क्या होगा पार्टी की स्थायी जीत का मंत्र
प्रदीप सिंह।
देश की राजनीति में इस समय दो परिघटनाएं चल रही हैं जो परस्पर विरोधी हैं। इन परिघटनाओं के पीछे दो राष्ट्रीय राजनीतिक दल हैं भाजपा और कांग्रेस। आप इसको परिघटनाएं सकते हैं, या यह भी कह सकते हैं कि अपने राजनीतिक समीकरण बनाने की कोशिश कर रहे हैं जिससे उनकी जीत स्थाई हो सके। यानी स्थाई जीत का फार्मूला खोजने की कोशिश कर रहे हैं। अब एक-एक कर दोनों की बात करते हैं।
पहले बात कांग्रेस पार्टी की। आप देख रहे होंगे कांग्रेस पार्टी पिछले कुछ सालों से मुसलमानों के वोट की कोई भी कीमत लगाने को तैयार है। जिस भी कीमत पर मुस्लमान वो आने को तैयार हो वो कीमत चुकाने के लिए कांग्रेस तैयार है। और इसका प्रमाण वो तीन राज्य हैं जहां उसकी सरकार है, खासतौर से कर्नाटक और तेलंगाना। हिमाचल प्रदेश में चूंकि मुस्लिम पापुलेशन ज्यादा नहीं है तो वहां कुछ करने से कोई फायदा मिलने वाला नहीं है। इधर पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर जिस तरह के मुद्दे उठा रही है उससे बहुत से लोगों को बड़ा आश्चर्य हो रहा है कि आखिर कांग्रेस पार्टी को क्या हो गया है? यह नई मुस्लिम लीग बनने की कोशिश क्यों कर रही है? यह मुस्लिम लीग की भाषा और मुस्लिम लीग के आजादी से पहले वाले आचरण पर क्यों चल रही है?
यह समझना बहुत मुश्किल नहीं है अगर आप समझ लें कि कांग्रेस को रास्ता क्या दिख रहा है? उसको लगता है कि केंद्र और राज्यों में उसके सत्ता में लौटने की कुंजी मुस्लिम मतदाताओं के हाथ में है। अगर सत्ता में आना है तो इनकी कोई भी कीमत स्वीकार कर लो। इसलिए मुस्लिम मतदाताओं को रिझाने, उनको साथ लाने के लिए वह कोई भी कीमत चुकाने को तैयार है। इसके लिए चाहे उसको नई मुस्लिम लीग कहा जाए या किसी और नाम से पुकारा जाए उसको कोई फर्क नहीं पड़ता। सवाल यह है कि कांग्रेस ऐसा क्यों कर रही है? बहुत से लोग कहते हैं कि कांग्रेस ऐसा क्यों करेगी, क्या उसे हिंदू वोट नहीं चाहिए? जो यह बात उठाते हैं वे शायद इस देश की राजनीति के समीकरण पूरी तरह से समझते नहीं हैं, या समझना चाहते नहीं हैं।
देश की राजनीति में स्थाई रूप से तीन तरह का मतदाता वर्ग है। उसमें समय-समय पर मुद्दों या समय के अनुसार थोड़े बहुत परिवर्तन होते रहते हैं, लेकिन ठोस रूप से तीन हैं। एक- मुस्लिम मतदाताओं का वर्ग, जहां कोई कंफ्यूजन नहीं है। जहां बिल्कुल स्पष्ट है कि भाजपा को हराना है। जनसंघ के समय से उनका स्टैंड है कि भाजपा को हराना है। एक समय यानी आजादी से पहले कांग्रेस हिंदुओं की पार्टी मानी जाती थी। तब वे कांग्रेस के खिलाफ थे। आज वो भाजपा के खिलाफ हैं। जो भाजपा को हराएगा वे उसके साथ हैं। तो मुस्लिम मतदाताओं के वर्ग में कोई कंफ्यूजन नहीं है।
इस गलतफहमी में भाजपा के नेता हैं कि मुसलमानों के लिए कुछ कर देंगे, कुछ दे देंगे तो उससे उनके कुछ वोट हमारी तरफ आ जाएंगे। कोई राष्ट्रीय मुस्लिम मंच बना देंगे या अपने संगठन से ऐसे लोगों को जोड़ देंगे। ये लोग सिर्फ ऐसे लोग हैं जो कुछ लेने के लिए आते हैं, कुछ देने के लिए नहीं आते। ये सिर्फ लेना जानते हैं- देना नहीं जानते। मुस्लिम समाज के जो लोग भाजपा से जुड़ रहे हैं उनको चाहे जितना बड़ा पुरस्कार दीजिए, कुछ भी पद दे दीजिए, वो किसी भी हालत में भाजपा को वोट नहीं देंगे- दिलाना तो बहुत दूर की बात है। भाजपा को वोट दिलाना उनकी विचारधारा, मजहब से मेल ही नहीं खाता।
