कुछ समय पहले मैंने अपने एक आलेख में कहा था कि कैसे विमर्श गढ़ा जाता है, कौन लोग हैं जो नैरेटिव तैयार करते हैं। देश, समाज, किसी नेता, किसी पार्टी, किसी सरकार के खिलाफ, खासतौर से भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ नैरेटिव गढ़ने का जो हुनर है वह लेफ्ट-लिबरल इकोसिस्टम के पास है। एक झूठ को कैसे सच के रूप में सामने लाया जाता और यकीन दिला दिया जाता है कि दरअसल यही सच है। जो आप समझने की कोशिश कर रहे हैं वह झूठ है, जो हम बता रहे हैं वही सच है। मैं बार-बार कहता हूं कि सच की बड़ी बुरी आदत होती है, वह कहीं न कहीं से निकल कर सामने आ जाता है। यहां मैं बात कर रहा हूं हाथरस कांड की जिसके पीछे बहुत बड़ा नैरेटिव था जो सफल भी हुआ।

नैरेटिव था उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार को बदनाम करने का, राज्य सरकार ने कानून व्यवस्था के मोर्चे पर जो बड़ी सफलता हासिल की थी उसको धूमिल करने का, सामाजिक विद्वेष पैदा करने और जातिवादी उन्माद पैदा करने का कि किस तरह से भारत में दलितों पर अत्याचार हो रहा है। इस तरह से इस घटना को पेश किया गया। देश-विदेश में लेख लिखे गए, सेमिनार हुए, टीवी डिबेट हुई, तमाम सारे नेता हाथरस पहुंच गए। मामला था हाथरस की एक 19 साल की दलित बिटिया का जिसके साथ हिंसा हुई थी जिसमें वह बुरी तरह से घायल हुई थी। उसका पहले अलीगढ़ में इलाज कराया गया, फिर दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल लाया गया जहां उसकी मौत हो गई। जब उसकी मौत हो गई और यह पता चला कि वह दलित समुदाय से आती है तो लोगों को अवसर नजर आया। उसमें केवल राजनीतिक दल नहीं कूदे, केवल लेफ्ट-लिबरल इकोसिस्टम नहीं कूदा, मीडिया का एक बहुत बड़ा तबका जिसको लगा कि आजादी के आंदोलन की लड़ाई लड़ रहा है, उसको लग रहा था कि अब यही मामला देश को सारी बुराइयों से आजादी दिला देगा, इस तरह से लगा हुआ था। मीडिया के एक तबके ने वहां डेरा डाल दिया, पीएफआई (पीपुल्स फ्रंट ऑफ इंडिया) के लोग एक्टिव हो गए और केरल से सिद्दीक कप्पन चला जिसको मथुरा में गिरफ्तार किया गया।

Kappan a mastermind at evading police: UP govt to SC | Latest News India -  Hindustan Times

यूपी सरकार और पुलिस को ठहराया जाता रहा झूठा

वह पत्रकारों का हीरो बन गया। लेफ्ट-लिबरल इकोसिस्टम ने उसको अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का नायक बना दिया। उसकी गिरफ्तारी पर सरकार की आलोचना होने लगी। अभी इसी हफ्ते पीएफआई का एक कार्यकर्ता केरल से गिरफ्तार हुआ है जिसका कप्पन को यहां भेजने में हाथ था। पीएफआई का इरादा यहां जातीय दंगे फैलाने का था। आपको याद होगा कि किस तरह से राहुल गांधी हाथरस जाने के लिए निकले और यूपी पुलिस ने बॉर्डर पर उनको रोकने की कोशिश की तो कैसे गिरने का नाटक किया। प्रियंका वाड्रा किस तरह से कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का हुजूम लेकर पहुंची, किस तरह से जयंत चौधरी पहुंचे। तमाम लोग हाथरस पहुंचने लगे। हाथरस उनके लिए एक बड़ा तीर्थ बन गया। आरोप था कि उस बिटिया के साथ गैंगरेप हुआ है। सरकार लगातार कहती रही, उत्तर प्रदेश की पुलिस कहती रही कि गैंगरेप और हत्या का कोई मामला नहीं है, हिंसा का मामला है। पुलिस और सरकार को झूठा ठहराया गया। यहां तक कि जब उत्तर प्रदेश के एडीजी (लॉ एंड ऑर्डर) प्रशांत कुमार ने यह बात कही कि इस मामले में गैंगरेप और सीधे हत्या का कोई मामला नहीं बनता है तो देश के पूर्व गृह मंत्री और वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने उनको सलाह दी कि आपको फिर से लॉ स्कूल में जाना चाहिए यानी आपको कानून की कोई जानकारी नहीं है। अब चिदंबरम बताएं कि लॉ स्कूल में किसको जाना चाहिए।

