डॉ. संतोष कुमार तिवारी।
नीम करोली बाबा के परलोकगमन के बाद 1974 में एप्पल के संस्थापक स्टीव जाब्स Steve Jobs (1955-2011) उनके कैंची आश्रम (उत्तराखण्ड) आए थे। बाद में फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग (Mark Zuckerberg) भी उनके आश्रम आए थे। स्टीव जाब्स और मार्क जुकरबर्ग जब वहाँ आए थे, तब उनके जीवन के बुरे दिन चल रहे थे। वे दोनों हताश और निराश थे। वास्तव में स्टीव जाब्स की प्रेरणा से ही जुकरबर्ग कैंची आश्रम आए थे। इन दोनों के जीवन पर बाबा का बहुत सकारात्मक प्रभाव पड़ा। इसके अतिरिक्त गूगल के लैरी पेज (Larry Page), लैरी ब्रिलिअंट (Larry Brilliant), हालीवुड अभिनेत्री जूलिया राबर्ट्स (Julia Roberts), आदि तमाम विदेशी हस्तियाँ बाबा से प्रभावित हुई हैं। डॉ. लैरी ब्रिलिअंट ने बाबा के सुझाव पर ही विश्व स्वास्थ्य संगठन ज्वाइन किया और दुनिया में चेचक उन्मूलन कार्यक्रम में भाग लिया।
इन सबके जीवन पर बाबा का बहुत सकारात्मक प्रभाव पड़ा। इस बारे में तमाम जानकारियाँ इंटरनेट पर उपलब्ध हैं।
अलौकिक प्रसंग
नीम करोली बाबा के भक्त आज भारत सहित विश्व के अनेक देशों में हैं। ऐसे ही एक अमेरिकी भक्त थे रिचर्ड अल्पर्ट Richard Alpert (1931-2019)। वह बाबा के संग बहुत समय रहे। बाद में उनका नाम राम दास (Ram Dass) हो गया था। उन्होंने राम दास नाम से बाबा पर अंग्रेज़ी में एक पुस्तक लिखी: ‘द मिरकेल ऑफ लव: स्टोरीज़ एबाउट नीम करोली बाबा’ (The Miracle of Love: Stories About Neem Karoli Baba)। बाबा ने कभी यह नहीं कहा कि वह कोई चमत्कार करते हैं। रिचर्ड अल्पर्ट ने अपनी पुस्तक में बाबा को ‘महाराजजी’ कह कर संबोधित किया है। उनकी अंग्रेजी पुस्तक का प्रकाशन अमेरिका में ई.पी. डट्टन, न्यूयार्क (E.P. Dutton, New York) ने किया। उनकी अंग्रेजी पुस्तक के 1979 संस्करण में चार सौ से अधिक पृष्ठ हैं। उनमें बाबा के बारे में असंख्य अद्भुत जानकारियाँ दी गई हैं। उनमें से आठ-दस की यहाँ संक्षेप में चर्चा की जा रही है:
एक
मैं एक बार लन्दन में बस में सफर कर रहा था। तभी एक वृद्ध व्यक्ति कम्बल ओढ़े हुए बस में चढ़ा। वह मेरे बगल वाली विंडो सीट पर बैठना चाहता था। मुझे अच्छा तो नहीं लगा, लेकिन मैं खड़ा हो गया ताकि वह विंडो सीट पर जाकर बैठ सके। उसे विंडो सीट पर जगह देने के लिए मुझे थोड़ा खड़ा होना पड़ा। यह मुझे अच्छा नहीं लगा। विंडो सीट पर बैठने के बाद उसने मेरी ओर देखा। उसकी आँखों में एक अद्भुत प्रेम और स्नेह टपक रहा था। उससे मेरी सारी नाराजगी तुरन्त खत्म हो गई। थोड़ी देर बाद मैंने फिर उसकी ओर देखना चाहा, तो वह उस सीट पर नहीं था। इस बीच बस कहीं रुकी भी नहीं थी। वह बस से कहीं गायब हो गया था। मैं आश्चर्य में पड़ गया।
