apkaakhbarसद्गुरु । 

इस महाकुंभ को ज्ञान के एक आधार के रूप में पुनर्जीवित करने की जरूरत है। इसे एक ऐसे स्थान के रूप में रूपांतरित करने की जरूरत है जहां बड़ी तादाद में लोग इसे प्रेरणा के स्रोत के तौर पर देख सकें, इसे रूपांतरण करने वाले और आरोग्यवर्धक अवसर के तौर पर ले सकें, जैसा कि हजारों सालों से होता आ रहा है। हो सकता है पिछले आठ दस दशकों में इसने कुछ हद तक अपनी प्रासंगिकता खोई हो क्योंकि कुछ सदियों तक देश हमारे हाथों में नहीं रहा। ऐसे में इसे पुनर्जीवित करने की जरूरत है। 


 

हरिद्वार महाकुंभ 2021

हरिद्वार महाकुंभ 27 फरवरी (माघ पूर्णिमा) से शुरू हो रहा है। दो माह तक चलने वाला कुंभ मेला 27 अप्रैल (बैसाख पूर्णिमा) तक चलेगा।

महाकुंभ पर्व 12 वर्ष बाद होता है। चूंकि 2022 में बृहस्पति कुंभ राशि में नहीं होंगे, इसलिए इस बार निर्धारित समय से एक साल पहले यानी 11वें वर्ष महाकुंभ पर्व का आयोजन हो रहा है। हरिद्वार महाकुंभ में चार शाही और छह मुख्य स्नान हैं। शाही स्नान 11 मार्च- शिवरात्रि, 12 अप्रैल- सोमवती अमावस्या, 14 अप्रैल- मेष संक्रांति और 27 अप्रैल- बैसाख पूर्णिमा के दिन हैं।

आखिर बारह सालों में एक बार यहां नहाने का क्या महत्व है? इसका संबंध योग के एक मूलभूत पहलू से है, जिसे भूत शुद्धि कहा जाता है और जिसका अर्थ है अपने पंचतत्वों की सफाई करना।

Haridwar Kumbh Mela 2021 to be numerically restricted


कुम्भ मेला

इस जगत में जो कुछ भी है, वह सब पंचतत्वों का ही खेल है। हमारा शरीर, यह धरती, सौरमंडल, यह सृष्टि, सब कुछ। पूरी की पूरी सृष्टि इन पांच तत्वों की ही शरारत है। पांच करोड़ नहीं, पांच लाख नहीं, सिर्फ पांच तत्वों की। यह दिखाता है कि इस सृष्टि के निर्माण के पीछे किस तरह की प्रतिभा है। अरबों खरबों रूप जो जीवन ने लिए हैं, वे सब सिर्फ पांच तत्वों से ही बने हैं। इसीलिए योग के मूलभूत अंग – भूत शुद्धि में, ऐसा माना जाता है कि अगर आप इन पांच तत्वों पर अपना अधिकार कर लें, तो आपका स्वास्थ्य, कल्याण, समृद्धि जैसी तमाम चीजों की देखभाल अपने आप होती रहती है। बस आपको इन पांच तत्वों का स्वामी बनना होगा, जिनकी वजह से आपका अस्तित्व है या पूरे जगत का अस्तित्व है।

इस शरीर की जो संरचना है, वह कुछ इस तरह की है कि इसमें 72% पानी है, 12% पृथ्वी है, 6% वायु है, 4% अग्नि है, बाकी आकाश है। किसी इंसान के लिए यहां अच्छी तरह से रहने के लिए पानी की बड़ी अहमियत है, क्योंकि शरीर का सबसे बड़ा हिस्सा पानी होता है। इस धरती का भी 72 % हिस्सा पानी ही है, इसलिए कुंभ या कुछ विशेष अक्षांशों पर नदियों के मिलने की घटना का जो हम उपयोग कर रहे हैं, वह किसी मान्यता की वजह से नहीं है, न ही यह कोई अंधविश्वास है। जीवन और दूसरी शक्तियां हमारे आसपास कैसे काम करती हैं, हम उनका उपयोग कैसे कर सकते हैं, इसके गहन विश्लेषण से यह सब परंपरा बनी है।

हरिद्वार कुंभ में 11 मार्च को पहला शाही स्नान - haridwar kumbh mela

कुम्भ का विज्ञान

आधुनिक विज्ञान भी अब इस ओर देख रहा है। भूमध्य रेखा यानी शून्य डिग्री अक्षांश और तीस डिग्री अक्षांश के बीच धरती के घूमने से पैदा होने वाला अपकेंद्रीय बल ज्यादातर लंबवत रूप में काम करता है। जैसे-जैसे आप उत्तर की ओर बढ़ते हैं, इस बल की दिशा बदलती जाती है और यह स्पर्शरेखीय हो जाता है। लेकिन यहां यह लंबवत ही काम करता है। ग्यारह डिग्री अक्षांश वह स्थान है जहां यह पूरी तरह से लंबवत होता है। इसीलिए अपने भीतर तमाम खोजबीन के बाद हमने ईशा योग सेंटर की स्थापना भी ग्यारह डिग्री अक्षांश पर की ताकि यहां जो कोई भी साधना करे, उसे अधिकतम लाभ मिल सके। क्योंकि धरती का अपकेंद्रीय बल हर चीज को ऊपर की ओर धकेल रहा है।

