
शनिवार 10 मई को हुए युद्धविराम के पूरे घटनाक्रम को बहुत ध्यान से देखने पर ही समझ में आएगा भारत के लिए क्या सबक है? मेरे हिसाब से सबसे बड़ी बात ये हुई है कि अमेरिका ने हमको एक बार फिर धोखा दिया है। मैं यह नहीं कहूंगा कि वह पहले भी धोखा देता रहा। पहले वो खुलकर एक साइड लेता रहा। पाकिस्तान के साथ दिखता रहा। इस बार दोस्ती की आड़ में उसने धोखा दिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की दोस्ती, जिस पर हमने बहुत ज्यादा भरोसा किया, उन्होंने एक तरह से पीछे से वार किया है। दोस्ती का नाटक करते रहे, साथ देने का वादा करते रहे और वास्तव में साथ दिया पाकिस्तान का।भारत को यह बात गांठ बांध लेनी चाहिए कि पाकिस्तान का बने रहना अमेरिका के हित में है। उसकी आर्म्स फैक्ट्री के लिए। और भारत को हमेशा परेशान रखने के लिए पाकिस्तान का बने रहना और ताकतवर बने रहना अमेरिका, यूरोप और चीन सबके हित में है। इसलिए ये देश कभी पाकिस्तान को खत्म नहीं होने देंगे। हमारी आदत है कि हम कगार पर पहुंचकर फिर कदम पीछे खींच लेते हैं। यह हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है।
पहले बात कर लेते हैं अमेरिका की। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने क्या-क्या धोखा दिया। पहला धोखा- पहलगाम की घटना के बाद जब उसकी निंदा की तो भारत को भरोसा हुआ कि अमेरिका हमारे साथ है। अमेरिका इस तरह की आतंकवादी घटनाओं के खिलाफ है। अमेरिका बदल गया है क्योंकि उसका प्रशासन बदल गया है, उसके राष्ट्रपति बदल गए हैं। उनकी नीति पिछले बाइडन प्रशासन से अलग है। उसकी नीति अलग है, राष्ट्रपति अलग हैं, यह सही है। लेकिन भारत के संदर्भ में नहीं। यहां हमने धोखा खाया जब अमेरिका ने इस घटना की निंदा की।
दूसरा, उनके वाइस प्रेसिडेंट ने जब एक्स पर पोस्ट किया कि यह भारत और पाकिस्तान के बीच का मामला है। हमारा इससे कोई लेना देना नहीं है, तो वो एक तरह से भारत को संदेश दे रहे थे कि हम इस बार पाकिस्तान के साथ नहीं खड़े हैं। हम पाकिस्तान की मदद नहीं करेंगे। हम आपके खिलाफ कुछ नहीं करेंगे। भारत ने फिर धोखा खाया। तीसरा धोखा- जब पाकिस्तान को आईएमएफ का लोन मिलने की स्थिति आई और अमेरिका को अच्छी तरह से मालूम है और अमेरिकी रिपोर्ट्स हैं कि पाकिस्तान विदेशी का इस्तेमाल सिर्फ आतंकवाद के लिए करता है। हथियार खरीदने के लिए करता है। पाकिस्तान में जितने बड़े जनरल हैं सब अरबपति हैं। सबके अपने बिजनेस इंटरेस्ट है। तो यह पैसा उनको जाता है। यह वहां की आवाम की भलाई के लिए नहीं खर्च होता है। इस बात को अमेरिका से बेहतर और कोई नहीं जानता है। अब तो पूरी दुनिया जानती है। यूरोप भी जानता है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने तो सार्वजनिक रूप से कह ही दिया कि अमेरिका, इंग्लैंड और यूरोप के कहने पर हम 30 साल से आतंकवाद की फैक्ट्री चला रहे हैं। अब तो कुछ छिपा हुआ नहीं है। फिर भी हमने धोखा खाया।
