सर्जना शर्मा ।
अब बॉलीवुड के तथाकथित बड़े सितारे अपने बिलों से बाहर निकल आए हैं। लगता है उन तक ये संदेश पहुंचा दिया गया है कि अब आगे बॉलीवुड़ पर आंच नहीं आएगी और पिछले सारे मामले रफा दफा कर दिए जायेंगें। मुंबई छोड़ कर दिल्ली की अदालत में टीवी चैनलों के खिलाफ मुकदमा- इसके पीछे गहरी योजना और साजिश है। वरना जिन्होनें अपने एक साथी सितारे के मरने पर ट्वीट तक नहीं किया, बॉलीवुड के नशेड़ी गंजेड़ी गैंग पर एक शब्द नहीं बोला उन्होनें क्या अचानक हमदर्द का सिंकारा पी लिया है। इतना दम कैसे आया सोचने की बात है।
बॉलीवुड पर तो पूरे भारतीय समाज को हज़ारों-लाखों केस करने चाहिए। जिसने परिवार प्रणाली को तोड़ने की दाऊद की साजिश में पूरा योगदान दिया। फिल्मों से लोरी गायब, भाई बहन के प्यार के गीत गायब, करवा चौथ के पतिपत्नी के प्रेम की गीत गायब, मां बेटे के प्यार के गीत गायब। बड़ा पर्दा तो बड़ा पर्दा छोटे पर्दे पर एक महिला के पांच-पांच पति, पांच-पांच अफेयर। हिन्दू लड़की मुस्लिम लड़के की प्रेम कथाएं। लेकिन कभी मुस्लिम लड़की और हिन्दू लड़के पर कोई कहानी नहीं। फिल्म होगी बजरंगी भाईजान लेकिन कव्वाली मजार पर अल्लाह हू अल्लाह हू करके गायी जाएगी।
786 का बिल्ला
हिन्दू देवी देवताओं मंदिरों में धर्म के नाम पर धोखाधड़ी आमिर खान और बाकी लोग दिखा सकते हैं लेकिन मस्जिद, चर्च, पादरी, मौलवी पर कोई ऐसी फिल्म बनाने का दम इन खाली पीली के सितारों में नहीं है। पूरे हिन्दू समाज को बॉलीवुड पर धार्मिक भावनाएं आहत करने और देवी देवताओं मंदिरों और पुजारियों का अपमान करने का मुकदमा दर्ज करना चाहिए।
जब तक हीरो के पास 786 का बिल्ला है तब तक उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। जैसे ही बिल्ला गिरा आदि देव महादेव के मंदिर में जाकर भगवान शिव के सामने वो मर जाता है। हीरो शिवजी की मूर्ति के पीछे छिप कर भगवान शिव की तरफ से झूठ बोल सकता है लेकिन मस्जिद या मजार पर जा कर ये नौटंकी कभी नहीं दिखायी। दम नहीं है और दूसरी बात… दाऊद से पैसा पिल्म बनाने के लिए मिल इसीलिए रहा है कि हिन्दू धर्म को बदनाम करो, आस्था पर सवाल खड़े करो, युवा पीढ़ी अपने धर्म अपने मंदिरों अपने पुजारियों अपने सिस्टम में भरोसा ही ना करे। लव जेहाद के लिए लड़कों की पूरी फौज तैयार कर दो ।
बुराईयों का ठेका हिन्दू समाज के पास
बॉलीवुड पर तो पूरे भारत के ठाकुरों, बनियो, ब्राह्मणों, पुलिस, वकील, सरकारी अफसरों नेताओं,जजों और उद्योगपतियों को मुकदमा करना चाहिए। हर फिल्म में गांव का ठाकुर जालिम, बलात्कारी, उसका बेटा अय्याश, मंदिर का पुजारी तिलक लगा कर भगवान के नाम पर छल कपट करता है, गांव का बनिया चंदन का टीका लगा कर टोपी पहन कर कालाबाज़ारी करता है, आटे की बोरी पर रेप करता है। बस अच्छा कौन है रहीम चाचा, फादर जोसेफ। बुराईयों का ठेका हिन्दू समाज