इस तरह शून्य से लेकर तीस डिग्री अक्षांश के बीच की जगह को इस धरती पर पवित्र माना गया है क्योंकि इस क्षेत्र में जो भी साधना की जाती है, उसका अधिकतम लाभ मिलता है। इन अक्षांशों के बीच हमने कई जगहों की पहचान की, जहां साल में या एक सौर्य वर्ष में, जो बारह वर्ष तीन महिनों का होता है, अलग अलग समय पर, तमाम शक्तियां एक खास तरीके से काम कर रही हैं। बस इन्हीं जगहों को किसी खास दिन या दिनों के लिए चुना गया।

कुम्भ मेले का महत्त्व

जहां कहीं भी पानी के दो निकाय एक खास बल के साथ मिलते हैं, वहां पानी का मंथन होने लगता है। जैसा मैंने कहा हमारे शरीर में भी 72 % पानी है। तो यह शरीर जब किसी खास समय और नक्षत्र में वहां पर होता है तो उसे अधिकतम लाभ मिलता है। प्राचीन समय में हर कोई यह जानता था कि 48 दिनों के मंडल के दौरान अगर आप कुंभ में रुकें और हर दिन आप जरूरी साधना के साथ उस पानी में जाएं, तो आप अपने शरीर को, अपने मनोवैज्ञानिक तंत्र को अपने ऊर्जा तंत्र को रूपांतरित कर सकते हैं। इसके अलावा आपको उन 48 दिनों के दौरान ही अपने भीतर जबर्दस्त आध्यात्मिक प्रगति महसूस होगी। लेकिन आजकल तो कुंभ में लोग बहुत जल्दबाजी में जाते हैं। आधे दिन का समय होता है जिसमें आप सामान्य रूप से एक बार नहाते हैं और बस फि र वापसी। आज के दौर में आप सभी को कुंभ में 48 दिनों के लिए ले जाना तो संभव नहीं है, लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि हम हर किसी के लिए कम से कम 40 दिनों की साधना का एक कार्यक्रम तय कर दें। आप जहां कहीं भी हैं, बस 40 दिन तक रोजाना 10 से 12 मिनट की साधना कीजिए और उसके बाद कुंभ में आकर स्नान कीजिए। इससे काफी फर्क पड़ेगा, क्योंकि इसकी अपनी महत्ता है। सवाल यह है कि अगर किसी विशेष स्थान पर कोई विशेष ऊर्जा मौजूद है तो क्या आपके पास उसे लेने की क्षमता है? क्या उसका अनुभव करने लायक काबलियत आपके भीतर है? अगर आप इसे अनुभव नहीं कर सकते तो आप कहीं भी हों, सब बेकार है।

Haridwar Kumbh Mela Shahi Snan Dates 2021; Shahi Snan (Grand Bath) Dates of Haridwar MahaKumbh 2021 - Check Complete Haridwar Shahi Snan Schedule here | अगले साल हरिद्वार कुंभ में 11 मार्च

तो किसी खास जगह पर और किसी खास समय पर ही कुंभ लगने के पीछे एक पूरा विज्ञान है। जो पानी यहां है, वह आपके भीतर कैसे बर्ताव करेगा, उसी से आपका स्वास्थ्य और कल्याण तय होगा। इसका व्यवहार कैसा होगा? इसका व्यवहार वैसा ही होगा, जैसा आप उसके साथ व्यवहार करेंगे। आज आधुनिक विज्ञान ने बहुत से प्रयोग किए हैं जिससे पता चला है कि पानी की अपनी स्मृति यानी याद्दाश्त होती है। यहां तक कि वे पानी को ‘फ्लूइड कंप्यूटर’ कह रहे हैं, क्योंकि पानी के भीतर जो स्मृति और बुद्धिमत्ता है, वह जबर्दस्त है। हमें इसे समझना होगा, पानी कोई वस्तु नहीं है, यह जीवन का निर्माण करने वाला पदार्थ है। जो पानी आप पीते हैं, वह ऐसे ही कहीं नहीं चला जाता है, यह इंसान का रूप ले रहा है। इसमें स्मृति और बुद्धिमत्ता है। अगर आप इसे सही तरीके से लेंगे, सिर्फ तभी यह आपके साथ अच्छे तरीके से व्यवहार करेगा। अगर आप इसके साथ खराब व्यवहार करेंगे तो यह भी आपके साथ बुरा व्यवहार करेगा।


कृष्ण के वचन और क्वांटम फिजिक्स के सूत्र