Rahul Gandhi detained on way to Hathras; says pushed, hit with lathi by  cops | Latest News India - Hindustan Times

चार में से तीन आरोपी अदालत से बरी

यह बात इसलिए कह रहा हूं कि इस मामले में सीबीआई और एससी-एसटी कोर्ट का फैसला आ गया है। उस फैसले में चार आरोपियों जिन पर गैंगरेप का आरोप था उनमें से तीन को अदालत ने बाइज्जत बरी कर दिया है। चौथे आरोपी जिसका नाम संदीप है उस पर गैर-इरादतन हत्या और एससी-एसटी एक्ट में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है। अदालत ने कहा है कि सीबीआई हत्या और बलात्कार का मामला साबित नहीं कर पाई। सीबीआई भी इस नैरेटिव के दबाव में आ गई और उसने इन चारों पर गैंगरेप और हत्या का आरोप लगाया, चार्जशीट फाइल की। 67 दिन की जांच के बाद सीबीआई ने जो चार्जशीट फाइल की थी उसमें से हत्या और गैंगरेप के आरोप को अदालत ने खारिज कर दिया क्योंकि सीबीआई के पास इसके पुख्ता सुबूत नहीं थे।  सीबीआई के पास प्रमाण के रूप में सिर्फ उस बिटिया का आखिरी बयान था जिसके बारे में उस समय भी कहा गया था कि उसने परिवार के दबाव में बयान दिया है। परिवार के लोग जब पहली शिकायत लेकर पुलिस के पास गए थे तब किसी ने बलात्कार का आरोप नहीं लगाया था। मगर तब माना गया कि पुलिस और सरकार के दबाव में ऐसा हुआ। अदालत ने सीबीआई के इस आरोप को खारिज करते हुए कहा कि इसके पक्ष में कोई सुबूत नहीं है।

गैंगरेप की बात थी झूठी

अलीगढ़ और सफरजंग हॉस्पिटल में पीड़िता का जिन डॉक्टरों ने इलाज किया उनकी किसी रिपोर्ट और किसी फॉरेंसिक रिपोर्ट में बलात्कार का मामला सामने नहीं आया। उसका कोई प्रमाण सीबीआई पेश नहीं कर सकी क्योंकि गैंगरेप हुआ ही नहीं था। सरकार यह कहती रही तो सरकार को झूठा कराया जाता रहा। यह जो उनकी नैरेटिव बनाने की ताकत है उस ताकत को पहचानिए। महीनों तक और अदालत का फैसला आने तक इसकी चर्चा होती है हाथरस हाथरस कांड के रूप में कि एक दलित युवती के साथ गैंगरेप हुआ और फिर उसकी हत्या की गई। यह अक्टूबर 2020 की घटना है। फरवरी-मार्च 2022 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा का चुनाव होने वाला था। लक्ष्य किया गया कि इस मुद्दे का इस्तेमाल विधानसभा चुनाव में योगी सरकार के खिलाफ किया जाए। एक मुद्दा बनाया जाए कि योगी सरकार दलित विरोधी है, महिला विरोधी है। समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने हाथरस की बेटी की स्मृति दिवस के रूप में मनाने की घोषणा कर दी। जैसे ही पता चला कि पीड़िता दलित समाज से है तुरंत केरल से मिशनरियों का दल चल पड़ा। उनको लगा कि यह धर्मांतरण का बहुत अच्छा अवसर है। इस समय भावनाएं भड़की हुई हैं, इसको और भड़काया जा सकता है और धर्मांतरण कराया जा सकता है।