की सभी जातियों के पास और करूणा ममता दया मानवता के अवतार रहीम चाचा और फादर जोसेफ। सलीम जावेद की जोड़ी ने हिन्दू समाज को बदनाम करने, हंसी उड़ाने, पोंगा पंथी रूढ़िवादी बताने में कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन मूर्ख हिन्दू अपना ही अपमान अपने पैसे फूंक कर देखते रहे, अपने ऊपर ही तालियां पीट पीट कर हंसते रहे। लिफाफा फिल्म समीक्षकों ने इनकी चाटुकारिता में कोई कसर नहीं छोड़़ी खान गैंग को चढ़ाते रहे चढ़ाते रहे। ये हमारे ही देश में संभव है हिन्दू अपना अपमान देख देख कर भी खुश होता है। अभी तोे कुछ नहीं देखना आने वाली पीढ़ियों को ये लोग कैसे बरबाद कर देंगें।
युवा पीढ़ी को बरबाद करने के हज़ार तरीके किताब भी सलीम जावेद लिख सकते हैं। अब देखिए मिल मालिक चोपड़ा जी, पांडे जी, तिवारी जी, अग्रवाल आदि सब मज़दूरों का शोषण करने वाले। मज़दूर युनियन का लीड़र सीना तान कर मालिक के सामने खड़ा होता है अन्याय के खिलाफ लड़ता है मिल मालिक की बेटी उसे दिल दे देती है। मालिक अमीर गरीब की खाई पाटना नहीं चाहता लेकिन मालिक की बेटी तो महान क्रांतिकारी है। वो तो यूनियन लीडर से ही शादी करेगी। युवा पीढ़ी के दिमाग में जितना फितूर भर सकते थे भरा।
अच्छे निर्माताओं को बोरिया बिस्तरा समेटना पड़ा
फिर एक दौर आया जिसमें शराबी कबाबी, चोर लुटेरा, तस्कर, गैंग लीडर देशद्रोही ही नायक बन गया। दाऊद के पैसे से अंडर वर्ल्ड के प्रति सहानुभूति जगाने का काम। अरे भई उसके बाप को पुलिस पकड़ कर ले गयी थी वो विद्रोही हो गया। बेचारा तस्कर बन गया तो क्या गरीबों का मसीहा है। अच्छे फिल्म निर्माताओं को अपना बोरिया बिस्तरा समेटना पड़ा। अच्छी फिल्में बननी बंद हो गयीं। लेकिन फिल्म जगत पर खान गैंग हावी हो गया।
अब कुछ गंदगी छंटनी शुरू हुई थी वो भी बंद हो गयी। भगवान जाने संजय राऊत और देवेंद्र फड़नवीस की मुलाकात में क्या खिचड़ी पकी कि पासा पलट रहा है। अब भी समय है जागो सबक सिखाओ गंदे नशेड़ी गंजेड़ी बॉलीवुड़ को। इन पर तो मानहानि के इतने मुकदमें बनेंगे कि ये तौबा तौबा कर जायेंगें।
समाज, धर्म, रिश्ते, परिवार, मान्यताएं, संस्कृति ही नहीं इन्होने पूरे लोकतांत्रिक सिस्टम से लोगों को विश्वास उठा दिया। हिंदी फिल्मों में पुलिस निकम्मी, रिश्वत खोर, वारदात के बाद पहुंचने वाली, पुलिस हिरासत से अपराधी फरार, नेता भ्रष्ट, जज पैसे खाने वाले, वकील पैसा खाने वाले, सरकारी अफसर रिश्वतखोर यानि पूरा विद्रोही माहौल खड़ा कर दिया। अंडरवर्ल्ड के पैसे पर फल-फूल रही हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को सबक सिखाने का समय है। कुछ नहीं भारत के बीस संगठन और संस्थाएं भी बॉलीवुड़ पर मानहानि, समाज को बरगलाने, धर्म को बदनाम करने का मुकदमा ठोक दें तो होश ठिकाने आ जायेंगें।
(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं)