आपका अख़बार ब्यूरो।
बाउल मात्र लोक संगीत नहीं है, यह एक जीवन पद्धति है। यह योग और भक्ति की परम्परा है। बाउल एक मौखिक परम्परा है, स्मृति परम्परा है। गुरु-शिष्य परम्परा है। चूंकि बाउल की सारी शिक्षाएं गीतों में हैं, इसलिए गायन और नृत्य बाउल साधना का माध्यम हैं। बाउल संगीत के माध्यम से आध्यात्मिकता का संदेश देते हैं। बाउल परम्परा के विभिन्न आयामों को जानने का एक प्रयास था “द वर्ल्ड ऑफ बाउल्सः अ ग्लिम्प्स इनटू द द वर्ल्ड ऑफ बाउल्स” आयोजन।
यूनेस्को की “मानवता की मौखिक और अमूर्त विरासत की उत्कृष्ट कृतियां” सूची में शामिल बाउल संगीत व परम्परा पर इस दो दिवसीय आयोजन की शुरुआत 7 अक्तूबर को शाम 4 बजे नई दिल्ली स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में हुई। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, दातृ फाउंडेशन और एकतारा कलारी द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित इस कार्यक्रम का उद्घाटन “महाभारत” में द्रौपदी का किरदार निभाने वाली प्रसिद्ध सिने अभिनेत्री व राजनेत्री रूपा गांगुली ने किया। इस अवसर पर प्रसिद्ध नृत्यांगना पद्मश्री शोवना नारायण, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष श्री राम बहादुर राय और प्रसिद्ध बाउल कलाकार एवं साधिका श्रीमती पार्वती बाउल और कला केंद्र के जनपद संपदा विभाग के प्रमुख डॉ. के. अनिल कुमार भी उपस्थित थे। कार्यक्रम की संकल्पना दातृ फाउंडेशन की कात्यायनी अग्रवाल ने की थी।
जीवन जीने की पद्धति
मुख्य अतिथि अभिनेत्री, रवींद्र संगीत गायिका व राजनेत्री रूपा गांगुली ने कहा कि बाउल सिर्फ गायन या संगीत नहीं है, यह जीवन जीने की पद्धति है। उन्होंने कहा कि गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर बाउल परम्परा से बहुत प्रभावित थे। श्रीमती गांगुली ने गुरुदेव की एक कविता “आरु आघात” की कुछ पंक्तियां गाकर भी सुनाईं। इससे पहले पार्वती बाउल ने बाउल परम्परा के बारे में बताते हुए कहा कि यह विश्व को भारत का उपहार है। बाउल भारत की सभी परम्पराओं का सार है। बाउल साधकों ने संगीत के माध्यम से आध्यात्मिकता का संदेश दिया।
सीमा में बंधा नहीं
विशिष्ट अतिथि शोवना नारायण ने पार्वती बाउल को महान बाउल परम्परा का निर्वाह करने के लिए बधाई दी और उनकी कला की काफी सराहना की। उन्होंने कहा कि बाउल संगीत कला का एक प्रारूप है, लेकिन यह किसी सीमा में बंधा नहीं है। इस दौरान प्रसिद्ध बाउल साधक गुरु सनातन दास बाउल, जो पार्वती बाउल के गुरु भी हैं, द्वारा बांग्ला भाषा में लिखी गई पुस्तक “बाउल प्रेमिक” का लोकार्पण रूपा गांगुली, रामबहादुर राय और शोवना नारायण जी ने किया। इस पुस्तक में गुरु सनातन दास बाउल ने बाउल परम्परा के मर्म को बताया है। पार्वती बाउल ने इस पुस्तक के कुछ दोहे भी पढ़कर सुनाए।
कार्यक्रम का अंतिम सत्र पहले दिन का सबसे आकर्षक हिस्सा था, जिसमें पार्वती बाउल और उनके साथी बाउल साधकों ने अपने अद्भुत गायन से उपस्थित जन को मंत्रमुग्ध कर दिया। उनकी प्रस्तुति के दौरान प्रेक्षागृह में दिव्यता का वातावरण निर्मित हो गया।
