सर्दियों में हर साल आते हैं प्रवासी साइबेरियन पक्षी।
गंगा और सरयू नदी के बीच स्थित झील सुरहा ताल पक्षी विहार नाम से घोषित है। विदेशी परिंदे करीब एक-डेढ़ दशक पहले यहां आने के बाद पूरी तरह महफूज रहते थे। ताल के किनारे स्थित गांवों के बड़े व बूढ़े इन विदेशी महमानों को पानी में अटखेलियां करते देख खुश होते थे। इधर के कुछ वर्षों से स्थानीय लोगों ने इनका शिकार करना शुरू कर दिया। यही नहीं, धीरे-धीरे कुछ लोगों ने इसे अपना व्यवसाय बना लिया। इस बात का असर इनके आवक पर भी पड़ा और कुछ नस्लों के पक्षियों ने तो यहां का रुख करना ही बंद कर दिया। इस साल सर्दी के साथ हजारों मील की दूरी तय कर प्रवासी पक्षी पहुंच रहे हैं। शिकारी भी अब उन्हें निवाला बनाने की टोह में जुट गए हैं। ऐसे में प्रशासन की जिम्मेदार बढ़ गई है।
वाइल्ड लाइन पर है सुरक्षा का जिम्मा
बारहों मास बहने वाले सुरहा ताल में पैदा होने वाले ललका, सूर्यपंखी, टुड़ैला आदि धान को खाने के लिए आने वाले प्रवासी मेहमानों को शौकीनों का निवाला बनने से रोकने के लिए कुछ साल पहले शासन ने संरक्षित क्षेत्र घोषित किया था। साथ ही इसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी काशी वन्य जीव प्रभाग रामनगर वाराणासी के हवाले कर दी गई थी। बावजूद, सैलानी पक्षियों के शिकार होने का सिलसिला थम नहीं पा रहा है।
ईकोटूरिज्म का हब बनेगा सुरहा ताल
सुरहाताल पक्षी विहार में ईको-टूरिज्म को बढ़ावा देने के प्रयास एक बार फिर से शुरू हो गए हैं। जिलाधिकारी सौम्या अग्रवाल ने इसकी पहल की है। उन्होंने सभी अधिकारियों को निर्देश दिया है कि ईको-टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए सुरहाताल के आसपास साफ-सफाई की व्यवस्था की जाए। साथ ही वहां पर लोगों के उठने बैठने और घूमने के लिए कुर्सियां लगवाई जाए। महिलाओं और बच्चों की सुविधा के लिए शौचालयों की व्यवस्था की जाए। उन्होंने कहा कि 10 दिसंबर से सुरहा ताल में नौकायन शुरू हो जाएगा। वहां पर स्कूली बच्चों का आगमन शुरू हो जाएगा। जिसको देखते हुए वहां पर पर्याप्त पुलिस सुरक्षा बल की व्यवस्था करने के निर्देश दिए गए हैं। उन्होंने मुख्य विकास अधिकारी को निर्देश दिया है कि ईको-टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए सुरहाताल के आसपास विकास के अवसर तलाशे जाएं। जिससे अधिक से अधिक संख्या में लोग वहां पर आकर विदेशी पक्षियों को देख सकें और पर्यावरण से जुड़ सकें। (एएमएपी)