प्रदीप सिंह।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जेल में बंद हैं लेकिन जेल से सरकार चलाने की उनकी जिद्द अभी तक गई नहीं है। वह इस बात पर अड़े हुए हैं कि वह जेल में रहेंगे और सरकार चलाएंगे।
दो बातें समझिए। एक- जेल में रहकर सरकार चलाने का मतलब है कि हम कुर्सी पर बने रहेंगे। कुर्सी नहीं छोड़ेंगे। दूसरा- हमारा शीश महल बचा रहे। अरविंद केजरीवाल अच्छी तरह से जानते हैं कि जब तक वह मुख्यमंत्री हैं तभी तक वह शीश महल उनके परिवार के पास है। जिस दिन वह मुख्यमंत्री पद छोड़ेंगे उस दिन उनके परिवार को वह सरकारी आवास खाली करना होगा। उसके लिए अरविंद केजरीवाल हर तरह का छल कपट कर रहे हैं पर और उनका छल कपट कामयाब नहीं हो पा रहा है। उनके रास्ते में इस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या भारतीय जनता पार्टी रोड़े की तरह नहीं खड़ी है। उनको इस समय अगर अपना कोई सबसे बड़ा दुश्मन नजर आ रहा होगा तो वह है दिल्ली हाई कोर्ट और राउज एवेन्यू कोर्ट। ये दो अदालतें यानी ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट। हालांकि सुप्रीम कोर्ट से भी कोई राहत नहीं मिल रही।
उन्होंने अपनी गिरफ्तारी और कस्टडी को हाई कोर्ट में चैलेंज किया था। हाई कोर्ट ने उनकी याचिका को रद्द कर दिया। उन्होंने हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। उम्मीद की जा रही है कि शायद सोमवार को सुनवाई होगी।
इसके अलावा एक और मुकदमा था। आप शायद भूल गए हों तो याद दिला दूं। वह यह कि उन्होंने राउज एवेन्यू कोर्ट यानी ट्रायल कोर्ट में मांग की थी कि मुझे अपने वकीलों से हफ्ते में 5 दिन सलाह मशविरा करने की परमिशन दी जाए। इस बारे में जेल मैनुअल बड़ा स्पष्ट है। जेल मैनुअल कहता है कि हर विचाराधीन कैदी को हफ्ते में एक बार अपने वकील से सलाह मशवरा करने का अधिकार है। अरविंद केजरीवाल ने कहा कि मेरे ऊपर बहुत सारे मुकदमे चल रहे हैं। अलग अलग राज्यों और शहरों में चल रहे हैं तो वकीलों से सलाह मशवरा बहुत ज्यादा करना है। इसलिए मुझे ज्यादा समय चाहिए। तब उनको विशेष तौर पर दो दिन का समय दे दिया गया। हफ्ते में दो दिन अपनी लीगल टीम से वो मिल सकते हैं। अब उन्होंने कहा कि जिस तरह से संजय सिंह को हफ्ते में पाच दिन लीगल टीम से मिलने की परमिशन दी गई थी उसी तरह से उनको भी दी जाए। पहले तो कोर्ट ने मना कर दिया कि संजय सिंह को जो परमिशन दी गई थी वह इसलिए कि उस मामले में जेल अथॉरिटीज और इंफोर्समेंट डायरेक्टरेट को सुना नहीं गया था। उनको बिना सुने वह फैसला दे दिया गया था। इसलिए संजय सिंह को परमिशन मिल गई थी। लेकिन वह नजीर नहीं बन सकता और आपको हफ्ते में पाच दिन अपने वकीलों से मिलने की सुविधा नहीं मिल सकती।
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इस बात पर गौर कीजिए कि आखिर अरविंद केजरीवाल हफ्ते में पाच दिन अपने वकीलों से क्यों मिलना चाहते थे। जेल मैनुअल के हिसाब से उनके लिए जेल में रहकर सरकार चलाना संभव नहीं है। भले ही संविधान में ऐसी कोई व्यवस्था या प्रावधान न हो कि कोई मुख्यमंत्री या मंत्री अगर जेल जाता है तो अपने पद पर बना रहे या नहीं। इसके बारे में संविधान चुप है। इसका मतलब मान लिया गया कि वह पद पर बना रह सकता है। उसको हटाने का कोई प्रावधान नहीं है यह बात दिल्ली हाई कोर्ट भी कह चुकी है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट भी कह चुका है कि इस बारे में कानून बनाने का काम सरकार और संसद का है। सुप्रीम कोर्ट ऐसा निर्देश नहीं दे सकता। लेकिन सुप्रीम कोर्ट यह इशारा कर चुका है कि नैतिकता का तकाजा है कि पद पर नहीं बने रहना चाहिए। मैंने पहले भी आपको बताया था कि उसी के बाद सत्येंद्र जैन और नवाब मलिक ने मंत्री पद से इस्तीफा दिया था। वह जेल में रहकर भी मंत्री बने हुए थे।
