डॉ. मयंक चतुर्वेदी।
वैसे यह युद्ध कोई नया नहीं है, सत्‍य और असत्‍य का युद्ध सदियों से चल रहा है। हर खेमें के अपने-अपने तर्क हैं, किंतु भारतीय वांग्‍मय अपने संपूर्ण अध्‍ययन के साथ इसी निष्‍कर्ष पर पहुंचता है, आखिर विजय सत्‍य की ही होती है। यह सत्‍य भले ही फिर अपने संघर्षकाल में अत्‍यधित परेशान दिख सकता है पर अंतिम परिणाम उसी के पक्ष में आता है। भारत के वर्तमान संदर्भों में भी एक युद्ध चल रहा है। जिसे हम नैरेटिव वॉर भी कहते हैं। इस युद्ध में भारत विरोधी अनेक मुखौटे हैं वे देश के अंदर हैं, देश के बाहर हैं और वह कई सूरतों में हैं। गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) में भी अनेक संस्‍थाएं हैं जोकि वैश्‍विक स्‍तर पर भारत को हर तरह से कमजोर करने के काम में जुटी हुई हैं। इन्‍हीं में से एक संस्‍था ‘एमनेस्टी इंटरनेशनल’ भी है, कहने को ये मानवाधिकार संरक्षण के लिए कार्य करती है, किंतु इसका मुख्‍य कार्य भारत की छवि खराब करना है।

अब ताजा उदाहरण ही ले लें; जम्मू और कश्मीर में कुल 90 विधानसभा सीटें हैं, वहां तीन चरण में विधानसभा चुनाव हो रहा है। पहले फेज में 24 सीटों पर 18 सितंबर को चुनाव हुए और 17 सितम्‍बर को जैसे ही घड़ी में रात के बारह बजे के बाद का समय आरंभ हुआ और 18 सितंबर शुरू होती है, ये ‘एमनेस्टी इंटरनेशनल’ भारत के विरोध में एक रिपोर्ट तीन भाषाओं अंग्रेजी, हिन्‍दी और उर्दू में प्रकाशित करती है, शीर्षक- ‘‘भारत : सरकार को जम्मू-कश्मीर में असहमति  का दमन रोकना चाहिए’’ विचार करें, आखिर उसने ये ही दिन इसके लिए क्‍यों चुना? जबकि उसे पता है कि जम्‍मू-कश्‍मीर जैसे वर्षों वर्ष संवेदनशील रहे राज्‍य में चुनाव हो रहे हैं। अभी आगे भी दूसरे फेज में 26 सीटों पर 25 सितंबर और तीसरे फेज में 40 सीटों पर एक अक्टूबर को यहां वोटिंग होनी है। वास्‍तव में ये है भारत विरोध का नैरेटिव गढ़ना ।

‘एमनेस्टी इंटरनेशनल’ ने एक सिरे से इस बात को नकार दिया है कि पिछले वर्षों में केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद जम्‍मू-कश्‍मीर में भारी विकास हुआ है और यह विकास हर सेक्‍टर में दिखता है। आतंकवाद का सफाया करने में मोदी सरकार की नीतियां प्रभावी सिद्ध हुई हैं। पिछले सालों में कई नए उद्योगपति, खिलाड़ी एवं अन्‍य अनेक प्रतिभावान लोगों का इस राज्‍य से व्‍यापक फलक पर आना इ‍सलिए संभव हुआ, क्‍योंकि यहां शांति और विकास जो वर्षों से अवरुद्ध था, उसके लिए द्वार खुले। किंतु ‘एमनेस्टी इंटरनेशनल’ क्‍या कह रही है? यही कि केंद्र सरकार यहां के लोगों को बहुत प्रताड़‍ित कर रही है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार की नीतियां यहां के लोगों की बोलने तक की स्‍वतंत्रता को दबाने का काम कर रही हैं।