बाद में जब मैं भारत यात्रा पर आया, तो एक जगह पहली बार महाराजजी का फोटो देखा। मैं तुरंत पहचान गया कि यह वही व्यक्ति है, जो मेरे बगल वाली विंडो सीट पर बैठा था और फिर गायब हो गया था। (अंग्रेजी पुस्तक के पृष्ठ संख्या 10 से)
दो
यदि कोई बहुत चालाक-चंठ और कपटी व्यक्ति महाराजजी के पास आता था, तो वे उसकी अनदेखी कर देते थे। लेकिन जब कोई सीधा सादा व्यक्ति आता था, तो वे उसकी मदद करते थे। (अंग्रेजी पुस्तक के पृष्ठ संख्या 61 से)
तीन
एक बार मैं एक परीक्षा देने जा रहा था, तो मैंने महाराजजी को पत्र लिख कर उनका आशीर्वाद मांगा। मैंने पूछा कि क्या मैं पास हो जाऊंगा? परन्तु उनका कोई जवाब नहीं आया। मैं इम्तहान में फेल हो गया। मैंने फिर उनको लिखा कि आपका कोई जवाब क्यों नहीं दिया। तब उनका पत्र आया कि अब तुम उस परीक्षा में फिर बैठना। बाद में मैं फिर परीक्षा में बैठा और पास हो गया। (अंग्रेजी पुस्तक के पृष्ठ संख्या 205 से)
चार
एक बार मेरे पास एक भिखारी लड़का आया। मैंने उसको खाना दे दिया। परन्तु वह खिलौना मांगने लगा, तो मैंने उसे भागा दिया। बाद में महाराजजी ने मुझसे कहा कि मैं तुम्हारे पास आया था और तुमने मुझे भगा दिया था। (अंग्रेजी पुस्तक के पृष्ठ संख्या 175 से)
पाँच
एक वृद्ध भक्त महाराजजी के पास आए, उन्होंने पूछा – मैं ईश्वर की साधना करने के लिए क्या करूँ? महाराजजी ने कहा ज्यादा चक्कर में न पड़ो। वही करो जो हनुमान जी करते रहे – राम नाम जपो। (अंग्रेजी पुस्तक के पृष्ठ संख्या 361 से)
छह
एक बार एक भक्त ने महाराजजी से पूछा कि मेरी एक बेबी है, मैं कैसे आसक्ति छोड़ सकती हूँ? बाबा ने कहा कि ईश्वर पर भरोसा रखो। ईश्वर का नाम जपो। आसक्ति धीरे-धीरे छूट जाएगी। (अंग्रेजी पुस्तक के पृष्ठ संख्या 197 से)
सात
एक बार एक अत्यन्त गरीब स्थानीय महिला महाराजजी के पास आई। उसने अपनी धोती के पल्लू में एक गांठ बांध रखी थी। उसने उस गांठ को खोल कर मुड़ा-मुड़ाया एक रुपए का एक नोट निकाला और महाराजजी को अर्पित कर दिया। महाराजजी ने उस नोट को वापस उसकी ओर खिसका दिया। तो उस महिला ने उस नोट को फिर पल्लू में बांध लिया।
तब महाराजजी ने उससे कहा – माँ वह नोट मुझे दे दो। उस महिला ने पल्लू की गांठ खोली तो उसमें एक-एक रुपये के दो नोट निकले। उसने वे महाराजजी को अर्पित कर दिए। परन्तु महाराजजी ने वे दोनों उस गरीब महिला को वापस कर दिए।
महाराजजी का मानना था कि यदि तुम्हें ईश्वर में विश्वास है, तो तुम अपना धन-जायदाद सब छोड़ सकते हो। ईश्वर तुम्हारे आध्यात्मिक विकास के लिए तुम्हारी सभी अवश्यकताएं पूरी करेगा। (अंग्रेजी पुस्तक के पृष्ठ संख्या 208-209 से)
आठ
