नरेंद्र कोहली ।

कुुछ वर्ष पहले मुझसे एक सवाल पूछा गया था- क्या आप मानते हैं कि केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद से विचारधारा का संघर्ष बढ़ा है? मेरा जवाब आज भी वही है जो तब था।


विचारधारा का संघर्ष तो बढ़ा ही है क्योंकि अब इन लोगों को यह लगने लगा कि अब तक जनसंख्या के बहुसंख्यक वर्ग की जिन इच्छाओं, भावनाओं और संवेदनाओं को प्रकट नहीं किया जाता रहा और दबाकर रखा गया, वे खुलकर थोड़ा-बहुत सामने आने लगा है। तस्लीमा नसरीन, जो बांग्लादेशी हैं, मुसलमान हैं, वह कह रही हैं कि इस देश में सेक्युलरिज्म का मतलब है हिंदुओं का विरोध। वह आज तक होता रहा। अल्पसंख्यकों का तुष्टीकरण होता रहा, बहुसंख्यकों की उपेक्षा होती रही।

अब देखिए आपने करोड़ों-अरबों रुपए देकर यूनिवर्सिटी बनायीं और फिर अल्पसंख्यक दर्जा दे दिया, जैसे जामिया मिल्लिया। मुसलमान लड़कियों को निकाह के लिए 25 हजार रुपए देंगे, सिलाई मशीन के लिए इतना पैसा देंगे, कम्प्यूटर के लिए इतना देंगे, हज के लिए इतना देंगे। मैं तो पढ़कर हैरान था कि महाराष्ट्र में मदरसों में सिर्फ कुरआन पढ़ाया जाता है और उनका खर्च सरकार देती है। उत्तर प्रदेश में इमाम की तनख्वाह सरकार देती रही। जब आप सेक्युलरिज्म के नाम पर इस सीमा तक करते चले जाएंगे तो देश में जो अस्सी प्रतिशत लोग हैं, वे इसको अपनी उपेक्षा नहीं मानेंगे क्या? और अगर उपेक्षा मानेंगे तो किसी वक्त उनके मुंह से दो-चार शब्द निकल गए तो उनसे आप इतना परेशान हो गए कि हिंदुत्व फैल रहा है। हिंदुत्व कोई रोग है क्या, विष है क्या?

मैं मुसलमानों की उन्नति के लिए…

आप मुझे बताइए कि कोई भी मुस्लिम नेता, चाहे किसी भी पार्टी का हो, वह मंत्री हो- विधायक हो- पार्टी पदाधिकारी हो, जब खड़ा होता है तो पहली बात बोलता है कि मैं मुसलमानों की उन्नति के लिए काम करूंगा। वह पूरे देश की तो बात ही नहीं करता। और तो और… उपराष्ट्रपति रहे लोग तक यह बात बोलें हैं। तो उनकी यह साम्प्रदायिकता नहीं थी। यह उनका अपने समाज को उन्नत करने का प्रयत्न है। एमजे अकबर भाजपा में आकर भी कहते रहे कि मैं मुसलमानों के लिए काम करूंगा।

साम्प्रदायिक कौन

आज तक किसी हिंदू नेता ने कहा कि मैं हिंदुओं के लिए काम करूंगा। तो साम्प्रदायिक कौन है। उवैसी साम्प्रदायिक नहीं हैं, बुखारी साम्प्रदायिक नहीं हैं, आजम खां रोज कोई न कोई भड़काऊ बात करते हैं वह साम्प्रदायिक नहीं हैं… और यहां जरा सी कोई बात हुई तो संघ (आरएसएस) का हाथ हैं इसमें। कहीं तो रोकना होगा यह सब! बस फर्क इतना हुआ है कि अब लोग जजान गए जाग गए हैं। हालांकि अभी भी कुछ ही लोग जागे हैं।

(लेखक सुप्रसिद्ध विचारक और साहित्यकार हैं)


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