क्या परोसा फिक्शन के नाम पर।

मालिनी अवस्थी ।

हम तो यही समझते हुए बड़े हुए कि जहां न पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि! लेकिन आज ओटीटी प्लेटफार्म पर कवि और कलाकार, इन्हें किस नजरिए से दिखाया जा रहा है! यह बहुत गंभीर विषय है।

 

मिर्जापुर हो या हीरामंडी… सब वास्तविकता से कोसों दूर। कहानी, कल्पना फितूर उस पर तो क्या टिप्पणी की जाए लेकिन इधर जो दिखा है उस पर खामोश रहना सही नही होगा। फिक्शन के नाम पर चल रहे इस अपमान के सामने किसी भी कलाकार और किसी भी कवि को चुप नही रहना चाहिए।

मां विंध्यवासिनी के तीर्थ मिर्जापुर को बदनाम करती हुई कालीन की आड़ में अपराध की बैसिरपैर की कहानी बताना काफी नहीं था जो अब कला जगत को इस गंदगी में लपेट लिया गया है।

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मिर्जापुर सीरीज के तीसरे सीजन में कवि समाज की विद्रूपता की आड़ में कविता के नाम पर उत्श्रृंखलता और भौंडापन की सीमाएं पार कर गया है, यही नहीं, वह हत्यारा भी है, हत्या को जायज़ मानने वाला हृदयविहीन कवि!

इसी तरह हीरामंडी में उस्ताद के नाम पर एक ऐसा घटिया किरदार परोसा गया है जो बाज़ार जमाता है। मैं तो समझती थी कि संजय लीला भंसाली कला को समझते हैं, लेकिन क्या वाकई!

तालीम देते हुए कोठों पर जिंदगी गुजार देने वाले उस्ताद इन गायिकाओं को शीर्ष मुकाम पर पहुंचाने के लिए अपना खून दे कर बरसों रियाज करवाते थे, सिखाते थे, मेहनत करवाते थे तब जाकर कोई सितारा निखरता था, लेकिन आठ घंटे लंबी सीरीज में एक भी जगह एक भी तवायफ न गाना सीखते दिखाई दी न कोई उस्ताद तालीम देते हुए। हीरामंडी में उस्ताद के नाम पर जो घटियापन दिखाया गया है वह अपमानजनक है, सारी हदें पार करने वाला अपमान!

Heeramandi' review: Sanjay Leela Bhansali's series suffocates from good taste | Mint

राजनीति, पुलिस, न्यायिक व्यवस्था, समाज सेवा सभी अंगों को विकृत कर समाज में परोसने वाले यह लोग कम से कम कला जगत को बक्श दें। कलाकार और कवि रचनाकार हैं, इन पर आगे की इबारत लिखी जाएगी, ये आने वाली पीढ़ी का हक हैं, वे इन्हे अपना हासिल मानकर कुछ सुनेंगी सीखेंगी, उनका यह हक उनसे मत छीनिए।

अपनी अफलातूनी कहानियों में जो दिखाना हों वह दिखाएं लेकिन कम से कम कवि और कलाकार इनके संग क्रियेविटी के नाम पर यह गंदा खेल बंद कीजिए।

(लेखिका जानी मानी लोकगायिका हैं। आलेख सोशल मीडिया से साभार)