अरविंद केजरीवाल बहुत चालाक बल्कि कहें तो धूर्त किस्म के राजनेता हैं। उनको लगता है कि उनसे ज्यादा बुद्धिमान, चालाक कोई नहीं है और वह अपनी इस चालाकी और धूर्तता से किसी को भी पछाड़ सकते हैं। कोई भी परिस्थिति हो उसमें से निकल सकते हैं। उनकी यह गलतफहमी धीरे-धीरे खत्म होना शुरू हो गई है। कहावत है कि रस्सी जल गई बल नहीं गए। तो रस्सी जल गई है लेकिन अभी बल नहीं गए हैं। अभी वो ये मानने को तैयार नहीं है कि उनके सारे पैंतरे फेल हो चुके हैं। जब वो ईडी की कस्टडी में थे तो उनको अपने वकीलों यानी लीगल टीम से मिलने की परमिशन थी। आपको याद होगा उस दौरान दिल्ली सरकार में मंत्री आतिशी मर्लेना ने एक उनका एक आदेश मीडिया को दिखाते हुए कहा था कि मुख्यमंत्री ने ईडी कस्टडी से यह आदेश जारी किया है। वह आदेश था जल विभाग के बारे में कि लोगों को पानी की कमी ना होने पाए इसका ध्यान रखा जाए। इसके लिए सारी व्यवस्था की जाए। उसकी फोटोकॉपी दिखाई थी हालांकि उस पर किसी के दस्तखत नहीं थे, कोई तारीख नहीं थी। दस्तखत इसलिए नहीं थे कि ईडी की कस्टडी में वह किसी कागज पर दस्तखत कर नहीं सकते थे। तो सवाल यह था कि आदेश आया कहां से?
ईडी ने इसकी जांच की। ईडी की कस्टडी में रहते हुए केजरीवाल इस तरह का कोई आदेश पारित नहीं कर सकते थे और कोई लिखित आदेश तो किसी भी हालत में नहीं कर सकते थे। मौखिक रूप से किसी को कुछ बोल दें वह अलग बात है। ईडी को जांच के दौरान में अरविंद केजरीवाल की टीम लीगल टीम में शामिल एक वकील ने बता दिया कि वह आदेश हमको डिक्टेट किया गया था और हमने वह पार्टी को दे दिया था। जिसको बाद में आतिशी ने मीडिया को दिखाया। उस आदेश के जरिए केजरीवाल संदेश देना चाहते थे कि उन्हें जेल में रहते हुए दिल्ली वालों की चिंता है। इस भ्रम को वह बनाए रखना चाहते थे कि मैं जेल से सरकार चला रहा हूं। एक भ्रम जाल उन्होंने बुना कि मुझे जेल से सरकार चलाना है तो उसके लिए कुछ दिखना भी चाहिए। कोई आदेश भी जेल से जाना चाहिए। जेल से आदेश लाने के लिए इस तरीके का इस्तेमाल किया गया जो कि गैर कानूनी है। वह कस्टडी में रहते हुए अपने वकील को ऐसा कोई आदेश डिक्टेट नहीं कर सकते। इसको भी आधार बनाकर राउज एवेन्यू कोर्ट ने जो फैसला दिया उसमें कहा कि आपको 5 दिन लीगल टीम से मिलने की इजाजत नहीं दी जा सकती। आपने इसका दुरुपयोग किया। आप लीगल टीम से सलाह मशवरे के नाम पर आदेश पारित नहीं कर सकते। अब सीधे-सीधे तो अदालत यह नहीं कह सकती और यह उनके अधिकार क्षेत्र में भी नहीं है कि आप जेल से सरकार नहीं चला सकते। यह बात न तो ट्रायल कोर्ट कहेगा, न हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट। लेकिन संकेत पर्याप्त है कि ऐसा कोई प्रावधान नहीं जिसके तहत आपको जेल से सरकार चलाने की विशेष सुविधा मिले। (विस्तार से जानने के लिए वीडियो देखें)
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अखबार’ के संपादक हैं)