बाउल सम्प्रदाय में कोई धर्मग्रंथ नहीं
शुक्रवार 8 अक्तूबर को कार्यक्रम के दूसरे दिन की शुरुआत पूर्वाह्न 11.30 बजे पार्वती बाउल द्वारा क्यूरेट की गई फोटो प्रदर्शनी के अवलोकन से हुई। पार्वती बाउल ने अतिथियों और दर्शकों को प्रदर्शनी में लगाए गए चित्रों के बारे में विस्तार से बताया। इसके बाद पार्वती जी ने “बाउल परम्परा” के बारे में एक विस्तृत व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि बाउल साधना कुछ ऐसी है, जो गहन अनुभूति और कई वर्षों के अभ्यास से प्राप्त होती है। बाउल सम्प्रदाय में कोई धर्मग्रंथ नहीं है, यहां सारी शिक्षाएं स्मृति और मौखिक परम्परा से प्रदान की जाती हैं। यह एक यौगिक परम्परा है। इसी सत्र में पार्वती जी ने अपने गुरु भाइयों श्री विश्वनाथ बाउल, जो उनके गुरु सनातन दास बाउल के पुत्र हैं, और श्री मदन बाउल के साथ बाउल परम्परा पर चर्चा की। उन्होंने दर्शकों द्वारा बाउल परम्परा पर पूछे गए प्रश्नों का उत्तर भी दिया। इसके बाद बाउल संप्रदाय पर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी द्वारा निर्मित वृत्तचित्र के साथ दो और वृत्तचित्र- “इन सर्च ऑफ द मैन ऑफ हार्ट” तथा “द पाथ ऑफ सहजियाज” दिखाए गए।
बाउल दर्शन पर चर्चा
इसके बाद पैनल चर्चा हुई, जिसमें वक्ताओं ने बाउल दर्शन पर अपने अनुभव और विचार साझा किए तथा इस प्रश्न का उत्तर ढूंढ़ने का प्रयास किया कि बाउल नाचते और गाते क्यों है? पैनल में विश्वभारती विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सुनीति कुमार पाठक, जर्मन मूल की बाउल साधिका कृष्णकांता, कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर सुकन्या सर्बाधिकारी, विश्वप्रसिद्ध बाउल कलाकार पार्वती बाउल, वरिष्ठ पत्रकार मंजरी सिन्हा और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सुमित डे शामिल थे। “एकतारा कलारी” संस्था के ट्रस्टी रामचंद्र ने इस सत्र का संचालन किया।
दर्शक भक्ति रस से सराबोर
इस दो दिवसीय आयोजन के समापन सत्र में पार्वती बाउल तथा उनके साथी बाउल साधकों ने बाउल गायन से दर्शकों को भक्ति रस से सराबोर कर दिया। पूरा ऑडिटोरियम उनके साथ राधा गोविंद गाते हुए झूम उठा। वास्तव में, बाउल गायन सिर्फ शब्दों और सुरों का संयोजन नहीं है, बल्कि संगीत के माध्यम से आध्यात्मिकता का प्रसार है। उस परम सत्ता के समीप होने की यात्रा है। बाउल साधक जब ईश्वर के साथ एकत्व की अनुभूति करता है, एक विशिष्ट मानसिक अवस्था में पहुंचता है, तब बाउल संगीत की सृष्टि होती है। बाउल गान अग्नि को प्रज्जवलित करने के समान है। यह “शब्द गान” है और शब्द ब्रह्म होता है। हम अगर इस गायन की भाषा समझते हैं, तो इसकी भाषा में डूब जाते हैं, और अगर भाषा नहीं समझते हैं, तो अपने शरीर व आत्मा के साथ इसमें डूब जाते हैं। ऑडिटोरियम में उपस्थित लोगों को साथ ऐसा ही हुआ।