आपका अखबार ब्यूरो ।
अगर आपको प्रकृति की सुंदरता और भारतीय सांस्कृतिक धरोहरों को एक साथ देखना हो तो पश्चिम बंगाल में आइए। बहुत मीठा बोलते हैं यहां के लोग। यहां धार्मिक, सांस्कृतिक और एडवेंचर टूरिज्म के साथ ही छुट्टियों का लुत्फ उठाने के लिए भी आ सकते हैं। बंगाल में प्रकृति के सभी रूपों, पहाड़, वन, वन्यजीव अभ्यारण्य, समुद्र तटीय रिसार्ट, नदियों के साथ ही ऐतिहासिक महत्व की इमारतों, सांस्कृतिक धरोहरों और शिक्षा के केंद्रों को एक साथ देख सकते हैं। पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता भारत का संस्कृति और कला का केंद्र है। पहले कोलकाता चलते हैं। देश में कहीं से भी रेल या हवाई मार्ग से आप आ सकते हैं। रहने की सभी सुविधाएं यहां और पश्चिम बंगाल के सभी मुख्य पर्यटक स्थलों पर उपलब्ध हैं।
बेलूर मठ
देश और विदेश से लोग पश्चिम बंगाल आने पर बेलूर मठ आते हैं। जी. टी. रोड पर स्थित रामकृष्ण मिशन के अंतरराष्ट्रीय मुख्यालय के रूप में बेलूर मठ का निर्माण सन् 1899 में हुआ। नौ दिसम्बर 1896 को रामकृष्ण परमहंस के शिष्य विवेकानंद ने स्वामी प्रयात की चिता की पवित्र भस्म को लाकर उसे यहां प्रतिष्ठित किया था। स्वामी विवेकानंद द्वारा स्थापित रामकृष्ण मिशन ही इस मठ का संचालन करता है। मठ के निर्माण में विभिन्न शैलियों का सम्मिश्रण किया गया है। यह स्वामी विवेकानंद का निवास स्थान था। इस मठ की अनूठी व मुख्य विशेषता इसमें विभिन्न कोणों पर निर्मित मंदिर, मस्जिद व चर्च हैं। मठ में होने वाली संध्या आरती का अवश्य शामिल होना चाहिए, जिसमें अलौकिकता का अनुभव होता है। यहीं पर स्वामी विवेकानंद की समाधि भी है। हावड़ा से यहां तक जाने के लिए टैक्सी और बस सेवा उपलब्ध है।
दक्षिणेश्वर काली मंदिर
कोलकाता में हुगली नदी के तट पर बेलूर मठ के दूसरी तरफ स्थित मां काली का सबसे बड़ा मंदिर दक्षिणेश्वर काली मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। रामकृष्ण परमहंस को यहीं काली मां के साक्षात् दर्शन हुए थे और बाद में उन्होंने अपने शिष्य विवेकानंद को भी मां के दर्शन कराए थे। यह भारतीय संस्कृति और अध्यात्म के मुख्य केंद्र के रूप में स्थापित है। मान्यता यह भी है कि यहां मां काली स्वयं निवास करती हैं और उन्हीं के नाम पर इस स्थान का नाम कोलकाता पड़ा।
यहां रासमणि नाम की रानी का शासन था, जो मां काली की बड़ी भक्त थीं। रानी को मां काली ने सपने में दर्शन देकर इस स्थान पर मंदिर बनवाने और उनकी सेवा करने का आदेश दिया था। मां काली के आदेश पर रानी रासमणि ने 1847 में यहां मंदिर बनवाना शुरू किया जो 1855 में बनकर पूरा हो गया। मंदिर में 12 गुंबद हैं और चारों तरफ शिव की 12 प्रतिमांएं स्थापित हैं।
यह स्वामी विवेकानंद के अध्यात्मिक गुरू रामकृष्ण परमहंस का मुख्य स्थल है। मंदिर से लगा हुआ परमहंस देव का कमरा है, जिसमें उनका पलंग और अन्य स्मृति चिन्ह सुरक्षित हैं। कहते हैं रामकृष्ण को दक्षिणेश्वर काली ने दर्शन दिये थे। उन्होंने विवेकानंद को भी मां के दर्शनलाभ करवाए थे। मंदिर के बाहर उनकी पत्नी मां शारदा और रानी रासमणि की समाधि मंदिर है और वह वट वृक्ष है जिसके नीचे परमहंस देव ध्यान किया करते थे। इस मंदिर में हमेशा दर्शनार्थ श्रद्धालुओं की लंबी कतार लगी रहती है।