प्रदीप सिंह ।
पॉलिटीशियन, ब्यूरोक्रेट, गैंगस्टर, पुलिस- ये जो नैक्सस है- इस देश की ज्यादातर समस्याओं की जड़ में यही है। अगर देश में भ्रष्टाचार है, सिस्टम खराब है, काला धन है- तो इसकी वजह यही है। अगर लोगों को परेशानी हो रही है, राजनीति में शुचिता नहीं है और क्रिमिनल बैकग्राउंड के लोग ज्यादा आ रहे हैं- तो इसकी वजह भी यही है। कोई इसको खत्म करना चाहता हो ऐसा दिखाई नहीं देता। देखें तो छोटे-छोटे प्रयास होते रहते हैं, लेकिन सवाल यह है कि कोई बड़ी सर्जरी …बड़ा बम …कोई इस पर फोड़ेगा क्या? यह प्रश्न आज क्यों उठाया जा रहा है …इसके कारण हैं।
पॉलिटीशियन, ब्यूरोक्रेट, गैंगस्टर, पुलिस- ये जो नैक्सस है- इस देश की ज्यादातर समस्याओं की जड़ में यही है। अगर देश में भ्रष्टाचार है, सिस्टम खराब है, काला धन है- तो इसकी वजह यही है। अगर लोगों को परेशानी हो रही है, राजनीति में शुचिता नहीं है और क्रिमिनल बैकग्राउंड के लोग ज्यादा आ रहे हैं- तो इसकी वजह भी यही है। कोई इसको खत्म करना चाहता हो ऐसा दिखाई नहीं देता। देखें तो छोटे-छोटे प्रयास होते रहते हैं, लेकिन सवाल यह है कि कोई बड़ी सर्जरी …बड़ा बम …कोई इस पर फोड़ेगा क्या? यह प्रश्न आज क्यों उठाया जा रहा है …इसके कारण हैं।
रिपोर्ट सौ पेज की, संसद में रखे 11-12 पेज
वैसे तो यह मुद्दा तब से उठता रहा है, जब से एन.एन. वोहरा कमेटी बनी थी और उसकी रिपोर्ट आई। यह कमेटी 1993 में पी.वी. नरसिम्हा राव ने बनाई, जब वह प्रधानमंत्री थे। उस कमेटी की रिपोर्ट अक्टूबर, 1993 में आ गई। सरकार दो साल तक उस रिपोर्ट को दबाकर बैठी रही, लेकिन सार्वजनिक नहीं किया।
1995 में नैना साहनी कांड हुआ तो फिर से एक बार क्रिमिनल पॉलिटीशियन नैक्सस की बात आई और उस रिपोर्ट को निकालने का सरकार पर दबाव पड़ा। एक सौ से ज्यादा पेजों की रिपोर्ट में से बमुश्किल ग्यारह से बारह पन्ने निकाले गए और संसद में रखे गए। उससे पहले संसद में सरकार यह रिपोर्ट रखने को तैयार नहीं थी। रिपोर्ट के अनेक्सर (संलग्नक) जो बाकी पन्ने थे, उनमें पूरी डिटेल थी। किस नेता का किस गैंगस्टर से क्या संबंध था- वह सब उनमें था। एन.एन. वोहरा कमेटी की रिपोर्ट का जितना हिस्सा सामने आया, उसके मुताबिक राजनीतिक नेता, गैंगस्टर्स के लीडर बन गए थे। वे पब्लिक, डेमोक्रेसी (प्रजातंत्र), संसद और विधानसभा के नेता नहीं थे, वे गैंगस्टरों के नेता थे। गैंगस्टर और पॉलिटीशियन के बीच का भेद खत्म हो गया था। 1993 में मुंबई में जो दंगे, सीरियल ब्लास्ट (बम-धमाके) हुए, उनकी पृष्ठभूमि यह कमेटी को बनाने की बड़ी वजह रही थी। ये पूरा सीरियल ब्लास्ट पॉलिटीशियन और अंडरवर्ल्ड के नैक्सस से हुआ। उसमें सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण केन्द्रीय भूमिका दाऊद इब्राहीम की थी। उसके और उसके परिवार के भागने में मदद करने वाले कौन थे? उस समय केंद्र में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार थी और राज्य में कांग्रेस की सरकार। यह सब देखते हुए उस रिपोर्ट में बताया गया कि कौन-कौन से मंत्री, नेता इस अंडरवर्ल्ड के सरगना दाऊद इब्राहीम और उसके साथियों से पैसा लेते थे, उनसे चुनाव में मदद लेते थे। लेकिन आज यह सिर्फ वोहरा कमेटी की बात नहीं कर रहा हूं। तब कहा जाएगा कि यह तो 30 साल पुरानी बात हो गई- आज उसका संदर्भ क्या है? आज उसका संदर्भ एक नया संदर्भ लाया है। इस संदर्भ से एक सवाल उठ रहा है और क्या शरद पवार पिछले 30 साल से ब्लैकमेल हो रहे हैं?
