आपका अखबार ब्यूरो।

जम्मू-कश्मीर में जिला विकास परिषद के चुनावों और उनके नतीजों के कई संदेश हैं। अनुच्छेद 370 के निष्प्रभावी होने और राज्य के केंद्रशासित क्षेत्र बनने के बाद यह पहला चुनाव था। चुनाव में बड़े पैमाने पर लोगों की भागीदारी इस धारणा को पुष्ट करती है कि सूबे के लोगों में अनुच्छेद 370 हटने से नाराजगी नहीं है। चुनाव में उतरकर गुपकार गुट ने भी इसे प्रारब्ध की तरह स्वीकार कर लिया है। भले ही अपनी भावी राजनीति के तकाजे के काऱण कह रहे हों कि वे इसे स्वीकार नहीं करेंगे। इस चुनाव नतीजे के संदेश और भी हैं।


 

मुसलमानों का भाजपा विरोध

Attempts on to spread hatred against Muslims in Jammu region' | Kashmir Media Service

तीसरा संदेश यह है कि कन्याकुमारी से कश्मीर तक भारत का मुसलमान भाजपा विरोध का कोई मौका छोड़ना नहीं चाहता। इस चुनाव में भी घाटी के मुसलमानों ने गुपकार गुट के उम्मीदवारों का ही साथ दिया। हालांकि घाटी में भाजपा को तीन सीटें मिली हैं और पहली बार उसका खाता खुला है। पर इन तीन सीटों की कीमत उसे जम्मू में चुकानी पड़ी। इन चुनावों में भारतीय जनता पार्टी का सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरना जम्मू-कश्मीर में नई राजनीति का आगाज है। भाजपा के लिए यह जीत और बड़ी इसलिए हो जाती है कि उसे यह कामयाबी संयुक्त विपक्ष के खिलाफ मिली है। जिस राज्य में भाजपा हाशिए की पार्टी थी, वहां उसने मुख्यदारी की क्षेत्रीय पार्टियों नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी और राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस को पछाड़ दिया है। जम्मू-कश्मीर में यही पार्टियां राज करती रही हैं।

आगे की राह आसान

जिला विकास परिषद के चुनाव से राज्य में नये नेतृत्व का उभार होगा। भाजपा के लिए आगे की राह और आसान होने वाली है। क्योंकि गुपकार गठबंधन में शामिल सात पार्टियां कब तक साथ रहेंगी। यह कहना कठिन है। इनके नेताओं के अहं टकराएंगे इसमें किसी को शक नहीं है। सवाल इतना ही है कि कब? गुपकार गुट इसे अनुच्छेद 370 हटाने के खिलाफ जनमत संग्रह बता रहा है। उनका कहना है कि जम्मू-कश्मीर की अवाम ने केंद्र सरकार के राज्य को केंद्र शासित क्षेत्र बनाने, अनुच्छेद 370 और 35 ए हटाने के फैसले को नकार दिया है।

सच से दूर गुपकार गुट का दावा

इन पार्टियों का यह दावा किसी भी तथ्य पर खरा नहीं उतरता। जम्मू-कश्मीर के लोग यदि केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ होते तो विरोध जाहिर करने का सबसे अच्छा और शांतिपूर्ण अवसर जिला विकास परिषद के चुनाव ही थे। नाराजगी जाहिर करने के लिए मतदाता चुनाव का बहिष्कार कर सकते थे। वे वोट न देकर अपनी नाराजगी जता सकते थे। पर उन्होंने इसके उलट इन चुनावों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। इसकी तुलना दो साल पहले नवम्बर- दिसम्बर, 2018 में हुए पंचायत चुनावों से की जा सकती है। उस चुनाव में पंच और सरपंच की साठ फीसदी सीटें खाली रह गईं। यही नहीं जो लोग चुनाव जीते वे छिप कर रह रहे थे। इसके विपरीत इस चुनाव में उम्मीदवारों ने खुलकर चुनाव प्रचार किया और लोगों ने बेखौफ होकर वोट दिया।

J&K DDC polls: Gupkar alliance takes Kashmir, BJP maintains hold on Jammu - Elections News
भाजपा की सफलता केवल उसके सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने से ही नहीं दिखाई देती। उससे भी बड़ी बात यह है कि जिला विकास परिषद के चुनावों में भाजपा को मिले कुल वोट, नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी और कांग्रेस के कुल वोटों के जोड़ से ज्यादा हैं। गुपकार गुट की पार्टियों को अपनी भविष्य की राजनीति के बारे में सोचना पड़ेगा। क्योंकि अनुच्छेद 370 के मुद्दे को जम्मू-कश्मीर के मतदाता ने दफना दिया है। गड़े मुर्दे उखाड़ने से उन्हें कुछ नहीं मिलने वाला।


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