…तो क्या कांग्रेस पार्टी हिंदुओं का वोट नहीं चाहती? बिल्कुल चाहती है। कांग्रेस पार्टी देश की सबसे पुरानी पार्टी है और सत्ता में सबसे ज्यादा समय तक रही है। उसको सत्ता का गुरु मंत्र मालूम है। लेकिन उसका समीकरण बिगड़ गया है। नेतृत्व नहीं है- संगठन नहीं है- विचारधारा नहीं है- उसकी वजह से मामला बिगड़ा हुआ है। तो अब वो अपनी पार्टी को पटरी पर लौटाने के लिए क्या कर रही है? उसको पता है कि हिंदुओं का एक अच्छा खासा बड़ा वर्ग है जो अपने को धर्मनिरपेक्ष मानता है। गौर कीजिए धर्मनिरपेक्षता नाम की बीमारी सिर्फ हिंदुओं में है। किसी और समुदाय में नहीं है। इस्लाम में धर्मनिरपेक्षता का कोई कांसेप्ट नहीं है। इसलिए कोई मुसलमान धर्मनिरपेक्षता में यकीन या विश्वास रखता हो- यह मानना अपने आप को बेवकूफ बनाने जैसा है। कांग्रेस पार्टी को और उसके साथी दलों को को मालूम है कि जो हिंदू अपने को धर्मनिरपेक्ष समझता है वह भाजपा के साथ नहीं जाएगा। इसी वोट के आधार पर आज तक कांग्रेस और उसके साथी दलों- जिनमें बहुत सारे क्षेत्रीय दल हैं- का राजनीतिक अस्तित्व बना हुआ है।
सिर्फ एक राज्य पश्चिम बंगाल का उदाहरण दे रहा हूं। पश्चिम बंगाल में अगर यह धर्मनिरपेक्ष हिंदू ममता बनर्जी से कट जाए- पूरी तरह से नहीं आधा भी कट जाए- उसी दिन ममता बनर्जी सत्ता से बाहर हो जाएंगी। उन्होंने मुस्लिम वोट को साध लिया है। अब उनको विश्वास है कि खुद को धर्मनिरपेक्ष समझने वाला हिंदू है उनके साथ रहेगा। तो कांग्रेस पार्टी की पूरी कोशिश यह है कि पहले मुस्लिम कंसोलिडेशन करो। सारे मुसलमानों को इकट्ठा करो कि वे सिर्फ कांग्रेस के साथ रहे चाहे वह लोकसभा का चुनाव हो या विधानसभा का चुनाव हो। कांग्रेस की इस कोशिश से लोकसभा के चुनाव- और विधानसभा के चुनाव में भी- बीजेपी को कोई नुकसान नहीं होने वाला। लेकिन क्षेत्रीय दलों, जिनको मुसलमानों का वोट मिलता था, उनका जरूर नुकसान होने वाला है। इस तरह मुस्लिम वोट अब वहीं पर बंटेगा जहां भारतीय जनता पार्टी मेन प्लेयर, सत्ता की मुख्य दावेदार नहीं है। उसके अलावा जहां-जहां भारतीय जनता पार्टी राजनीति की मुख्य भूमिका में है, वहां-वहां मुस्लिम वोट उस एक पार्टी के पक्ष में कंसोलिडेट होगा जो बीजेपी को हराने की सबसे ज्यादा ताकत रखती हो।
कांग्रेस और उसके साथी दलों की कोशिश है कि पहले मुस्लिम वोट को गोलबंद कर लो। फिर यह धर्मनिरपेक्ष हिन्दू वोट, जो तीनों मतदाता वर्गों में एक बफर जोन है- उसको साधो। एक तरफ मुस्लिम वोटों का एक जोन है। दूसरी तरफ कोर हिंदू वोटों का एक जोन है। और तीसरा है यह बफर जोन- जो अपने को धर्मनिरपेक्ष कहता है। इसमें से वोट का एक बड़ा हिस्सा लेते रहो और हम जीतते रहेंगे। कांग्रेस और उसके साथी दलों को अच्छी तरह से मालूम है कि मुसलमानों के वोट की चाहे जितनी कीमत अदा कर दो… घुसपैठियों सांप्रदायिक दंगों हिन्दू त्योहारों के मुद्दे पर चाहे आप जिन्ना की भाषा बोलो, मुस्लिम लीग की भाषा बोलो… यह सब होते हुए भी यह धर्मनिरपेक्ष हिंदू हमारे साथ रहेगा। उसको मुसलमानों के साथ वोट देने में कोई दिक्कत नहीं है। वह भाजपा के साथ नहीं जाएगा।