1995 में नैना साहनी कांड हुआ तो फिर से एक बार क्रिमिनल पॉलिटीशियन नैक्सस की बात आई और उस रिपोर्ट को निकालने का सरकार पर दबाव पड़ा। एक सौ से ज्यादा पेजों की रिपोर्ट में से बमुश्किल ग्यारह से बारह पन्ने निकाले गए और संसद में रखे गए। उससे पहले संसद में सरकार यह रिपोर्ट रखने को तैयार नहीं थी। रिपोर्ट के अनेक्सर (संलग्नक) जो बाकी पन्ने थे, उनमें पूरी डिटेल थी। किस नेता का किस गैंगस्टर से क्या संबंध था- वह सब उनमें था। एन.एन. वोहरा कमेटी की रिपोर्ट का जितना हिस्सा सामने आया, उसके मुताबिक राजनीतिक नेता, गैंगस्टर्स के लीडर बन गए थे। वे पब्लिक, डेमोक्रेसी (प्रजातंत्र), संसद और विधानसभा के नेता नहीं थे, वे गैंगस्टरों के नेता थे। गैंगस्टर और पॉलिटीशियन के बीच का भेद खत्म हो गया था। 1993 में मुंबई में जो दंगे, सीरियल ब्लास्ट (बम-धमाके) हुए, उनकी पृष्ठभूमि यह कमेटी को बनाने की बड़ी वजह रही थी। ये पूरा सीरियल ब्लास्ट पॉलिटीशियन और अंडरवर्ल्ड के नैक्सस से हुआ। उसमें सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण केन्द्रीय भूमिका दाऊद इब्राहीम की थी। उसके और उसके परिवार के भागने में मदद करने वाले कौन थे? उस समय केंद्र में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार थी और राज्य में कांग्रेस की सरकार। यह सब देखते हुए उस रिपोर्ट में बताया गया कि कौन-कौन से मंत्री, नेता इस अंडरवर्ल्ड के सरगना दाऊद इब्राहीम और उसके साथियों से पैसा लेते थे, उनसे चुनाव में मदद लेते थे। लेकिन आज यह सिर्फ वोहरा कमेटी की बात नहीं कर रहा हूं। तब कहा जाएगा कि यह तो 30 साल पुरानी बात हो गई- आज उसका संदर्भ क्या है? आज उसका संदर्भ एक नया संदर्भ लाया है। इस संदर्भ से एक सवाल उठ रहा है और क्या शरद पवार पिछले 30 साल से ब्लैकमेल हो रहे हैं?