संस्‍था खुलेआम अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर यह आरोप लगाती है, ‘‘…जबसे भारत ने राज्य की विशेष स्वायत्तता रद्द की है उसके बाद से सरकार द्वारा मानवाधिकारों का दमन बढ़ता जा रहा है। इसके परिणामस्वरूप लोगों को मनमाने ढंग से हिरासत में लिया गया, पासपोर्ट निरस्त किए गए, अपारदर्शी ‘नो फ़्लाइंग लिस्ट ‘बनी। ’’ जबकि ये कितना बड़ा जूठ है, वह हाल ही में सामने आए पूर्व केंद्रीय गृहमंत्री के बयान से समझा जा सकता है। वर्ष 2014 में केंद्र की भाजपा सरकार के पहले सुशील कुमार शिंदे  भारत के गृहमंत्री थे, उन्‍होंने जम्‍मू-कश्‍मीर से जुड़ा अपना अनुभव साझा किया। राशिद किदवई की किताब ‘फाइव डिकेड्स इन पॉलिटिक्स’ के लॉन्च पर कांग्रेस नेता शिंदे बोले, ‘गृह मंत्री बनने से पहले मैं शिक्षाविद विजय धर से मिलने गया था। मैं उनसे सलाह मांगता था। उन्होंने मुझे सलाह दी कि लाल चौक (श्रीनगर में) घूमना नहीं बल्कि जाना और लोगों से मिलना, डल झील घूमना। ऐसा करोगे तो लोगों को लगेगा कि ये कितना अच्छा गृहमंत्री है जो बिना डरे कश्मीर जाता है, इससे लोकप्रियता मिलेगी। लेकिन मैं किसे बताऊं कि लाल चौक पर मेरी फ$% (आपत्तिजनक शब्द) रही थी ।’ पर आज क्‍या जम्‍मू-कश्‍मीर में यह स्‍थ‍िति है?

Amnesty unlikely to get permission to set up South Asian hub in India -  India Today

सच पूछिए तो देश का यह राज्‍य पिछले वर्षों में बहुत बदला है। कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटे चार वर्ष से ज्यादा का समय हो गया। कश्मीर में कई बड़े बदलाव दिखाई देते हैं, वह तरक्की के रास्ते पर आगे बढ़ रहा है। पुलिस और सेना पर पत्‍थर फेंकने वाले अब नजर नहीं आते। शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएं, निर्बाध ऑनलाइन सेवाएं, बिजली उन्नयन, सड़क नेटवर्क, पाइप जलापूर्ति और अन्य सभी सुविधाएं घाटी की जनता को मिल रही हैं। यहां पहले अधिकतर दिन स्कूल बंद हुआ करते थे और अब स्कूल अपने अधिकतम दिन खुले रहते हैं।

पहले जिस लाल चौक पर खुलेआम पाकिस्तान के झंडे लहराए जाते थे वहां अब तिरंगा लहराता है। वास्‍तव में तिरंगा का यहां लहराना अपने आप में बहुत कुछ कह रहा है । ये तस्वीर दिखाती है कि पांच अगस्त 2019 के बाद से कश्मीर पहले वाला नहीं रहा । स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत यहां के घंटा घर को एफिल टॉवर का लुक दिया गया है। जम्मू-कश्मीर में शांति लौटने का सबसे ज्यादा फायदा टूरिज्म इंडस्ट्री में दिखता है। आतंकवाद के दौर में दूर हो गई फिल्म इंडस्ट्री तथा सिनेमा संस्कृति दोबारा लौट आई है। नाइट लाइफ सड़कों पर लौट आई है। डल झील देर रात तक आबाद रहती है। मैदानों में देर रात तक लोग खेल का रोमांच लेते देखे जा सकते हैं। पहली बार विदेशी निवेश भी हुआ है और कई हजार करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट पर काम हो रहा है।

चलो, एक बार को मान लेते हैं कि ये सरकारी आंकड़े हैं, किंतु क्‍या यहां की जनता भी आज जूठ बोल रही है। ‘एमनेस्टी इंटरनेशनल’ जिन कुछ नामों का हवाला देकर भारत विरोधी नैरेटिव गढ़तीहै, उनके असली नाम तक वह सुरक्षा का हवाला देकर छुपा जाती है। किंतु हम उनकी बात करते हैं, जिनके नाम भी असली है और पहचान भी। वे वहां खुलकर आज मीडिया को बता रहे हैं कि केंद्र में मोदी सरकार के रहते विकास की नई कहानी लिखी गई है। शिक्षा, किसान, युवाओं, महिलाओं, उद्यमियों समेत सभी वर्गों का ख्याल रखा जा रहा है। मोमिन नाम के विद्यार्थी की बात सुनिए; स्कूल में पहले से कई गुना बेहतर सुविधाएं मिल रही हैं। एक छात्रा बोली , “हमारा स्कूल अब पहले से बेहतर है, और इसमें पहले से ज़्यादा सुविधाएँ हैं। जम्‍मू-कश्‍मीर की ये छात्रा डॉक्टर बनना चाहती है।