पाकिस्तान को आईएमएफ का लोन नहीं मिलता अगर अमेरिका केवल वीटो का इस्तेमाल करता। या वीटो का इस्तेमाल करने की भी नौबत ना आती अमेरिका आईएमएफ के एग्जीक्यूटिव बोर्ड के सदस्यों को संदेश देता कि पाकिस्तान का पिछला ट्रैक रिकॉर्ड बताता है कि वो इस पैसे का दुरुपयोग करता है इसलिए उसे यह लोन नहीं मिलना चाहिए। लेकिन अमेरिका ने पाकिस्तान को लोन दिलवाया जिसकी पाकिस्तान को बेहद सख्त जरूरत थी। इस समय उसके पास हथियार नहीं हैं। उसके पास अपनी सेना की ताकत बढ़ाने के लिए आर्थिक संसाधन नहीं है। अमेरिका ने उसमें उसकी खुलकर मदद की। भारत के विरोध के बावजूद की। भारत का अमेरिका पर कितना प्रभाव है, यह इसी से पता चल गया जब पाकिस्तान को आईएमएफ का लोन मिल गया। तब भी भारत की आंख नहीं खुली। हम उसके बाद भी धोखा खाने को तैयार थे। वह अमेरिका जिसने तीन दिन पहले कहा था कि भारत-पाक के बीच में जो कुछ हो रहा है उससे हमको कोई मतलब नहीं। वो आपस में निपटें। भारत और पाक से बात करने लगा।
इससे पहले भी अमेरिका धोखा दे चुका है। डोनाल्ड ट्रंप के दूसरी बार राष्ट्रपति बनने के बाद जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका की यात्रा पर गए तो ट्रम्प से बांग्लादेश पर सवाल पूछा गया था। इस पर ट्रम्प ने कहा कि बांग्लादेश से निपटने के लिए हमारे दोस्त मोदी काफी हैं। ये झूठ बोला था। ये हमको धोखे में रखने के लिए बोला था। और शनिवार की रात बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने शेख हसीना की पार्टी आवामी लीग पर प्रतिबंध लगा दिया है। क्या मोहम्मद यूनुस की हिम्मत है कि अमेरिका की मर्जी के बिना ऐसा कर सकें। इससे पहले वहां जो कुछ हो रहा था उसका दोष हम जो बाइडन की सरकार पर डाल रहे थे। अमेरिका के डीप स्टेट है को जिम्मेदार ठहरा रहे थे। अब तो डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति हैं तब भी यह हुआ। यह भारत के लिए अच्छी नहीं बुरी खबर है। बहुत बुरी खबर है। तो मोहम्मद यूनुस का यह कदम उठाना और उसके बाद शेख हसीना के ट्रायल की तैयारी हो रही है। ये घटनाएं भारत के पक्ष में नहीं है और इन घटनाओं में सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण भूमिका अमेरिका की है। फिर हमने धोखा खाया।
उसके बाद अमेरिका हमसे सीज फायर की बात करता रहा। हमारे नेताओं, सुरक्षा सलाहकार से संपर्क में रहा। युद्धविराम की घोषणा भारत सरकार या पाकिस्तान की सरकार करती, इससे पहले अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प और उनके विदेश मंत्री ने सोशल मीडिया पर घोषणा कर दी कि युद्ध विराम हो गया। हमने करा दिया। तो यह ट्रंप का इमेज मेकओवर था। ट्रंप जो अपने कैंपेन के दौरान बढ़-चढ़कर बोलते थे कि जिस दिन राष्ट्रपति बनूंगा एक हफ्ते में यूक्रेन और रूस का युद्ध बंद करा दूंगा… इजराइल और हमास का युद्ध बंद करा दूंगा। उनको राष्ट्रपति बने हुए इतने दिन हो गए, आज तक नहीं करा पाए। दोनों जगहों पर युद्ध विराम की घोषणा के बावजूद भी उसे लागू नहीं करा पाया अमेरिका। उनको दुनिया में कहीं क्रेडिट लेना था। ट्रंप की इमेज का सवाल था। तो उसने दिखाया कि भारत और पाकिस्तान पर हमारा कितना प्रभाव है। हम युद्ध रुकवाने की स्थिति में हैं। हम कहेंगे और वे दोनों मान जाएंगे। यह था एक और धोखा।
