भीड़ वाले आयोजनों में आयोजकों, प्रशासन और समाज को मिलकर काम करना होगा।

राजीव रंजन।
उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में स्थित साकार विश्व हरि उर्फ भोले बाबा, जिसका वास्तविक नाम सूरजपाल है, के सत्संग स्थल पर भगदड़ के कारण हुई दुर्घटना बेहद दुखद है। 121 लोगों की मृत्यु हो चुकी है और कई लोग गंभीर रूप से घायल हैं। यह घटना ना केवल हमारे समाज में धार्मिक आयोजनों के प्रबंधन की कमजोरियों और प्रशासनिक लापरवाही को उजागर करती है, बल्कि यह भी बताती है कि कैसे भीड़ के नियंत्रण में चूक से भयावह परिणाम सामने आ सकते हैं। इस सत्संग में हजारों की संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए थे। कहा जा रहा है कि 80,000 लोगों के आयोजन के लिए अनुमति ली गई थी, लेकिन इससे तीन गुना से ज्यादा लोगों को जुटाया गया। दुर्घटना की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि स्वयं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने दुर्घटना के बाद मोर्चा संभाला। जांच के भी आदेश दे दिए गए हैं। इस त्रासदी ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है और धार्मिक आयोजनों की सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर प्रश्न उठाए हैं।

यह आयोजन काफी बड़ा था और अनुमानित संख्या से अधिक लोगों की उपस्थिति थी। भीड़ का नियंत्रण सही तरीके से न हो पाने के कारण भगदड़ की स्थिति उत्पन्न हो गई। आयोजन स्थल पर सुरक्षा व्यवस्था का अभाव था। पर्याप्त पुलिस बल की तैनाती नहीं की गई थी और आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए कोई विशेष योजना नहीं बनाई गई थी। सत्संग स्थल की संरचना भी ऐसी थी कि भीड़ को नियंत्रित करना मुश्किल हो गया। निकास द्वार की संख्या कम थी और वे भी संकीर्ण थे, जिससे भीड़ में फंसने की स्थिति बन गई। प्रशासन और आयोजकों पर भी सवाल खड़े हुए हैं, उनकी कार्यप्रणाली और जिम्मेदारी भी सवालों के घेरे में है। इस घटना के परिणामस्वरूप कई परिवारों ने अपने प्रियजनों को खो दिया। जैसाकि आमतौर पर होता है, भगदड़ में मरने वाले ज्यादातर बच्चे, वृद्ध और स्त्रियां होते हैं, यहां भी वही स्थिति है।

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ऐसी दुर्घटनाओं से बचा जा सकता है, अगर आयोजन व्यवस्थित तरीके से कराए जाएं। वास्तव में, आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर के आयोजनों में इससे बहुत ज्यादा लोग सम्मिलित होते हैं, लेकिन वहां दुर्घटनाएं नहीं होतीं, क्योंकि सब कुछ बहुत व्यवस्थित रूप से किया जाता है। वास्तव में, किसी भी बड़े धार्मिक आयोजन के लिए पहले से ही विस्तृत योजना बनाई जानी चाहिए। प्रशासन को भी मुस्तैद रहना चाहिए, जिसका इस आयोजन में नितांत अभाव था। भीड़ नियंत्रण, आपातकालीन निकास मार्ग और प्राथमिक चिकित्सा की व्यवस्था सुनिश्चित करनी चाहिए। पर्याप्त संख्या में पुलिस और सुरक्षा बलों की तैनाती आवश्यक है। भीड़ को नियंत्रित करने के लिए विशेष प्रशिक्षित दल की व्यवस्था करनी चाहिए। आयोजन स्थल पर प्रवेश और निकास द्वारों की संख्या बढ़ानी चाहिए और उन्हें स्पष्ट रूप से चिह्नित किया जाना चाहिए। इसके अलावा, द्वारों को चौड़ा और आपातकालीन स्थिति में तुरंत उपयोगी व्यवस्था होनी चाहिए। आधुनिक तकनीकों का उपयोग करके भीड़ की निगरानी और उस पर नियंत्रण किया जा सकता है। सीसीटीवी कैमरे, ड्रोन और अन्य निगरानी उपकरणों का उपयोग किया जा सकता है।