एक बार नेपाल की महारानी महाराजजी के पास आईं। उनके पति महाराजजी के भक्त थे। महारानी ने महाराजजी को कई उपहार देना चाहा। तब महाराजजी ने कहा कि इन्हें गरीबों में बाँट दो। (अंग्रेजी पुस्तक के पृष्ठ संख्या 222 से)
नौ
एक बार एक भक्त ने मुझे बताया कि वृन्दावन में जब महाराजजी हनुमानजी की मूर्ति के सामने खड़े होते हैं, तो उनका साइज अर्थात आकार छोटा हो जाता है। इस बात पर मुझे भी कौतूहल हुआ। तो एक दिन क्या हुआ कि मैं हनुमानजी के दर्शन के लिए वहाँ मन्दिर में गया हुआ था, तभी महाराजजी भी आ गए। हम दोनों मूर्ति के सामने रेलिंग पर सिर रखे हुए थे। मैंने देखा कि वहाँ महाराजजी के शरीर का आकार छोटा होता जा रहा था। (अंग्रेजी पुस्तक के पृष्ठ संख्या 184 से)
दस
महाराजजी कोई लेक्चर नहीं देते थे। वे किसी से यह नहीं कहते थे कि तुम सिगरेट पीना या कोई नशा करना छोड़ दो। परन्तु वह ऐसी स्थितियाँ पैदा कर देते थे कि व्यक्ति इन बुरी आदतों को छोड़ देता था। (अंग्रेजी पुस्तक के पृष्ठ संख्या 189 से)
यहाँ यह बता देना भी जरूरी है कि इस अंग्रेजी पुस्तक के लेखक रिचर्ड अल्पर्ट स्वयं नशा करते थे। इसी कारण उन्हें अमेरिका में हावर्ड यूनिवर्सिटी से निकाला गया था। परन्तु नीम करोली बाबा के प्रभाव में आकार उन्होंने नशा छोड़ दिया था।
बाबा की प्रिय पुस्तकें रामचरितमानस और हनुमानचालीसा
पुस्तक के पृष्ठ संख्या 364 पर रिचर्ड अल्पर्ट ने लिखा कि हमारे लिए महाराजजी ही हनुमानजी हैं। लेखक ने रामचरितमानस (अंग्रेजी संस्करण, 1968, गीता प्रेस, गोरखपुर) से उद्धृत करके हनुमानजी के गुण गिनाए हैं। उन्होंने विलियम बक (William Buck) की अंग्रेजी पुस्तक ‘रामायण’ के माध्यम से भी हनुमानजी के गुण गिनाए। विलियम बक की ‘रामायण’ का प्रकाशन अमेरिका में यूनिवर्सिटी आफ कैलिफोर्निया प्रेस, बरक्ले (University of California Press, Berkely) ने सन् 1976 में किया था।
रिचर्ड अल्पर्ट ने अपनी पुस्तक में लिखा कि रामचरितमानस और हनुमानचालीसा नीम करोली बाबा की प्रिय पुस्तकें थीं। सुन्दरकाण्ड पढ़ते-पढ़ते उनकी आंखों में आँसू आ जाए थे।
परलोकगमन के बाद भी वादा निभाया
सितम्बर 1973 को नीम करोली बाबा ने अपना भौतिक शरीर छोड़ दिया था। अपनी पुस्तक के पृष्ठ संख्या 400 पर रिचर्ड अल्पर्ट ने लिखा कि परलोकगमन से दो-तीन वर्ष पूर्व महाराजजी ने मुझे तीन चीजें देने का वादा किया था – पशुपतिनाथ से रुद्राक्ष की माला, नर्मदा से शिवलिंगम और एक विशेष शंख। परन्तु अपने जीवन काल में महाराजजी ने ये चीजें मुझे कभी नहीं दीं। मैंने भी कभी उन्हें याद नहीं दिलाया। परन्तु उनके परलोकगमन के बाद एक युवा साधू मेरे पास आया और उसने ये तीनों वस्तुएँ मुझे दीं और कहा कि ये मेरे लिए भिजवाई गईं हैं। उस साधू को उससे पहले मैंने कभी नहीं देखा था। वह कुल मिला कर तीन बार मेरे पास आया और फिर कभी नहीं आया। उसका व्यवहार महाराजजी जैसा ही था। मैंने उससे कहा कि आपका व्यवहार महाराजजी जैसा है। तो उसने सिर झुका लिया और मुस्करा दिया। और वह कुछ नहीं बोला।
