उत्तर-पूर्व भारत, विशेषकर असम के मुस्लिम समुदायों में कजिन मैरिज की कोई परंपरा नहीं है। यहां न केवल चचेरे-ममेरे बल्कि दूर के रिश्तेदारों से भी विवाह नहीं किया जाता। इस परंपरा को यहां सामाजिक रूप से स्वीकार नहीं किया जाता, बल्कि इसे तिरस्कार की दृष्टि से देखा जाता है।
यूनिवर्सिटी ऑफ़ साइंस एंड टेक्नोलॉजी, मेघालय (यूएसटीएम) में सहायक प्रोफेसर व शोधकर्ता डॉ. रेशमा रहमान की एक रिपोर्ट ‘आवाज़ द वॉयस’ में प्रकाशित हुई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यहां विवाह अधिकतर अपने समुदाय या जनजाति में ही होते हैं, लेकिन रक्त संबंध से पूर्णतः अलग व्यक्ति से ही। यह नियम असमिया मुस्लिम संस्कृति का मूल हिस्सा है। केवल वे मुस्लिम परिवार जो असम में अन्य राज्यों से विस्थापित होकर आए हैं- जैसे बंगाली भाषी मुसलमान, बिहार या उत्तर प्रदेश से आए मुस्लिम प्रवासी – वे अपने साथ अपने रीति-रिवाज और परंपराएं लेकर आए हैं, जिनमें कजिन मैरिज शामिल हो सकती है। लेकिन यहां की सांस्कृतिक हवा में घुलते-घुलते यह परंपरा भी काफी कम हो गई है।

‘स्वदेशी’ असमिया मुसलमानों के विवाह नियम

2020 में असम सरकार ने पांच मुस्लिम उप-समूहों– गोरिया, मोरिया, जुलाहा, देशी और सैयद– को “स्वदेशी” असमिया मुसलमान के रूप में मान्यता दी। ये सभी केवल असमी भाषा बोलते हैं और पूरी तरह से असमिया संस्कृति को अपनाते हैं।

ये लोग मिश्रित सांस्कृतिक तत्वों को स्वीकार नहीं करते, बल्कि खालिस असमिया परंपराओं को प्राथमिकता देते हैं। इन समुदायों में रक्त संबंधियों से विवाह करना न केवल अस्वीकार्य है, बल्कि विवाह तय करने से पहले विशेष रूप से यह देखा जाता है कि लड़का-लड़की के बीच कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष पारिवारिक रिश्ता न हो।

यह नियम न केवल असम में बल्कि मेघालय जैसे राज्यों के खासी मुस्लिम जनजातियों में भी लागू होता है। यहां मुस्लिम महिलाएं पारंपरिक अबाया या हिजाब की जगह असमिया परिधान ‘मैखला चादर’ पहनती हैं और बिहू जैसे सांस्कृतिक पर्वों में पूरे जोश से हिस्सा लेती हैं। असमिया मुस्लिम और हिंदू महिलाओं को उनके परिधान के आधार पर अलग पहचानना बेहद मुश्किल हो जाता है।

विवाह कैसे होते हैं?

यहां विवाह की प्रक्रिया और नियम देश के अन्य हिस्सों से थोड़ा अलग हैं। असमिया मुस्लिम महिलाएं सशक्त हैं। अपने इस्लामिक अधिकारों को भली-भांति समझती हैं। विवाह से पहले ‘मेहर’ की तय राशि पर चर्चा होती है जो लड़के की आर्थिक और सामाजिक स्थिति को देखकर तय की जाती है। दहेज जैसी कोई प्रथा यहां नहीं है। परिवार कुछ ज़रूरी चीजें उपहार के रूप में देते हैं, लेकिन दहेज का कोई बोझ नहीं होता।

प्रमुख रिवाज़

ब्राइड हेयर ऑयलिंग– पांच कुंवारी लड़कियां दुल्हन के बालों में तेल लगाकर उसे सोने की अंगूठी से तीन बार छूती हैं।
मसूर दाल की हल्दी रस्म– उड़द की दाल, हल्दी और गुलाब जल मिलाकर दुल्हन को लगाया जाता है, फिर उसे गमछे से साफ किया जाता है।

मिलाद– निकाह से पहले दुआ होती है और पारंपरिक असमिया दावत चलती है।

जूरोन– लड़के वालों की ओर से दुल्हन के लिए गहने, मैखला चादर, मेकअप किट, पान, दो बड़ी मछलियां आदि भेजी जाती हैं।

निकाह और बारात– दुल्हन पारंपरिक पोशाक और आभूषणों में होती है, जबकि दूल्हा सिल्क कुर्ता, सदरी और गमछा पहनता है।

आठ मंगोला– शादी के आठवें दिन दूल्हा दुल्हन को मायके से लाता है और उसे विशेष 8 व्यंजन परोसे जाते हैं।