कांशीराम और बीजेपी का अपना सियासी इतिहास है। बीएसपी को यूपी में सरकार बनाने में तीन बार बीजेपी की मदद मिली। कांशीराम का निधन 2006 में हो गया, लेकिन बीएसपी की विचारधारा में उनकी अपनी जगह बनी रही। यही कारण है कि मायावती के द्वारा कई बार कांशीराम को भारत रत्न देने की मांग की जा चुकी है।

बीजेपी के इस नए सियासी कदम से बीएसपी का खुश नहीं होना लाजमी है। मायावती की पार्टी ने इसे बीजेपी का दोहरा मापदंड करार दिया है। उसने कहा कि बीजेपी की कथनी और करनी में अंतर होता है। बीएसपी के प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल ने कहा, ‘कांशीराम के आदर्शों के विपरीत बीजेपी की विचारधारा है। बीजेपी को कांशीराम की विचारधारा को अपनाने की जरूर है।’ उन्होंने कहा कि दलित बीजेपी की चालबाजी को समझते हैं, वे मायावती और बीएसपी का साथ नहीं छोड़ेंगे।
वहीं, बीजेपी प्रवक्ता हीरो बाजपेयी ने कहा, ”कांशीराम को याद करने में कुछ भी गलत नहीं है। उन्होंने गरीबों और दलितों के उत्थान के लिए बहुत काम किया है। हमारी पार्टी ‘सबका साथ और सबका विकास’ के मूलमंत्र पर काम करती है।”
बीजेपी के इस सियासी कदम को दलितों के बीच अपनी पहुंच को बढ़ाने की दिशा में एक प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है। इससे पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में जीत के बाद नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बीजेपी को दलितों के बड़े तबके का साथ मिला है। इस ताजा सियासी घटनाक्रपर पर राजनीतिक पर्यवेक्षक प्रोफेसर रविकांत इसे दलितों को एकजुट करने के लिए यह एक और राजनीतिक संकेत के तौर पर देखते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि, ”बीजेपी आरएसएस नेता भाऊराव देवरस के दृष्टिकोण को भी अपना रही है, जिन्होंने कहा था कि राजनीतिक प्रतिबद्धता के बावजूद भी सभी दल के दिग्गज नेताओं का सम्मान करना चाहिए और उन्हें याद करना चाहिए। बीजेपी 2014 से लगाताक भीमराव आंबेडकर को याद करती रही है।
उन्होंने कहा था, ”सभी राजनीतिक दिग्गजों को उनकी पार्टी से संबद्धता के बावजूद याद किया जाना चाहिए और उनका सम्मान किया जाना चाहिए। बीजेपी 2014 से लगातार दलित आइकन बीआर अंबेडकर का आह्वान कर रही है।(एएमएपी)