फाइल या एटम-बम
एक फाइल थी, जिसके बारे में कहां गया कि यह एटम-बम है, जिस दिन खुल जाएगी, एटम-बम जैसा धमाका होगा। उस फाइल में शरद पवार का नाम क्यों था? इस पर आगे बात करेंगे। पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवगौड़ा की एक आत्मकथा आ रही है जिसका नाम है ‘फरोज इन द फील्ड’। खास बात यह है कि इसमें उस फाइल का जिक्र है। पीवी नरसिम्हा राव ने लगभग 12 पॉलिटिशियन्स के इनफ्लुएंशियल लोगों से संबंध के बारे में एक फाइल तैयार करवाई थी और यह फाइल सीबीआई, आईबी, रॉ, ईडी, इनकम टैक्स आदि इन सारी केंद्रीय एजेंसियों के इनपुट के आधार पर बनी थी। नरसिम्हा राव का मकसद सिर्फ इतना था कि ये जो लोग उनकी पार्टी में हैं, सरकार में हैं या उससे बाहर हैं- वे लोग उनको परेशान न कर सकें। राजनीतिक रूप से उन पर कंट्रोल रखने के लिए यह फाइल उन्होंने तैयार करवाई। बताते हैं कि इस फाइल में शरद पवार, मुलायम सिंह यादव, जयललिता, एस. बंगारप्पा जैसे लोगों के नाम थे …थे या कहें कि हैं …फाइल के बारे में पता नहीं है कुछ।
इस पीएम से उस पीएम तक डोलती रही
नरसिम्हा राव को जब लगा कि चुनाव हार रहे हैं या हार गए- तो उन्होंने कहा कि अब मैं प्रधानमंत्री के रूप में लौट कर नहीं आऊंगा। बीच में 1996 में 13 दिन की अटल बिहारी वाजपेई की सरकार बन गई। नरसिम्हा राव ने वे फायलें एच.डी. देवगौड़ा को दे दीं, जब वे प्रधानमंत्री बने। उनसे कहा कि ये फाइलें तुम रख लो- तुम्हें काम आएंगी। उन्होंने देवगौड़ा से यह भी कहा कि अपने किसी विश्वस्त अधिकारी को भेजो, मैं उसको ये फाइलें हैंड-ओवर कर दूंगा। देवगौड़ा ने एस.एस. मीनाक्षीसुंदरम, जो उस समय पीएमओ में जॉइंट सैक्रेट्री थीं और देवगौड़ा की विश्वासपात्र थीं, को भेजा। नरसिम्हा राव ने वो फाइलें दे दीं। देवगौड़ा ने मीनाक्षीसुंदरम से कहा कि मुझे ये फाइलें देने की जरूरत नहीं है, अपने पास रखो, इसे पढ़कर मुझे ब्रीफ करो कि इसमें क्या है। तो उन्होंने ब्रीफ किया। उसके बाद सभी को मालूम है कि देवगौड़ा की सरकार 11 महीने में चली गई। इंद्र कुमार गुजराल की सरकार बनी। इंद्र कुमार गुजराल जब प्रधानमंत्री बने तो मीनाक्षीसुंदरम ने फिर जाकर उनको बताया कि ऐसी फाइल है और इसके बारे में नरसिम्हा राव का यह कहना है कि यह एटम-बम है। यह फाइल जिस दिन खुलेगी बहुत बड़ा धमाका होगा। गुजराल ने कहा कि आप इसे अपने पास रखे रहिए, क्योंकि मेरे पास कोई विश्वस्त व्यक्ति नहीं है। इंद्र कुमार गुजराल की सरकार भी गिर गई, उसके बाद अटल बिहारी वाजपेई की सरकार आई। अटल बिहारी वाजपेई जब प्रधानमंत्री बने तो मीनाक्षीसुंदरम ने बृजेश मिश्रा को बताया कि ऐसी फाइल है, तो उन्होंने कहा कि अभी इसे अपने पास रखो। उसके बाद जब वह रिटायर होने लगीं तो उन्होंने कहा कि अब तो मैं इसे अपने पास नहीं रख सकती, किसी को देना होगा तो वाजपेई के पीएमओ में सबसे करीबी अधिकारी अशोक सैकिया को वह फाइल दे दी गई।
फाइल कहां