रिचर्ड अल्पर्ट के अतिरिक्त भी कई अन्य लोगों ने नीम करोली बाबा पर हिन्दी और अंग्रेजी में पुस्तकें लिखीं हैं। उनमें से एक थे प्रोफेसर सुधीर मुखर्जी। बाबाजी उनको दादा कहते थे। उनको बाबाजी के साथ रहने का कई बार अवसर मिला। बाबाजी प्रयागराज में उनके घर पर हर जाड़े में रुकते थे। दादा मुखर्जी इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रोफेसर थे। बाबाजी का शरीर शान्त होने के बाद दादा ने उनके बारे में दो पुस्तकें लिखीं – By His Grace: A Devotee’s Story और The Near and the Dear: Stories of Neem Karoli Baba and His Devotees.
रिचर्ड अल्पर्ट ने अपनी पुस्तक में दादाजी की कई स्थानों पर चर्चा की है।
अमेरिका में हनुमान फाउंडेशन
रिचर्ड अल्पर्ट ने सन् 1974 में अमेरिका में हनुमान फाउंडेशन (Hanuman Foundation) की स्थापना की। इसी प्रकार अभी हाल में वर्ष 2014 में जाने-माने गायक कृष्ण दास ने अमेरिका में कीर्तन वाला फाउंडेशन (Keertan Wallah Foundation) की स्थापना की। इसका उद्देश्य है भजन-कीर्तन करके और हनुमानचालीसा का पाठ करके बाबा के सन्देश को जन-जन तक पहुंचाना। कृष्ण दास के तमाम भजन और हनुमानचालीसा पाठ इंटरनेट में यूट्यूब पर उपलब्ध हैं। कृष्ण दास एक अमेरिकी हैं। पहले उनका नाम जेफ्री कागेल (Jeffrey Kagel) था। बाबा के प्रभाव में आकर उनका नाम बादल कर कृष्ण दास हो गया।
बाबा का वास्तविक नाम
नीम/ नीब करोली बाबा का भी वास्तविक नाम लक्ष्मी नारायण शर्मा था। उन्होंने फर्रुखाबाद के पास एक स्थान है नीब करोरी। वहाँ बाबा ने साधना की थी। तब से वह नीम/ नीब करोली बाबा या नीब करोरी बाबा के नाम से जाने जाने लगे। वह एक गृहस्थ सन्त थे।
फर्रुखाबाद के पास एक नीबकरोरी (Nibkarori) रेलवे स्टेशन भी है।
हर व्यक्ति की चेतना का स्तर अलग-अलग
ऐसा नहीं है कि बाबा के जीवन काल में उनसे जितने भी लोग मिले, या आज भी जो उनके कैंची आश्रम या उनके आशीर्वाद से स्थापित हनुमान मंदिरों में जाते हैं, उन सबको अद्भुत आध्यात्मिक अनुभव हुए हों। इसका कारण शायद यह है कि प्रत्येक व्यक्ति की आध्यात्मिक चेतना का स्तर अलग-अलग होता है। जाने-अनजाने में आध्यात्मिकता की राह में हम सभी चल रहे हैं। कोई बहुत आगे है। कोई पीछे है। कोई बीच में है। और अपनी-अपनी जीवन यात्रा में जब जो जहां है, उसके उसी प्रकार के अनुभव हैं।
(लेखक झारखण्ड केन्द्रीय विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफ़ेसर हैं।)