#pradepsinghप्रदीप सिंह।

विजयादशमी पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत का संबोधन बड़ा सारगर्भित रहा है। उन्होंने जो विषय उठाए और जो नहीं उठाए उन सबको दृष्टि में रखिए तो अगले 15 महीनों में यानी अक्टूबर 2022 से लेकर दिसंबर 2023 तक देश की राजनीति, समाज, आंतरिक सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को देखने की जो दृष्टि है, उन सब में बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा। अपने उद्बोधन में उन्होंने इसी ओर इशारा किया है। उन्होंने जनसंख्या नीति पर बात की और कहा कि पंथ के आधार पर जनसंख्या का असंतुलन बड़ा खतरनाक है, इसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती है।

सरसंघचालक ने कहा कि आज से 75 साल पहले 1947 में हमने यह देखा है। उस समय देश में मुसलमानों की कुल आबादी 24 फीसदी से कुछ ज्यादा थी और देश का बंटवारा हो गया। पिछली जनगणना और उसके बाद के अनुमान को मिलाकर मुस्लिम आबादी कुल 15 प्रतिशत है। मोहन भागवत इसी ओर इशारा कर रहे थे। लगातार इस बात पर चिंता जताई जाती रही है कि देश में जिस गति से मुस्लिम आबादी बढ़ रही है और बढ़ाने की कोशिश हो रही है उसे आप केवल जन्म दर के आधार पर मत देखिए। एक मोटा अनुमान है कि 8 लाख हिंदू हर साल मुसलमान बनते हैं। ईसाई बननेवालों की संख्या इसमें शामिल नहीं है क्योंकि जो ईसाई बन रहे हैं उनका कोई लेखा-जोखा नहीं है। वे इसकी घोषणा नहीं करते हैं क्योंकि ईसाई बनने वाले ज्यादातर लोग या तो दलित हैं या आदिवासी समाज से हैं और वे आरक्षण का लाभ लेते रहना चाहते हैं। उन्हें लगता है कि जैसे ही बताएंगे कि उन्होंने धर्म परिवर्तन कर लिया तो उनको आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा। इसलिए ईसाई आबादी जो दो फीसदी दिखाई देती है मेरा मानना है कि वह वास्तव में इससे कहीं ज्यादा है और 79 फीसदी हिंदू आबादी का जो आंकड़ा 2011 की जनगणना और उसके बाद के अनुमान के आधार पर है वह वास्तव में कम है। जो क्रिप्टो क्रिश्चियन हैं उनकी संख्या अगर जोड़ ली जाए तो हिंदू आबादी 79 फीसदी से कम होगी। इसके अलावा घुसपैठ की वजह से जो डेमोग्राफिक बदलाव हो रहा है उन सबको मिला लीजिए तो खतरा हमारे दरवाजे पर खड़ा है।

जनसंख्या नियंत्रण कानून की उम्मीद

इसी की ओर सरसंघचालक इशारा कर रहे थे। वह जब इसकी बात कर रहे थे तो इसका मतलब है कि वह सरकार को संदेश भी दे रहे थे और शायद सरकार इस संदेश की उम्मीद भी कर रही थी या कहें कि प्रतीक्षा कर रही थी। कोई भी बड़ा कदम उठाने से पहले सरकार- खासकर यह सरकार- चाहती है कि उस पर देश में बहस हो, लोगों के अलग-अलग तरह के विचार सामने आएं और उनके आधार पर कानून बने। मुझे ऐसा लगता है कि अगले 15 महीने में जनसंख्या नियंत्रण पर कानून बनेगा। सरसंघचालक ने जो बात कही है वह बहुत विचार-विमर्श के बाद कही है क्योंकि उन्होंने कहा है कि 50 साल के लिए जनसंख्या नीति बननी चाहिए और सभी मजहबों पर समान रूप से लागू होना चाहिए। दूसरी बात उन्होंने कही कि हमने एक लक्ष्य तय किया था कि 2.1 की दर से आबादी की रफ्तार बढ़े तो हम उससे नीचे यानी 2 फीसदी पर आ गए हैं। यानी पॉपुलेशन रिप्लेसमेंट का जो आंकड़ा होना चाहिए वहां हम पहुंच चुके हैं। अगर इसके नीचे जाता है तो उसके बड़े खतरनाक संकेत होंगे। उन्होंने कहा कि इसके बारे में भी विचार करने की जरूरत है कि यह जो बताने की कोशिश हो रही है कि मुसलमानों की आबादी वैसी नहीं बढ़ रही है, चिंता की कोई बात नहीं है, अगले हजार साल में भी मुसलमानों की आबादी हिंदुओं से ज्यादा नहीं होगी- इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए। केवल 24 फीसदी होने पर देश का बंटवारा हो गया था। दुनिया के बाकी देशों का उदाहरण भी हमारे सामने है कि किस तरह देखते-देखते खुशहाल गैर-इस्लामी देश इस्लामी देश बन गए। वह खतरा कोई मामूली खतरा नहीं है। उस खतरे के लिए अगर आज से तैयारी शुरू नहीं होगी तो आप समझ लीजिए कि आगे चलकर कुछ हो नहीं सकता है।

