उसकी विश्वसनीयता से होता है। वह कितना विश्वसनीय है। जब कांग्रेस के नेता इस तरह की घोषणा करते हैं तो लोगों के मन में सवाल उठता है कि भाई आप 55-60 साल सत्ता में रहे तब आपने ऐसा कुछ क्यों नहीं किया। अभी हाल में 2004 से 2014 तक आप सत्ता में रहे तब क्यों नहीं इसको लागू किया गया। तब राहुल गांधी भी राजनीतिक रूप से सक्रिय थे, पार्टी में पदाधिकारी थे, उसके बावजूद क्यों नहीं किया। उनकी मां एक तरह से पीछे से सरकार चला रही थीं डिफैक्टो प्राइम मिनिस्टर थीं, मनमोहन सिंह अर्थशास्त्री थे उनको यह अर्थशास्त्र क्यों नहीं समझ में आया।
अगर इस तरीके से देश से गरीबी एक झटके में हटाई जा सकती है, देश को विकसित देशों की श्रेणी में खड़ा किया जा सकता है, तो कांग्रेस के दिमाग में ऐसी योजना क्यों नहीं आई। अब राहुल गांधी के साथ ऐसे कौन से विद्वान अर्थशास्त्री हैं जिन्होंने उनको समझाया कि इससे गरीबी तत्काल हट जाएगी। एक झटके में गरीबी को हटा दिया जाएगा।
दरअसल इस तरह की घोषणाओं से चुनाव नहीं बदलते। इस तरह की घोषणाओं से आपके बारे में लोगों की राय बदलती है। यह बात राहुल गांधी को पिछले 20 साल से बहुत से लोग, खास तौर से इस देश का मतदाता, समझाने की कोशिश कर रहा है लेकिन अभी तक उनकी समझ में यह बात आई नहीं। देश में लोकसभा चुनाव का प्रचार चल रहा है और 19 अप्रैल को पहले चरण का मतदान होना है। कांग्रेस पार्टी फिर बड़ी उत्साहित है कि महिलाओं को एक लाख रूपये देने की इस घोषणा के बाद पूरा चुनाव कांग्रेस के पक्ष में हो जाएगा और भारतीय जनता पार्टी को बड़ा नुकसान होगा।
सवाल कांग्रेस या बीजेपी की घोषणा का नहीं है। दोनों पक्षों के नेतृत्व की विश्वसनीयता का है। मोदी की गारंटी पर लोग भरोसा करते हैं, मोदी की बात पर लोग भरोसा करते हैं। राहुल की गांधी की बात को लोग ज्यादा गंभीरता से नहीं लेते। इसके बारे में कांग्रेस को विचार करना चाहिए कि आखिर ऐसी स्थिति क्यों बनी है। ये जो गेम चेंजर, मास्टर कार्ड के जुमले हैं वह चुनाव में नहीं चलते। इसी तरह का जुमला या कहें मास्टर कार्ड था पंजाब के विधानसभा चुनाव में चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाने का। कि पहला दलित मुख्यमंत्री बना रहे हैं। देश भर में संदेश जाएगा। पूरे देश का दलित मतदाता कांग्रेस पार्टी के साथ खड़ा हो जाएगा। ऐसा कुछ नहीं हुआ। देश भर का छोड़िए पंजाब में जहाँ 32 फीसद दलित मतदाता हैं वे भी कांग्रेस पार्टी के साथ नहीं आए। दरअसल इस तरह की घोषणाओं, शिगूफों से चुनाव नहीं बदलते, राजनीति नहीं बदलती। यह बात राहुल गांधी जितनी जल्दी समझ ले उतना अच्छा है।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अखबार’ के संपादक हैं)