प्रमोद जोशी ।
ऊपर का यह चित्र प्रचीन काल में ऋषि सुश्रुत की शल्य चिकित्सा को दर्शा रहा है। भारत में आयुर्वेद चिकित्सक प्राचीन काल से शल्य चिकित्सा करते रहे हैं। भारत सरकार ने गत 19 नवंबर को एक अधिसूचना के जरिए चिकित्सा के क्षेत्र में आयुर्वेद को और बढ़ावा देने के लिए स्नातकोत्तर छात्रों को ग्रेजुएट डॉक्टरों को सर्जरी (Ayurveda surgery) करने की अनुमति देने का फैसला किया। सरकार के इस फैसले का सबसे बड़ा विरोध इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने किया है। IMA ने इस फैसले को मेडिकल संस्थानों में चोर दरवाजे से प्रवेश का प्रयास बताते हुए कहा कि ऐसे में NEET जैसी परीक्षा का कोई महत्व नहीं रह जाएगा।
IMA ने किया आंदोलन का आह्वान
आईएमए ने सरकार के इस फैसले के खिलाफ आंदोलन चलाने का फैसला किया है। इस सिलसिले में 8 दिसंबर को देशभर में प्रदर्शन किए जाएंगे और 11 दिसंबर को चिकित्सालयों में गैर-कोविड चिकित्सा कार्यों को ठप रखा जाएगा।
भारत में सर्जन बनने के लिए मॉर्डन मेडिसन कोर्स के तहत साढ़े पांच की एमबीबीएस की पढ़ाई के साथ ही 3 साल की एमएस डिग्री की अनिवार्यता है। वहीं इसके साथ ही 3 साल की स्पेशल ट्रेनिंग भी जरूरी है। आयुर्वेदिक छात्रों का कहना है कि हम भी NEET की परीक्षा पास करके आते हैं।
सर्जरी के लिए विशेष प्रशिक्षण
देश में आयुर्वेदिक शिक्षा का काम इंडियन मेडिकल सेंट्रल कौंसिल (स्नातकोत्तर शिक्षा) देखती है। इसी संस्था की ओर से जारी नोटिफिकेशन में कहा गया है कि स्नातकोत्तर विद्यार्थियों को विभिन्न सर्जरी के बारे में गहन जानकारी दी जाएगी। यह नोटिफिकेशन सन 2016 में जारी विनियमों में संशोधन के रूप में है। इसके मुताबिक, आयुर्वेद से पीजी करने वाले छात्रों को आंख, नाक, कान, गले के साथ ही जनरल सर्जरी के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित किया जाएगा।
शल्य तंत्र (जनरल सर्जरी) और शालक्य तंत्र (नाक, गाल, गला, सिर और आंख की सर्जरी) के पीजी छात्रों को पढ़ाई के दौरान स्वतंत्र रूप से विभिन्न तरह की चीर-फाड़ की प्रक्रिया का व्यावहारिक ज्ञान दिया जाएगा। इन छात्रों को स्तन की गांठों, अल्सर, मूत्रमार्ग के रोगों, पेट से बाहरी तत्वों की निकासी, ग्लुकोमा, मोतियाबिंद हटाने और कई सर्जरी करने का अधिकार होगा।
सरकार द्वारा जारी अधिसूचना के मुताबिक, आयुर्वेदिक अध्ययन के पाठ्यक्रम में सर्जिकल प्रक्रिया के लिए प्रशिक्षण मॉड्यूल को जोड़ा जाएगा। इसके लिए अधिनियम का नाम बदलकर भारतीय चिकित्सा केंद्रीय परिषद (स्नातकोत्तर आयुर्वेद शिक्षा) संशोधन विनियम, 2020 कर दिया गया है।
आयुष चिकित्सा की प्रैक्टिस कर रहे डॉक्टरों की ओर से लंबे समय से एलोपैथी के समान अधिकार देने की मांग हो रही थी। नए नियमों के मुताबिक, आयुर्वेद के छात्र पढ़ाई के दौरान ही शल्य (सर्जरी) और शालक्य चिकित्सा को लेकर प्रशिक्षित किए जाएंगे। छात्रों को शल्य-चिकित्सा की दो धाराओं में प्रशिक्षित किया जाएगा और उन्हें एमएस (आयुर्वेद) जनरल सर्जरी और एमएस (आयुर्वेद) शालक्य तंत्र (नेत्र, कान, नाक, गला, सिर और सिर-दंत चिकित्सा का रोग) जैसी शल्य तंत्र की उपाधियों से सम्मानित भी किया जाएगा।
गलत क्या?