दिल्ली में जेएनयू छात्रसंघ की पूर्व उपाध्यक्ष और मुस्लिम एक्टिविस्ट शेहला रशीद जिन्‍होंने कभी कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाए जाने का विरोध किया, जोकि पिछले 10 साल के दौरान मोदी सरकार के खिलाफ सिर्फ जहर उगलती रही हैं । वे आज कह रही हैं कि कश्मीर में हुए बदलाव का श्रेय पीएम मोदी और अमित शाह को जाता है । इस राज्‍य में सर्वत्र विकास हो रहा है।

श्रीनगर में रहते अशाक हुसैन का भी यही अनुभव है, वे कह रहे हैं, ‘‘हमारे पास बेहतर सड़कें हैं, अधिक व्यवसाय फिर से खुल रहे हैं, और सामान्य स्थिति लौटने की भावना है।’’ इसी तरह से श्रीनगर के डाउनटाउन निवासी ‘बसारत’ का अपना एक नया अनुभव है, उनके अनुसार ‘‘यह ताज़ी हवा के झोंके जैसा है। इन सड़कों पर जो डर और तनाव कभी हावी रहता था, वह अब खत्म हो गया है। लोग आज़ादी से घूम रहे हैं, कारोबार बढ़ रहा है और शांति का ऐसा अहसास है जो हमने सालों से महसूस नहीं किया था। यह नया कश्मीर है जिसकी हमें हमेशा से उम्मीद थी।’’ आज की हकीकत यही है कि श्रीनगर का डाउनटाउन इलाका अब एक नए विकासात्‍मक-उत्‍साही समय से गुजर रहा है । जामिया मस्जिद के आसपास का इलाका, जो कभी वीरान रहता था, अब जीवंत हो उठा है जो कभी अशांत क्षेत्र था।

सी-वोटर ने इस साल एक सर्वे 15 जुलाई से 10 अगस्त के बीच किया था। जम्मू और कश्मीर में जनता की राय इसमें हर पहलू से जानी गई। सर्वे का निष्‍कर्ष आज सभी के सामने है, जिसमें कि यहां के लोग अब आतंक की बात नहीं करते हैं, बल्कि विकास चाहते हैं और मुख्यधारा से जुड़ने के लिए खासे उत्साहित हैं। राज्य के सुरक्षा हालात में लगातार 2014 के बाद से बदलाव आया है। अब जम्मू-कश्मीर में आतंक की घटनाएँ दहाई आँकड़ों में सिमट गई हैं । आँकड़ा बता रहा है कि यहाँ राष्ट्रीय और अंतरराष्‍ट्रीय पर्यटकों की संख्या में रिकॉर्ड वृद्धि हुई है। सुरक्षा स्थिति सुधरने के कारण 2023 में जम्मू कश्मीर में 2.11 करोड़ पर्यटक आए।  यह संख्या 2015 में मात्र 1.33 करोड़ थी।

Development projects in Srinagar improve people's lives | Arab News

पीएम पैकेज के तहत नियुक्त सरकारी कर्मियों को आवास की सुविधा मुहैया कराई जा रही है। कश्मीर घाटी में बॉलीवुड की वापसी की दिशा में सरकार ने नई फिल्म नीति का निर्माण किया है। पिछले चार साल में 500 से अधिक फिल्मों की शूटिंग की अनुमति दी गई है। श्रीनगर में मॉल समेत दक्षिणी व उत्तरी कश्मीर में सिनेमा हॉल खोले गए हैं। इसी तरह से जम्मू कश्मीर के आर्थिक सर्वे के मुताबिक़, 2014-15 में राज्य की अर्थव्यस्था का आकार ₹98366 करोड़ था। यह अब बढ़ कर ₹2.25 लाख करोड़ हो चुका है। यानी राज्य की अर्थव्यवस्था मोदी सरकार के बीते लगभग 10 वर्षों में दोगुनी से भी अधिक बढ़ी है। वर्तमान में राज्य के 15 लाख से अधिक घरों में सीधे नल से जल पहुँच रहा है। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत राज्य में 47 हजार से अधिक घरों को मंजूरी मिल चुकी है। राज्य में दो नए एम्‍स भी केंद्र सरकार ने बनाए हैं।

