संसद टीवी के लिए प्रदीप सिंह की केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से खास बातचीत-6।
आपका अख़बार ब्यूरो।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए आसान समय कभी नहीं रहा। चाहे संगठनकर्ता के रूप में, या गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में, या फिर प्रधानमंत्री की भूमिका हो। ये तीनों बहुत चुनौतीपूर्ण रहे। प्रस्तुत है वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह की लंबे समय तक प्रधानमंत्री के सहयोगी और उनकी राजनीतिक यात्रा के सहयात्री रहे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से ‘संसद टीवी’ के लिए खास बातचीत के कुछ अंश।
प्रदीप सिंह- आपने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक स्वयंसेवक के रुप में देखा, फिर एक संगठनकर्ता के रुप में देखा, फिर एक राजनीतिक कार्यकर्ता के रुप में देखा, मुख्यमंत्री के रुप में देखा, प्रधानमंत्री के रुप में देखा और विश्वनेता बनते हुए देखा। इस दौरान कई पड़ाव, कई उतार चढ़ाव आये होंगे। कौन सी ऐसी बात, कौन सा ऐसा मुद्दा, कौन सा ऐसा समय आया जो आपको लगा उनके लिये सबसे चुनौतीपूर्ण है?
प्रोफेसर डांटते थे- कहाँ भाजपा में चले गए
अमित शाह- मोदी जी के जीवने के कुल मिलाकर सार्वजनिक जीवन में आने के बाद तीन हिस्से किये जा सकते हैं। मैं उनके भारतीय जनता पार्टी में आने के बाद की बात कर रहा हूं। भारतीय जनता पार्टी में आने के बाद का उनका पहला कालखंड एक दृष्टि से बनायें तो वो संगठनात्मक काम का था। दूसरा कालखंड वो गुजरात के मुख्यमंत्री रहे और उनके तत्वावधान में काम हुआ और तीसरा राष्ट्रीय राजनीति में आकर वो प्रधानमंत्री बने। इन तीन हिस्सों में उनके सार्वजनिक जीवन को बांटा जा सकता है। ये तीनों अपने-आप में बेहद चुनौतीपूर्ण रहे हैं। जब उनको भारतीय जनता पार्टी में भेजा गया, वो आये और संगठन मंत्री बने। उस वक्त भारतीय जनता पार्टी की स्थिति खस्ताहाल थी। गुजरात कोई पहले से भारतीय जनता पार्टी के अनुकूल राज्य नहीं रहा था। हम सब युवा कार्यकर्ता थे। कोई भविष्य नज़र नहीं आता था। जब भाजपा के लिये बात करते थे, पार्टी ज्वाइन की थी, हमारे प्रोफेसर हमें डांटते थे कि कहां गलत रास्ते पर चले गये हो- इस प्रकार की स्थिति थी और देश में 2 सीटें आईं थीं। तब मोदी जी भारतीय जनता पार्टी गुजरात के संगठन मंत्री बने और 1987 से उन्होंने संगठन को संभाला। और संगठन के माध्यम से एक पक्ष की विश्वसनीयता जनमानस में कैसे बनाई जा सकती है उसका उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया। 1987 में उनके आने के बाद सबसे पहला चुनाव आया अहमदाबाद म्युनिसिपल कॉरपोरेशन का। उनके संगठन मंत्री बनने के महज एक साल के अंदर पहली बार भारतीय जनता पार्टी अपने बूते पर कॉरपोरेशन में सत्ता में आई। उसके बाद भारतीय जनता पार्टी की यात्रा शुरु हुई। 1990 में हम हिस्सेदारी में सरकार में आये, 50 प्रतिशत की हिस्सेदारी थी। 1995 में पूर्ण बहुमत में आये और वहां से भारतीय जनता पार्टी ने आज तक पीछे मुड़कर नहीं देखा है। हाल में भी जो चुनाव हुए उसमें भी हम लगभग 95 प्रतिशत तक स्वीप कर गये हैं। तो सबसे बड़ा चैलेंजिंग काम उनका उस वक्त था गुजरात में भारतीय जनता पार्टी का कमल खिलाना। उस वक्त उन्होंने कठोर परिश्रम, बारीक आयोजन, इंप्लीमेंटेशन के लिये एक दृढ़ता तीनों के कारण भारतीय जनता पार्टी को खड़ा किया।
