पुस्तक अंश : ‘मनोज बाजपेयी- कुछ पाने की जिद’ ।
आपका अखबार ब्यूरो ।
पत्रकार और व्यंग्यकार पीयूष पांडेय की किताब ‘मनोज बाजपेयी: कुछ पाने की जिद’ इन दिनों काफी चर्चा में है। यह संभवतः अभिनेता मनोज बाजपेयी की पहली जीवनी है। यह उनकी जिंदगी और संघर्षों को बहुत रोचक तरीके से बयां करती है। यह किताब मनोज बाजपेयी के कई अनछुए पहलुओं से परिचित कराती है। प्रस्तुत है, इसी पुस्तक का एक अंशः
2001 में मनोज के उस वक्त तक के करियर की सबसे बड़ी फिल्म रिलीज़ हुई- अक्स। अक्स इस मायने में बेहद अहम थी कि मनोज न केवल अमिताभ बच्चन जैसे सितारे के साथ काम कर रहे थे बल्कि बतौर खलनायक उन्हें टक्कर दे रहे थे। मनोज बाजपेयी इस रोल के बारे में कहते हैं, ‘इस फिल्म ने मुझे सम्मान दिया। मैं इसे बीते पचास साल की पचास सर्वश्रेष्ठ फिल्म में एक रखूंगा। इस किरदार को करते हुए बहुत विचार प्रक्रिया से गुज़रने की आवश्यकता थी। मैंने राकेश ओम प्रकाश मेहरा से पूछा- मैं क्या रोल कर रहा हूं। उन्होंने सीधे कहा- “राक्षस”।
अक्स 13 जुलाई 2001 को रिलीज़ हुई थी। लेकिन, इस साल की बरसात, 1998 की बरसात से बहुत अलग थी, जब जुलाई में ही सत्या रिलीज़ हुई थी। अक्स के रिलीज़ के दिन ही मनोज के मित्र अनुभव सिन्हा की पहली फिल्म ‘तुम बिन’ भी प्रदर्शित हुई। अनुभव सिन्हा कहते हैं, ‘मुझे याद है कि जाने-माने समीक्षक ख़ालिद मोहम्मद ने अक्स की बहुत तारीफ की थी, और तुम बिन को तुम थिन कहा था। लेकिन कई बार समीक्षक और जनता दोनों अलग-अलग ध्रुव पर खड़े होते हैं। तुम बिन टिकट खिड़की पर चल निकली, जबकि अक्स को सिर्फ समीक्षकों की तारीफ से ही तसल्ली करनी पड़ी।
अक्स की शूटिंग के दौरान मनोज बाजपेयी और अमिताभ बच्चन के बीच एक ऐसा रिश्ता बन गया, जिसमें बेतकल्लुफी के लिए भी जगह थी और एक दूसरे के लिए सम्मान भी। इस बात को दो किस्सों से समझा जा सकता है। एक किस्सा मनोज ने कपिल शर्मा के शो में सुनाया। मनोज ने कहा कि उन्हें और अमिताभ को अक्स के एक दृश्य में सौ फीट ऊपर से छलांग लगानी थी। उन्हें ऊंचाई से डर लगता है तो वे घबराए हुए थे। उन्होंने एक्शन डायरेक्टर से सीन हटाने को कहा, लेकिन वो नहीं माने। उन्होंने उनमें उत्साह भरा और कहा कि अमितजी भी आपके साथ हैं। आप बस आराम से रहिए। उसके बाद का दिलचस्प किस्सा सुनाते हुए मनोज कहते हैं, ‘हम लोग चढाई चढ़ने लगे और अमितजी मुझे मोटिवेट करते रहे। लेकिन, अस्सी फीट ऊपर पहुंचने पर वह बोले- मनोज, मुझे कुछ हो जाए तो …। मैं घबराया। मैंने कहा- सर मैं पहले से डरा हुआ हूं। वह फिर बोले- मनोज, मुझे कुछ हो जाए तो यार जया को खबर कर देना बस। यह उनकी शरारत थी।’ अमिताभ और मनोज के रिश्ते के एक दूसरे पहलू को एक दूसरे किस्से से समझा जा सकता है, जो मनोज के पिता राधाकांत बाजपेयी ने मुझे सुनाया। उन्होंने कहा, ‘हम लोग मुंबई में थे। एक दिन मनोज ने गाड़ी भेजकर स्टूडियो बुला लिया। वहां बहुत बड़ी वैन खड़ी थी। ड्राइवर ने बताया कि वैन में अमिताभ बच्चन हैं। हम लोगों को कुर्सी डालकर बैठा दिया गया। अचानक हल्ला हुआ कि शॉट तैयार है, अमित जी को बुलाओ। अमितजी गाड़ी से निकले तो सब उन्हें देखने लगे। ऐसा लगा कि राष्ट्रपति आ रहे हैं। वो निकट आए तो मनोज को देखकर बोले- हैलो मनोज। क्या हाल? आवाज़ तो उनकी बुलंद है ही। मनोज ने कहा- सर, मेरे माता-पिता आए हुए हैं। उन्होंने फौरन पूछा–कहां हैं? और जैसे ही हमें देखा तो कहने लगे- धन्य भाग्य मेरे कि आज आपके दर्शन हुए। उनकी बात सुनकर ऐसा लगा, जैसे मनोज से उनका पुराना परिचय हो। वो आए और पैर छूकर प्रणाम किया। बोले- आपका बेटा बहुत प्रतिभाशाली है। उसी वक्त अभिषेक बच्चन भी वहां पहुंचे तो अमिताभ जी ने उन्हें आवाज़ दी और कहा देखो, मनोज के माता-पिता आए हुए हैं। अभिषेक ने भी पैर छूकर प्रणाम किया। अमिताभ बोले- बाबू साहब अभी विदेश से आए हैं पढ़कर। फिर, कुछ मिनट और बात हुई कि शॉट की तैयारी हो गई।’
किताब- मनोज बाजपेयी: कुछ पाने की जिद
लेखक- पीयूष पांडे
प्रकाशक- पेंगुइन बुक्स, गुरुग्राम
मूल्य- 299 रुपये
पृष्ठ- 218