बहुत क्रूर, हिंसक और कसाई की तरह लोगों को काट डालने वाले अवतार में रनबीर कपूर

-अमिताभ श्रीवास्तव।

पितृसत्तात्मक समाज में पिता-पुत्र के रिश्ते के तमाम पहलू पारिवारिक परंपरा में अहमियत रखने के साथ-साथ साहित्य और सिनेमा के लिए कहानियों का दिलचस्प स्रोत भी रहे हैं। राम और दशरथ से लेकर रुस्तम सोहराब तक तमाम कहानियाँ पिता-पुत्र के रिश्तों की तमाम छवियाँ प्रस्तुत करती हैं जिनके अलग अलग रूप हिंदी सिनेमा में भी दिखाई दिये हैं। बाग़ी बेटे की एक बहुत लोकप्रिय तस्वीर के आसिफ की  मुग़ले आज़म में पृथ्वीराज कपूर और दिलीप कुमार के टकराव में दिखती है तो दूसरी रमेश सिप्पी की  शक्ति में दिलीप कुमार और अमिताभ बच्चन के टकराव में दिखती है। शक्ति का नायक विजय कर्तव्यनिष्ठ पुलिस अधिकारी पिता की उपेक्षा का शिकार होकर लगभग प्रतिशोध की भावना से अपराधी बन जाता है।

संदीप रेड्डी वांगा की फिल्म एनिमल पिता पुत्र की सिनेमाई अभिव्यक्ति का नया विस्तार है, जहाँ बचपन से बाप के प्यार के लिए तरसता हीरो रनविजय (रनबीर कपूर)  पिता पर जानलेवा हमले का बदला लेने के लिए पाशविक हिंसा का बिल्कुल अतार्किक आख्यान रचता है जो किसी भी संवेदनशील दर्शक को विचलित कर सकता है। हिंसा को आकर्षक और तार्किक बना कर प्रस्तुत करने का सिलसिला अमिताभ बच्चन के एंग्री यंग मैन अवतार के साथ शुरू हुआ था जहाँ ज्यादातर मामलों में नायक अपने इर्दगिर्द के लोगों से, समाज से और/या समूची व्यवस्था से प्रतिशोध लेता और विजयी  दिखाई देता है। एनिमल प्रतिशोध की कहानी है लेकिन हिंसा और आक्रामकता को आकर्षक बना कर प्रस्तुत करने की शैली के चलते यह फिल्म जुगुप्सा जगाती है। हालांकि दर्शक इसे खूब देख रहे हैं, फिल्म पहले दिन की रिकॉर्ड कमाई के साथ रनबीर कपूर और संदीप रेड्डी वांगा के लिए फिल्म इंडस्ट्री में नयी कामयाबी का दरवाजा खोल रही है। फिर भी एनिमल एक बहुत विचलित करने वाली फिल्म है जो समाज में बेहिसाब हिंसा को उकसाती है। बेहद विषैली मर्दवादी सोच वाली, स्त्री विरोधी फिल्म भी है। औरत को मर्द की जूती समझने वाली। भले ही यहाँ नायिका नायक को भी उसकी बेवफ़ाई के लिए थप्पड़ मारती है! लेकिन उसी को अपना सब कुछ मानती भी है। नायक के जूते चाटने का आदेश देने का बाकायदा एक दृश्य है। स्त्री यहाँ सेक्स का एक ऑब्जेक्ट है। जीत की ट्रॉफ़ी।

एनिमल फिल्म के जरिये संदीप रेड्डी वांगा बड़ी बेशर्मी से अल्फ़ा मेल की जय-जयकार करते हैं। फिल्म में नायक रनबीर कपूर का एक संवाद है- सैड़ली इट्स ए मैन्स वर्ल्ड ( ये मर्दों की दुनिया है)।

कबीर सिंह की कहानी मिडिल क्लास पात्रों कई प्रेम कहानी थी जहाँ हीरो हीरोइन को “मेरी बंदी” कह कर उस पर अपना हक जताता है। एनिमल बेहद रईस परिवार की कहानी है। यहाँ हीरो प्राइवेट जेट में हीरोइन के साथ प्रेम रचाता है। लेकिन पिता की उपेक्षा उसके कलेजा में तीर की तरह धंसी हुंई है और वह एक दृश्य में अपने पिता से  भूमिका की अदला बदली करके बात करता है  तो पिता को अपनी ग़लती का अहसास भी होता है। बाप-बेटे के रिश्ते में प्यार से ज्यादा गुस्सा है।

