चांदी से शुरुआत स्वर्ण से समापन

राजीव रंजन।

2021 में हुए “टोक्यो ओलम्पिक 2020” में मीराबाई चानू ने चांदी से शुरुआत की और नीरज चोपड़ा ने सोने से समापन। इस ओलिम्पक में बहुत कुछ पहली बार हुआ और बहुत कुछ वर्षों बाद हुआ। इस बार भारत ने अपने पदकों की सबसे बड़ी संख्या अर्जित की। छह खेलों में सात पदक। और यह पहली बार है, जब भारत की झोली में हर रंग के तमगे आए हैं। भारत ने नीरज चोपड़ा के पराक्रम की बदौलत ट्रैक एंड फील्ड में पहली बार पदक जीता, वह भी सोने का। मीराबाई चानू ने वेटलिफ्टिंग में भारत को पहली बार रजत पदक दिलवाया, तो महिला हॉकी टीम पहली बार ओलिम्पक के सेमीफाइनल में पहुंची। वहीं भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने 41 साल के बाद ‘विक्टरी पोडियम’ पर पैर रखे।


साकार हुआ “उड़न सिख” का सपना

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ट्रैक एंड फील्ड यानी एथलेटिक्स में इससे पहले सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन दिवंगत मिल्खा सिंह और पी. टी. उषा का था। 1960 के रोम ओलम्पिक में “उड़न सिख” मिल्खा सिंह 400 मीटर की रेस में सेकंड के दसवें हिस्से से कांस्य पदक से चूक गए थे। उस ओलम्पिक में उन्हें 400 मीटर की रेस में स्वर्ण पदक का प्रबल दावेदार माना गया था। पी. टी. उषा 1984 के लास एंजिल्स में 400 मीटर बाधा दौड़ में सेकंड के सौवें हिस्से से पदक से चूक गई थीं। भारतीय एथलेटिक्स के आइकन मिल्खा सिंह की बरसों पुरानी साध थी कि कोई भारतीय ट्रैक एंड फील्ड स्पर्धाओं में पदक जीते। उनकी ये साध पूरी हुई, हालांकि आज वह नीरज चोपड़ा की इस उपलब्धि देखने के लिए संसार में नहीं है, लेकिन उनके बेटे जीव मिल्खा सिंह ने पिता का सपना पूरा करने के लिए नीरज को धन्यवाद दिया। वह बहुत भावुक और महान क्षण था, जब नीरज चोपड़ा ने अपना स्वर्ण पदक महान मिल्खा सिंह को समर्पित किया। पी. टी. उषा ने भी अपनी अधूरी तमन्ना को पूरा करने के लिए नीरज को शुक्रिया कहा है। उषा ने ट्वीट किया- “आज 37 साल बाद मेरे अधूरे सपने को पूरा किया। धन्यवाद मेरे बेटे नीरज।”

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हॉकी का पुनरुत्थान

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भले ही भारत की पुरुष हॉकी टीम को कांसे संतोष करना पड़ा और महिला हॉकी टीम पोडियम पर फिनिश नहीं कर सकी, लेकिन यह पिछले कई दशकों में भारत का हॉकी में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। महिला हॉकी टीम तो कभी अंतिम चार में पहुंची ही नहीं थी। पुरुष भी सेमीफाइनल में 49 साल बाद पहुंचे। 1972 के म्यूनिख ओलम्पिक में भारत ने कांस्य पदक जीता था। भारत ने 1980 में मास्को ओलम्पिक में स्वर्ण पदक जीता था। लेकिन उस समय मुकाबले लीग आधार पर खेले गए थे। टॉप दो टीमों के बीच फाइनल खेला गया था। सेमीफाइनल नहीं हुए थे। गौरतलब है कि मॉस्को ओलम्पिक में ज्यादातर मजबूत टीमें नहीं गई थीं, क्योंकि वो शीत युद्ध के उत्कर्ष का समय था और अमेरिका ने मॉस्को ओलम्पिक का बहिष्कार कर दिया था। उसके गुट के कई सारे देशों ने उस ओलम्पिक में भाग नहीं लिया था। अगर उस लिहाज से देखें तो यह 1972 के कांस्य के बाद की सबसे बड़ी जीत है। टोक्यो ओलम्पिक भारतीय हॉकी के लिए क्रिकेट का “83” साबित हो सकता है।

विजेताओं की प्रेरक दास्तान

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मीराबाई चानू जिस पृष्ठभूमि से आती हैं, और जिस तरह का उनका जीवन संघर्ष रहा है, वह रोमांचित और प्रेरित करने वाला तो है ही, भावुक करने वाला भी है। उनकी उपलब्धि असाधारण है। लवलीना बोरगोहेन के परिवार को भी उन्हें आगे बढ़ाने के लिए आर्थिक रूप से काफी संघर्ष करना पड़ा। पी. वी. सिन्धु दो ओलम्पिक में पदक जीतने वाली पहली महिला खिलाड़ी बन गई हैं। और, पहलवान सुशील कुमार के बाद व्यक्तिगत स्पर्धाओं में दो ओलम्पिक में पदक जीतने वाली केवल दूसरी खिलाड़ी। वहीं रवि दहिया ने भी कुश्ती में रजत पदक जीतने के मामले में सुशील कुमार की बराबरी की। बजरंग पुनिया कुश्ती में अपने वर्ग में स्वर्ण पदक के दावेदार थे, लेकिन उन्हें कांस्य से संतोष करना पड़ा। उनके घुटने की चोट भी, हो सकता है, उनके लिए थोड़ी बाधा बनी हो। लेकिन ओलम्पिक में पदक का अपना एक अलग ही महत्त्व है।

