(23 फरवरी पर विशेष)

देश-दुनिया के इतिहास में 23 फरवरी की तारीख तमाम अहम वजह से दर्ज है। यह तारीख भारतीय साहित्य के साथ उपन्यासकार पंडित अमृतलाल नागर के जीवन का खास हिस्सा है। 23 फरवरी 1990 को ही अमृतलाल नागर ने आखिरी सांस ली थी। नागर हिन्दी के उन गिने-चुने मूर्धन्य लेखकों में हैं जिन्होंने जो कुछ लिखा, वह साहित्य की निधि बन गया। उपन्यासों की तरह उनकी कहानियां भी अपनी विशिष्ट जीवन- दृष्टि और सहज मानवीयता के कारण साहित्य की मूल्यवान संपत्ति हैं। लखनऊ में अधिकांश जीवन-यापन और लेखन करने के बावजूद नागर अपने लेखन की वजह से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय फलक पर हमेशा चर्चा में रहे।अमृतलाल नागर के उपन्यासों में जीवन रचा-बसा है। उन्होंने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के वरिष्ठ अधिकारी राकेश तिवारी को अपनी एक किताब भेंट करते हुए लिखा था, ”जिंदगी लैला है, उसे मजनू की तरह प्यार करो।” यह कोई साधारण कथन नहीं है। जीवन के प्रति आसक्ति रखने वाला, आशा और विश्वास रखने वाला एक बड़ा लेखक ही ऐसा कह सकता है।

वैसे तो अमृतलाल नागर को मुंशी प्रेमचंद का सच्चा वारिस कहा जाता है जबकि उन्होंने अपनी स्वतंत्र और निजी पहचान बनाई। इसी के चलते वे भारतीय साहित्य का वैविध्य से भरपूर महत्वपूर्ण रचनाकार का खिताब हासिल कर सके। अमृतलाल नागर रचनावली में डॉ. रामविलास शर्मा ने लिखा है, ”नि:संदेह वे एक महत्वपूर्ण उपन्यासकार के रूप में याद किए जाएंगे। मेरे लिए वे गद्य लेखन की प्रमुख मूर्ति है। उनके अंदर मानक हिंदी और सामान्य हिंदी दोनों की अद्भुत महारत देखने को मिलती है।”

अमृतलाल नागर महान लेखक इसलिए भी हैं कि अपनी कहानियों और उपन्यासों में जितने विविध चरित्र उन्होंने निर्मित किए, वे अन्यत्र दुर्लभ हैं। उनकी खोजी प्रवृत्ति ने उन्हें समाज के हर वर्ग की नब्ज को पकड़ने का संस्कार दिया। मुंबई (तब बंबई) प्रवास के सात वर्षों को छोड़कर आजीवन वह लखनऊ के चौक मोहल्ले की एक संकरी गली में एक पुरानी विशाल हवेली में किराये पर रहे। चौक के भूगोल और जनजीवन की विविधता ने उनके साहित्य को अनूठी पहचान दी। निजी मकान या सवारी की जरूरत उन्होंने महसूस नहीं की। ‘शाह जी की कोठी’ में रहते हुए हमेशा रिक्शे की सवारी पर चलते हुए वे अपने को चौक यूनिवर्सिटी का वाइस चांसलर मानते थे। चौक की तंग गलियों-मोहल्लों में बसी जिंदगियों की कहानियों में पूरे हिंदुस्तान का दर्द धड़कता था।

वर्ष 1989 में साहित्य अकादमी महत्तर सदस्यता ग्रहण करते हुए उन्होंने वक्तव्य दिया था, ”देश के वरेण्य साहित्यिक महानुभावों के समकक्ष बैठकर राष्ट्रीय साहित्य अकादमी से यह महोच्च सम्मान प्राप्त करना बड़े गौरव का विषय है। आनंद की मिठास से मुंह और मन दोनों बंध गए हैं। शब्दहीनता की स्थिति में आ गए हैं। वैसे कविगुरु कालिदास ने मिठास को बहुत सराहा है। वह कहते हैं कि जिस मुखड़े की बनावट मधुर हो उसे किसी और सजावट या सिंगार की जरूरत नहीं होती। महाकवि मीर ने भी जवानी में यह मिठास देखी। इन साहित्य देवताओं की बात करने का दु:साहस तो स्वप्न में भी नहीं कर सकता। हां, मेरा लखनवी दिल चेहरे के सलोनेपन को भी कम महत्व नहीं दे पाता, बगैर नमक के मिठास का मजा हाई क्या! सर्जक मन की रूपमंडना में दोनों ही काम आते हैं।”

नहीं रहे आवाज के जादूगर अमीन सयानी, मशहूर रेडियो प्रोग्राम ‘गीतमाला’ से बनी थी पहचान

अमृतलाल नागर के उपन्यास बूंद और समुद्र को साहित्य अकादमी पुरस्कार और सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार से किया गया। इसे अमृतलाल नागर का सबसे अच्छा उपन्यास माना जाता है। बूंद और समुद्र में लखनऊ को केंद्र में रखकर अपने देश के मध्यवर्गीय नागरिक और उनके गुण-दोष भरे जीवन का कलात्मक चित्रण किया गया है। इस उपन्यास का पहली बार प्रकाशन 1956 में किताब महल, इलाहाबाद से हुआ था। इसको 1998 में राजकमल प्रकाशन पेपरबैक्स ने छापा। उपन्यास में व्यक्ति और समाज के अंतर्संबंधों की खोज व्यापक फलक पर हुई है। इसके मुख्य पात्र सज्जन, वनकन्या, महिपाल और नगीन चंद जैन उर्फ कर्नल हैं। (एएमएपी)