बार-बार दो दिन एक ही त्योहार से बचने का क्या है समाधान?
समीर उपाध्याय, ज्योतिर्विद।
पिछले कुछ वर्षों की तरह इस बार भी होली को लेकर के संशय बना हुआ है कि होली 14 मार्च को मनाई या 15 मार्च को मनाई जाएगी। होलिका दहन को लेकर के कोई संशय नहीं है यह 13 मार्च के रात्रि में भद्रा छोड़कर जलाई जायेगी।
विवाद रंग वाली होली को लेकर है। कहीं शुक्रवार 14 तारीख को तो कहीं शनिवार 15 तारीख को मनाए जाने की चर्चा है! देश के धिकांश राज्यों की सरकारों ने भी होली की छुट्टी 14 मार्च को दी है। इसका मतलब सरकार ने 14 मार्च पर मोहर लगा दी है। जबकि शास्त्र सम्मत रंग वाली होली तो विक्रम संवत- 2081, चैत्र माह, कृष्ण पक्ष, प्रतिपदा तिथि (उदया) को होनी चाहिए, जो 15 मार्च, 2025 शनिवार को है।
समस्या कहां है?
देश के कम-से-कम 10 से 12 क्षेत्रीय पंचांगकर्ताओं में तो आजादी के वर्षों पहले से उनके गणित में भिन्नता रही है। लेकिन, आजादी के बाद कांग्रेस सरकार ने इस संदर्भ में बड़ी उदासीनता या गलती की है। भारतीय राष्ट्रीय पंचांग या ‘भारत का राष्ट्रीय कैलेंडर’ भारत में उपयोग में आने वाला सरकारी सिविल कैलेंडर “शक संवत” है जो ग्रेगोरियन कैलेंडर पर आधारित है।
भारत में देश का नया एकीकृत पंचाग/कैलेंडर शक संवत १८७९, चैत्र प्रतिपदा अर्थात 22 मार्च 1957 से अपनाया गया।
देशवासियों को आपको अपना इतिहास ज्ञात होना चाहिए कि विक्रमादित्य और शकों के बीच लड़ाई ईसा पूर्व 57 में हुई थी, जिसके बाद विक्रमादित्य ने शकों को हराकर विक्रम संवत की शुरुआत की थी।
इतिहासकारों के अनुसार उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य का राज्य भारतीय उपमहाद्वीप के अलावा ईरान, इराक और अरब में भी था। नवरत्नों को रखने की परंपरा महान सम्राट विक्रमादित्य से ही शुरू हुई है जिसे तुर्क बादशाह अकबर ने भी अपनाया था। सम्राट विक्रमादित्य के नवरत्नों के नाम धन्वंतरि, क्षपणक, अमरसिंह, शंकु, बेताल भट्ट, घटखर्पर, कालिदास, वराहमिहिर और वररुचि कहे जाते हैं। इन नवरत्नों में उच्च कोटि के विद्वान, श्रेष्ठ कवि, गणित के प्रकांड विद्वान और नक्षत्र-ग्रह विज्ञान के विशेषज्ञ आदि सम्मिलित थे।
जबकि शक सवंत की शुरुआत सम्राट कनिष्क ने सन 78 ईस्वी में शकों को पराजित कर की थी। स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार ने इसी शक संवत में मामूली फेरबदल करते हुए इसे राष्ट्रीय संवत के रूप में घोषित कर दिया।
जानना जरूरी है कनिष्क और कुषाण वंश को
कुषाण वंश का सबसे प्रसिद्ध शासक कनिष्क था, जिसने बौद्ध धर्म को संरक्षण दिया और बौद्ध धर्म के महायान संप्रदाय को बढ़ावा दिया। कुषाण वंश की स्थापना पहली शताब्दी ईस्वी में मध्य एशिया के बैक्ट्रिया (बैक्ट्रिया) क्षेत्र में हुई थी, जहाँ युएझी (Yuezhi) नामक कबीलों ने एक साम्राज्य स्थापित किया था।
मतलब यह हुआ कि देश के हिंदू सम्राट विक्रमादित्य द्वारा ईसा पूर्व 57 से चलाया गया पंचांग (कैलेंडर) विक्रम संवत को मान्यता नहीं देकर लगभग 135 वर्षो बाद कुषाण वंश के सम्राट कनिष्क द्वारा ईस्वी सन 78 से चलाया गया शक संवत को मान्यता दे दी गई।
आप अब तक आप समझ गए होंगे कि कांग्रेस सरकार ने कितनी बड़ी गलती कर दी। मैं कहूंगा कि विक्रम संवत की जगह शक संवत को अपनाकर अपनी सनातन संस्कृति का गौरव और हिंदूओं की एकीकृत पहचान मिटाने की जबरदस्त कोशिश की गई। इस कार्य में वामपंथी इतिहासकारों एवं गणितज्ञों ने पूर्ण सहयोग किया।
आजादी के पहले से जब सारे हिन्दू, जैन, बौद्ध, सिखों के त्यौहार और धार्मिक कर्मकांड विक्रमी सम्वत से तय हो रहे थे और विक्रमी सम्वत रोजाना के जीवन का हिस्सा बन चुका था, तो एक अप्रचलित शक सम्वत को 1957 में राष्ट्रीय सम्वत बनाना आपको हज़म होता है क्या? पड़ोसी देश नेपाल में तो आज भी विक्रमी सम्वत ही राष्ट्रीय सम्वत है।
इसका कारण यह था कि नेहरू जी को हिन्दू परम्पराओं से ज्यादा यूरोपीय परम्पराएं बेहतर लगतीं थीं। वह ग्रेगोरी कैलेंडर को बेहतर मानते थे। उन्होंने एक अप्रचलित शक सम्वत को उठाकर, उससे छेड़छाड़ कर, ग्रेगोरी कैलेंडर जैसा सूर्य आधारित बना दिया जिसमें 12 महीने होते हैं और 365 दिन होते हैं।
विक्रम संवत में साल की शुरुआत चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से होती है। विक्रम संवत हिंदुओं के लिए एक ऐतिहासिक कैलेंडर है। सभी सनातनी विक्रम संवत के अनुसार ही अपने व्रत त्यौहार मनाते हैं।
सरकार को क्या करना चाहिए?
सनातन का पक्ष रखने और सुनने वाली वर्तमान भाजपा सरकार को चाहिए कि विक्रम संवत को पुनः सरकारी मान्यता देकर बार-बार व्रत त्यौहार में आने वाले मतांतर का अंत करें। ऐसा करने से एक त्यौहार समस्त भारत में में एक साथ मनाया जायेगा।
कैलेंडर किसी भी देश की सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीयता की पहचान होती है। जब एक साथ एक तिथि/तारीख को कोई भी त्यौहार मनाया जाएगा तो देश की एकता, अखंडता एवं सहिष्णुता को बनाये रखने में कामयाबी मिलेगी।