प्रहलाद सबनानी।
विश्व में कई गतिविधियां एक चक्र के रूप में चलती रहती है। एक कालखंड के पश्चात चक्र कभी नीचे की ओर जाता है एवं एक अन्य कालखंड के पश्चात यह चक्र कभी ऊपर की ओर जाता हुए दिखाई देता है। विदेशी व्यापार के मामले में वर्ष 1750 तक पूरे विश्व में भारत की तूती बोलती रही है, परंतु इसके पश्चात यूरोपीयन देशों ने विस्तारवादी नीतियों के चलते अपने आर्थिक हित साधते हुए विभिन्न देशों पर अपना कब्जा जमा लिया। ब्रिटेन, फ्रांन्स, डच जैसे देशों ने एशियाई देशों एवं कुछ अफ्रीकी भू भाग पर पर अपना कब्जा जमाया तो स्पेन आदि देशों ने अमेरिकी महाद्वीप पर अपना कब्जा जमाया।

समय के साथ चक्र कुछ इस प्रकार चला कि वर्ष 1950 आते आते अमेरिका पूरे विश्व में सबसे अमीर देशों की श्रेणी में शामिल हो गया और ब्रिटेन, जिसके बारे में कभी कहा जाता था कि ब्रिटेन की महारानी के राज्यों में सूरज कभी डूबता नहीं है, का आर्थिक दृष्टि से ढलान शुरू हो गया और आज ब्रिटेन के आर्थिक एवं सामाजिक ढांचे की  स्थिति हम सभी के सामने है। ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था हाल ही में पूरे विश्व में छठे स्थान पर पहुंच गई है तथा अमेरिका, चीन, जापान, जर्मनी के पश्चात भारत आज विश्व की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। जबकि वर्ष 1750 के पश्चात जब ब्रिटेन ने भारत पर अपना कब्जा स्थापित कर लिया था उसके बाद भारत की स्थिति यहां तक बिगड़ी थी कि पूरी विश्व की अर्थव्यवस्था में भारत के विदेश व्यापार की हिस्सेदारी वर्ष 1750 के 32 प्रतिशत से घटकर वर्ष 1947 में 3 प्रतिशत के नीचे आ गई थी। परंतु, एक बार फिर कालचक्र अपना रंग दिखाता हुआ नजर आ रहा है और अमेरिकी अर्थव्यवस्था के साथ ही वहां का सामाजिक ताना बाना भी छिन्न भिन्न होता हुआ दिखाई दे रहा है।

दरअसल, अमेरिका ने पूंजीवादी नीतियों को अपनाकर अपने नागरिकों में केवल आर्थिक उन्नति को ही विकास के एकमात्र मार्ग के रूप में चुना था, इससे वहां के नागरिकों में किसी भी प्रकार से धन अर्जन करने की प्रवृत्ति विकसित हुई एवं सामाजिक, आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक ताना बाना छिन्न भिन्न हो गया। परिवार व्यवस्था समाप्त हो गई जिसका परिणाम आज हमारे सामने हैं कि आज अमेरिका में नागरिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा योजना, मेडीकेयर योजना, मेडीकैड योजना, प्रौढ़ नागरिकों को सुविधाएं एवं केंद्र (फेडरल) सरकार के कर्मचारियों को अदा की जा रही पेंशन, आदि योजनाएं सरकार द्वारा नागरिकों के हितार्थ अमेरिका में चलानी पड़ रही हैं। इन योजनाओं पर खर्च किए जा रहे 2 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर की भारी भरकम राशि का लाभ करोड़ों अमेरिकी नागरिक प्रतिवर्ष उठा रहे हैं। यह राशि अमेरिकी सकल घरेलू उत्पाद का 14 प्रतिशत है। सुरक्षा की मद पर भी अमेरिका द्वारा 70,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर का खर्च प्रतिवर्ष किया जाता है। बेरोजगारी बीमा लाभ योजना पर भी भारी भरकम राशि अमेरिकी सरकार द्वारा प्रतिवर्ष खर्च की जाती है। अमेरिका में सेवा निवृत्त हो रहे कर्मचारियों की संख्या लगातार बढ़ रही है जिसके कारण इस मद पर व्यय की जाने वाली राशि में भी बेतहाशा वृद्धि हो रही है, साथ ही लगातार बढ़ रहा सुरक्षा खर्च, स्वास्थ्य सेवाओं पर व्यय की लगातार बढ़ रही राशि के बीच वर्तमान में कर की दरों में वृद्धि नहीं करने के कारण बजटीय घाटे पर दबाव बढ़ता जा रहा है।