फिल्म का मुख्य स्वर क्रोध, आक्रोश, प्रतिशोध और हिंसा का है। हीरो के पिता की कंपनी का नाम स्वास्तिक स्टील्स है और खलनायक का नाम अबरार है।  हीरो तिलकधारी हिंदू है और उसके सबसे भरोसेमंद साथी सिख हैं। हिंसा के एक दृश्य में अर्जुन वैली गाना बज रहा है। समझदार को इशारा काफी है।

बाप-बेटे के प्यार और उपेक्षा की इस साढ़े तीन घंटे की कहानी में बहुत हिंसा है, काफी हद तक बेसिरपैर की। आत्मनिर्भर भारत के नाम पर ट्रैक्टर जैसी  ऐसी मशीनगन दिखती है जो दनादन गोलियाँ बरसाती है। हर फ्रेम में हिंसा है, हिंसक सोच है। संदीप रेड्डी वांगा की पिछली फिल्म कबीर सिंह ने भी प्यार के नाम पर बहुत हिंसक नैरेटिव रचा था। एनिमल भी उसी ढर्रे पर है। रनबीर कपूर अपनी लोकप्रिय चाकलेटी , रोमांटिक छवि के उलट बिल्कुल अलग हिंसक अवतार में हैं। कमाल के एनिमल लगे हैं । रनबीर ने बेहद अमीर और व्यस्त उद्योगपति पिता के प्यार के लिए तरसते रनविजय के किरदार में किशोरावस्था से लेकर वयस्क दिखने के लिए हेयरस्टाइल,  दाढ़ी, वजन, सब पर काफी मेहनत की है और अपने मनोरोगी, जुनूनी किरदार के तमाम रंग दिखाने में प्रभावित करते हैं । फिल्म के नायक खलनायक  दोनों वही हैं, बॉबी देओल सिर्फ नाम के विलेन हैं, ढाई घंटे बाद प्रकट होते हैं और बिना बोले अपने डीलडौल और अपनी क्रूरता से असर छोडते हैं। अनिल कपूर रनबीर के पिता बने हैं और सख्त पिता के किरदार में खूब जमे हैं। हालांकि रनबीर कपूर के आगे उन्हें ज्यादा जगह नहीं मिली है। कला फिल्म से चर्चित तृप्ति डिमरी को बड़े बजट की इस मसाला फिल्म में रनबीर कपूर के साथ अंतरंगता की छोटी लेकिन अहम भूमिका मिली है । तृप्ति सुंदर लगी हैं और काम भी ठीक किया है। रश्मिका मंधाना रनबीर की पत्नी के किरदार में हैं और उनका भी काम औसत है।

एनिमल फिल्म पूरी तरह रनबीर कपूर के कंधों पर है। रनबीर के करियर में यह एक बिल्कुल अलग तरह की फिल्म है। फिल्म के अंत में उनका संक्षिप्त डबल रोल भी दिखता है- बहुत क्रूर, हिंसक, कसाई की तरह लोगों को काट डालने वाला। एनिमल रनबीर की स्टार पावर के बूते पर पैसा तो कमाएगी, ब्लॉकबस्टर भी हो सकती है लेकिन निर्देशक की प्रस्तुतिकरण शैली की वजह से संवेदनशील दर्शक पर बहुत खराब असर छोड़ती है। संदीप रेड्डी वांगा इस फिल्म की शुरुआत में एल्फा मेल यानी ताकत से सब हासिल करने वाले पुरुष के नजरिये का जिक्र करते हैं और कहानी उसी विचार को लेकर आगे बढती है। इस सोच में स्त्री की गरिमा का कोई स्थान नहीं है। एनिमल फिल्म में भी किसी स्त्री पात्र का कोई सम्मान, कोई गरिमा नहीं दिखाई गई है। नायक अपने आसपास की  सभी महिलाओं से बड़े गर्व से जब, जहां, जैसे चाहे उस तरह का व्यवहार करता है जैसे वे सब उसकी जायदाद हैं। यह दृष्टिकोण काफी विचलित करने वाला, टॉक्सिक है।

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कबीर सिंह के गाने बहुत हिट हुए थे, एनिमल का संगीत सिनेमाहॉल से निकलकर याद नहीं रह जाता, अरिजीत सिंह के गाये सतरंगा को छोड़कर। फिल्म एक घंटा छोटी हो सकती तो बेहतर होता।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)