अगर सचमुच अमेरिका भारत का हित चाहता तो वो चुप रहता। मान लीजिए कि उसने मध्यस्थता की भी थी तो चुप रहता और भारत सरकार को घोषणा करने देता। पाकिस्तान से कहता कि पहले तुम यह कहो कि हम सीज फायर चाहते हैं। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उनके डीजीएमओ का हमारे डीजीएमओ के पास फोन आया। उस पर भारत रिएक्ट करता उससे पहले अमेरिका से उनके राष्ट्रपति और विदेश मंत्री का रिएक्शन आ गया। इससे समझिए अमेरिका ने भारत को किस तरह से बेइज्जत किया कि हम भारत पर हुकुम चला सकते हैं। हम जो चाहें भारत से मनवा सकते हैं।
दूसरी बात, इसके जरिए यह भी संदेश देने की कोशिश की कि अमेरिका मीडिएट कर रहा है। यानी भारत अपनी स्टेटेड पॉलिसी है से हट गया है कि हम थर्ड पार्टी इंटरवेंशन नहीं चाहते। हालांकि ऐसा हुआ नहीं है। पाकिस्तान से बातचीत के लिए या पाकिस्तान से जुड़ी किसी समस्या के मामले में भारत कभी भी थर्ड पार्टी इंटरवेंशन के लिए तैयार नहीं होगा। लेकिन अमेरिका ने दुनिया भर में ये इंप्रेशन क्रिएट किया।
और आखिरी और सबसे बड़ा धोखा है भारत की संप्रभुता, उसकी प्रतिष्ठा और हमारे प्रधानमंत्री की प्रतिष्ठा के साथ खिलवाड़ करने वाला अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का बयान। जिसमें उन्होंने हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ को बधाई दी। डोनाल्ड ट्रंप ने एक झटके में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शहबाज शरीफ के बराबर खड़ा कर दिया। भारत-पाक को बराबर खड़ा कर दिया। 11 साल में अथक प्रयास करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो भारत पाकिस्तान का हाइफनेशन था उसको तोड़ा था। उसको अमेरिका ने एक तरह से फिर से जोड़ दिया। कहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, दुनिया भर में उनकी जो छवि और प्रतिष्ठा है। और कहां शहबाज शरीफ जो अपने देश का चुना हुआ नेता भी नहीं है, जो अपने देश के सेना अध्यक्ष की कार का दरवाजा खोलता है- उसको हमारे प्रधानमंत्री के समकक्ष खड़ा कर दिया। अमेरिका ने यह जो दोस्ती की आड़ में दुश्मनी निभाई है- यह हमको पहले से समझना चाहिए था। हमसे दोस्ती और पाकिस्तान से दोस्ती- इन दोनों में से अगर किसी एक को चुनने का मौका आएगा तो अमेरिका बार-बार पाकिस्तान को चुनेगा।
पाकिस्तान उसके हाथ का खिलौना है। कठपुतली है। भारत उसके हाथ का खिलौना कठपुतली नहीं बनेगा- यह अमेरिका जानता है। अमेरिका यह भी जानता है कि जैसे उसने हेनरी किसिंजर के जमाने में चीन को बढ़ने दिया, अगर आज भारत को बढ़ने देगा तो भविष्य में वह अमेरिका के लिए चीन की तरह नया खतरा बन सकता है। इसलिए हमेशा भारत को परेशान रखो। यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर अमेरिका और चीन दोनों सहमत हैं। भारत की आर्थिक प्रगति से चीन को भी चिंता हो रही है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत ने जो अपनी सैन्य ताकत दिखाई है उससे सबसे ज्यादा चिंता होगी। पाकिस्तान से भी ज्यादा अगर किसी को चिंता होगी तो वो चीन को होगी। विश्व बाजार में उसके हथियारों का मांग घट गई है। उसके हथियारों की गुणवत्ता पर पूरी दुनिया में सवाल उठ गया है। लेकिन यहाँ हम केवल अमेरिका के धोखे की बात कर रहे हैं।