अब उसके बाद वह फाइल कहां गई, किसी को मालूम नहीं है। 2007 में अशोक सैकिया का निधन हो गया। अब वह फाइल उनके पास रही- या फिर मनमोहन सिंह सरकार के पास गई- या नरेंद्र मोदी सरकार के पास आई- इसका कोई ट्रेस नहीं है। मीनाक्षीसुंदरम कहती हैं कि ‘मुझे कुछ पता नहीं। वह मैंने अशोक सैकिया को जब सौंप दी, उसके बाद से मुझे उस फाइल के बारे में कोई जानकारी नहीं है।’ सरकार के स्तर से ऐसी कोई जानकारी मिलेगी नहीं। सवाल यह है कि उस फाइल में था क्या? जाहिर है एन.एन. वोहरा कमेटी का जो ब्रीफ था, वह क्रिमिनल, पॉलिटीशियन, पुलिस और नौकरशाही के बीच के नैक्सस का पता लगाना था। और इसमें उनको जो रिपोर्ट मिली वह थी केंद्रीय एजेंसियों के काम की। ऐसा कहते हैं कि एजेंसियों ने बेहतरीन काम किया था। और उस रिपोर्ट में बताया गया है कि किसके किससे कैसे संबंध थे- क्या लेन-देन था- यह कैसे हल किया जा सकता है- इसके बारे में भी सुझाव दिए गए। लेकिन आज तक किसी सरकार ने उस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया।
सुप्रीम कोर्ट का विलाप
सुप्रीम कोर्ट विलाप करता रहता है कि यह क्रिमिनल, पॉलिटीशियन का नैक्सस देश को बर्बाद कर रहा है। जब चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा (सीजेआई) थे तो उन्होंने कहा कि यह लोकतंत्र के महल में दीमक की तरह है, लेकिन फिर भी कुछ नहीं हुआ। हां, 1997 में जब पूरी रिपोर्ट को सार्वजनिक करने का दबाव बढ़ा तो उस समय संयुक्त मोर्चा की सरकार थी। वह सुप्रीम कोर्ट चली गई और सुप्रीम कोर्ट में जाकर कहा कि यह रिपोर्ट है, इस पर हम काम करने की तैयारी कर रहे हैं, इसको सार्वजनिक नहीं किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कह दिया कि इसको सार्वजनिक करने का हम सरकार पर दबाव नहीं डाल सकते। सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऑब्जरवेशन में कहा एक हाई पावर कमेटी कमेटी बननी चाहिए, जो इसकी जांच करे और इसके आधार पर जो लोग इसमें शामिल हैं, उन पर एक्शन ले। सुप्रीम कोर्ट ने यह सब कहा तो, लेकिन जहां तक मुझे जानकारी है फैसले में यह बात नहीं कही गई। मैंने इस मुकदमे के बारे में जानकारी रखनेवालों से इस बारे में पूछा। उनके मुताबिक, अगर सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में यह बात कही होती तो सरकार की जिम्मेदारी और जवाबदेही बनती। फिर कोई दूसरा कोर्ट में गया होता कि आपने निर्देश दिया था, फैसला दिया था, सरकार नहीं कर रही है। ऐसा नहीं हुआ।
सुनवाई से मना किया
फिर 2020 में अश्विनी उपाध्याय सुप्रीम कोर्ट में गए और उन्होंने पीआईएल लगाई। उपाध्याय वकील हैं, एक्टिविस्ट हैं, बहुत-से पीआईएल कर रहे हैं और देशहित में बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। वह सुप्रीम कोर्ट ने उपाध्याय की पीआईएल पर सुनवाई करने से ही मना कर दिया। कोर्ट ने कहा कि आप सरकार के पास जाइए। वह सरकार के पास गए और उसके बाद भी कुछ नहीं हुआ। आपको बता दें कि इस नैक्सस में केवल पॉलिटीशियन, अंडरवर्ल्ड डॉन, पुलिस अधिकारी, नौकरशाही इतने ही लोग नहीं हैं। इसमें एनजीओ के लोग भी