गुजरात मॉडल की नींव- जनता से सरोकार
एक बात मैं अभी भी मानता हूं मल्टी पार्टी डेमोक्रेसी सिस्टम में बहुत सारी पार्टियां हैं और होनी भी चाहिये। उन सबके लिए गुजरात का संगठन मॉडल का स्टडी करने जैसा है, जो मोदी जी ने उस वक्त बनाया था। समय समय पर उसमें समयानुकूल परिवर्तन भी होते गये। परंतु उस मॉडल की नींव थी- जनता के साथ सरोकार रखकर जनता की वेदनाओं को समझकर उसको वाचा देना- ये राजनीतिक पार्टी का काम है। जब विपक्ष में होते हैं तो आंदोलन के माध्यम से उसको वाचा देते हैं और जब सत्ता में आते हैं तो सरकार की नीति और कार्यक्रमों के माध्यम से उसका रास्ता ढूँढना, उसका हल निकालना, और उस वेदना को कम करना या निरस्त करना। मैं मानता हूं उस वक्त भारतीय जनता पार्टी को गुजरात में प्रस्थापित करना- ये बहुत बड़ी चैलेंज उनके सामने थी। हम तीसरे नंबर पर थे। और तब से लेकर भारतीय जनता पार्टी का जो सिलसिला शुरु हुआ है वो आज तक दुनिया देख रही है, हम लगातार जीतते जा रहे हैं।
कभी सरपंच भी नहीं रहे, सीएम बने तो मिसाल बन गए
दूसरा बड़ा चैलेंज उनके सार्वजनिक जीवन में आया कि जब वो गुजरात के मुख्यमंत्री बने। मैं जिस कांस्टीट्युएंसी से आता हूं वो साबरमती असेंबली कांस्टीट्युएंसी भी हम हार गये थे, जो गुजरात की सबसे सेफेस्ट सीट मानी जाती थी। बड़ा भूकंप आया था। सारे कॉरपोरेशन के चुनाव, जिला पंचायत के चुनाव, तहसील पंचायत के चुनाव सबमें कांग्रेस स्वीप कर गई थी। 70 के दशक के बाद पहली बार भारतीय जनता पार्टी राजकोट म्युनिसिपल चुनाव हारी थी और अहमदाबाद म्युनिसिपल कॉरपोरेशन 87 के बाद हम पहली बार हारे थे। उस समय मोदी जी को गुजरात की धुरा सौंपी गई। उस वक्त की राष्ट्रीय राजनीति को देखें तो एक बहुत लंबा कालखंड गठजोड़ की राजनीति का रहा। जो सरकारें आईं- पूर्ण बहुमत की सरकारें नहीं थीं- मिलीजुली सरकार थीं। कभी 20 पार्टियां, कभी 25 पार्टियां, कभी 30 पार्टियां। अटल जी के नेतृत्व में जो सरकार बनी वो भी कोई पूर्ण बहुमत की एक पार्टी की सरकार नहीं थी और इसका परिणाम ये हुआ था कि देशभर में एक लचर स्थिति बन गई थी और सबलोगों का भरोसा उठता जा रहा था। उस वक्त नरेंद्र भाई गुजरात के मुख्यमंत्री बने उन्होंने जिस प्रकार से तेजी से काम किए वह अपने आप में मिसाल है। हालांकि उनको प्रशासन का कोई अनुभव नहीं था। कभी सरपंच भी नहीं बने थे, विधायक तो छोड़िये। मगर फिर भी उन्होंने धैर्य साथ प्रशासन की बारीकियों को समझा। जो एक्सपर्ट थे उनको प्रशासन के साथ जोड़ा। उनकी चीजों को लोकभोग्य बनाया। योजनाओं में तब्दील किया और योजनाओं को लोगों