जम्‍मू-कश्‍मीर के निवासी शाह इम्तियाज आज कह रहे हैं कि ‘‘पहले यह मुश्किल था। अशांति के कारण बाजार अक्सर बंद रहता था और हम जीवित रहने के लिए संघर्ष कर रहे थे। लेकिन अब, चीजें बेहतर के लिए बदल गई हैं। हमारे पास स्थानीय और पर्यटक दोनों तरह के ग्राहकों का निरंतर प्रवाह है।’’ उन्होंने अनुच्छेद 370 को हटाने के समर्थन में भी बात कहीं।

बदलाव की बयार उन माता-पिता से भी पूछो जो अपने बच्‍चों का सुखद भविष्‍य चाहते हैं। बदलाव क्‍या होता है! यह वहां की आम जनता, माता-पिता के द्वारा कराई जा रहीं वे गोपनीय जांचे हैं, जोकि अपनी बेटी के सुखद भविष्‍य के लिए वे करा रहे हैं। अभिभावक जानना चाहते हैं कि जिसके साथ उनकी बेटी का विवाह होने जा रहा है, कहीं उसके आतंकी कनेक्‍शन तो नहीं। अब इससे बड़ा विकास का उदाहरण भला क्‍या हो सकता है? जबकि एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के बोर्ड के अध्यक्ष आकार पटेल कह रहे हैं, ‘भारतीय अधिकारी जम्मू-कश्मीर में डर का माहौल बनाने के लिए मनमाने प्रतिबंधों और दंडात्मक कार्रवाइयों का उपयोग कर रहे हैं…इसी कारण वे देश के भीतर और बाहर स्वतंत्र रूप से घूमने में असमर्थ हैं। सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) का भी दुरुपयोग जारी रखा है’ ये एमनेस्टी इंटरनेशनल का कितना बड़ा जूठ और भारत को विश्‍व भर में बदनाम करने का नैरेटिव है, आप ये अच्‍छे से सोच सकते हैं!

Mehbooba Mufti's daughter to make electoral debut in J&K assembly polls -  India Today

 

ये संस्‍था केंद्र सरकार के विरोध में लोगों को उकसा रही है । उदाहरण के तौर पर जम्मू और कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) से जुड़े एक कार्यकर्ता और राजनीतिक नेता वहीद पारा के दिए वक्‍तव्‍य को देखा जा सकता है। इल्तिजा मुफ्ती, जो पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी से जुड़ी राजनीतिक नेता महबूबा मुफ्ती की बेटी और मीडिया सलाहकार हैं, अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद से लगातार केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ बोलती रही हैं, उन समेत ब्रिटिश पत्रकार अमृत विल्सन के वक्‍तव्‍यों को देखिए। निताशा कौल कश्मीरी मूल की राजनीति की ब्रिटिश-भारतीय प्रोफेसर हैं, जिन्होंने विदेश मामलों की यूनाइटेड स्टेट हाउस कमेटी के समक्ष कश्मीर में मानवाधिकार की स्थिति के बारे में गवाही दी है और जिनका काम ही मोदी सरकार एवं भारत की सरकार का विरोध करना है, उन्‍हें सही ठहराने का काम ये ‘एमनेस्टी इंटरनेशनल’ आज कर रही है।

जून 2024 में, भारतीय अधिकारियों ने जम्मू और कश्मीर कोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष मियां अब्दुल कयूम को गिरफ़्तार किया, जो भारतीय अधिकारियों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद से लगातार देश विरोध में जहर उगल रहे थे। जुलाई 2024 में, उन्होंने पीएसए के तहत तीन और वकीलों को गिरफ़्तार किया । सभी चार वकीलों को हिरासत में रखा जा रहा है। वहीं, पत्रकार माजिद हैदरी और सज्जाद गुल हिरासत में हैं। इन सभी पर “राष्ट्र-विरोधियों को मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करने” और “राष्ट्र-विरोधी और अलगाववादी समर्थक” विचारधारा रखने के आरोप है। यहां ‘एमनेस्टी इंटरनेशनल’ इन सभी भारत विरोधियों के खिलाफ समर्थन का माहौल बनाने में जुटी है।

(लेखक ‘हिदुस्थान समाचार न्यूज़ एजेंसी’ के मध्य प्रदेश ब्यूरो प्रमुख हैं)