डॉ मधुबाला शुक्ल ।

मुंबई की सांस्कृतिक संस्था ‘बतरस’ (एक अनौपचारिक सांस्कृतिक उपक्रम) ने  अपने मासिक आयोजन की श्रृंखला में शनिवार, १३ जनवरी, २०२४ की शाम ‘नगीन दास खांडवाला (एन.एल) महाविद्यालय, मालाड (पश्चिम) के प्रांगण में नये वर्ष के शुभारंभ में स्थानीय कवियों का कवि सम्मेलन आयोजित किया।

कार्यक्रम की शुरुआत में ‘बतरस’ के प्रमुख संस्थापक सत्यदेव त्रिपाठी ने भूमिका स्वरूप बतायाकि यह सांस्कृतिक संस्था एक बार पंद्रह साल तक खूब चल के पिछले दस वर्षों से रुक गयी थी। अब मित्रों के आग्रह पर फिर से शुरू हुई है, जिसमें हम दो को छोड़कर सभी नए सदस्य जुड़े हैं। जैसी कि तब से ही ‘बतरस’ की प्रकृति रही है कि यह सबका आयोजन है। जो भी चाहे, अपना विचार लेकर आए, उसका विधान बनाए और इस प्लेटफ़ॉर्म पर समाज की बेहतरी व स्वस्थ मनोरंजन में योगदान दे। इसमें न कोई चंदा व सदस्यता है, न पंजीकरण… आदि की नियमावली। हम ७-८ लोग मिलकर इसके सुचारु संचालन का बंदोबस्त करते है, जिसमें भी कोई जब चाहे, जुड़ सकता है…। कुल मिलाकर यह आयोजन आप सबका है…।

प्रो॰ त्रिपाठी ने बताया कि दूसरे दौर की ‘बतरस’  शुरू हुई थी – ‘आजादी के ७५ साल’ पर विमर्श से और इसके बाद ‘स्मरण में बापू’, ‘चाचा नेहरू की याद में’ के बाद ‘कामकाजी महिलाएँ’ जैसे विषयों पर चर्चा हो चुकी है। इस बार नए साल के अवसर पर बतरसियों की सर्वसम्मति से कवि सम्मेलन का आयोजन हुआ है।इस बार के अनुभव की बावत त्रिपाठीजी ने कहा –‘कवि सम्मेलन का निमंत्रण सुनकर कई लोगों के फ़ोन आए –‘हम भी आ सकते हैं क्या’? इससे समाज में काविता की लोकप्रियता का अंदाज़ा लगता है। लेकिन साथ ही बहुतों ने यह भी पूछा – ‘हास्य रस का कवि-सम्मेलन है न…’? याने दुनिया कविता में हास्य चाहती है, जो आज के सस्ते कविसम्मेलनों व कविता के नाम आर टीवी के भोंडे कार्यक्रमों की बनायी सस्ती लोकप्रियता है। और यहीं ‘बतरस’ जैसी संस्थाओं का दायित्तव आता है…। सो, त्रिपाठीजी ने जवाब दिया – ‘सिर्फ हास्य नहीं, बल्कि कविता के सभी रसों का आस्वाद मिलेगा। आप आएँ ज़रूर…’।

गुलदस्ते के प्रथम पुष्प के रूप में  कार्यक्रम का आग़ाजमेडिकल क्षेत्र से जुड़े और बतरस के पुराने रसिक डॉ रजनीकांत

मिश्र के श्रृंगार गीत से हुआ-शाम को अक्सर वही मैं करता रहातुम संवरती रही आईना देखकर,मैं तुम्हें देखकरके संवरता रहा।मिश्रजी की रागमय सुरलहरी ने आरम्भ में ही श्रोताओं को मंत्र मुग्ध करदिया।

अनुवादक एवं कवयित्री पारमिता षड़ंगी जी ने‘मुझे तुमसे है मोहब्बत कितनी यह तुम क्याजानो’ एवं ‘फरिश्तों की खताएं थी’ तथा ‘वो रात बेईमान थी’शीर्षक कविताएँ सुनाई।

कई गीतों की रिकॉर्डिंगसे मशहूर हुए कवि, लेखक, सिने गीतकार डॉ प्रमोद कुश तन्हा ने ‘वक्त की आंचपर तपना भी जरूरी है, जिंदगी जहर है, तो चखना भी जरूरी है’ जैसी अपनी कविताओं और गजलों द्वारा महफिल में समा बांध दिया। प्रेम गीतके अलावा सामाजिक सरोकारों की कविताएं भी उन्होंने सुनाई। जमीन व प्रकृति से जुड़ीकविताएं लिखने वाली पेशे से वकील चित्रा देसाई को उनके ‘सरसों से अमलतास’ व  ‘दरारों में उगी दूब’ नामक दोनो काव्य संग्रहोंसे खूब प्रसिद्धि मिली है। उनकी सिग्नेचर कविता की पंक्तियाँ हैं ‘मुझे पहुँचना है तुम तक, जैसे पत्ते पहुँचते हैं जड़ तकके अलावा शब्दकोश, अलाव शीर्षक कविताएँ भी खूब सराही गयीं…।