दो अदालतों का आया फैसला

हाथरस का यह पूरा मामला कम्युनिस्ट और जिहादी तत्वों के गठजोड़ का सबसे अच्छा उदाहरण है। सिद्दीक कप्पन जो वहां दंगा फैलाने के इरादे से आया था उसको पत्रकारों का मसीहा मान लिया गया। उसके खिलाफ जो बोल रहे थे, उसकी गिरफ्तारी जिस सरकार ने की उन सबको एंटी डेमोक्रेटिक बताया गया, अभिव्यक्ति की आजादी का विरोधी बताया गया और खलनायक बताया गया। कप्पन का समर्थन करने वाले नायक के रूप में पेश किए गए। चूंकि वह केरल के वायनाड से है तो राहुल गांधी उसके परिवार के लोगों से मिलने गए। अब आप देखिए कि पूरा तंत्र कैसे बनाया गया, कैसे उसे खड़ा किया गया। लोगों ने इस झूठ को सच मान ही लिया था लेकिन दो अदालतों में इसका फैसला हुआ है। पहला फैसला हुआ जनता की अदालत में। विधानसभा चुनाव में हाथरस में भारतीय जनता पार्टी सारी की सारी सीटें जीत गई क्योंकि लोगों को मालूम था कि यह झूठ है। जो आरोप सरकार पर लगाया जा रहा है वह सरासर झूठ है यह लोगों को मालूम था। इसलिए मैं कहता हूं कि  बुद्धिजीवियों, पत्रकारों से सबसे ज्यादा समझदार जनता होती है। सच और झूठ का फैसला करने में उसको ज्यादा समय नहीं लगता और ज्यादातर मामलों में उसका फैसला सही होता है। अब कानून की अदालत से फैसला आया है। कानून की अदालत से यह फैसला दो साल के भीतर आ गया है। अगर यह केस 10-15 साल तक लटकता रहता तो यही नैरेटिव चलता रहता है।

झूठ फैलाने वालों पर चलना चाहिए मुकदमा

इस नैरेटिव को पंक्चर करने में पहली भूमिका जनता की अदालत ने निभाई और दूसरी भूमिका कानून की अदालत ने। कानून की अदालत ने साफ कर दिया कि उत्तर प्रदेश सरकार और पुलिस का जो स्टैंड था शुरू से वह बिल्कुल सही था। सीबीआई ने गलत आरोप लगाया जिसका उसके पास कोई सबूत नहीं था। अब सवाल यह है कि जिन लोगों ने यह नैरेटिव बनाया, जो पत्रकार वहां डेरा डाले हुए थे, जो बुद्धिजीवी लेख लिख रहे थे, जिन राजनीतिक दलों के नेता वहां सहानुभूति में जुटे थे उन लोगों का जवाब अब क्या है। उन लोगों के पास अब इसका क्या जवाब है, क्यों इस झूठे नैरेटिव के हिस्सेदार बने, क्यों इस झूठे नैरेटिव को चलाने में मददगार बने? उन लोगों से यह सवाल जरूर पूछा जाना चाहिए। ऐसे लोगों के खिलाफ भी मुकदमा चलना चाहिए जिन्होंने इस झूठे नैरेटिव को बढ़ाने का काम किया बिना यह जानने की कोशिश किए कि सच्चाई क्या है। सच्चाई की तह तक पहुंचने का उनका कोई इरादा ही नहीं था। इरादा था एक सरकार को, एक राज्य की पुलिस को बदनाम करने का, एक राज्य में जातीय संघर्ष की स्थितियां पैदा करने का। अगर इस मामले में ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई होती है तो यह भविष्य में दूसरे लोगों के लिए एक चेतावनी होगी। मगर आप देखिए कि उन सब तत्वों में गजब का सुई पटक सन्नाटा है, किसी के मुंह से कोई आवाज नहीं निकल रही है। जनता की अदालत में जब फैसला हुआ था तो यह कहा गया था कि चुनाव जीतने से यह साबित नहीं होता है कि आपका अपराध खत्म हो जाएगा, आपको माफी मिल गई, असली फैसला कानून की अदालत में होता है जहां तथ्यों और सबूतों के आधार पर फैसला होता है भावनाओं के आधार पर नहीं।

भावना, जानकारी, समाज के आधार पर आम लोगों की जो समझ है और उसका जो फैसला था और अदालत का जो फैसला है दोनों एक हैं, एक ही दिशा में इशारा कर रहे हैं कि झूठा नैरेटिव गढ़ा गया और उसको सच के रूप में पेश किया गया। जिन लोगों ने यह किया उनकी खाल इतनी मोटी है कि उन पर कोई असर नहीं होगा। यह मत समझिए कि भविष्य में इस तरह का नैरेटिव खड़ा करने की कोशिश नहीं होगी, बार-बार होगी। बात समझने की है, उनकी चाल को समझने की है, इसके पीछे की नियत को समझने की है। केवल समझने की ही नहीं बल्कि उनके इस प्रयास को असफल करने की भी जरूरत है तभी इनको कोई सबक सिखाया जा सकेगा।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अखबार’ न्यूज पोर्टल एवं यूट्यूब चैनल के संपादक हैं)