प्रमोद जोशी।

भारत में बन रही एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड विवि की वैक्सीन की प्रभावोत्पादकता को लेकर आज (24 नवंबर) एक खबर दो तरह से पढ़ने को मिली। आज के टाइम्स ऑफ इंडिया की लीड है कि यह वैक्सीन 70 फीसदी तक प्रभावोत्पादक है। टाइम्स के हिंदी संस्करण नवभारत टाइम्स ने भी यह बात लिखी है, जबकि उसी प्रकाशन समूह के अखबार इकोनॉमिक टाइम्स ने लिखा है कि यह वैक्सीन 90 फीसदी के ऊपर प्रभावोत्पादक है। खबरों को विस्तार से पढ़ें, तो यह बात भी समझ में आती है कि एस्ट्राजेनेका की दो खुराकें लेने के बाद उसकी प्रभावोत्पादकता 90 फीसदी के ऊपर है। केवल एक डोज की प्रभावोत्पादकता 70 फीसदी है।


 

तमाम टीके एक से ज्यादा खुराकों में लगाए जाते हैं। छोटे बच्चों को चार पाँच साल तक टीके और उनकी बूस्टर डोज लगती है। इसकी डोज कितनी होगी, इसके बारे में इंतजार करें। इसमें दो राय नहीं कि एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड विवि की वैक्सीन पर्याप्त कारगर होगी। अभी उसके पूरे विवरण तो आने दें। इस वैक्सीन का निष्कर्ष है कि यह छोटी डोज़ में दो बार देने पर बेहतर असरदार है। इसके पीछे के कारणों का पता तब लगेगा, जब इसके निष्कर्ष विस्तार से प्रकाशित होंगे।

असर कम क्यों

बहरहाल महत्वपूर्ण खबर यह है कि भारत में वैक्सीन की पहली खुराक एक करोड़ स्वास्थ्य कर्मियों को दी जाएगी। मुझे इन खबरों के पीछे हालांकि साजिश कोई नहीं लगती, पर कुछ लोगों के मन में संदेह पैदा होता है कि फायज़र की वैक्सीन तो 95 फीसदी और मॉडर्ना की वैक्सीन 94.5 फीसदी असरदार है, तो यह कम असरदार क्यों हो? पहले तो यह समझना चाहिए कि यह दवा के असर से जुड़ी खबर नहीं है, बल्कि उस डेटा का विश्लेषण है, जो टीके के दूसरे और तीसरे चरण के बाद जारी हुआ है। इसमें देखा यह जाता है कि कुल जितने हजार लोगों को टीके लगे, उनमें से कितनों को कोरोना का संक्रमण हुआ। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुसार टीका यदि 50 फीसदी या उससे ज्यादा लोगों को बीमारी से रोकता है, तो उसे मंजूरी मिल जानी चाहिए।

Covid vaccine: Dosing error turns into lucky punch for AstraZeneca and  Oxford - Times of India

कोवाक्सिन की पहली झलक

भारत बायोटेक इंटरनेशनल लिमिटेड ने भी अपनी कोवाक्सिन की पहली झलक पेश की है। बायोटेक अपने टीके के फेज़-3 के ट्रायल आयोजित कर रहा है। उसने कहा है कि वह दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद और कोलकाता जैसे महानगरों में 1,000-2,000 वॉलंटियर्स को भरती करने की योजना बना रहा है।

कुल मिलाकर 25,800 वॉलंटियरों को इसमें शामिल किया जाएगा। इनमें आधे लोगों को टीका लगेगा और आधे लोगों को प्लेसीबो (यानी जो टीका लगेगा उसमें दवाई नहीं होगी)। सामान्यतः रिसर्च का एक नियम होता है कि यदि किसी चीज की प्रभावोत्पादकता का परीक्षण करना हो, तो कुछ लोगों को वह दवाई नहीं दी जानी चाहिए, पर उन्हें यह बात बतानी नहीं चाहिए। इसके बाद देखा जाता है कि कितनों को संक्रमण हुआ और कितनों को नहीं हुआ। इसके बाद यह भी देखा जाता है कि कितने ऐसे लोग हैं, जिन्हें प्लेसीबो दिया गया और उन्हें संक्रमण हुआ। अक्सर होम्योपैथ चिकित्सक अपने मरीजों को इलाज के दौरान प्लेसीबो देते हैं। बहुत से मरीज खाली मीठी गोली से भी ठीक हो जाते हैं। उसके पीछे कारण या तो मानसिक होते हैं या कुछ और। बहरहाल फायज़र के अनुसार उनके तीसरे चरण के ट्रायल में 43,000 वॉलंटियर शामिल हुए थे। इनमें से 170 को कोविड-9 का संक्रमण हुआ। इन 170 में से 162 को प्लेसीबो लगाया गया था। केवल 8 ऐसे लोग थे, जिन्हें टीका लगने के बावजूद संक्रमण हुआ। एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन के ट्रायल के दौरान 53 संक्रमणों की सूचना है। उसके दूसरे चरण के ट्रायल के परिणाम लैंसेट में प्रकाशित हुए हैं, जिनके अनुसार 56-69 वर्ष की आयु के लोगों के लिए यह वैक्सीन पूरी तरह सुरक्षित है। यों इसका असर हरेक उम्र के लोगों पर है। अभी उनके तीसरे चरण के परिणाम भी नहीं आए हैं।

