सिंधिया गुट के विधायकों को लेकर सतर्क हुई पार्टी।
मध्य प्रदेश में बीते चुनाव में 230 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस बहुमत से दो सीटें कम 114 पर रह गई थी और भाजपा (109) कांग्रेस से पांच सीटें पिछड़ गई थी। यानी लगभग बराबरी में थोड़ी से बढ़त से कांग्रेस की सरकार बन गई थी। कांग्रेस की यह सरकार लगभग सवा साल ही चल पाई। ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ डेढ़ दर्जन से ज्यादा विधायकों के कांग्रेस छोड़ देने के साथ यह सरकार गिर गई और भाजपा की सरकार फिर से बन गई थी। सिंधिया व उनके समर्थक भी भाजपा में आ गए थे। लगभग ऐसा ही कर्नाटक में हुआ था, जहां एचडी कुमारस्वामी के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार कांग्रेस व जद एस के कुछ विधायकों के टूटने से लगभग सवा साल में गिर गई थी। बाद में भाजपा की सरकार बनी थी।

बीजेपी को सिंधिया गुट के विधायकों की चिंता
मध्यप्रदेश को लेकर भाजपा की एक चिंता यह भी है कि वहां पर सिंधिया के साथ आए नेता अभी तक पार्टी के साथ पूरी तरह से समायोजित नहीं हो सके हैं। ऐसे में टिकट देने और चुनाव में दिक्कतें आ सकती है। नगर निगम चुनावों में यह टकराव दिख चुका है, जबकि भाजपा ग्वालियर व मुरैना के अपने गढ़ों में महापौर का चुनाव हार गई थी। भाजपा में नाराजगी भी बढ़ी है। हाल में प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के बेटे पूर्व मंत्री दीपक जोशी भी कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। उनकी सीट सिंधिया के साथ आए विधायकों के पास जाने से टिकट मिलना मुश्किल था।
कांग्रेस से अधिक आपस में लड़ रही भाजपा
भाजपा ने मध्य प्रदेश में संगठन की मजबूती के लिए अजय जामबाल को क्षेत्रीय प्रभारी के रूप में तैनात कर रखा है। मुरलीधर राव राज्य के संगठन प्रभारी हैं ही। उनके साथ पंकजा मुंडे व राम शंकर कठेरिया को सह प्रभारी बनाया गया है। हितानंद शर्मा संगठन मंत्री का काम देख ही रहे हैं। दरअसल, यहां पर भाजपा की दिक्कत कांग्रेस से कम, अपने संगठन से ज्यादा है। इसलिए पार्टी उस पर ही ज्यादा जोर दे रही है।
अब कर्नाटक के नतीजों को देखने के बाद भाजपा राज्य ही हर सीट की रिपोर्ट ले रही है। इसके लिए अलग अलग स्तर पर काम किया जा रहा है। सूत्रों के अनुसार, अगले तीन महीने में पार्टी इस तरह की कई फीडबैक रिपोर्ट हासिल करेगी, ताकि उम्मीदवार चयन में कोई परेशानी न हो सके।(एएमएपी)