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) का कहना है कि इस तरह की अनुमति देने से चिकित्सा वर्ग में खिचड़ी हो जाएगी। उसके अध्यक्ष डॉ. राजन शर्मा का कहना है कि इस ‘मिक्सोपैथी’ की वजह से देश में हाइब्रिड डॉक्टरों को बढ़ावा मिलेगा। जबकि आयुर्वेद के समर्थकों का कहना है कि सच यह है कि जिसे मॉडर्न मेडिसन कहा जाता है, उसका भी विकास हुआ है। सर्जरी और डायग्नोसिस आधुनिक तकनीकी विकास के साथ जुड़े हैं। यदि आयुर्वेद इस विकास की मदद लेता है, तो गलत क्या है?
महर्षि सुश्रुत फादर ऑफ सर्जरी
प्राचीन आयुर्वेद में सुश्रुत ने सर्जरी को लेकर विस्तार से चर्चा करते हुए सर्जरी के कारण, प्रक्रिया और नियमों का वर्णन किया है। प्राचीन काल में युद्ध चूंकि तलवारों से होते थे और अक्सर योद्धाओं के नाक या कान कट जाते थे। इन अंगों को फिर से जोड़ने के लिए की जाने वाली सर्जरी की जानकारी भी विस्तार से सुश्रुत संहिता में है। यहीं से प्लास्टिक सर्जरी की शुरुआत हुई। संधान कर्म (यानी प्लास्टिक सर्जरी) के बारे में भी बारीकी से लिखने वाले महर्षि सुश्रुत को फादर ऑफ सर्जरी भी कहा जाता है।
एलोपैथिक और आयुर्वेदिक सर्जरी में आपस में कोई विरोध नहीं है। आयुर्वेद की प्लास्टिक सर्जरी और क्षार सूत्र ट्रीटमेंट को एलोपैथी ने अपनाया है और आधुनिक एलोपैथिक सर्जन इन विधियों से इलाज कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ, आयुर्वेदिक सर्जरी भी एनिस्थीसिया जैसी पद्धतियों का इस्तेमाल करती है, जो आधुनिक सर्जरी की विशेषता है।
सर्जरी आयुर्वेद की देन
इंटीग्रेटेड मेडिकल एसोसिएशन (आयुष) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ आर पी पाराशर का कहना है कि मोदी सरकार ने आयुष चिकित्सा को बढ़ावा देने को लेकर शुरू से संतोषजनक काम किया है। नया आदेश वर्तमान में देश की चिकित्सकीय व्यवस्था के लिए बेहतर साबित होगा। ‘विश्व के पहले सर्जन सुश्रुत थे जो आयुर्वेद से जुड़े थे। विश्व में सर्जरी आयुर्वेद की देन है। ऐसे में सरकार अनुमति देती भी है तो इससे किसी भी पैथी को संकट नहीं है। यह अधिकार आयुर्वेद का है और उसे अब मोदी सरकार ने दिलाया है।’
हमारी और मॉडर्न मेडिसन की सर्जरी एक जैसी
जयपुर स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ आयुर्वेद में जनरल सर्जरी विभाग के अध्यक्ष पी हेमंत कुमार का कहना है कि हमारे अस्पताल में हर साल करीब 1000 मेजर सर्जरी होती हैं। इनके अलावा बड़ी संख्या में छोटी सर्जरी भी होती हैं। पुणे स्थित अर्ध-शासकीय तिलक आयुर्वेदिक कॉलेज और तारा चंद्र अस्पताल के सर्जरी विभाग के अध्यक्ष नंद किशोर बोरसे का कहना है कि हमारी सर्जरी और मॉडर्न मेडिसन की सर्जरी एक जैसी होती हैं। कहाँ कट लगाना है, कैसे लगाना है, और ऑपरेशन कैसे करना है, यह सब समान होता है। अलबत्ता ऑपरेशन के बाद की सुश्रूशा में अंतर होता है। हम सुपर स्पेशलिटी वाली सर्जरी जैसे कि न्यूरो सर्जरी नहीं करते।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)