सुप्रीम कोर्ट में विवादास्पद कानूनों पर सुनवाई

सरसंघचालक ने जो संकेत दिए हैं, सरकार की ओर से जो संकेत मिल रहे हैं और जिस तरह से इस समय अदालतों में कार्यवाही चल रही है उन्हें देखते हुए इसकी उम्मीद बढ़ गई है। पिछले हफ्ते ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का जम्मू-कश्मीर दौरा हुआ। पिछले तीन-साढ़े तीन सालों में किस तरह का परिवर्तन जम्मू-कश्मीर में आया है, अगर आप वहां नहीं गए हैं तो वहां के लोगों से सुनकर या वीडियो के दृश्य देखकर आपको हैरानी होगी कि यह वही जम्मू-कश्मीर है जहां साढ़े तीन साल से किसी ने सुना नहीं कि पत्थरबाजी कब हुई। किसी ने देखा नहीं, किसी ने बताया नहीं कि पत्थरबाजी का कैलेंडर जारी हुआ हो, वह सब खत्म हो गया है। अलगाववादियों का पूरा तंत्र ध्वस्त कर दिया गया है। पीएफआई (पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया) के खिलाफ जो एक्शन हो रहा है वह आंतरिक सुरक्षा को सुधारने, देश को सुरक्षित करने की दिशा में अब तक का सबसे बड़ा कदम है। आप यह मान कर चलिए कि आंतरिक सुरक्षा को पीएफआई से बहुत बड़ा खतरा था जिसको सरकार ने समय रहते समझा, पहचाना, कौन लोग इसके लिए जिम्मेदार हैं, कौन इसमें शामिल हैं उनकी पहचान की और उनके खिलाफ एक्शन शुरू हो गया। यह एक्शन यहां रुकने वाला नहीं है। इसके साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट में 10 अक्टूबर से वक्फ बोर्ड और 11 अक्टूबर से प्लेसेस ऑफ वरशिप एक्ट को लेकर सुनवाई होने जा रही है। कांग्रेस सरकार ने इस कानून के जरिये हिंदुओं को इस अधिकार से वंचित कर दिया कि वह मंदिरों के बारे में, अपने धर्म-स्थलों के बारे में दावा कर सकें। जो उनके हैं उसको लेने के लिए उनके सामने कोई कानूनी रास्ता नहीं छोड़ा। हम इसे लेकर अदालत में नहीं जा सकते, इस मुद्दे को उठा नहीं सकते- यानी जो आक्रमणकारियों ने किया उसको स्वीकार कर लीजिए। यह एक तरह का आदेश था इस कानून के जरिये कि जो हो चुका है उसे भूल जाइए और जिन्होंने कब्जा कर लिया उनका कब्जा बरकरार रहने दीजिए।

खत्म होगा अल्पसंख्यक मंत्रालय!

इसी साल 30 अक्टूबर से अल्पसंख्यक आयोग कानून पर भी सुनवाई शुरू हो रही है कि यह कानून संविधान सम्मत है या नहीं है। क्या किसी धर्मनिरपेक्ष देश में ऐसा आयोग होना चाहिए या नहीं और क्यों होना चाहिए। रह-रहकर ये खबरें भी आ रही है कि सरकार अल्पसंख्यक मंत्रालय को खत्म करने जा रही है। अब इसमें कितनी सच्चाई है मुझे मालूम नहीं। अल्पसंख्यक मंत्रालय, वक्फ एक्ट, प्लेसेस ऑफ वरशिप एक्ट यह सब कुछ मुसलमानों के तुष्टीकरण के लिए कांग्रेस की सरकारों ने किया था जिसका नतीजा आज हम भोग रहे हैं। इनके जरिये हिंदुओं के अधिकार सिस्टमैटिक तरीके से सीमित करने के कदम उठाए गए। इससे लोगों के मन में ये भावना आई कि हमें लगातार दोयम दर्जे का नागरिक बनाने की कोशिश हो रही है और यह कोशिश- किसी समाज की ओर से नहीं- सरकार की ओर से हो रही है। ऐसी सरकार जिसको बहुसंख्यक हिंदुओं ने चुनकर भेजा और उस सरकार ने केवल इसलिए किया कि मुसलमानों का वोट उसे लगातार मिलता रहे। यह जानते हुए भी कि केवल अल्पसंख्यक वोट से कोई सरकार नहीं बनती है। पिछले दो लोकसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी ने यह साबित किया है कि मुस्लिम वोट के वीटो को निष्क्रिय किया जा सकता है। उसके बिना भी केंद्र और राज्यों में बहुमत की सरकार बन सकती है। इसके बाद भी बहुत से लोग इसे देखने, सोचने और मानने को तैयार नहीं हैं। पीएफआई पर एक्शन का जिन लोगों ने प्रत्यक्ष या परोक्षरूप से समर्थन किया है उन सबको पहचान लीजिए। ये आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा हैं। जो देश की आंतरिक सुरक्षा के मुद्दे को भी वोट बैंक की नजर से देखते हैं वे इस देश के हितैषी नहीं हो सकते हैं। यहां मकसद पूरे विपक्ष को देश विरोधी बताने का नहीं है- लेकिन जो देश विरोधी हैं उनको देश विरोधी कहने का समय आ गया है। इस पर चुप रहने का समय अब चला गया है क्योंकि चुप रहते-रहते हम 75 साल में जहां पहुंचे हैं वह एक तरह से मौत के कुएं की तरफ बढ़ रहे हैं।