हैं, कुछ बड़े संपादक भी हैं। देश को यह जानने का हक है कि वे कौन लोग थे, जो देश को बेच रहे थे? और घूम-फिर कर बात मुंबई की होती है, अंडरवर्ल्ड की होती है- तो पता नहीं क्यों शरद पवार का नाम जरूर आ जाता है। शरद पवार नरसिम्हा राव की सरकार में 20 महीने तक रक्षामंत्री थे। उनके रक्षामंत्री रहते हुए दाऊद के कुछ लोग उनके एयरफोर्स के प्लेन में गए थे, जिस पर बड़ा बवाल मचा और बड़ी कंट्रोवर्सी हुई थी। उसके अलावा दाऊद इब्राहीम दो बार कोशिश कर चुका है। वह भारत आने और सरेंडर करने को तैयार है, लेकिन उसकी कुछ शर्ते हैं। लेकिन वह बातचीत शरद पवार के माध्यम से कर रहा है। तो आखिर शरद पवार का अंडरवर्ल्ड डॉन से क्या रिश्ता है? है भी कि नहीं! और अगर नहीं है तो सवाल यह है कि दाऊद इब्राहीम को शरद पवार पर ही क्यों भरोसा है? आमतौर पर गैंगस्टर जब सरेंडर करने की बात करते हैं, तो किसी अधिकारी से बात करते हैं, इन्वेस्टिगेटिंग एजेंसी के लोगों से बात करते हैं, लेकिन यहाँ देखिए कि इस बारे में कोई ऑथेंटिक, तथ्यात्मक रूप से कुछ कह नहीं सकता, सिवाय एन.एन. वोहरा कमेटी की रिपोर्ट के। वह रिपोर्ट बाहर आए तो सच्चाई बाहर आए। यह भी कहा जाता है कि 1993 में आई इस रिपोर्ट मैं बीजेपी, आरएसएस के किसी पदाधिकारी, नेता का नाम नहीं है, क्योंकि 93 तक महाराष्ट्र की राजनीति में बीजेपी एक फील्ड प्लेयर थी। उसका कोई नेता इस स्थिति में नहीं था कि किसी को फायदा पहुंचा सके या बचा सके। हो सकता है इसी वजह से नहीं हो। बहरहाल जो भी कारण हो, बीजेपी-संघ के किसी नेता का नाम नहीं है उस कमेटी की रिपोर्ट में। अब सवाल यह है कि यह सरकार फिर इसे सार्वजनिक क्यों नहीं कर रही। यह एक ऐसा रहस्यमय मुद्दा है, जिसका जवाब किसी के पास नहीं है कि क्यों सरकार ऐसा नहीं कर रही है। सुप्रीम कोर्ट, जो रोज सरकार को निर्देश देता है कि आप स्पेशल कोर्ट बनाइए, जल्दी ट्रायल कीजिए। जो पॉलिटिशियन हैं, उनके खिलाफ जो क्रिमिनल केसेज हैं, उनका फैसला जल्दी हो। क्रिमिनल और पॉलिटीशियन का जो नैक्सस है, वह टूटना चाहिए। डेमोक्रेसी को बचाने के लिए बहुत जरूरी है। यह सब बोलने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट राफेल पर डिफेंस के पेपर्स मंगा सकता है, सुप्रीम कोर्ट दूसरे मामलों में डिफेंस के मुद्दों पर ऐसे कागजात मंगवा सकता है, तो सुप्रीम कोर्ट क्यों नहीं कह सकता कि एन.एन. वोहरा कमेटी की पूरी रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए और उस पर एक्शन टेकन रिपोर्ट सरकार टाइम बाउंड मैनर में पेश करे। आखिर वजह क्या है …कुछ तो बड़ी वजह है। उससे क्या हो जाएगा, किस तरह के राज खुलेंगे- यह कुछ-कुछ मुझे उसी तरह का मामला लगता है, हालांकि दोनों की तुलना नहीं हो सकती, दोनों बहुत ही अलग मामले हैं। एक दूसरा मामला जो बता रहा हूं, बहुत बड़ा है। उसका किसी गैंगस्टर से और पॉलिटीशियन से या क्रिमिनल से मिले हुए पॉलिटीशियन से ताल्लुक नहीं है। यह है नेताजी सुभाष चंद्र बोस का मामला, उनकी गुमनामी का मामला। उनकी मौत का मामला। वह जो रहस्य बना हुआ है, इतने सालों में भी नहीं खुला। उसी तरह से यह भी रहस्य बना हुआ है कि आखिर क्यों एन.