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इसमें सबसे ज्यादा जरूरी सामाजिक जागरूकता है। लोगों को ऐसे स्थानों पर जाने से बचना चाहिए, खासकर बच्चों, बूढ़ों और महिलाओं को ऐसे आयोजनों में जाने से बचना चाहिए। अपनी जान की सुरक्षा की जिम्मेदारी को लोगों को खुद समझना होगा। लोगों को भीड़ में सुरक्षा के महत्व के बारे में जागरूक करना चाहिए। अफवाहों से बचने और शांतिपूर्ण व्यवहार बनाए रखने की शिक्षा दी जानी चाहिए। भीड़ में अफवाहों को फैलने से रोकने के लिए सूचना के विश्वसनीय स्रोतों का उपयोग करना चाहिए। आयोजन स्थल पर नियमित रूप से जानकारी प्रदान करने के लिए स्पीकर और डिस्प्ले बोर्ड का उपयोग किया जा सकता है। हाथरस में साकार विश्व हरि के सत्संग में हुई भगदड़ एक गंभीर और हृदयविदारक घटना है, जिसने हमारे समाज को झकझोर कर रख दिया। इस तरह की घटनाएं हमें सिखाती हैं कि धार्मिक आयोजनों की योजना और प्रबंधन में कोई भी कमी नहीं होनी चाहिए। यदि हम सुरक्षा व्यवस्था, भीड़ नियंत्रण और आपातकालीन प्रबंधन पर ध्यान दें, तो भविष्य में इस तरह की त्रासदियों से बच सकते हैं। प्रशासन, आयोजकों और समाज को मिलकर काम करना होगा, ताकि धार्मिक आयोजनों का आनंद और श्रद्धा बनी रहे और किसी भी प्रकार की दुर्घटना से बचा जा सके।

यह दुर्घटना कोई पहली दुर्घटना नहीं है। भारत में बड़े आयोजनों में दुर्घटना की यह कोई पहली घटना नहीं है। लेकिन यह आखिरी दुर्घटना हो, इसके लिए सतर्क और जागरूक होना होगा। इससे पहले उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव और मायावती के शासनकाल में तीन बड़ी दुर्घटनाएं हो चुकी हैं।

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  • 10 फरवरी, 2013 को प्रयागराज में रेलवे स्टेशन पर भगदड़ मच गई थी। उस घटना में 40 से ज़्यादा लोगों की मौत हुई थी। तत्कालीन शहरी विकास मंत्री आज़म खान, जो इलाहाबाद में महाकुंभ उत्सव के प्रभारी मंत्री थे, ने नैतिक आधार पर इस्तीफा दिया, लेकिन उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कुम्भ में आजम खान के काम की प्रशंसा करते हुए आजम खान के इस्तीफा को अस्वीकार कर दिया। घटना के जांच के आदेश भी दिए गए थे, लेकिन अभी तक उसका कोई ठोस नतीजा नहीं निकला है।
  • 15 अक्टूबर 2016 को वाराणसी में राजघाट गंगा पुल पर मची भगदड़ में 25 लोग मारे गए। जय गुरुदेव पंथ के अनुयायी बड़ी संख्या में गंगा स्नान के लिए जा रहे थे, तभी यह दुर्घटना घटी। यहां भी प्रशासन से 3,000 लोगों की शोभायात्रा की अनुमति ली गई थी, लेकिन बहुत अधिक लोगों को जुटा लिया गया। इसकी जांच का भी कोई ठोस नतीजा नहीं निकला।

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4 मार्च 2010 को प्रतापगढ़ के राम जानकी मंदिर में भगदड़ मचने से 63 लोगों की मृत्यु हो गई और 100 से ज़्यादा लोग घायल हो गए। कहा जाता है कि यह घटना मंदिर के अधूरे बने गेट के गिरने से हुई। इससे कृपालु महाराज की पत्नी की पुण्यतिथि पर भोजन और कपड़े लेने के लिए लोग इकट्ठा हुए थे। उसी दौरान अफरा-तफरी मच गई और यह दुर्घटना घटी। प्रशासनिक अव्यवस्था का आलम यह था कि उस दुर्घना में मारे गए लोगों के दाह-संस्कार की भी ढंग की व्यवस्था नहीं थी। स्थानीय लोगों के अनुसार, जिला प्रशासन दाह संस्कार के लिए पर्याप्त लकड़ियां नहीं मुहैया करा सका। 5 मार्च 2010 को कुंडा पुलिस स्टेशन में आश्रम परिसर के आयोजक और प्रबंधक के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी, लेकिन उसमें किसी को नामजद नहीं किया गया था।