तक पहुंचाने का काम किया। जो भूकंप एक जमाने में ऐसा लगता था कि भाजपा के लिये एक धब्बा बन जायेगा, वो भूकंप के काम की पूरे विश्व ने भूरि भूरि सराहना की। आप भुज जाकर देख सकते हैं। एक ओर लातूर का भी भूकंप है और भुज का भी है। पूरे भुज का नवनिर्माण हुआ। सिर्फ नवनिर्माण नहीं हुआ भुज की विकास दर उसके बाद 37 प्रतिशत ज्यादा बढ़ी और आज भुज के अंदर पानी भी है, इंडस्ट्री भी है, एजुकेशन भी है। पहले भुज को पनिशमेंट पोस्टिंग माना जाता था, आज प्राइम पोस्टिंग माना जाता है। इतना बड़ा परिवर्तन लाये।
सर्वसमावेशी विकास का मॉडल
अपने मुख्यमंत्री काल में उन्होंने एक नया मॉडल बनाया कि विकास को सर्वस्पर्शी सर्वसमावेशक बनाया जा सकता है। इसके लिये वो ढ़ेर सारी योजनाएं लेकर आये। समय की मर्यादा को देखते हुए यहां मैं दो-तीन योजनाओं का ही जिक्र कर पाउंगा। वनबंधु कल्याण योजना। सबसे नेगलेक्टेड (उपेक्षित) गुजरात में आदिवासी थे। कांग्रेस ने उनका वोटबैंक के नाते तो उपयोग किया परंतु उन तक कभी विकास नहीं पहुंचता था। मोदी जी ने सारी बिखरी हुई योजनाओं को जोड़ा और पहली बार गुजरात में जो उनको संविधान में मिला हुआ अधिकार दिया कि उनकी जनसंख्या के अनुपात में बजट में उनको हिस्सेदारी मिले। पहली बार नरेंद्र मोदी जी ने 2003 के बजट में उनको यह दिया। वनबंधु कल्याण योजना ने पूरे गुजरात के ट्राइबल एरिया का विकास का रास्ता खोल दिया। आज ट्राइबल एरिया में बड़े भरोसे से कह रहा हूं- कोई भी क्रिटिक या एनालिसिस करने वाला व्यक्ति वहां पहुंच जाये सूरत शहर और डांग जिले के बीच वो कोई अंतर नहीं ढ़ूंढ़ पायेगा। इतना बड़ा परिवर्तन हुआ है।
प्रदीप सिंह- इसका राजनीतिक लाभ भी मिला है?
अमित शाह- राजनीतिक लाभ दूसरी बात है- मगर लोकतंत्र में लोगों का भरोसा दृढ़ हुआ है। सागर छोर के हमारे किनारे थे उसके लिये भी दूसरी योजना लेकर आये। वो भी नेगलेक्टेड पड़े थे जबकि सबसे ज्यादा खनिज संपदा वहीं थी। रेवेन्यू सबसे ज्यादा वहां से आती थी। बंदरगाह के कारण सबसे ज्यादा इंडस्ट्री वहीं लगी थी। पूरे सागर छोर के किनारों को रोड से जोड़ दिया और वहां के हर तहसील के लिये एक डेवलपमेंट प्लानिंग बनाई गई। वहां उन्होंने सागरखेड़ू विकास योजना शुरु की। आज वो एरिया पूरा गुजरात के इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट का बैकबोन बना हुआ है।
प्राइमरी एजुकेशन की गुणवत्ता बढ़ाने का काम
और तीसरा, उस वक़्त देश भर की तरह हमारे यहां भी सबसे बड़ा प्रॉबल्म ड्रॉपआउट का था। प्राइमरी एजुकेशन की बात कर रहा हूं। एनरोलमेंट और ड्रॉपआउट गुजरात जैसे राज्य में बहुत बड़ी समस्या थी। उन्होंने खुद कड़ी धूप में काम किया। पटवारी से लेकर मुख्यमंत्री तक सब लोग 5 दिन मे 25 स्कूलों तक गए और महोत्सव के रुप में बच्चों के एनरोलमेंट का कार्यक्रम शुरु कराया। हमारे एनरोलमेंट को 100 प्रतिशत तक पहुंचाया और उसके बाद वहां अभिभावकों की कमेटी बनवाई।
प्रदीप सिंह- ये स्केल और स्पीड का कॉन्सेप्ट जो है उनका वहीं से था?