सतीश का जज्बा और अदिति की हुंकार

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मुक्केबाज सतीश कुमार ने चेहरे पर 13 टांकों के साथ क्वार्टर फाइनल खेला था। उनके परिवार के लोगों ने उनसे मुकाबले से हट जाने को कहा, लेकिन उन्होंने 13 टांकों के साथ ही खेलने का फैसला किया। किसी भी परिस्थिति में हार न मानने के उनके जज्बे को सलाम। एक और खिलाड़ी का जिक्र जरूरी है। 23 वर्षीया अदिति अशोक पदक तालिका में स्थान नहीं बना सकीं, लेकिन दुनिया में 200वें नंबर की इस गोल्फर ने दुनिया की टॉप महिला गोल्फरों को बराबरी की टक्कर दी और मामूली अंतर से चौथे स्थान पर आईं। तीसरे राउंड की समाप्ति तक वे दूसरे नंबर पर थीं। चौथे और फाइनल राउंड में भी 16 होल तक वे संयुक्त रूप से तीसरे स्थान पर थीं। तभी मौसम खराब हो गया और खेल रोक दिया गया। सिर्फ दो होल का खेल बाकी था। जब दोबारा खेल शुरू हुआ, तो आखिरी दो होल में बाजी उनके हाथ से फिसल गई। लेकिन गोल्फ जैसे खेल में, जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं और जिसे अमीरों का खेल माना जाता है, यह उपलब्धि भी प्रेरक है। उम्र अभी अदिति के साथ है, और हो सकता है, अगले ओलम्पिक में वह पदक जीत भी जाएं, अगर इसे शामिल किया गया तो। अदिति के इस प्रदर्शन से देश में गोल्फ की लोकप्रियता भी बढ़ेगी, इसकी पूरी उम्मीद है।

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उज्ज्वल है भविष्य

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इन विजेताओं ने युवा पीढ़ी को क्रिकेट के अतिरिक्त दूसरे खेलों में भी आने के लिए प्रेरित किया है। इन्होंने इस भरोसे को पुख्ता किया है कि हम किसी भी खेल में जीत सकते हैं और किसी को भी हरा सकते हैं। यह बहुत बड़ी सच्चाई है कि हम जिन खेलों में जीतते हैं, उनका भविष्य बेहतर होता जाता है। उसमें ज्यादा युवा आने को प्रेरित होते हैं। क्रिकेट, शतरंज, बैडमिंटन, शूटिंग, वेटलिफ्टिंग, कुश्ती, कबड्डी, बॉक्सिंग इसके प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। शतरंज में विश्वनाथन आनंद की सफलता ने ग्रैंड मास्टरों की फौज तैयार कर दी। बैडमिंटन में प्रकाश पादुकोण की अद्भुत जीत (उन्होंने 25 दिन के अंतराल में दुनिया के तीन बड़े टूर्नामेंट जीते थे, जिन्हें टेनिस के ग्रैंडस्लैम के समान माना जाता था) ने भारत में बैडमिंटन को ऊंचाई पर ले जाने में उत्प्रेरक का काम किया। साइना नेहवाल की सफलता ने महिला बैडमिंटन को एक अलग दिशा दे दी। नीरज चोपड़ा की स्वर्णिम सफलता और अदिति अशोक के उल्लेखनीय प्रदर्शन से अब एथलेटिक्स और गोल्फ में भी भविष्य बेहतर होगा और हॉकी का सुनहरा युग लौटेगा, इसकी उम्मीद करना बेमानी नहीं है। सरकारों और संस्थाओं ने भी खेलों की बेहतरी के लिए पहले से ज्यादा ध्यान दिया है। उम्मीद है भारत को खेल महाशक्ति बनाने के लिए सिस्टम को और दुरुस्त किया जाएगा। (बातचीत पर आधारित)


टोक्यो ओलम्पिक में भारत को सात पदक

स्वर्ण-1

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जेवलिन थ्रो- नीरज चोपड़ा

रजत-2 

Technical adjustments lift Mirabai - The Hindu

वेटलिफ्टिंग- एस. मीराबाई चानू

2020 Tokyo Olympics: Wrestler Ravi Dahiya puts up a brave effort in final, bags silver कुश्ती- रवि दहिया

कांस्य-4

बॉक्सिंग- लवलीना बोरगोहेन           कुश्ती- बजरंग पुनिया            बैडमिंटन- पी. वी. सिंधु

Indian men's hockey team strong medal contender at Tokyo Olympics: Tushar Khandker | Hockey News - Times of Indiaहॉकी- भारतीय पुरुष टीम