अमेरिका धोखे पर धोखा देता रहा और हम धोखा खाते रहे। अब भारत सरकार ने नई बात कही है कि कोई भी आतंकवादी घटना होगी तो उसको युद्ध की घोषणा माना जाएगा। यह सब बातें कब तक बोलेंगे हम? संसद पर हमला हुआ तो हमने कहा यह युद्ध की घोषणा है। एक्ट ऑफ वॉर है। मुंबई हमला हुआ तो हमने कहा यह एक्ट ऑफ वॉर है। तो इस इस तरह से हम कहते रहते हैं। सवाल यह है कि हम हमेशा रिएक्टिव क्यों होते हैं कि पाकिस्तान आतंकवादी हमला करेगा तब हम उसका जवाब देंगे। हम पाकिस्तान को प्रति प्रोएक्टिव क्यों नहीं हो सकते? पाकिस्तान ने अभी तो घोषणा की है कि वो शिमला समझौते को रद्द करता है। यह हमारे लिए मौका है। जो हमारा हिस्सा है उस पर हमको कब्जा करने की कोशिश करनी चाहिए। यह हम बड़ी आसानी से कर सकते हैं। जो 1965 और 1971 के युद्ध में जो जीता हुआ हिस्सा हमने छोड़ दिया, लौटा दिया- उसको वापस लेने की कोशिश कर सकते हैं।
डोनाल्ड ट्रंप दोस्ती की बातें चाहे जितनी करें लेकिन वो दोस्ती निभाएंगे नहीं। दोस्ती निभाएंगे पाकिस्तान के साथ ही क्योंकि पाकिस्तान की उपयोगिता है। क्योंकि पाकिस्तान जनतांत्रिक देश नहीं है। जबकि भारत जनतांत्रिक और जिम्मेदार देश है। अमेरिका को मालूम है कि एक सीमा के बाद भारत ऐसा कुछ नहीं करेगा जिससे दुनिया में उसकी छवि खराब हो। भारत को छवि की चिंता छोड़ देनी चाहिए। हमारे लिए छवि से भी बड़ा है नेशनल सिक्योरिटी का सवाल। इन तीन दिनों में भारत ने पाकिस्तान की जो हालत बना दी, अगर हम दो कदम और आगे बढ़ते तो पाकिस्तान उठकर खड़ा होने लायक नहीं रहता। यह मौका, यह अवसर हमने एक बार फिर गँवा दिया है। ऐसी खबरें हैं कि हमारी तीनों सेनाएं तैयार थीं कि अभी मत रोकिए, थोड़ा सा और ठहर जाइए। लेकिन क्या सोच थी… क्या रणनीति थी… कोई दबाव था, क्या था पता नहीं… सीज फायर को हमने मान लिया। पाकिस्तान ने मुश्किल से डेढ़-दो घंटे बाद ही सीज फायर का उल्लंघन कर दिया। हमारे पास एक बार फिर मौका था पाकिस्तान को सबक सिखाने का। फिर हमने उसे जाने दिया। यह सिलसिला कब तक चलता रहेगा? कब तक पाकिस्तान हमको घाव देता रहेगा और हम उस पर मलहम लगाते रहेंगे? पाकिस्तान को जब तक घाव नहीं देंगे ये सब यूं ही चलता रहेगा। पाकिस्तान को घाव का मतलब है पाकिस्तान की सेना और आईएसआई को घाव देना, जो आतंकवाद का उद्गम है। आतंकवादियों को मारने से इस समस्या का हल नहीं होने वाला। रावण तभी मरा था जब भगवान राम ने उसकी नाभि पर हमला किया था। ये आतंकवादी, ये पाक जनरल दशानन के दस सिरों जैसे हैं। एक काटेंगे दूसरा आ जाएगा। अब फैसला तो जाहिर है भारत सरकार के हाथ में है। हम आप तो केवल अपनी भावना ही व्यक्त कर सकते हैं। उतना ही हमारे वश में है।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अख़बार’ के संपादक हैं)