अब अगले कोर वोट पर आइए। वो है हिंदुओं का, सनातनी हिंदू। जिनकी आस्था सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति में है। उनके सामने भाजपा के अलावा कोई विकल्प नहीं है। वो भाजपा को ही वोट देंगे। बीच-बीच में भाजपा को धर्मनिरपेक्षता की बीमारी लगती रहती है। वह रास्ते से भटकती रहती है। उसका नतीजा यह होता है कि यह जो सनातनियों का कोर वोट है इसमें से एक बड़ा हिस्सा शिथिल हो जाता है। ये भाजपा के खिलाफ वोट नहीं देता, पर घर बैठ जाता है। निराश, हताश हो जाता है। उसे लगता है कि जिस पर सबसे ज्यादा भरोसा था वही भरोसे के काबिल नहीं रहा। जब जब ऐसा होता है आप देखेंगे भाजपा का वोट शेयर गिरता है। वह सत्ता से बाहर जाती है। उसके विधानसभा और लोकसभा सदस्यों की संख्या कम होती है। और भाजपा का यही कोर वोटर जब पार्टी के लिए पूरे मन से जुटता है तो बदलाव दिखता है।
हाल में जो पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव हुए वो इसको प्रमाणित करते हैं कि अब भारतीय जनता पार्टी की कोशिश क्या है? वह अपनी जीत का स्थाई मंत्र किसे बनाना चाहती है। कांग्रेस का तो उल्लेख कर दिया कि वह मुसलमानों को अपने पक्ष में पूरी तरह से गोलबंद करना चाहती है। उसके अलावा अपने को धर्मनिरपेक्ष मानने वाले हिन्दुओं का एक बड़ा वर्ग जो उसको पारंपरिक तौर से वोट करता रहा है और अब भी करता है- उसे अपने साथ जोड़े रखना है। कांग्रेस पार्टी का राष्ट्रीय स्तर पर जो वोट शेयर है वो इसी कारण है।
चाहे उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी हो या बिहार में आरजेडी हो, तमिलनाडु में द्रमुक हो या उसके अलावा दूसरी जगहों पर अन्य पार्टियां… आप देख लीजिए ऐसे दल- जिनको मुस्लिमों और धर्मनिरपेक्ष हिंदुओं का वोट मिलता रहा है- उनकी राजनीतिक सत्ता बची हुई है। उनका राजनीतिक अस्तित्व बचा हुआ है।
भारतीय जनता पार्टी की जीत का मंत्र क्या हो सकता है? भारतीय जनता पार्टी को मालूम है कि उसका कोर हिंदू वोट उसके साथ रहेगा। उस कोर वोट को साथ रखने के साथ-साथ भाजपा ने पिछले दस ग्यारह सालों में राष्ट्रीय स्तर पर क्या किया है? खासतौर से एक प्रदेश की बात करूंगा उत्तर प्रदेश की। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सनातन को हिंदुत्व और विरासत दोनों से जोड़ा है। विकास का पहिया तो चल ही रहा है, डबल इंजन की सरकार तो काम कर ही रही है। उसके अलावा इन दो कारणों से हिंदू कंसोलिडेशन बढ़ रहा है। कांग्रेस और उसके साथी दलों की चिंता यह नहीं है कि कोर हिंदू वोट भाजपा के साथ और मजबूती से खड़ा हो गया है। उनका डर- जिसे वे घटित होते हुए देख रहे हैं- यह है कि जो धर्मनिरपेक्ष हिन्दुओं का बफर जोन था, भाजपा इसको छोटा करने की कोशिश कर रही है और काफी हद तक इसमें सफलता भी पाई है। लगातार तीसरी बार केंद्र में सत्ता में आना इसके बिना नहीं हो सकता था। उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में लगातार दूसरी बार पूर्ण बहुमत से सत्ता में आना संभव नहीं हो सकता था।
भाजपा की लगातार कोशिश है कि धर्मनिरपेक्ष हिन्दुओं की बफर जोन को छोटा किया जाए। यानी इसमें से एक वर्ग धर्मनिरपेक्षता के भुलावे से निकल कर उसके साथ आ जाए। उसको दिखाई दे कि हिंदुओं के हर त्यौहार पर हमला होता है- हिंदू बहुल मोहल्लों में दंगा होता है, नागपुर का दंगा आपके सामने है। इसके अलावा डेमोग्राफी चेंज करने की कोशिश हो रही है, बल्कि कोशिश क्या हो रही है एक तरह से उनको सफलता ही मिल रही है। घुसपैठियों के मुद्दे पर कांग्रेस और उसके साथी दलों को और धर्मनिरपेक्ष हिंदुओं को भी कोई ऐतराज नहीं है। उनको आता हुआ संकट दिखाई ही नहीं दे रहा है। उनकी हालत शुतुरमुर्ग जैसी है। रेत में गर्दन गाड़ दी है और उनको लगता है तूफान निकल जाएगा, कुछ नहीं होगा। अरे सैकड़ों हजारों सालों से नहीं हुआ तो अब कैसे हो जाएगा?