दोनों वैक्सीन हमारे लिए बेकार

फायज़र और मॉडर्ना की वैक्सीन की एक डोज दी जाएगी या दो डोज, इसकी जानकारी पाए बगैर निष्कर्ष निकालने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। एक बात समझ लेनी चाहिए कि ये दोनों वैक्सीन हमारे लिए बेकार हैं। फायज़र की वैक्सीन की कोल्ड-चेन माइनस 70 डिग्री के तापमान पर बनानी होगी और मॉडर्ना की माइनस 20 डिग्री पर। भारत में ऐसी कोल्ड-चेन फिलहाल नहीं बनेगी। ये वैक्सीन एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड की भारतीय वैक्सीन से चौगुने दाम पर मिलेगी। भारत में कोई ले भी आया, तो उसकी कोल्ड-चेन पर इससे बीसियों गुना ज्यादा पैसा लगाकर लाएगा।

नतीजे सकारात्मक

ब्रिटेन और ब्राजील में क्लिनिकल परीक्षणों के अंतरिम विश्लेषण में एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफर्ड के टीके के नतीजे सकारात्मक रहे हैं और विभिन्न खुराक में यह 90 फीसदी तक कारगर साबित हुआ है। सूत्रों के मुताबिक वैश्विक परीक्षणों के आंकड़े दिसंबर अंत तक भारतीय नियामक को सौंपे जाएंगे और एस्ट्राजेनेका का विनिर्माण साझेदार सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) तब तक भारत से जुड़े अंतरिम आंकड़े भी सौंप देगी।

मरीजों को टीके की आधी खुराक और फिर एक महीने बाद पूरी खुराक देने पर यह 90 फीसदी प्रभावी रहा है। इस टीके के विनिर्माण की स्थापित क्षमता के हिसाब से आकलन किया जा रहा है कि लोगों को दो पूरी खुराक दी जाएगी। एस्ट्राजेनेका ने सोमवार 23 नवंबर को कहा कि 2021 में कुल एकीकृत क्षमता (साझेदारों के साथ) 3 अरब खुराक की आपूर्ति की होगी।

New coronavirus not the real killer: it's the patient's immune system  damaging vital organs | Euronews

ऑक्सफर्ड टीका परीक्षण के मुख्य पर्यवेक्षक प्रो. एंड्रयू पोलार्ड ने कहा कि परिणाम पूरी तरह से चकित करने वाले नहीं थे, जिसका मतलब है कि कम खुराक (पहली आधी खुराक) शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र को प्रारंभिक तौर पर जागरूक करती है। उन्होंने कहा, ‘छोटी खुराक देकर हमने बेहतर प्रतिक्रिया देने के लिए प्रतिरक्षा तंत्र को दुरुस्त किया था।’ दो पूरी खुराक मजबूत प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया दे सकती है।

अंतरिम आंकड़े ब्रिटेन और ब्राजील में दूसरे और तीसरे चरण के परीक्षणों से जुटाए गए हैं। इनमें 23,000 लोगों को टीका लगाया गया था। अमेरिका, जापान, रूस, दक्षिण अफ्रीका, केन्या और लैटिन अमेरिका में भी क्लिनिकल परीक्षण किए जा रहे हैं और अन्य यूरोपीय तथा एशियाई देशों में भी परीक्षण की योजना है। दुनिया भर में कंपनी करीब 60,000 प्रतिभागियों के इस परीक्षण में शामिल होने की उम्मीद कर रही है।

यह सबसे सस्ता टीका होगा

एस्ट्राजेनेका के मुख्य कार्याधिकारी पास्कल सोरोट ने कहा कि आधी खुराक के आधार पर हम शुरुआती खुराक की दोगुनी क्षमता की आपूर्ति करेंगे। दस खुराक की शीशी में भी आधी खुराक भरी जा सकती है। कंपनी के वैश्विक परिचालन एवं आईटी के कार्यकारी उपाध्यक्ष पाम चेंग ने कहा कि साल के अंत तक आपूर्ति शुरू हो जाएगी। 20 साझेदारों के साथ एस्ट्राजेनेका अगले साल तक 3 अरब खुराक की आपूर्ति कर सकती है और अधिकतम मांग पर 100 से 200 खुराक प्रति माह की आपूर्ति करेगी।

एस्ट्राजेनेका ने टीके के लिए भारत, ब्राजील, रूस और अमेरिका में साझेदारी की है। इसका नाम है कोवीशील्ड। इन टीकों के भारत में परीक्षण के लिए 1,600 वॉलंटियरों को नियुक्त किया गया है और परीक्षण का अंतिम चरण चल रहा है। सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया दिसंबर तक भारतीय नियामक को परीक्षण के आंकड़े सौंप सकती है। उस समय तक एस्ट्राजेनेका भी वैश्विक परीक्षण के आंकड़े मुहैया करा सकती है। एक सूत्र ने कहा, ‘यह नियामक को निर्णय करना है कि भारतीयों को कितनी खुराक की मंजूरी दी जाए। नियामक के समक्ष सभी खुराक के आंकड़े प्रस्तुत किए जाएंगे।’

सीरम इंस्टीट्यूट 2021 में एस्ट्राजेनेका को कोवीशील्ड की एक अरब खुराक की आपूर्ति करेगी। इनमें से करीब 50 फीसदी भारत के लिए होंगे। इसके अलावा सीरम कोवीशील्ड तथा नोवावैक्स टीके की 20 करोड़ खुराक साझेदार गावी को देगी। सरकार के लिए कोवीशील्ड टीके की कीमत 250 से 300 रुपये प्रति खुराक हो सकती है और खुले बाजार में इसकी कीमत 500 से 600 रुपये प्रति खुराक हो सकती है। निश्चित रूप से यह सबसे सस्ता टीका होगा। हमें इस टीके से ही आशा है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह आलेख उनके ब्लॉग ‘जिज्ञासा’ से लिया गया है)


आंबेडकर ने मुसलमानों को भारत के लिए समस्या क्यों बताया