सुप्रसिद्ध गज़लकार एवं विचारक राकेश शर्मा के अनुसार दरमियाँ रहता हूं बीमारों के एक बीमार हूं, चार साजी का हुनर आता नहीं लाचार हूं’। और इसीलिए‘घड़ी-घड़ी आता है, पल-पल आता है बात-बात पर माथे पे बल आता है’।तब वे ऐसा करते हैं कि ‘अदब की बज़्म को लफ़्ज़ों से महकाने चला आया, उठी इक हुक दिल में तो ग़ज़ल गानेचला आया।और ‘किशन मसारूफ थे अर्जुन को गीता-ज्ञान देने में, मुझे राधा की चिंता थी, मैं बरसाने चला आया’। राकेशजी की गजलों से श्रोता सचमुच गद्गद हो उठे…।

प्रसिद्ध युवा कवि संजय भिसे ने ‘मधुबाला की कब्र पर’, ‘बाईं तरफ’, ‘ज्ञानाई’शीर्षक कविताएँ सुनाई। स्त्री शिक्षा की आधारशिला सावित्रीबाई फुले’की पंक्तियाँ हैं–‘ज्योतिबा का हाथ थामकरउसके साथ ही शुरूहुआ था, अ से अंकुरण स्त्री मुक्ति का’। सिने गीतकार अर्चना जौहरी ने बड़ी शालीनता एवं रोचकता के साथ अपनी पहचान वाली कवितामैं कविता नहीं लिखतीसुनाई –लिखती हूं कभी कविता कभी कुछ गुनगुनाती हूं। समझ लो दोस्त,यानी कि मैं जिंदा हूं बताती हूं।सुप्रसिद्ध कवयित्री गजलकार प्रज्ञा शर्मा देश के सभी बड़े-बड़े मंचों से रूबरू हो चुकी हैं।बिलकुल व्यावसायिक कवि सम्मीलनों के अंदाज में सुनाये उनके कुछ शेर हैं–‘समुंदर से मिलूं या इक नदी रह जाऊँ मैं, ये तोमुमकिन ही नहीं जो हूँ वही रह जाऊँ मैं। मेरी तन्हाई में रह जाए यही बस एक ख़याल,तुझको सोचूं और तुझको सोचती रह जाऊं मैं।

कवि स्वप्निल तिवारी जी ने‘यू टर्न की उम्मीद न कर अब;तुमसे इक दिन कहीं मिलेंगेहम, खर्च खुद को तभी करेंगे हम… तुम्हारी सिम्त से किसने अभी पुकारा मुझे, तुम्हीं थे गर तोपुकारो ज़रा दुबारा मुझे’जैसे शेर रूमानी अंदाज में सुनाये जाकर वाहवाही लूट ले गये ….। गजलकार सय्यद रियाज़ रहीम जी ने‘कोई तो काम अच्छा रह गया है हमें बस याद इतनारह गया है’और इधर हम हैं उधर होते हुए भी, बयाबां में हैं घर होते हुए भी…जैसी गजलेंसुनाईं।

इन दिनों मुंबई में रह रहे भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी असलम हसन जी भी कवि-सम्मलेन में पधारे और जीएसटी पर लिखा अपना गीत सुनाया ‘एक देश, एक कर और एक ही बाजार,नये भारत का रख रहा है जीएसटी- आधार’। इसके अतिरिक्त उनकी ‘अपनीभिन्न भिन्न हैं भाषाएँ अलग अलग विश्वास रुप रंग हैं विविध हमारे…जैसी कुछ अन्य कविताओँ के साथ ही कवि सम्मेलन सम्पन्न हुआ।

इस कवि सम्मेलन को गुलदस्ते के रूप में विविधरंगी कविता-फूलों से सजाया और बड़ी शिद्दत एवं ख़ुशमिज़ाजी  से संचालन भी किया  – ‘परिदृश्यप्रकाशन’ के कर्ताधर्ता एवं कवि रमन मिश्र जी ने। डॉ मधुबाला शुक्ल ने आयोजन में पधारे सभी श्रोताओं के साथ सभी कवियों और कवयित्रियोंके प्रति ‘बतरस’ की तरफ़ से आभार व्यक्त किया।श्रोताओं में उपस्थित, जे.एन.यू विवि. से सेवानिवृत प्रो. राम बक्ष, मुम्बई के प्रो. जिलेदार राय एवं प्रो. पुरूषोत्तम परवालव विभा परवाल,रंगकर्मी एवं सिनेअभिनेता विजय कुमार, मीडियाएवं रंगकर्मी विजय पंडित, रंगकर्म से जुड़े अशोक शर्मा, सौरभबंसल, शाइस्ता खानतथा सेवानिवृत बैंक अधिकारी ओमप्रकाश पाण्डेय, अध्यापक कृपाशंकरपाण्डेय, डॉ. जया दलाल, एवं नियमित बतरसी सुप्रिया यादवके साथ प्रेमलता मौर्य, शीतल जठार इत्यादि की मौजूदगी ने कार्यक्रम की शोभाबढ़ायी।

बतरस-समिति द्वारा अगली ‘बतरस’ आगामी १० फरवरी २०२४ को‘प्रेम’ पर होने की घोषणा एवं सुस्वादु नाश्ता-  चाय के बाद सभी लोग निज-निज गृहोन्मुख हुए….।