आपका अखबार ब्यूरो ।
कालीघाट काली मंदिर- हावड़ा स्टेशन से 7 किलोमीटर दूर कालीघाट के काली मंदिर को 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। कहा जाता है कि इस स्थान पर माता सती के दाएं पैर की चार उंगलियां गिरी थीं।
बिड़ला तारामंडल
कोलकाता की प्रमुख पहचान बिड़ला तारामंडल एशिया का सबसे बड़ा और विश्व का दूसरा बड़ा तारामंडल है। पूरे साल सैलानियों का तांता लगा रहता है। नाममात्र का प्रवेश शुल्क देकर आप विस्मयकारी तारामण्डल का आनन्द ले सकते हैं। बौद्ध स्तूप की शक्ल में निर्मित यह इमारत चौरंगी पर विक्टोरिया मेमोरियल के सामने है। बिड़ला तारामंडल लोगों को ब्रम्हांड में होने वाली खगोलीय घटनाओं को समझने का सुनहरा मौका देता है। भाषा की समस्या आड़े नहीं आती क्योंकि बंगाली, अंग्रेजी व हिंदी भाषा में सौरमण्डल का परिचय दिया जाता है।
शांति निकेतन (वीरभूमि )
पश्चिम बंगाल आने वाले देशी-विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र शांति निकेतन कोलकाता के उत्तर में लगभग 180 किमी. की दूरी पर वीरभूमि में है जिसे गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने बनवाया था। यह एक अंतरराष्ट्रीय यूनिवर्सिटी है, जहां परम्परा और संस्कृति का विज्ञान के साथ अद्भुत समन्वय देखा जा सकता है। शांति निकेतन अपनी कला, नृत्य, संगीत और उत्सवों के लिए बेहद प्रसिद्ध है जिनमें विश्व की बड़ी बड़ी हस्तियां सम्मिलित होती रहती हैं। यहां रवीन्द्रनाथ टैगोर का जन्मदिन अप्रैल मध्य में मनाया जाता है। पौष उत्सव, माघ उत्सव, बसंत उत्सव और जयदेव मेला व वृक्षारोपण उत्सव यहां के ऐतिहासिक आयोजन हैं। लोकनृत्य, संगीत, नृत्य, सांस्कृतिक कार्यक्रम, खेल और कलाकृतियों के माध्यम से इन उत्सवों को मनाया जाता है। शांति निकेतन बंगाली भोजन के लिए सुविख्यात है। यहां का विश्व भारती कैंपस काफी विशाल और सुंदर है। इसके प्रांगण में स्थित कला और शिल्प कालेज में मूर्तियां, भित्ति और भित्तचित्रों का प्रदर्शन किया जाता है। यहां प्रति बुधवार प्रार्थना सभा का आयोजन किया जाता है। महाकवि यहां के उत्तरायण परिसर में रहते और काम करते थे।
नंदीकेश्वरी मंदिर (वीरभूम)
वीरभूम जिले के नंदीकेश्वर गांव में नंदीकेश्वरी मंदिर 51 सती पीठों में से एक है। पौराणिक मान्यता के अनुसार यहां सती के कंठ की हड्डी गिरी थी। वर्तमान मंदिर 1310 में निर्मित हुआ था। यहां किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती है। यहां तेल व सिंदूर से रंगी हुई त्रिकोणाकार शिला की पूजा की जाती है। भैरव नंदिकेश्वर की भी कोई मूर्ति नहीं है। वृक्षों के कोटर में शिव की मानसिक उपस्थिति मानकर उनकी पूजा-अर्चना की जाती है।
सांस्कृतिक विश्व धरोहर में शामिल विष्णुपुर के मंदिर
कोलकाता से कोई दो सौ किमी दूर विष्णुपुर शहर में सत्रहवीं और अठारहवीं शताब्दी में मल्ल राजाओं के बनाए मंदिर सांस्कृतिक विश्व धरोहर में शामिल हैं। विष्णुपुर तब बांकुड़ा था और मल्ल राजाओं की राजधानी हुआ करता था। विष्णुपुर टेराकोटा के मंदिरों, बालूचरी साड़ियों व पीतल की सजावटी वस्तुओं के अलावा हर साल दिसंबर के आखिरी सप्ताह में लगने वाले मेले के लिए भी मशहूर है। कला व संस्कृति के अद्भुत संगम इस मेले में कलाकार दूर दूर से अपना हुनर दिखाने आते हैं। उनकी कला के पारखी पर्यटक भी यहां काफी संख्या में पहुंचते हैं। साल के आखिरी सप्ताह में पूरा शहर उत्सवी रंगों से सराबोर होता है। मल्ल राजाओं का शासन करीब एक हजार वर्ष तक रहा और उनके नाम पर इसे ‘मल्लभूमि’ भी कहा जाता था। विष्णुपुर में टेराकोटा व हस्तकला को उसी दौरान बढ़ावा मिला। इसके साथ ही भारतीय शास्त्रीय संगीत का विष्णुपुर घराना भी काफी फला-फूला। वैष्णव धर्म के अनुयायी इन मल्ल राजाओं के बनवाए टेराकोटा मंदिर आज भी शान से सिर उठाए खड़े हैं। ये बंगाल की वास्तुकला की जीती-जागती मिसाल हैं।
मल्ल राजा वीर हंबीर और उनके उत्तराधिकारियों- राजा रघुनाथ सिंघा व वीर सिंघा ने विष्णुपुर को तत्कालीन बंगाल का प्रमुख सांस्कृतिक केंद्र बनाने में अहम भूमिका निभाई थी। शहर के ज्यादातर मंदिर भी उसी दौरान बनवाए गए। रासमंच पिरामिड की शक्ल में ईटों से बना सबसे पुराना मंदिर है। 16वीं सदी में राजा वीर हंबीरा ने इसका निर्माण कराया था। उस समय रास उत्सव के दौरान पूरे शहर की मूर्तियां इसी मंदिर में लाकर रख दी जाती थीं और दूर-दूर से लोग इनको देखने के लिए उमड़ पड़ते थे। इस मंदिर में टेराकोटा की सजावट की गई है जो आज भी पर्यटकों को लुभाती है। इसकी दीवारों पर रामायण, महाभारत व पुराणों के श्लोक खुदाई के जरिए लिखे गए हैं। इसी तरह 17वीं सदी में राजा रघुनाथ सिंघा के बनवाए जोरबंगला मंदिर में भी टेराकोटा की खुदाई की गई है। शहर में इस तरह के इतने मंदिर हैं कि इसे मंदिरों का शहर भी कहा जा सकता है।
टेराकोटा विष्णुपुर की पहचान है। यहां इससे बने बर्तनों के अलावा सजावट की चीजें भी मिलती हैं। मेले में तो एक सिरे से यही दुकानें नजर आती हैं। इसके अलावा पीतल के बने सामान भी यहां खूब बनते व बिकते हैं। इन चीजों के अलावा यहां बनी बालूचरी साड़ियां देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में मशहूर हैं। इन साड़ियों पर महाभारत व रामायण के दृश्यों के अलावा कई अन्य दृश्य कढ़ाई के जरिए उकेरे जाते हैं। बालूचरी साड़ियों की धाक विदेशों तक में है।