भारत में धार्मिक आयोजनों में भगदड़ से होने वाले मौतों की घटनाएं प्रायः होती रही हैं। कुछ उदाहरण हैः

  • पुष्कर मेला, राजस्थान (2019)- यहां तीन लोगों की दुर्घटना में मृत्यु हुई थी। कार्तिक पूर्णिमा के स्नान के दौरान पुष्कर सरोवर के पास भगदड़ मच गई थी।
  • देवघर मंदिर, झारखंड (2015)- इस दुर्घटना में 11 लोगों की जान गई थी। सावन माह में बाबा बैद्यनाथ मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ के कारण भगदड़ मच गई थी।
  •  राजामुन्द्री, आंध्र प्रदेश (2015)- इस दुर्घटना में 27 लोग मारे गए थे। यहां गोदावरी महा पुष्करम के दौरान भगदड़ मच गई थी।
  • पटना, बिहार ( अक्तूबर, 2014)- बिहार की राजधानी पटना में रावण दहन के बाद मची भगदड़ में 30 से ज्यादा लोगों की जान गई और 100 से अधिक लोग घायल हुए थे। दुर्घटना एक्जीबिशन रोड इलाके में उस समय हुई, जब अफवाह की वजह से भगदड़ मच गई। पुलिस के अनुसार, लोग गांधी मैदान में आयोजित रावण दहन कार्यक्रम से लौट रहे थे। मां दुर्गा की मूर्ति विसर्जन के लिए भी इसी रास्ते पर सैंकड़ों की संख्या में लोग उपस्थित थे। तभी बिजली गिरने की अफवाह फैल गई और भगदड़ मच गई। उस समय गांधी मैदान का केवल एक गेट ही खुला था और एक्जीबिशन रोड पर काफी भीड़ थी।
  • रतनगढ़ मंदिर, मध्य प्रदेश (2013)- इसमें 115 लोगों की मृत्यु हो गई थी। दशहरे के दिन रतनगढ़ माता मंदिर में पुल पर हुई भगदड़ से यह दुर्घटना घटी।
  • प्रयागराज कुंभ मेला, उत्तर प्रदेश (2013)- इस दुर्घटना में 40 से ज्यादा लोग मारे गए थे। माघ मेले के दौरान रेलवे स्टेशन पर भगदड़ मच गई थी।
  • सबरीमाला मंदिर, केरल (2011) – इसमें 102 लोग मारे गए थे। मकर विलक्कू उत्सव के दौरान पुलमेदु में भीड़ के बीच भगदड़ मच गई थी।
  • हरिद्वार कुंभ मेला, उत्तराखंड (2010)- यहां सात लोग मारे गए थे। गंगा स्नान के दौरान हर की पौड़ी पर भगदड़ मच गई थी।
  • चामुंडेश्वरी देवी मंदिर, जोधपुर, राजस्थान (2008)- इस दुर्घटना में 150 से अधिक लोग मारे गए थे। नवरात्रि उत्सव के दौरान चामुंडी हिल्स पर स्थित मंदिर में भगदड़ मच गई थी। चारों तरफ मंदिर श्रद्धालुओं से खचाखच भरा हुआ था। इस भीषण हादसे में कुछ ही घंटों में 150 से ज्यादा लोगों की मृत्यु हो गई। मेहरानगढ़ किले में स्थित चामुंडा मंदिर 400 फुट की ऊंचाई पर बना है। इस मंदिर की स्थापना 1407 में हुई थी। यहां नवरात्रि में बहुत भीड़ होती है।
  • नासिक कुंभ मेला, महाराष्ट्र (2003)- इस दुर्घटना में लगभग लोग 40 लोग मारे गए थे। यहां राम कुंड में स्नान के दौरान भगदड़ मच गई थी।
  • साई बाबा मंदिर, महाराष्ट्र (2003)- इस दुर्घटना में 12 लोग मारे गए थे। मंदिर में सुबह की आरती के समय भगदड़ मच गई थी।इन घटनाओं से यह स्पष्ट होता है कि धार्मिक आयोजनों में भीड़ का सही प्रबंधन न होने पर कितनी गंभीर दुर्घटनाएं हो सकती हैं। यहाँ दिए आंकड़ों में मृतकों की संख्या में कुछ अंतर हो सकता है क्योंकि ये विभिन्न स्रोतों से प्राप्त सूचना पर आधारित हैं।