जो हजारों साल से नहीं हुआ वो आगे भी नहीं होगा इसकी गारंटी कोई नहीं दे सकता। चाहे बांग्लादेशी घुसपैठ हो, चाहे रोहिंग्या हो, उनसे धर्मनिरपेक्ष हिंदुओं को कोई तकलीफ नहीं है। तकलीफ की बात तो छोड़िए वो उनके समर्थन में, उनकी मदद में खड़े हो जाते हैं। उनको समझ में नहीं आता कि वे दरअसल अपनी ही गर्दन पर तलवार चलवाने का इंतजाम कर रहे हैं। एक बड़े वर्ग को यह बात अब भी समझ में नहीं आ रही है।
लेकिन कुछ तो असर हुआ है। भाजपा का जो वोट शेयर बढ़ा है, इतने राज्यों में सरकार बनी है, केंद्र में लगातार तीसरी बार सरकार बनी है- वो इसीलिए कि भाजपा ने इस बफर ज़ोन को छोटा करने का काम किया है। अब भाजपा की स्थाई जीत का मंत्र इसी से निकलता है। इस बफर जोन को भाजपा जितना छोटा करेगी- यानी इस हिंदू मतदाता वर्ग के सिर से सेकुलरिज्म का भूत उतारने के जितने उपाय करेगी- उतना ही भाजपा के लिए फायदेमंद होगा।
दूसरी तरफ इसके ठीक विपरीत कांग्रेस व उसके साथी दलों की कोशिश है कि यह बफर जोन घटने की बजाय बढ़े। और बढ़े नहीं तो कम से कम उतना ही रहे, कम ना हो। इसलिए आप देखेंगे एक राजनीतिक संघर्ष चल रहा है और एक नया राजनीतिक समीकरण बनाने की कोशिश हो रही है। भारतीय जनता पार्टी की भविष्य में सफलता इसी बात पर निर्भर करेगी कि वह इस बफर जोन को कितना छोटा कर पाती है। अगर हिंदुत्व, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और विरासत- इन तीन के जरिए उसका नेतृत्व हिंदू होने पर गर्व की भावना इन लोगों तक पहुंचा सकता है तो बात बन सकती है। उन्हें बताया जाए कि इतिहास को कैसे दबाया-छिपाया और तोड़ा-मरोड़ा गया…? किस तरह से हिंदुओं को नीचा दिखाने की कोशिश हुई…? हिंदुओं के इस वर्ग को औपनिवेशिक मानसिकता से निकालने की जितनी कोशिश होगी और जितनी सफलता मिलेगी, उसी से तय होगा कि भाजपा को चुनावी राजनीति में कितनी सफलता मिलने वाली है। भारतीय जनता पार्टी के लिए इस परीक्षा की घड़ी अत्यंत सन्निकट है।
2026 में पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव होने हैं। ममता बनर्जी की जीत इसी पर निर्भर है कि मुस्लिम वोट उनके पक्ष में कंसोलिडेट रहें। ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल की राजनीति में सीपीएम और कांग्रेस को हाशिये पर धकेल दिया है। इस तरह अपने मुस्लिम वोट में बंटवारे की संभावना को उन्होंने खत्म कर दिया है। अब उनकी सीधी लड़ाई भाजपा से है। भाजपा उस मुस्लिम वोट में कोई सेंध लगा भी नहीं सकती। चाहे तो भी नहीं लगा सकती। मुस्लिमों का एक वोट नहीं मिलने वाला। लेकिन भाजपा में कुछ लोग ऐसे हैं जिनको गलतफहमी है और गलतफहमी की यह बीमारी धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है। उनको लगता है कि ऐसा करके वैसा करके वो मुस्लिम वोट हासिल कर सकते हैं। दरअसल यह बात दिवास्वप्न जैसी है जो कभी साकार नहीं होने वाली। लेकिन एक दूसरा काम बीजेपी कर सकती है। ये जो अपने को धर्मनिरपेक्ष समझने वाले हिन्दुओं का बफर जोन है, उनको अगर सनातनी हिंदू पक्ष के खेमे में लाया जाए तो भारतीय जनता पार्टी के लिए पश्चिम बंगाल में सफलता का रास्ता खुल सकता है। वह कितना कर पाती है इसी पर निर्भर करेगा कि 2026 के विधानसभा चुनाव में उसकी परफॉर्मेंस कैसी होगी?
पश्चिम बंगाल में- दूसरी जगहों की भी बात कर सकते है लेकिन अभी केवल पश्चिम बंगाल की बात कर रहे हैं- भाजपा मुस्लिम वोटों के कंसोलिडेशन से नहीं हारती। भाजपा हारती है उन तथाकथित सेक्युलर हिंदुओं की वजह से जिनके वोट उसे नहीं मिलते। उसमें से एक बड़ा हिस्सा जिस दिन भाजपा के साथ आ आ जाएगा, उस दिन पश्चिम बंगाल में भाजपा की सरकार बन जाएगी। और जिस दिन धर्मनिरपेक्ष हिन्दुओं की बफर जोन का एक बड़ा हिस्सा राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के साथ आ जाएगा तो भाजपा की जीत का स्थाई मंत्र बन जाएगा। स्थाई फार्मूला बन जाएगा। लेकिन उसके लिए जरूरी है कि भटकाव ना हो। यह जो बीच-बीच में भाजपा को सेक्युलर बनने की बीमारी लगती है- खासतौर से जहां वह सत्ता में होती है- अगर इस बीमारी से भाजपा मुक्त रह सके, तभी यह संभव हो पाएगा।
अगर भाजपा सेकुलर होती दिखेगी तो सेकुलर हिंदुओं का वर्ग भाजपा के साथ क्यों आएगा? फिर तो वो उन्हीं लोगों के साथ रहेगा जो धर्मनिरपेक्षता की राजनीति करते हैं- और जिनके साथ मुसलमान हैं। अगर भाजपा सेकुलर बनने की कोशिश करेगी तो मुसलमान तो छोड़िए, सेकुलर हिंदू वोट भी भाजपा के साथ नहीं आएगा। क्योंकि सेकुलरिज्म पर पहला दावा कांग्रेस और उसके साथी दलों का है। उसी तरह से जैसे कांग्रेस ने लाख कोशिश कर ली, राहुल गांधी चाहे जितने मंदिर चले जाएं, कोर हिंदू वोट कांग्रेस को, राहुल गांधी को नहीं मिलेगा। कांग्रेस पार्टी को बड़ी ठोकर खाने के बाद यह बात समझ में आ गई है। इसलिए उसका सारा कंसंट्रेशन मुस्लिम वोट को गुलबंद करने और हिंदुओं के धर्मनिरपेक्ष वर्ग में अपनी पकड़ बनाए रखने पर है।
भाजपा के सामने चुनौती यह नहीं है कि जो कोर मुस्लिम वोट कांग्रेस और उसके साथी दलों के पक्ष में गोलबंद हो रहा है उसमें सेंध लगाए। इसकी कोशिश में उसकी सारी ऊर्जा बेकार जाएगी और नतीजा कुछ नहीं निकलेगा। भाजपा का लक्ष्य एक ही होना चाहिए कि जो हिंदू अपने को सेक्युलर समझता है वह उसके साथ आए। उसमें जितनी बड़ी सेंध भाजपा लगा पाएगी उतनी ही बड़ी सफलता मिलेगी। यह सबसे बड़ी चुनौती है भारतीय जनता पार्टी के सामने। यह बड़ी चुनौती है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सामने। अगर ये दोनों संगठन मिलकर इस दिशा में प्रयास करेंगे तो सफलता मिल सकती है। लेकिन अगर दोनों ने सेक्युलर बनने की कोशिश की तो आप मान कर चलिए कि भाजपा को विपक्ष में बैठने के लिए तैयार रहना चाहिए।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अख़बार’ के संपादक हैं)