डॉ. मयंक चतुर्वेदी।
सिर्फ नाम के है कानून
कहने को देश में कानून हैं, राजस्थान में राजस्थान बोविन ऐनिमल ऐक्ट 1995 के तहत गौहत्या और गौमांस रखने पर 3 से 10 साल की जेल और 10,000 रुपये के जुर्माने का भी प्रावधान है। इस संदर्भ में वर्ष 2017 में एक महत्वपूर्ण संशोधन राज्य के स्तर पर भी लाया गया । साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के तहत कुछ ऐसे प्रावधान भी किए गए हैं, जिसके अंतर्गत पशुओं पर अत्याचार करने या उन्हें जान से मारने पर 5 साल तक की जेल का प्रावधान है। लेकिन हिन्दुओं की आस्था से जुड़े होने वाले पशु को जिस बेरहमी से मारा जा रहा था, उससे यहां के वातावरण में हिन्दुओं के प्रति नफरत की मानसिकता को सहज ही समझा जा सकता है ।
खुलेआम हो रहा अपराध
इस अपराध का खुलापन देखिए कि बड़ी संख्या में आस-पास बल्कि दूसरे राज्यों के लोग यहां मांस खरीदने पहुंचते थे। हरियाणा के मेवात के करीब 50 गांवों में होम डिलीवरी की भी सुविधा यहां से दी जा रही थी। इलाके में बीफ की बिरयानी खुलेआम बेची जाती थी। अनेक लोग तो मांस और खाल बेचकर महीने की 4 लाख रुपये से अधिक की कमाई कर रहे थे। यह तो अच्छा हुआ कि यहां की जनता ने भाजपा को जिता दिया, नहीं तो अभी पता नहीं आगे कितनी और गायों को बेरहमी से मार दिया जाता!
सुप्रीम कोर्ट ने पशु वध पर पूर्ण प्रतिबंध का लिया था निर्णय
इतिहास में कई बार हमारे बुजुर्गों ने जो बातें समय सापेक्ष भाव से कहीं, हम उनके अर्थ भी अपने हिसाब से लगा लेते हैं। वस्तुत: जो लोग गोकशी का समर्थन करते हैं, अक्सर उन्हें 1958 उच्चतम न्यायालय का निर्णय और महात्मा गांधी याद आते हैं । तत्कालीन समय में सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने फैसला दिया था कि सभी उम्र की गायों (बछड़ों को छोड़कर) जो दूध देने या वजन उठाने में सक्षम नहीं हैं, उनका वध किया जा सकता है। अदालत ने ऐसे मवेशियों को “बेकार” के रूप में वर्गीकृत किया था। किंतु चार दशक बाद, 2005 में, शीर्ष अदालत ने पशु वध पर पूर्ण प्रतिबंध सर्वमान्य किया, भले ही गोवंश अनुपयोगी या उपयोगी क्यों न हो । इस निर्णय में दिलचस्प बात यह है कि अन्य बातों के अलावा, न्यायालय ने अपनी बात सिद्ध करने के लिए महात्मा गांधी, विनोबा, महावीर, बुद्ध, नानक और अन्य महापुरुषों की यह भारत भूमि है, हमें यह याद दिलाया और कहा कि कमज़ोर को अधिक सुरक्षा और करुणा की आवश्यकता है, इसलिए हमें गाय का वध नहीं जीवन में उसका अधिकतम उपयोग करना चाहिए।
‘हिंद स्वराज’ में गोरक्षा पर गांधी का मत
महात्मा गांधी की किताब ‘हिंद स्वराज’ में उन्होंने एक पाठक के सवाल के जवाब में गोरक्षा पर अपना मत दिया था। वे बोलते हैं, ‘मैं खुद गाय को पूजता हूं यानी मान देता हूं।…गाय कई तरह से उपयोगी जानवर है।…यह तो मुसलमान भाई भी कबूल करेंगे। लेकिन, जैसे मैं गाय को पूजता हूं वैसे मैं मनुष्यों को भी पूजता हूं। जैसे गाय उपयोगी है, वैसे मनुष्य भी। फिर चाहे वह मुसलमान हो या हिंदू। तब क्या गाय को बचाने के लिए मैं मुसलमानों से लड़ूंगा? क्या उसे मैं मारूंगा? ऐसा करने से मैं मुसलमान और गाय दोनों का दुश्मन बन जाऊंगा। इसलिए मैं कहूंगा कि गाय की रक्षा करने का एक यही उपाय है कि मुझे अपने मुसलमान भाई के सामने हाथ जोड़ने चाहिए और उसे देश के लिए गाय को बचाने के लिए समझाना चाहिए। अगर वह न समझे तो मुझे गाय को मरने देना चाहिए, क्योंकि वह मेरे बस की बात नहीं। अगर मुझे गाय पर अत्यंत दया आती हो तो अपनी जान दे देनी चाहिए, लेकिन मुसलमान की जान नहीं लेनी चाहिए। यही धार्मिक कानून है, ऐसा मैं तो मानता हूं।’
महात्मा गांधी ने समय-समय पर की गाय की वकालत
आप सोचें, क्या गांधी के गाय पर यही विचार रहे? निश्चत ही इसका उत्तर नहीं है। क्योंकि महात्मा गांधी ने समय-समय पर गाय की वकालत की है। गांधी कहते हैं, वह (गाय) अपनी आंखों की भाषा में हमसे यह कहती प्रतीत होती है : ईश्वर ने तुम्हें हमारा स्वामी इसलिए नहीं बनाया है कि तुम हमें मार डालो, हमारा मांस खाओ अथवा किसी अन्य प्रकार से हमारे साथ दुर्वव्यहार करो, बल्कि इसलिए बनाया है कि तुम हमारे मित्र तथा संरक्षक बन कर रहो।” ( यंग इंडिया, 26.06.1924)। गांधीजी का मानना था कि गौ हत्या का कलंक सिर्फ भारत से ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया से बंद होना चाहिए। इसके लिए भारत से यह कार्य शुरु हो, यह वह चाहते थे। उन्होंने लिखा है – ”मेरी आकांक्षा है कि गौ रक्षा के सिद्धांत की मान्यता संपूर्ण विश्व में हो। पर इसके लिए यह आवश्यक है पहले भारत में गौवंश की दुर्गति समाप्त हो और उसे उचित स्थान मिले” – (यंग इंडिया, 29-1-1925)।
गौ सेवा को भारत की अर्थव्यस्था से जोड़ते थे गांधीजी
इस तरह से महात्मा गांधी कई अवसरों पर सीधे तौर पर गाय की वकालत करते नजर आते हैं । गांधी के जीवन दर्शन में ‘हिन्द स्वराज’ को छोड़कर कई जगह मिलता है कि वे कितने बड़े गाय भक्त थे और गौ सेवा को भारत की अर्थव्यस्था के लिए सबसे ज्यादा महत्व क्यों दिया करते थे। निश्चित ही आज राजस्थान सरकार की गाय के प्रति संवेदनशीलता और मध्यप्रदेश की मोहन सरकार ने गाय को लेकर उसके अंतिम संस्कार किए जाने का जो उचित निर्णय लिया है उसकी जितनी तारीफ की जाए आज वह कम ही होगी। (एएमएपी)