अमित शाह- वो शुरु से है। संगठन में भी था, सरकार में भी था, गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब भी था। उन्होंने अभिभावकों की कमेटी बनाई, विशेषरुप से माताओं की कमेटी बनाई। कोई भी बच्चा स्कूल नहीं आता है तो उसकी चिंता होती थी। मास्टरों की जिम्मेदारी तय कर दी। और इन सारी चीजों के बाद प्राइमरी एजुकेशन में गुणवत्ता बढ़ाने के लिये गुणोत्सव करके एक कार्यक्रम लिया। इसके कारण परिणाम ये आया कि जो एनरोलमेंट 67 प्रतिशत था, वो शत प्रतिशत पहुंचा। ड्रॉपआउट का अनुपात 37 प्रतिशत था, वो एक प्रतिशत से नीचे चला गया। अब कोई इसका इवैल्युएशन करेगा तो मालूम पड़ेगा कि देश के विकास में, गुजरात के विकास में, इसका कांट्रीब्यूशन क्या हो सकता है? एक अनपढ़ आदमी देश पर कितना बड़ा बोझ बनता है। जो न संविधान के दिये अपने अधिकारों को जानता है, ना संविधान ने हमसे जो अपेक्षा की है उस दायित्व को जानता है- वो कैसे एक अच्छा नागरिक बन सकता है? इसमें आमूलचूल परिवर्तन हुआ है।
गुजरात बल्कि देशभर में एक आशा की किरण
देशभर में मिलीजुली सरकारों का युग था। ऐसी एक छवि बनी थी कि मल्टीपार्टी डेमोक्रेटिक सिस्टम शायद फेल तो नहीं कर जायेगा। गुजरात में नरेंद्र भाई के सफल मुख्यमंत्रित्व काल के दौरान न केवल गुजरात बल्कि देशभर में एक आशा की किरण जागृत हुई कि मल्टीपार्टी डेमोक्रेटिक सिस्टम में कोई दोष नहीं है, इसमें सरकारें सफल हो सकती हैं, डिलिवर कर सकती हैं। अंतिम व्यक्ति तक जा सकती हैं और वेलफेयर स्टेट की कल्पना- मैं पश्चिम की बात नहीं कर रहा अपने संविधान निर्माताओं ने जो कल्पना की थी वो- साकार हो सकती है।
देश हर क्षेत्र में नीचे- और नीचे नीचे जा रहा था
तीसरी चुनौती या चैलेंज जब वो भारत के प्रधानमंत्री बने- तब आया। आप जानते हैं देश हर क्षेत्र में नीचे- और नीचे नीचे जा रहा था। मैं डॉक्टर मनमोहन सिंह जी की सरकार के लिये कोई टिप्पणी करना नहीं चाहता, ये कोई राजनीतिक मौका भी नहीं है। 12 लाख करोड़ के घपले-घोटाले-भ्रष्टाचार सरफेस पर आ चुके थे। सार्वजनिक जीवन पर श्रध्दा पाताल के नीचे चली गई थी। दुनियाभर में देश का कोई सम्मान नहीं था। हमारी आंतरिक और बाहरी सुरक्षा बिलकुल लचर हो पड़ी थी। पॉलिसी पैरालिसिस हो चुका था। नीतिगत फैसले महीनों तक सरकार की आंतरिक उलझनों में उलझते रहते थे। एक मंत्री महोदय ऐसे भी थे जो पूरे पांच साल कैबिनेट में ही नहीं आये। कई सारी ऐसी चीजें थीं जो सवाल करती थीं कि ऐसे कैसे चल सकता है? ऐसे माहौल में देश के प्रधानमंत्री का काँटों भरा ताज मोदी जी के सिर पर आया। और आज हम देख सकते हैं कि सात साल के अंदर सारी व्यवस्थाएं अपनी अपनी जगह सही हैं। हां, समस्याएं आती हैं, आएंगी भी, भविष्य में भी आएंगी- मगर समस्या तत्काल एड्रेस किया जाता है, उसका समाधान निकालने का प्रयास किया और संवेदनशीलता के साथ उसको आगे बढ़ाया जाता है। इससे एक दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति के कारण देश की सुरक्षा व्यवस्था भी चाक-चौबंद हुई है। कभी कोई कल्पना नहीं कर सकता था कि भारत एयर स्ट्राइक करेगा या सर्जिकल स्ट्राइक करेगा, ये तो अमेरिका के लिये रिजर्व चीज थी। आज इसके कारण भारत के युवा में हौसला हुआ है कि हम भी कर सकते हैं। कभी ये नहीं हो सकता था कि कोई प्रधानमंत्री कहेगा कि 5 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बनने का साहस भारत में है और हम पहुंच सकते हैं। ढ़ेर सारे स्टार्टअप आये, लोग लगे हैं, मुझे विश्वास है कि 5 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी मोदी जी के नेतृत्व में बन ही जाएगी। 11 नंबर की अर्थव्यवस्था से हम पांचवे-छठे नंबर की अर्थव्यवस्था बन चुके हैं। बहुत बड़ा जंप आया है। ढेर सारे सुधार हुए हैं। ईज ऑफ डूईंग बिजनेस में भी परिवर्तन आया है। इस तरह मोदी जी के जीवन में ये तीनों स्टेज चुनौतीपूर्ण थे और उन्होंने बड़े धैर्य, कुशलता और दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति के साथ तीनों चैलेंजों को सफलतापूर्वक पार किया। मैं मानता हूं कि उनकी लीडरशिप की ये बहुत बड़ी क्वालिटी है। (समापन क़िस्त)