(सावन विशेष)
बाबा सिद्धनाथ मंदिर के इतिहास की यदि बात करें तो इस मंदिर की अपनी एक अलग मान्यता है, बाबा सिद्धनाथ को जाजमऊ के कोतवाली के रूप में पूजा जाता है। बाबा सिद्धनाथ का यह मंदिर त्रेतायुग का बताया जाता है। यहां गंगा के किनारे एक टीला हुआ करता था और यह टीला राजा ययाति का बताया जाता है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक एक गाय निर्जन स्थान पर अपना सारा दूध छोड़ आती थी, चरवाहा यह देख दंग रह जाता था कि आखिर यह दूध जाता कहां है। राजा ने अपनी सेना भेजकर यह जानना चाहा कि गाय आखिर दूध कहां पर छोड़ रही है। निर्जन स्थान पर जाकर देखा तो गाय एक पत्थर पर अपना सारा दूध छोड़ रही थी तभी राजा के मन में आया कि इसकी खुदाई कराई जाय। खुदाई कराते ही एक शिवलिंग निकला, ऐसा कहा जाता है कि स्वप्न में राजा को भगवान ने कहा था कि यज्ञ करवाए, राजा ने विधि-विधान से यज्ञ कराना शुरू किया।
मंदिर के पुजारी मुन्नीलाल और सेवक अंकित शर्मा ने बताया कि राजा ययाति ने मंदिर की स्थापना की थी। वर्तमान में बाबा सिद्धनाथ मंदिर को जाजमऊ के कोतवाल के रूप में पूजा जाता है। यहां स्थापित शिवलिंग की गहराई नापने के लिए दो बार खुदाई भी हो चुकी है, लेकिन शिवलिंग के अंतिम छोर का पता नहीं चल सका है। यहां पर देश के कोने-कोने से भक्त गंगा में आस्था की डुबकी लगाने के बाद बाबा के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। बाबा को बेलपत्र और जल से अभिषेक करते हैं जिससे बाबा प्रसन्न होते हैं और भक्तों की मनोकामना पूर्ण हो जाती हैं।(एएमएपी)