डा. मधुबाला शुक्ल।

मुंबई में सक्रिय बतरस’ (एक अनौपचारिक सांस्कृतिक उपक्रम) ने हर माह के दूसरे शनिवार के अपने मासिक आयोजन की श्रिंखला में गत १४ अक्टूबर २०२३ की शाम एन.एल महाविद्यालय, मालाड (पश्चिम) के प्रांगण में ‘स्मरण में बापू’ के अंतर्गत महात्मा गांधी को अपनी (बतरसियों की) तरह याद किया…।

कार्यक्रम की शुरुआत में उभरती हुई सुपरिचित गायिका आरुषी वाजपेयी ने बापू के परम प्रिय भजन वैष्णव जन तो तेने रे कहिए, जे पीर पराई जाणे रे  के भावमय गायन से की। और इसके बाद फ़िल्म ‘जागृति’ के लिए कवि प्रदीपजी का लिखा हुआ प्रसिद्ध गीत दे दी हमें आजादी बिना खड्ग बिना ढाल, साबरती के संत तूने कर दिया कमाल गाकर वातावरण को गांधीमय बना दिया।

मुख्य वक्ता के रूप में आमंत्रित प्रसिद्ध साहित्यकार एवं जामिया मिलिया विश्वविद्यालय के भूतपूर्व प्रोफ़ेसर असग़र वजाहत जी का श्री शैलेश सिंह ने गहन-गम्भीर परिचय पेश किया। इसके बाद विद्वान वक्ता ने पहले से घोषित विषय सिने-नाट्य में गांधी पर बोलते हुए इस विचार को केंद्र में रखा कि यदि आज गांधी होते, तो क्या होता – क्या-क्या होता…!! इसी पर आधारित अपने बहुचर्चित एवं प्रशंसित नाटक ‘गोड्से@गांधी॰कॉम’ एवं इसी पर आधारित राजकुमार संतोषी की फ़िल्म ‘गोड्से-गांधी : एक युद्ध’ की बातों को शामिल करते हुए उन्होंने आज के समय की चुनौतियों के बीच गांधी-चिंतन की प्रासंगिकता को बखूबी रेखांकित किया। अपने विश्वविद्यालय में गांधीवाद के असर व प्रतिफलन की उनकी सजीव चर्चा ने श्रोताओं को बहुत मुतासिर किया…। वजाहत जी की बातों से यह भी सिद्ध हुआ कि एक लेखक अपने कल्पना-प्रसूत विचारों द्वारा समाज व उसके दृष्टिकोण को कितने सार्थक ढंग से परिवर्तित कर सकता है। वक्तव्य के बाद खुली चर्चा में राकेश शर्मा, रमन मिश्र, शैलेश सिंह और पूजा यादव के सवालों पर वजाहत साहब के माकूल उत्तरों से विषय और अधिक स्पष्ट व जीवंत हुआ…।

इस केंद्रीय आयोजन के बाद गांधीजी पर स्वरचित कविताओं की प्रस्तुति में कवि रासबिहारी पांडेय ने सस्वर गीत प्रस्तुत किया – सत्य अहिंसा मंत्र-प्रदाता, बापू तुम्हें प्रणाम कवि अनिल गौड़ जी की कविता मत लो गांधी का नाम अलग तरह से बहुत प्रभावी बन पड़ी…। ‘महाराष्ट्र हिंदी अकादमी’ के सदस्य मारकंडेय त्रिपाठी की गांधी अमर रहे  कविता से अधिक लोग उसकी सस्वरता मुग्ध हुए।

‘बतरस’ ने ‘जन्म शताब्दी वर्ष’ के तहत हरिशंकर परसाई को साल भर याद करने की श्रिंखला में उनकी चर्चित व्यंग्य कहानी एक लड़की पाँच दीवाने  के दूसरे भाग का नाट्यमय पाठ प्रस्तुत किया – ‘अंक’ नाट्यसमूह के नामचीन एवं सिद्ध अभिनेता अमन गुप्ता ने। इसी स्मरण श्रिंखला में मशहूर कवि शैलेंद्र की दो कविताएँ (‘कवि किसका, कविताएँ किसकी’ और ‘उस दिन ही प्रिय जनम-जनम’) का सधा पाठ किया – ‘परिदृश्य’ प्रकाशन के संचालक एवं सुपरिचित कवि रमन मिश्र ने।

प्रसिद्ध रंगकर्मी एवं अभिनेता विजय कुमार ने नंदकिशोर आचार्य लिखित एकपात्री नाटक बापू’  के सम्पादित अंश का पाठ अपने खूबसूरत अंदाज एवं बुलंद आवाज में प्रस्तुत किया, जिसमें गांधीजी की बिलकुल अलग ही स्थिति व गति का पता चला, जो अधिकांश के लिए नया व सबके लिए चिंतनीय रहा।

अलका सरावगी के हाल ही में प्रकाशित उपन्यास गांधी और सरला देवी चौधरानी : बारह अध्यायसे गांधी-सरला देवी के बीच हुए प्रेम-पत्राचारों में से डॉ. मधुबाला शुक्ल कुछ प्रमुख पत्र चुन लायीं और बड़ी शिद्दत से पढ़कर सुनाये, जो अधिकांश जनों के लिए लगभग नयी चीज़ रही…और लोग इससे काफ़ी अचंभित भी हुए…। इस पर चर्चा अपेक्षित थी, पर समयाभाव के कारण न हो सकी।

प्रसिद्ध कवियों द्वारा गांधी पर लिखी कविताओं की प्रस्तुति के अंतर्गत युवा अध्यापिका श्रीमती सुप्रिया यादव थोरात ने महान कवि दिनकरजी की शीर्षकविहीन दो भावमयी कविताओं का सादगी भरा पाठ किया। फिर रचनाकार एवं अभिनेता विश्वभानु ने तीन कविताएँ प्रस्तुत कीं – निराला जी की बापू के प्रति’,  पंत जी लिखित चरखा और दिनकरजी रचित देवों को जिस पर गर्वविश्वा का कविता-चयन तो माकूल था ही, स्वरों के उतार-चढ़ाव व अंग-संचालन के अंदाज से पाठ इतना जीवंत हुआ कि सभा-कक्ष तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा।

कार्यक्रम का विधान तैयार किया था रमन मिश्र ने और उसे साकार कराने में कारगर भूमिका निभायी थी सत्यदेव त्रिपाठी ने। पूरे कार्यक्रम का संचालन सुश्री लक्ष्मी तिवारी ने ऐसी खुशमिजाजी के साथ किया कि सहजता व प्रियता निरंतर बनी रही…।

सुप्रसिद्ध गज़लकार राकेश शर्मा द्वारा सहज भाव से बातचीत के अंदाज में किये धन्यवाद-ज्ञापन के साथ कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।

लेखिका प्राध्यापिका हैं और कला एवं संस्कृति विषयों में रुचि रखती हैं