डॉ. संतोष कुमार तिवारी।
यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन (यूजीसी) ने देश के विश्वविद्यालयों और सम्बद्ध कालेजों से अपील की है कि वे श्री श्री रविशंकर के आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन और भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा तैयार किए गए ‘ध्यान और मानसिक स्वास्थ्य’ के विशेष प्रोग्राम आयोजित करें। यह प्रोग्राम आज़ादी के अमृत महोत्सव पर ‘हर घर ध्यान’ योजना का एक अंग है। इस सम्बन्ध में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के सचिव रजनीश जैन ने एक सर्कुलर जारी किया है।
‘आर्ट ऑफ लिविंग’ क्या है
दिन-प्रतिदन के तनाव और खिंचाव के बीच खुश रहकर जीवन को रचनात्मक कार्यों में लगाना ही आर्ट ऑफ लिविंग है। इसके माध्यम से तनाव और चिंताओं को दूर कर जीवन में खुशी और आनंद लाने की कला सीखी जाती है। ‘आर्ट ऑफ लिविंग’ प्रसन्नचित्त रहने और जीवन को सकारात्मक कार्यों में लगाए रखने की दिशा देता है। इसकी लोकप्रियता का पता इस बात से ही लगाया जा सकता है कि आज दुनिया के 180 देशों में ‘आर्ट ऑफ लिविंग’ के कोर्सेज चल रहे हैं और इसे कॉरपोरेट लेवल पर भी अपनाया जा रहा है।
श्री श्री रविशंकर को देखा तो कुछ ऐसा लगा
मुझे ठीक-ठीक सन् तो याद नहीं है, पर यह बात सन् 2005 से 2008 के बीच की होगी। उस समय बड़ौदा यूनिवर्सिटी (महाराजा सयाजीराव यूनिवर्सिटी ऑफ बड़ौदा) में डॉ. मनोज सोनी वाइस चांसलर थे। उन्होंने दीक्षांत समारोह में अध्यात्म के शिखर पुरुष श्री श्री रविशंकर और कुबेर के शिखर पुरुष मुकेश अंबानी दोनों को आमंत्रित किया था। दोनों उस समारोह के एक ही मंच पर बैठे थे।
तब मैं उस यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर था और वहाँ की सिंडीकेट और सीनेट का भी सदस्य था। इस कारण मुझे इन दोनों हस्तियों को नजदीक से देखने का मौका मिला। सिंडीकेट और सीनेट की प्रधान ज़िम्मेदारी होती है यूनिवर्सिटी का एडमिनिस्ट्रेशन चलाने की।
श्री श्री रविशंकर जब मंच पर चढ़े तो उनके स्वागत में छात्रों ने जो विशेष गर्मजोशी दिखाई, उसे देख कर मुझे ऐसा लगा कि वे आज की युवा पीढ़ी के हार्टथ्राब हैं। उनके दिलों के धड़कन हैं। कोई अध्यात्मिक पुरुष नौजवानों के आकर्षण का केंद्र बने – ऐसा बहुत कम होता है। उस समय भी बड़ौदा यूनिवर्सिटी के कई छात्र श्री श्री रविशंकर के ‘आर्ट ऑफ लिविंग’ कोर्स को ज्वाइन कर चुके थे। मैंने ये अनुभव किया कि वे बहुत जल्दी ही युवा पीढ़ी से बहुत जल्दी कनेक्ट हो जाते हैं। उनकी मृदुवाणी, उनका हंसमुख चेहरा, उनके छोटे-छोटे सुझाव जीवन की समस्याओं को हल करते हैं।
इससे ऐसा लगता है कि विश्वविद्यालयों ने यदि ‘ध्यान और मानसिक स्वास्थ्य’ प्रोग्राम में सक्रियता के साथ रुचि दिखाई, तो यह छात्रों के जीवन में सकारात्मक योगदान करने में सफल होगा।
(लेखक सेवानिवृत्त प्रोफेसर हैं।)