प्रदीप सिंह।

मैंने पांच विधानसभाओं के बारे में अपना आकलन दिया था, उसमें से चार आकलन सही साबित हुए। लेकिन पश्चिम बंगाल के बारे में मेरा आकलन गलत साबित हुआ। यह मुझे स्वीकार करने में कोई हिचक नहीं है।


 

Winner candidate names from BJP party in Assam state elections 2021

असम की बात करें, तो वहां दो सभ्यताओं का टकराव था। यह चुनाव असमिया संस्कृति, उसकी पहचान- भाषा, रीति-रिवाज… इन सबको बचाने का संघर्ष था। भाजपा ने उस संघर्ष को ध्रुवीकरण में बदला। ध्रुवीकरण की शुरुआत तब हुई, जब कांग्रेस ने बदरुद्दीन अजमल की पार्टी एआईयूडीएफ से समझौता किया। कहा जा रहा था जब 2016 में भाजपा इसलिए जीती थी कि मुस्लिम वोट बंट गया था। अजमल अलग लड़े थे, कांग्रेस अलग। मुस्लिम वोटों का बंटवारा हुआ और बीजेपी जीत गई। वरना जिस प्रदेश में 28 फीसदी  मुसलमान हैं, वहां बीजेपी कैसे जीत सकती है? इस तर्क को पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता। मैंने कहा था कि 2014 से नरेंद्र मोदी लगातार मुस्लिम वोटों के वीटो को खारिज कर रहे हैं। इस धारणा को  निष्प्रभावी कर रहे हैं कि जिसके साथ मुसलमान होंगे, वही उस प्रदेश में राज करेगा। असम में यह 2016 में हुआ, 2021 में भी हुआ। यहां कांग्रेस और बदरुद्दीन अजमल ने मुस्लिम वोटों का पूरी तरह से ध्रुवीकरण किया, उसके जवाब में भाजपा भी हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण करने में कामयाब रही। नतीजा सामने है। हिन्दू वोट इकट्ठा हुआ, वह जाति, क्षेत्र, दूसरी समस्याएं भूल गया। उसके साथ साथ भाजपा सरकार के कामकाज से लोग संतुष्ट व खुश थे, वह भी कारण था।

प्रदेश में प्रभावी नेतृत्व का फायदा भाजपा को मिला। इससे यह बात सामने आती है कि जहां मुस्लिम मतदाता ज्यादा हैं और उनका ध्रुवीकरण होता है, उस स्थिति में अगर वहां काउंटर पोलराइजेशन नहीं होगा, तो भाजपा नहीं जीतेगी। भाजपा के नेताओं को यह समझ लेना चाहिए, और वे इस बात को समझते भी हैं। लेकिन यह समझ होने के बाद भी बंगाल में क्या हुआ। इस लिहाज से, असम की जीत भाजपा के लिए बहुत बड़ी जीत है। लेकिन बंगाल के नतीजे ने उस जीत को बिल्कुल कोने में रख दिया है। अखबारों, मीडिया चैनलों में जिक्र था कि असम में बीजेपी फिर से आ गई, जैसे यह कोई बड़ी बात नहीं है। बड़ी बात सिर्फ बंगाल में हुई है।

केरल में टूटी चार दशकों की परंपरा

LDF wins 21 out of the 39 seats in Kerala local body bye-elections | The  News Minute