U.S. economy contracts in 2020; worst performance since 1946 - The Economic  Times

इकोनोमिक रिपोर्ट आफ द प्रेजीडेंट के अनुसार अमेरिका में वर्ष 2000 में 23,600 करोड़ अमेरिकी डॉलर का बजट आधिक्य था जो वर्ष 2001 में घटकर 12,600 करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो गया। परंतु, वर्ष 2002 में एक बार जो 15,800 करोड़ अमेरिकी डॉलर का बजट घाटा प्रारम्भ हुआ तो इसके बाद से वह बढ़ता ही गया है। वर्ष 2009 में तो बजट घाटा बढ़कर 141,300 करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो गया, वर्ष 2010 में 129,400 करोड़ अमेरिकी डॉलर, वर्ष 2011 में 130,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर, वर्ष 2012 में 108,700 करोड़ अमेरिकी डॉलर एवं वर्ष 2020 में 313,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर, वर्ष 2021 में 277,000 करोड़ अमेरिको डॉलर एवं वर्ष 2022 में 188,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहा है।

अमेरिका में प्रति परिवार वास्तविक औसत आय वर्ष 1973 में (वर्ष 2015 में डॉलर की कीमत पर) 50,000 अमेरिकी डॉलर थी। अमेरिका के लगभग आधे परिवारों की वास्तविक औसत आय 50,000 अमेरिकी डॉलर से अधिक थी एवं शेष आधे परिवारों की 50,000 अमेरिकी डॉलर से कम थी, जिससे आय की असमानता आज की तुलना में कम दिखाई देती थी। वर्ष 1973 से वर्ष 2015 तक अमेरिका में उत्पादकता में 115 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है जबकि परिवारों की औसत आय (मुद्रा स्फीति के समायोजन के बाद) केवल 11 प्रतिशत ही बढ़ी है। यह भी, इस बीच, अमेरिकी महिलाओं को भारी मात्रा में प्रदान किए गए रोजगार के अवसरों के चलते सम्भव हो पाया है। इस प्रकार, मुद्रा स्फीति के समायोजन के पश्चात, अमेरिका में वर्ष 1973 के पश्चात औसत आय में वृद्धि नगण्य ही रही है। वर्ष 1973 से वर्ष 2007 के बीच अमेरिकी मध्यवर्गीय परिवारों ने उपभोग पर औसत खर्च को दुगने से भी अधिक कर दिया है। जिसके कारण इन परिवारों की बचत दर 10 प्रतिशत से घट कर 2 प्रतिशत हो गई है। बल्कि कई परिवारों को तो अपने मकानों पर ऋण लेकर एवं क्रेडिट कार्ड के माध्यम से ऋण लेकर भी काम चलाना पड़ रहा हैं।

जोसेफ शूम्पटर के अनुसार अमेरिका में कार ने घोड़ा गाड़ी को खत्म कर दिया एवं कम्प्यूटर ने टाइपराइटर को खत्म कर दिया। इसे “रचनात्मक विनाश” (क्रीएटिव डेस्ट्रक्शन) का नाम दिया गया, क्योंकि इससे उत्पादकता का स्तर बढ़ा था, परंतु रोजगार के लाखों अवसर समाप्त हो गए थे। अमेरिका में आज 5 में से 4 रोजगार के अवसर, सेवा क्षेत्र में उत्पन्न होते हैं, जहां तुलनात्मक रूप से आय कम है। कृषि एवं उद्योग (विनिर्माण सहित) क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बहुत कम मात्रा में उपलब्ध हो पा रहे हैं।

