प्रधानमंत्री मोदी ने कहा- मेरा सौभाग्य है कि उनसे सीखने के अनगिनत अवसर मिले

मोदी सरकार ने शनिवार को भाजपा के वरिष्ठ नेता और राम मंदिर आंदोलन के प्रमुख चेहरे लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न देने की घोषणा की है। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने ट्विटर हैंडल पर इस बात की जानकारी दी। प्रधानमंत्री ने कहा कि आडवाणी जी को भारत रत्न से सम्मानित किया जाना मेरे लिए बहुत भावुक क्षण है। मैं इसे हमेशा अपना सौभाग्य मानूंगा कि मुझे उनके साथ बातचीत करने और उनसे सीखने के अनगिनत अवसर मिले। बता दें कि पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी राममंदिर आंदोलन के प्रमुख चेहरों में से एक थे। आंदोलन को गति देने का श्रेय उन्हीं को जाता है। ऐसे में मोदी सरकार का यह फैसला उन्हें आंदोलन के तोहफे के तौर पर देखा जा रहा है।

आडवाणीजी का भारत के विकास में योगदान अविस्मरणीय

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि समय के सबसे सम्मानित राजनेताओं में से एक आडवाणीजी का भारत के विकास में योगदान अविस्मरणीय है। उनका जीवन जमीनी स्तर पर काम करने से शुरू होकर उप प्रधानमंत्री के रूप में देश की सेवा करने तक का है। उन्होंने गृहमंत्री और सूचना एवं प्रसारण मंत्री के रूप में भी अपनी पहचान बनाई। उनके संसदीय हस्तक्षेप हमेशा अनुकरणीय और समृद्ध अंतर्दृष्टि से भरे रहे हैं। उन्होंने कहा है कि सार्वजनिक जीवन में आडवाणी जी की दशकों लंबी सेवा को पारदर्शिता और अखंडता के प्रति अटूट प्रतिबद्धता के रूप में चिह्नित किया गया है। उनकी राजनीतिक नैतिकता ने अनुकरणीय मानक स्थापित किया है। भाजपा नेता आडवाणी ने राष्ट्रीय एकता और सांस्कृतिक पुनरुत्थान को आगे बढ़ाने की दिशा में अद्वितीय प्रयास किए हैं।

तीन बार संभाली पार्टी की कमान

बता दें कि हाल ही में मोदी सरकार ने जननायक कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिया है। बता दें कि लालकृष्ण आडवाणी भाजपा के एक मात्र ऐसे नेता हैं जिन्होंने तीन बार पार्टी की कमान संभाली। पार्टी के गठन के बाद से उन्होंने भाजपा के लिए बहुत काम किया। वह तीन बार भाजपा के अध्यक्ष बने। लगभग 50 साल तक वह राजनीति में रहे और अटल बिहार वाजपेयी के साथ नंबर दो की हैसियत पर बने रहे। राम मंदिर के लिए रथ यात्रा करने के बाद उनकी पहचान हिंदू ह्रदय सम्राट के रूप में भी बनी। 1996 में सरकार बनने के बाद ऐसा भी माना जा रहा था कि वह प्रधानमंत्री बन सकते हैं। हालांकि उन्होने अटल बिहारी वाजपेयी के नाम को सहर्ष स्वीकार किया। वह उस वक्त भाजपा अध्यक्ष थे। उन्होंने अपने जीवन में त्याग और बड़प्पन के कई उदाहरण प्रस्तुत किए।

2015 में मिला था पद्म विभूषण

साल 2015 में आडवाणी को पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के बाद वह दूसरे भाजपा नेता हैं जिन्हें भारत रत्न दिया जा रहा है।  बता दें कि आडवाणी का जन्म कराची में हुआ था  लेकिन वह आजादी के बाद भारत आ गएष 1970 से 1972 तक वह जनसंघ इकाई के अध्यक्ष थे। 1970 से 1989 तक वह राज्यसभा के सदस्य रहे। मोरारजी देसाई की सरकार में सूचना एवं प्रसारण मंत्री रहे। 1989 में पहली बार वह लोकसभा पहुंचे थे। इसके बाद 1991, 1998, 1999, 2004 और 2009, 2014 में वह गुजरात की गांधीनगर सीट से लोकसभा सांसद रहे। अटल की सरकार में 2002 से 2005 तक उन्होंने उपप्रधानमंत्री का जिम्मा संभाला।

राम मंदिर निर्माण के लिए निकाली यात्रा

1980 की शुरुआत में विश्व हिंदू परिषद ने अयोध्या में राम जन्मभूमि के स्थान पर मंदिर निर्माण के लिए आंदोलन की शुरुआत करने लगी। उधर आडवाणी के नेतृत्व में भाजपा राम मंदिर आंदोलन का चेहरा बन गई। आडवाणी ने 25 सितंबर, 1990 को पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती पर सोमनाथ से राम रथ यात्रा शुरू की थी। आडवाणी अभी तक आधा दर्जन से ज्यादा रथ यात्राएं निकाल चुके हैं। जिनमें ‘राम रथ यात्रा’, ‘जनादेश यात्रा’, ‘स्वर्ण जयंती रथ यात्रा’, ‘भारत उदय यात्रा’ और ‘भारत सुरक्षा यात्रा’ ‘जनचेतना यात्रा’ प्रमुख हैं।

पाकिस्तान के कराची में जन्म

लालकृष्ण आडवाणी का जन्म पाकिस्तान के कराची में 8 नवंबर, 1927 को एक हिंदू सिंधी परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम किशनचंद आडवाणी और मां का नाम ज्ञानी देवी है। उनके पिता पेशे से एक उद्यमी थे। शुरुआती शिक्षा उन्होंने कराची के सेंट पैट्रिक हाई स्कूल से ग्रहण की थी। इसके बाद वह हैदराबाद, सिंध के डीजी नेशनल स्कूल में दाखिला लिया।

विभाजन के समय मुंबई आ गए

1947 में आडवाणी देश के आजाद होने का जश्न भी नहीं मना सके क्योंकि आजादी के महज कुछ घंटों में ही उन्हें अपने घर को छोड़कर भारत रवाना होना पड़ा। विभाजन के समय उनका परिवार पाकिस्तान छोड़कर मुंबई आकर बस गया। यहां उन्होंने लॉ कॉलेज ऑफ द बॉम्बे यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई की। उनकी पत्नी का नाम कमला आडवाणी है। उनके बेटे का नाम जयंत आडवाणी और बेटी का नाम प्रतिभा आडवाणी है।

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वाजपेयी-आडवाणी की जोड़ी का कमाल

लालकृष्ण आडवाणी जहां भाजपा की हिंदुत्ववादी राजनीति का चेहरा रहे, वहीं अटल बिहारी वाजपेयी की पहचान पार्टी के उदार चेहरे के रूप में बनी। इन दोनों नेताओं की जोड़ी के दम पर ही भाजपा जहां विभिन्न पार्टियों के साथ गठबंधन कर देश को पहली गैर कांग्रेसी स्थायी सरकार देने में सफल रही, साथ ही अपने हिंदूवादी एजेंडे पर भी टिकी रही। यही वजह रही कि साल 1984 में जहां भाजपा के दो सांसद थे तो साल 1999 में पार्टी ने 182 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी।  (एएमएपी)