इंटरनेट पर 80% से ज्यादा अश्लीलता- गलत संगत से बचने का तरीका

apkaakhbarसद्गुरु।

बस, गलत प्रकार के माहौल में होने से अशुभ चीजें आप पर असर डाल सकती हैं। जीवन में हमेशा सही जगह पर पहुंचना एक कौशल है। इसे किस्मत न समझें। हर आध्यात्मिक परंपरा में संग, संगत या सही तरह की संगति में रहना हमेशा विकास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। बहुत कम ही मनुष्य होते हैं- बस बहुत छोटा सा प्रतिशत- जो चाहे कहीं भी हों फिर भी वे अपने मार्ग पर बने रहेंगे। बाकी सभी को मदद की जरूरत है। अगर वे सही कंपनी में नहीं होंगे तो उनके सही काम करने की संभावना बहुत कम है। दुर्भाग्य से यही सच्चाई है।


यह एक बीमार दुनिया

जरूरी नहीं है कि यह दुर्भाग्य हो। क्योंकि इसका मतलब यह है कि उन पर असर डाला जा सकता है। यह समाज की जिम्मेदारी है कि हर व्यक्ति के लिए- और सभी के लिए- जो सुंदर है उस दिशा में जाने के लिए सही माहौल तैयार किया जाए। पर शायद ही कभी समाज ने इस जिम्मेदारी को सही मायनों में निभाया है। क्योंकि समाज को दिशा नहीं दी जाती। समाज में बदलाव आने दिया जाता है। जैसा असर होता है- समाज उसी दिशा में जाता है। हालांकि मैं विश्वास नहीं करना चाहता, पर मुझे बताया गया है कि इंटरनेट पर अस्सी प्रतिशत से ज्यादा अश्लीलता है। मैं विश्वास नहीं करना चाहता कि यह संभव है। पर जानकार लोग मुझसे कह रहे हैं कि सद्गुरु यह सच है। यह एक बीमार दुनिया है। अस्सी प्रतिशत, यानी दुनिया बीमार है- न कि स्वस्थ।

ईमानदारी कमजोर होगी तो…

Growth Isn't Always Linear: Two Steps Forward, One Step Back

सही तरह के असर में रहना- ऐसा असर जो आपको पोषित करे, आपको परम सत्य की ओर ले जाए। ऐसा प्रभाव जो आपको सत्य और ईमानदारी के मार्ग पर चलने का साहस और शक्ति दे। ईमानदारी कमजोर होगी तो कोई भी इंसान कभी आध्यात्मिक नहीं हो पाएगा। और यह समझिए कि बुरी चीजें आप तक तब भी पहुंच सकती हैं जब निशाना आप न हों। बस गलत माहौल में होने से भी अशुभ चीजें आप पर असर डाल सकती हैं। इससे याद आया। दो आतंकवादी लिफाफा बम तैयार कर रहे थे। काफी बम बनाने के बाद एक ने दूसरे से पूछा, क्या तुमने काफी भरा है। तुम्हें लगता है हमने लिफाफों में काफी आरडीएक्स भर दिया है। दूसरे ने कहा- तुम खोलकर देख लो? वह बोला- अरे मैंने इसे खोला तो यह फट जाएगा। दूसरा बोला- बेवकूफ इस पर तुम्हारा एड्रेस नहीं है।

हर जगह काफी गंदगी

जरूरी नहीं कि एड्रेस आपका हो। गलत डिब्बा खोल दिया तो यह वहीं फट जाएगा। दुनिया में ऐसा ही है। आपके अंदर भी ऐसा ही होता है। आपके सिर में कई डिब्बे हैं। गलत डिब्बा खोला तो कीड़े निकलेंगे। सही डिब्बा खोला तो उसमें से सुगंध निकलेगी। क्या आपने यह देख है? आपने अपने अंदर यह देखा है कि मन के एक हिस्से को खोलने से गंदगी निकलती है। मन के दूसरा हिस्सा खोलने से सुगंध निकलेगी। क्या आपने यह नहीं देखा? पर्याप्त जागरूकता और सही संगति में होना ताकि गंदगी न फैले- ताकि आप अपने अंदर की सुगंध को खोल सकें, गंदगी नहीं। यह आध्यात्मिक विकास का जरूरी हिस्सा है क्योंकि गंदगी के लिए घटका तलाशना जरूरी नहीं होता। आपने दिमाग में काफी गंदगी है… है न! बात यही है कि हर जगह काफी गंदगी है। आश्रम में भी काफी कचरा है… इतने लोग रहते हैं। मुझे यकीन है कि काफी गंदगी है। पर हम यहां अच्छी हवा और सुगंध के बीच बैठते हैं। हम वहां नहीं बैठते जहां गंदगी है।

जागरूकता और संगति जरूरी

आपके अंदर भी यही सच है। आपके शरीर के खोल में गंदगी और सुगंध है। आप अपने और आसपास के लोगों के लिए कौन सा हिस्सा खोलते हैं यह बड़ा सवाल है। इसके लिए एक स्तर की जागरूकता और संगति जरूरी है। तभी सत्संग किया जाता है। सत्य की संगति। यह बहुत जरूरी है। अगर आप आश्रम में चारों और घूमें… आठ या दस बहुत गंदे टैंक होंगे। उन्हें सैप्टिक टैंक कहते हैं। सैप्टिक से भरे हुए। अगर आप रोज वहां बैठते हैं तो आप जरूर यह निष्कर्ष निकालेंगे कि ईशा योग केंद्र धरती की सबसे गंदी जगह है। आप उसमें गिर जाएं, तो ईशा योग आपके जीवन का सबसे भयानक अनुभव होगा। पर आपसे उसमें गिरने की उम्मीद नहीं की जाती, इसमें (सत्संग हाल) गिरने की उम्मीद की जाती है।

