(आजादी विशेष)
अगस्त 1942 के दौरान खड़गपुर, आसनसोल और मेदनीपुर के विस्तृत इलाके में कई बड़े आंदोलन हुए, जिनमें क्रांतिकारियों ने जगह-जगह सड़क पर जाम लगाकर शराब की दुकानों में आगजनी शुरू की। जिन दुकानदारों ने हड़ताल का विरोध किया, उनकी दुकानें तोड़ दी गईं, आग लगा दी गई और अंग्रेजों के खास कारोबारियों के घर लूटपाट भी हुई। 29 अगस्त, 1942 को यहां क्रांतिकारियों के दल ने सैकड़ों ग्रामीणों को साथ में लेकर तमलुक शहर में तिरंगा फहराने की योजना बनाई। यहां मुख्य चौराहे पर एकत्रित हुए सैकड़ों क्रांतिकारियों ने सफलतापूर्वक तिरंगा लहरा भी दिया लेकिन इसके बाद यहां तमलुक थाने पर लहरा रहे ब्रिटिश ध्वज को उखाड़ कर तिरंगा लहराने की योजना बनाई गई। रामचंद्र बेरा के नेतृत्व में सैकड़ों लोग थाने की ओर बढ़ने लगे। अपना ध्वज बचाने के लिए ब्रिटिश हुकूमत ने देशभक्तों के इस जुलूस को चारों ओर से घेर कर लाठी चार्ज शुरू कर दिया। भीड़ में शामिल लोगों को बर्बर तरीके से पीटा जा रहा था लेकिन देशभक्ति का ऐसा जुनून इन क्रांतिकारी पर था कि लाठी चार्ज को धता बताते हुए वो धीरे-धीरे तमलुक थाने की ओर बढ़ने लगे।
कोई चारा नहीं दिखा तो अंग्रेजी कप्तान ने फायरिंग का आदेश दे दिया और धड़ाधड़ गोलियां चलने लगीं। इसमें कई लोग घायल हुए। अधिकतर लोगों को तो अस्पताल में भर्ती किया गया लेकिन रामचंद्र बेरा गोलियों से छलनी हो गए थे। वहीं मातृभूमि पर गिरकर बलिदान हो गए। उनके बलिदान के बाद पूरे क्षेत्र में क्रांति की ऐसी ज्वाला भड़की कि देशभक्तों ने जगह-जगह आगजनी और तोड़फोड़ शुरू कर दी। इसके बाद अंग्रेजों में ऐसी दहशत फैली कि किसी भी तरह की हड़ताल का नाम सुनते ही धारा 144 लगा दी जाती थी। इसके बाद सितंबर 1942 में और बड़े आंदोलन हुए, जिस दौरान 72 साल की बूढ़ी मातंगिनी हाजरा भी बलिदान हुईं। उन्हें बूढ़ी गांधी के नाम से पुकारा जाता था।(एएमएपी)