सुरेंद्र किशोर ।
पहली बार यह सुना कि एक ठेकेदार ने ठेके की कुल राशि की सिर्फ 10 प्रतिशत राशि का भुगतान न होने के कारण एक स्वजन के साथ आत्महत्या कर ली।
उसी केस में अर्नब गोस्वामी इन दिनों जेल में हैं। यह केस पिछली महाराष्ट्र सरकार ने बंद कर दिया था। पर,गोस्वामी से खार खाए उद्धव ठाकरे सरकार ने उस केस को फिर से खोलवाया।
इस केस को देखना अदालत का काम है।
उस संबंध में मुझे कुछ नहीं कहना।
ऐसी घटना पहले नहीं सुनी
वैसे पहले तो मैं यही सुनता आ रहा था कि कई मामलों में ठेकेदारों की पूरी की पूरी राशि भी दशकों तक अटकी रहती है।
पर संबंधित ठेकेदार की आत्महत्या की खबर नहीं सुनी।
हुई होगी, पर कम से कम दस प्रतिशत की वसूली में विफल होने पर तो ऐसी कोई घटना नहीं ही हुई होगी।
स्पष्ट कर दूं कि मैं अर्णब गोस्वामी की पत्रकारिता शैली से असहमत रहता हूं। उनके टी.वी. डिबेट में कई -कई प्रचार लोलुपों से एक साथ ‘‘भोंकवाने’’ की शैली तो मुझे और भी नापंसद है। पर,अर्नब के साहस की सराहना करता हूं।
शैली में शालीनता लाएं
अर्नब मौजूदा संकट से निकलें तो उन्हें चाहिए कि वे अपनी शैली में शालीनता लाएं। वे अपने अद्भुत प्रतिभा व साहस का सदुपयोग करें। खुद को बेहतर ढंग से पेश करें।
अर्णव की पत्रकारिता भले एकतरफा हो। पर, एकतरफा तो अनेक हैं। कुछ लोग भ्रष्ट लोगों के पक्ष में एकतरफा है।
लेकिन इस गरीब देश के सार्वजनिक धन के बड़े -बड़े लुटेरों व देशद्रोही राक्षसों को उनकी सींग पकड़ हिला देने की जैसी क्षमता अर्नब में है, वैसी क्षमता दुर्लभ है।
राहुल गांधी का इंटरव्यू
साथ ही, अर्णब गोस्वामी ने 2014 के लोस चुनाव से ठीक पहले राहुल गांधी का इंटरव्यू करके देश पर जो प्रभाव डाला था, वह अद्भुत था।
उसमें तो चिल्लाने कौन कहे, अर्णब को ऊंचे स्वर में बोलने की भी जरूरत नहीं पड़ी थी।
(सोशल मीडिया से। लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)