कर्म ही इतिहास

आप भूगोल नहीं समझा पाए, क्योंकि आपका इतिहास गलत है। आपका कर्म ही आपका इतिहास है। संकरन पिल्लई ने फैसला किया कि वह एक डाकू बनेगा- क्योंकि उसका बिजनेस नहीं चल रहा था- कोई उसे नौकरी नहीं दे रहा था। तो उसने फैसला किया कि वह किसी को लूट लेगा। इसके लिए उसने एक देसी बंदूक ली। रात वह एक जेवरात की दुकान में गया, वहां मौजूद क्लर्क पर बंदूक तान दी और कहा- पैसे दो वरना तुम भूगोल हो जाओगे। क्लर्क ने कहा- आपका मतलब है कि इतिहास हो जाओगे। संकरन ने कहा- चुप करो, विषय बदलने की कोशिश मत करो।

आप या तो इस गड्ढे में गिर सकते हैं, या उस में

5 Ways to Step Forward When You're Scared to Death

हम विभिन्न विषयों की बातें नहीं कर रहे- विषय एक ही है- वो हैं आप! आप या तो इस गड्ढे में गिर सकते हैं, या उसमें। वही आपके जीवन का अनुभव होगा। तो, सही जगह पर गिरना एक गुण है। आपको ये विकसित करना होगा। आपको परिपक्व होना होगा कि सही स्थिति में कैसे रहना है।

अंदर से खुश हों

सत्संग का मतलब बस यही है- सत्य से मिलना- या, आप सच्चाई के साथ संबंध बना रहे हैं। अगर आप सत्य की संगति में हैं तो आप अंदर से खुश होंगे। अगर आप अंदर से खुश हैं तो स्वाभाविक रूप से सुखद चीजें आपकी ओर आएंगी… और आप भी खुद ही सुखद चीजों की ओर बढ़ेंगे। अगर आप अंदर से खुश नहीं होंगे तो आप अप्रिय चीजों को आकर्षित करेंगे, और वैसी ही चीजों की तरफ बढ़ेंगे।

जब मन उदास होता है

आश्रम में जब मन उदास होता है तो कहां जाकर बैठते हैं? सेप्टिक टैंक में मत जाइए क्योंकि आपका मूड खराब है। पर आमतौर पर यही आदत होती है। जब आपका मूड खराब होता है तो आप पांच ऐसे लोग खोजेंगे, जो खराब मूड में हैं। जब आपका मूड खराब हो तब आपको पांच ऐसे लोग ढूंढने चाहिए- जो अच्छे मूड में हों… है न! नहीं, पर ऐसा नहीं होता। जब आप बुरे मूड में होते हैं तब आप पांच ऐसे लोग ढूंढते हैं जो वैसे ही मूड में हों। ये ऐसा ही है जैसे उदास होने पर सेप्टिक टैंक में तैरने जाना। वे जीवन चलाने का गलत तरीका है। मैं आपको ऐसा करने से रोक नहीं रहा। बस… इसमें आपका फायदा नहीं है। आप बहुत आत्मनिर्भर बन गए हैं- अब आपके जीवन में दुश्मन होना जरूरी नहीं है। ये भयंकर आत्मनिर्भरता है।

वरना अध्यात्म भी बन जाता है युद्ध

अध्‍यात्‍म का हमारे जीवन पर इस तरह पड़ता है असर - ज्ञान-गुण

आध्यात्मिक प्रक्रिया अलग होती है। शारीरिक और मानसिक स्वच्छता रखना पहली बात है। वरना अध्यात्म एक लड़ाई होगी। ये वसंत की हवा में चमेली की खुशबू नहीं होगी। नहीं, ये एक कठिन काम होगा- एक लड़ाई- हमेशा लड़ाई। बहुत से लोग अपने जीवन- विशेष रूप से आध्यात्मिक जीवन- को एक युद्ध के रूप में अनुभव करते हैं। क्योंकि वे अपने शरीर के भूगोल और अपने मानसिक स्थान के भूगोल के बारे में मौलिक अनुशासन नहीं रखते। अगर इन दोनों चीजों को मैनेज नहीं किया गया तो हर चीज लड़ाई होगी। अब आप दावा करते हैं कि आप आध्यात्मिक हैं तो वो भी एक लड़ाई होगी। जीवन ऐसा ही होगा।

रोज एक कदम आगे बढ़ें

WHY DO I TAKE ONE STEP FORWARD BUT TWO STEPS BACK? – Life Decided

सत्संग यानी सत्य से मित्रता करना। सत्य आपका मित्र है, असत्य नहीं। आप सच्चाई का जो भी स्तर जानते हैं वहीं से शुरू करें। परम सत्य से शुरू करना जरूरी नहीं है, आप नहीं कर सकते। आपके हिसाब से जो सत्य है, वहीं से शुरुआत करें। आप सत्य को सच बोलना मानते हैं- तो प्लीज वहीं से शुरू करें। आप उसे आसपास की चीजों के प्रति कोमल होना मानते हैं तो वहीं से शुरू करें- कहीं से भी शुरू करें। आपके हिसाब से सच्चाई जो भी है आप वहीं से शुरू करें, और रोज एक कदम आगे बढ़ें।

(लेखक आध्यात्मिक गुरु और ईशा फाउंडेशन के संस्थापक हैं)