इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र (आईजीएनसीए) के अभिलेखागार और संरक्षण प्रभाग ने ‘तृतीय आनंद केंटिश कुमारस्वामी स्मारक व्याख्यान’ का आयोजन किया। व्याख्यान का विषय था-  कुमारस्वामी के निबंध संग्रह ‘आर्ट एंड स्वदेशी’ से ‘द मॉडर्न स्कूल ऑफ पेंटिंग’ और शांतिनिकेतन में दृश्य अभिव्यक्ति के एक माध्यम के रूप में भित्ति चित्र- दोनों के बीच अंतर्सम्बंधों की संभावनाओं की खोज। व्याख्यान के वक्ता थे विश्वभारती, शांतिनिकेतन के कला भवन के प्राचार्य और कला इतिहास विभाग के प्रो. संजोय कुमार मल्लिक। इस अवसर पर प्रोफेसर पारुल दवे मुखर्जी द्वारा दिए गए ‘द्वितीय आनंद केंटिश कुमारस्वामी स्मारक व्याख्यान’ के मोनोग्राफ का विमोचन भी किया गया। मोनोग्राफ का शीर्षक है- ‘विष्णुधर्मोत्तर पुराण के चित्रसूत्र में अनुकरण की समस्या के माध्यम से भारतीय कला इतिहास के विउपनिवेशाकरण की ओर।’

डॉ. संजोय मल्लिक ने अपने व्याख्यान में कुमारस्वामी के लेखन और शांतिनिकेतन के भित्तिचित्रों में पाई जाने वाली दृश्य अभिव्यक्तियों के बीच अंतर्सम्बन्ध की ओर ध्यान आकर्षित कराया, जिससे भारतीय कला के प्रारंभिक आधुनिक काल के बारे में गहरी अंतर्दृष्टि प्राप्त हुई। उन्होंने विभिन्न पुस्तकों का संदर्भ देते हुए आनंद कुमारस्वामी और शांतिनिकेतन के अंतर्सम्बंधों पर भी विस्तार से बात की।

इस अवसर पर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के ‘स्कूल ऑफ आर्ट एंड एस्थेटिक्स’ की प्रो. पारुल दवे मुखर्जी, आईजीएनसीए के कंजर्वेशन प्रभाग के प्रमुख प्रो. अचल पंडया, जनपद सम्पदा के विभागाध्यक्ष प्रो. के. अनिल कुमार और पुरालेखापाल डॉ. कुमार संजय झा भी उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन और धन्यवाद ज्ञापन रघुराम एस.के. ने किया। यह व्याख्यान नई दिल्ली के आईजीएनसीए के उमंग कॉन्फ्रेंस हॉल में आयोजित किया गया और इसमें कला और शैक्षणिक समुदाय के सदस्यों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।

गौरतलब है कि आईजीएनसीए ने उन प्रसिद्ध विद्वानों के सम्मान में स्मारक व्याख्यानों की एक श्रृंखला शुरू की है, जिन्होंने अध्ययन के विभिन्न क्षेत्रों में अद्वितीय एवं पथ-प्रदर्शक योगदान दिया है और जिनके शैक्षणिक दृष्टिकोण केंद्र के वैचारिक आधार से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ते हैं। इसी कड़ी में, आनंद केंटिश कुमारस्वामी स्मारक व्याख्यान की भी शुरुआत की गई है। इस वर्ष, तीसरा आनंद केंटिश कुमारस्वामी स्मारक व्याख्यान आयोजित किया गया।

आनंद कुमारस्वामी भारतीय कला लेखन के अग्रदूतों में से एक हैं। वे एक प्रमुख भारतीय कला इतिहासकार थे। भारतीय कला के पुनरुत्थान में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने पश्चिमी दुनिया को भारतीय कला, विशेषकर मूर्तिकला, चित्रकला और शिल्प के महत्त्व और उसकी सुंदरता से परिचित कराया। उन्होंने भारतीय कला और शिल्प पर व्यापक लेखन किया, जिसमें भारतीय कला की धार्मिक और दार्शनिक पृष्ठभूमि को उजागर किया। उनकी रचनाओं में भारतीय शिल्प परम्पराओं का गहरा विश्लेषण मिलता है। उन्होंने भारतीय कलाकारों की पारम्परिक तकनीकों और विचारों को समझने और प्रस्तुत करने का प्रयास किया। आईजीएनसीए ने ए.के. कुमारस्वामी के परिवार से पेंटिंग, फोटोग्राफ, मूर्तियां और पत्राचार जैसी वस्तुएं प्राप्त की हैं।