सुलखान सिंह ।
तीन किसान बिल… अब ये तीनों अधिनियम बन चुके हैं और इनकी नियमावली भी जारी हो चुकी है। इस विषय पर अशिक्षित और अल्पशिक्षित टिप्पणियों के अलावा दुर्भाव-लक्षित टिप्पणियां देखने को मिली हैं। अतः मैंने अति संक्षेप में विधिक स्थिति स्पष्ट करना उचित समझा।
कानूनों की विशेषता
- इन तीनों अधिनियमों में कोई ऐसा प्रावधान नहीं है जो वर्तमान स्थिति के मुकाबले किसी भी तरह किसानों के हितों के खिलाफ हो।
- सरकारी मंडियों में अपना उत्पाद बेचने की किसानों की बाध्यता अब खत्म कर दी गई है। किसान अपना उत्पाद किसी को भी बेचने के लिए स्वतंत्र है।
- संविदा पर खेती का प्रावधान किसानों को, खासकर छोटे किसानों को निश्चित रूप से आज के मुकाबले बेहतर लाभ देगा। अब किसान परंपरागत फसलें उगाने के लिए बाध्य और अभिशप्त नहीं रहेगा।
ऐसे में इन कानूनों को किसान विरोधी बताना गलत तो है ही साथ ही असत्य और भ्रामक प्रचार के जरिए निहित स्वार्थों के बचाव के लिए प्रतीत होता है।
किसान अगर सरकारों की बातों से कई बार आशंकित रहता है तो उसके पीछे दशकों का इतिहास है।
जिन्होंने छल किया, उनके लिए झूठ फैलाना मजबूरी बन चुका है। लेकिन अब छल से नहीं, गंगाजल जैसी पवित्र नीयत से काम किया जा रहा है।
हमारी सरकार का ट्रैक रिकॉर्ड देखेंगे तो सच अपने आप सामने आ जाएगा। pic.twitter.com/cR2t4bsozI
— Narendra Modi (@narendramodi) November 30, 2020
ये कमियां दूर करे सरकार
साथ ही मुझे यह भी कहना है कि इन कानूनों में कुछ कमियां हैं, जिन्हें सरकार को दूर करना चाहिए। मेरे मतानुसार कमियां और उन्हें दूर करने के लिए सुझाव निम्नवत हैं-
- आढ़तियों और कृषि उपज के व्यवसायियों के लिए यह बाध्यकारी होना चाहिए कि वे वित्तीय वर्ष की समाप्ति पर लाभ का 25% अंश, किसानों को लाभांश के रूप में उनके बैंक खाते में भुगतान करें। इसके बिना व्यवसायी लोग अपनी भंडारण क्षमता और पूंजी का लाभ उठाकर मुनाफाखोरी करते रहेंगे; किसान को इस स्वतंत्रता का वाजिब लाभ नहीं मिल पायेगा।
- संविदा पर खेती (Contract farming) के साथ भी इसी प्रकार का प्रावधान किया जाना चाहिए। संविदा पर खेती करनेवाले के लिए भी यह बाध्यकारी हो कि वे, वित्तीय वर्ष की समाप्ति पर, 25% लाभांश किसान के बैंक खाते में भुगतान करें।
- न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीद करनेवाली सरकारी/सहकारी संस्थाओं के लिए यह बाध्यकारी हो कि वे प्रत्येक किसान से एक न्यूनतम रकबे के अनुसार औसत उत्पाद सीधे और अनिवार्य रूप से क्रय करें। कोई किसान ऐसा न बचे जिससे निर्धारित न्यूनतम उत्पाद क्रय न किया गया हो। इसका भुगतान किसान के खाते में किया जाये। इससे किसानों से सीधे न खरीद कर, बिचौलियों के जरिए क्रय लक्ष्य (Target) पूरा करने पर रोक लगेगी। इसका एक अतिरिक्त लाभ यह होगा कि यदि संस्थायें भ्रष्टाचार भी करेंगी तो उसका भी कुछ अंश किसान को मिल जायेगा
- इसका उल्लंघन करने पर सख्त दण्ड का प्रावधान हो। यह अपराध हस्तक्षेपीय और गैर-जमानती हो।
देश का किसान काले कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ ठंड में, अपना घर-खेत छोड़कर दिल्ली तक आ पहुँचा है।
सत्य और असत्य की लड़ाई में आप किसके साथ खड़े हैं-
अन्नदाता किसान
या
PM के पूँजीपति मित्र?#SpeakUpForFarmers pic.twitter.com/YKhBjG2FaL— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) November 30, 2020
एक अतिरिक्त विकल्प
कान्ट्रैक्ट फार्मिंग किसानों को एक अतिरिक्त विकल्प देता है। इसका लाभ होगा तो वे अपनायेंगे अन्यथा नहीं।
ये कानून किसानों के खिलाफ किसी भी तरह से नहीं हैं। ये किसानों को कुछ अतिरिक्त विकल्प देते हैं और वर्तमान मजबूरी को समाप्त करते हैं।
यद्यपि ये कानून कई अन्य समस्याओं का समाधान नहीं करते हैं, लेकिन कतिपय समस्याओं को दूर करने वाले किसी हितकारी विधान का विरोध इस आधार पर नहीं किया जा सकता कि वह विधान कई अन्य समस्याओं को दूर नहीं करता है।
(लेखक उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक हैं। उनका यह आलेख उनकी फेसबुक पोस्ट से साभार लिया गया है)