एन. वोहरा कमेटी की रिपोर्ट सामने नहीं आनी चाहिए। यदि केवल इतना होता कि उसमें संबंध बताए गए हैं कि किसने क्या किया और क्या दिया तो यह बात होती कि बात 30 साल पुरानी हो चुकी है। उसमें से कुछ नेताओं की मौत भी हो चुकी है जिनका नाम वोहरा कमेटी की रिपोर्ट में है। लेकिन सवाल ये कि उसमें यह भी बताया गया है कि इस स्थिति को सुधारने के लिए क्या किया जाना चाहिए। और कोई भी सरकार रिपोर्ट सामने लाने को तैयार नहीं है, सुप्रीम कोर्ट उस पर कोई निर्देश देने को तैयार नहीं है, लेकिन सब लोग चाहते हैं कि यह क्रिमिनल पॉलिटीशियंस नैक्सस टूट जाए …यह कैसे हो सकता है? अगर आपके पास कुछ लोगों के खिलाफ प्रमाण हैं, इस बात का रोडमैप है कि कैसे इसको ठीक किया जा सकता है- तो अगर आप उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं कर रहे हैं, उस रोडमैप पर चलने को तैयार नहीं हैं, तो यह कैसे बदलेगा। मुझे लगता है कि कम से कम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को इस मामले को दूसरी सरकारों की तरह ट्रीट नहीं करना चाहिए। सरकार को चाहिए कि इस रिपोर्ट को सार्वजनिक करे और एक्शन टेकन रिपोर्ट पेश करे। सरकार इसके आधार पर कार्रवाई करे, उसके लिए कोई बड़ी कमेटी बनानी हो, कोई आयोग बनाना हो, कुछ भी बनाना हो, बनाया जाए और एक्शन होना चाहिए, अगर सचमुच क्रिमिनल, पॉलिटीशियन, ब्यूरोक्रेट और पुलिस का नेक्सस तोड़ना है तो उसके लिए जरूरी है कि उसकी गर्भनाल काटी जाए। जब तक यह नहीं होगा तब तक यह बदलने वाला नहीं है।
सरकार पर दबाव बढ़ेगा किताब आने के बाद
लेकिन फिर घूम-फिरकर आ रहा हूं कि आखिर शरद पवार ऐसे सब मामलों के केंद्र में क्यों आ जाते हैं? सवाल यह है कि अगर नरसिम्हा राव से लेकर बाकी प्रधानमंत्री (अगर अभी तक वह फाइल है, जिसका देवगौड़ा ने जिक्र किया है तो) पवार को ब्लैकमेल करते रहे? क्या शरद पवार ब्लैकमेल होते रहे? मुझे नहीं मालूम है। मैं दावे के साथ ऐसा कुछ कह भी नहीं सकता हूं कि वे ब्लैकमेल होते रहे या नहीं होते रहे। लेकिन दो बातों से, एक- एन.एन. वोहरा कमेटी की रिपोर्ट में नाम, दूसरा- नरसिम्हा राव ने जो देवगौड़ा से कहा और देवगौड़ा की किताब में जो कुछ आ रहा है …मुझे लगता है कि किताब में इससे ज्यादा शायद कुछ होगा। तो किताब के आने का इंतजार करना होगा। लगभग महीने भर में वह किताब मार्केट में आने वाली है। तब पता चलेगा विस्तार से कि इसमें और क्या-क्या है। मुझे लगता है कि इस किताब के आने के बाद सरकार पर एन.एन. वोहरा कमेटी की रिपोर्ट को सामने लाने का दबाव और ज्यादा बढ़ जाएगा …और यह भी बताने के लिए कि वो फाइलें कहां हैं- हैं कि नहीं हैं- क्या किसी ने नष्ट कर दीं- क्या उनको गायब कर दिया गया- या सरकार के पास हैं। इन सारे सवालों के जवाब सरकार ही दे सकती है, अगर देना चाहे। मुझे मालूम नहीं कि सरकार ऐसा करेगी या नहीं ।