60 वर्ष पूर्व तक अमेरिका विदेशी व्यापार के मामले में आत्मनिर्भर था। अमेरिका में विभिन्न उत्पादों का जितना उपभोग होता था उन लगभग समस्त उत्पादों का उत्पादन भी अमेरिका में ही होता था। बल्कि, विदेशी व्यापार के मामले में तो उस समय अमेरिका के पास विदेश व्यापार आधिक्य शेष रहता था। आज अमेरिका में विभिन्न उत्पादों का जितना उत्पादन होता है उससे कहीं अधिक उपभोग होता है। अमेरिकी नागरिक आज अपनी आय से अधिक व्यय करता हुआ दिखाई देता है। अमेरिका में कई नए शहरों की बसावट के पहिले, समस्त बड़े नगरों में 75 प्रतिशत श्रमिक रेल्वे एवं बसों से यात्रा करते थे। परंतु आज केवल 5 प्रतिशत नागरिक ही पब्लिक वाहनों का उपयोग, एक स्थान से दूसरे स्थान पर आने जाने के लिए, करते हैं। समस्त नागरिकों के पास अपनी अपनी कार है एवं केवल स्वयं ही उस कार में वे यात्रा करते हुए पाए जाते हैं। इससे पेट्रोल, डीजल एवं गैस की खपत में बेतहाशा बृद्धि दर्ज हुई है। द्वितीय विश्व युद्ध तक अमेरिका कच्चे तेल का एक निर्यातक देश हुआ करता था परंतु आज अमेरिका अपनी कच्चे तेल की कुल आवश्यकता का एक तिहाई भाग आयात करता है।

The real reason American public transportation is such a disaster | Vox

अमेरिका में वर्ष 2000 में विदेशी व्यापार घाटा 38,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर का था जो 2021 में बढ़कर 86,100 करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो गया है। 1970 के दशक तक, लगभग प्रत्येक वर्ष, अमेरिका के पास विदेशी व्यापार आधिक्य हुआ करता था। परंतु, इसके पश्चात अमेरिका की स्थिति विदेशी व्यापार के मामले में लगातार बिगड़ती चली गई है।

अमेरिका में उच्च आय वाले क्षेत्रों में रोजगार के अवसर लगातार कम हो रहे हैं। अमेरिका में प्रति घंटा औसत मजदूरी की दर वर्ष 1973 से (मुद्रा स्फीति की दर के समायोजन के पश्चात) लगभग नहीं के बराबर बढ़ी है। अमेरिका में आय की असमानता लगातार बढ़ती जा रही है। फेडरल बजट घाटा अब अरक्षणीय (अनसस्टेनेबल) स्तर पर पहुंच गया है। विदेशी व्यापार घाटा के लगातार बढ़ते जाने से आज अमेरिका 100 करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक की राशि का ऋण प्रतिदिन ले रहा है। देश में लगातार बढ़ रही गरीबी अब एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी की ओर स्थानांतरित हो रही है।

कुल मिलाकर अमेरिकी अर्थव्यवस्था की वर्तमान हालत को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि पश्चिमी आर्थिक दर्शन पर टिका पूंजीवादी मॉडल पूर्णतः असफल हो रहा है। इसी कारण से अमेरिकी अर्थशास्त्रियों द्वारा भी अब यह कहा जाने लगा है कि पूंजीवादी मॉडल समाप्ति की ओर अग्रसर हो रहा है अतः साम्यवाद एवं पूंजीवाद के बाद एक तीसरे आर्थिक रास्ते की अब सख्त आवश्यकता है, जो संभवत: केवल भारत ही उपलब्ध कर सकता है।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक हैं)