केरल में पिछले चार दशकों की परंपरा टूट गई। लेफ्ट फ्रंट फिर से सत्ता में आ गया। कांग्रेस का सफाया हुआ। ईसाई बहुल दक्षिण केरल में ईसाई समुदाय ने पूरी तरह से लेफ्ट फ्रंट का साथ दिया। क्यों दिया? मुस्लिम लीग के डर से। वहां हिन्दू और ईसाई मिले। मैं दावे के साथ कह सकता हूं, आपने पहले कभी नहीं सुना होगा कि सीपीएम का कोई उम्मीदवार, चाहे लोकसभा का हो या विधानसभा का, सार्वजनिक मंच से यह कहे कि मुझे मुसलमानों का वोट नहीं चाहिए। भाजपा के तो कई नेताओं के बारे में आपने ऐसा सुना होगा, लेकिन सीपीएम का कोई नेता इस प्रकार बोलेगा, यह नहीं सुना होगा। सीपीएम के एक उम्मीदवार ने ऐसा कहा। यह केरल में बदलाव का संकेत है। केरल से कांग्रेस की विदाई का संकेत है। बीजेपी की स्थिति भी कोई अच्छी नहीं है। पिछली बार एक सीट थी, इस बार वह भी नहीं है, लेकिन उसका वोट शेयर बढ़ा है। यानी आगे के लिए उम्मीद है। पिनराई विजयन और मजबूत होकर उभरे हैं। अब केरल में सीपीएम का मतलब पिनराई विजयन है, इसमें किसी को कोई शक नहीं होना चाहिए।

स्टालिन के नेतृत्व को मान्यता मिली तमिल राजनीति में

Tamil Nadu Assembly Election Results: DMK's MK Stalin Recreates 2019 Magic,  Wins Tamil Nadu Assembly Polls In Style

तमिलनाडु में जयललिता के निधन के बाद अन्नाद्रमुक में जिस तरह की सर फुटौव्वल हुई, पार्टी जिस तरह से बंटी, टूटी, उससे उसकी हार के संकेत बहुत स्पष्ट थे। लोकसभा चुनाव में भी उसका संकेत था। अन्नाद्रमुक का सफाया हो गया था। लोग द्रमुक को विकल्प के रूप में पहले से भी देखते रहे हैं। इन नतीजों से स्पष्ट हो गया कि लोग अब स्टालिन के नेतृत्व में भी उसे विकल्प के रूप में देख रहे हैं। उम्मीद के मुताबिक, डीएमके को बड़ा बहुमत मिला। अन्नाद्रमुक साफ नहीं हुई, कमजोर हो गई। उसको पहले फिर से अपने घर को ठीक करना पड़ेगा, फिर लड़ने के लिए तैयारी करनी पड़ेगी। लेकिन वहां भाजपा की एंट्री हो गई है। चार सीटें बीजेपी जीती है। चार में से एक सीट का महत्व सबसे ज्यादा है। और वह है कमल हासन की सीट। उन्होंने अपनी अलग पार्टी बनाई थी। वह बोलते चेन्नई से थे, आवाज दिल्ली तक आती थी। वह अघोषित सेकुलर फ्रंट के महत्वपूर्ण सदस्य माने जाते थे। उनके समर्थन के लिए अरविंद केजरीवाल दिल्ली से भाग कर जाते थे। उन्हें दूसरे दलों का समर्थन भी था। चुनाव में भले ही दूसरों का साथ ना रहा हो, लेकिन सहानुभूति उनके साथ थी कि एक नई सेकुलर पार्टी उभर रही है। तो कमल हासन जो इतने लोकप्रिय नेता हैं, उनकी बातें आपने पिछले दो-ढाई साल में सुनी हो, जबसे उन्होंने पार्टी बनाई है, तो उससे अंदाजा लगा सकते हैं कि वो किस सोच के हैं, किस विचारधारा के हैं। उनका हारना तमिलनाडु में बड़ा संकेत है।

 पुड्डुचेरीः फिसलती जा रही कांग्रेस

Puducherry govt in trouble as ally DMK decides to fight without Congress in  Assembly polls | India News,The Indian Express

चौथा राज्य है पुड्डुचेरी। वहां कांग्रेस का जिस तरह से पराभव हुआ है, वह कांग्रेस के लिए स्प्ष्ट संकेत है, बल्कि अब तो संकेत, संदेश, यह सब शब्द कांग्रेस के लिए बेमानी हो गए हैं। कांग्रेस बहुत तेजी से नीचे जा रही है। क्षेत्रीय पार्टियां, बीजेपी ऊपर की ओर जा रही हैं और कांग्रेस के नीचे जाने का सिलसिला रुक नहीं रहा है। एक बार ढलान पर कोई चीज चल दे, तो जब तक उसको रोकने का प्रयास ना हो, वह रुकती नहीं, नीचे की ओर चलती जाती है।