समान नागरिक संहिता

अगर अभी भी हम चुप रहे तो हमें बचाने वाला कोई नहीं होगा। इसलिए मुझे लग रहा है कि जिन मुद्दों का मैंने जिक्र किया उसके अलावा इन 15 महीनों में सीएए के नियम बनेंगे, उत्तर प्रदेश में जो मदरसा सर्वे हो रहा है उसकी रिपोर्ट आ जाएगी और वह लागू हो जाएगा। वक्फ के नाम पर जिन संपत्तियों पर अवैध कब्जा किया गया है अगले 15 महीनों में उन पर से कब्जा हटाने की शुरुआत उत्तर प्रदेश से होगी। जब उन संपत्तियों की पहचान हो जाएगी कि दरअसल उनका वास्तविक हकदार कौन है तो आपको पता चलेगा कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस, सपा, बसपा के नेताओं की बड़ी संख्या मिलेगी जो इसके लिए जिम्मेदार होंगे कि किस तरह से उन्होंने साल दर साल, दशक दर दशक इस तरह से संपत्तियों पर अवैध कब्जा किया और कराया। इन सबके चेहरे बेनकाब होने वाले हैं। सरसंघचालक ने जनसंख्या नीति की जो बात कही है वह बिना समान नागरिक संहिता के अधूरी है। मेरा मानना है कि समान नागरिक संहिता से संबंधित कानून भी इन 15 महीनों में बन जाएगा। अगले 15 महीनों में संसद के चार सत्र होने हैं। इन चार सत्रों के दौरान आप देखेंगे कि बड़े दूरगामी प्रभाव वाले विधेयक लाए जाएंगे और उन्हें पास कराया जाएगा। इसे लेकर सरकार की तैयारी लंबे समय से चल रही है। आप इन 15 महीनों पर ध्यान रखिए कि क्या-क्या होता है और कितने बड़े-बड़े बदलाव होने वाले हैं। 2024 का जब चुनाव आएगा तो यह सरकार अपनी बड़ी भारी उपलब्धियों के साथ जनता के सामने तीसरी बार जनादेश मांगने जाएगी। इस देश के इतिहास में सिर्फ जवाहरलाल नेहरू हैं जिन्होंने लगातार तीन चुनाव जीते हैं। 2024 में नरेंद्र मोदी दूसरे ऐसे प्रधानमंत्री बनेंगे, मुझे इस बात में कोई शक नहीं है।

मोदी को 2024 में चुनौती देने वाला कोई नजर नहीं आ रहा है क्योंकि मोदी ने इतनी बड़ी लकीर खींच दी है कि मौजूदा विपक्ष में न तो इतनी क्षमता है कि इस लकीर को छोटा कर सके और इससे बड़ी लकीर खींचने की क्षमता तो दूर-दूर तक दिखाई नहीं देती। बड़े बदलाव के लिए 15 महीनों का इंतजार कीजिए, अदालत से संसद तक और सरकार तक आपको बदलाव ही बदलाव दिखाई देंगे जो इस देश को ज्यादा मजबूत करने वाले होंगे। देश के लोगों के लिए ज्यादा बेहतर परिस्थितियां पैदा करने वाले होंगे, इज ऑफ लिविंग को आसान करने वाले होंगे।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अख़बार’ न्यूज़ पोर्टल एवं यूट्यूब चैनल के संपादक हैं)