
2017 और 2022 के चुनाव में क्या रही स्थिति
दरअसल, हर सीट पर यह देखा जा रहा है कि वहां पार्टी की ताकत क्या है। मसलन, कार्यकर्ताओं की फौज, बूथ स्तरीय संगठन। संघ और अन्य सहयोगी संगठन। कमजोरी के तहत यह आंकलन किया जा रहा है कि मौजूदा सांसद या पिछली बार के प्रत्याशी की क्षेत्र में क्या स्थिति है। कार्यकर्ताओं के बीच उसकी छवि कैसी है। वहीं उस लोकसभा क्षेत्र के तहत आने वाले विधानसभा क्षेत्रों में पार्टी की क्या स्थिति है। इसमें 2017 और 2022 के विधानसभा चुनाव के नतीजों को शामिल किया गया है। मसलन आजमगढ़ लोकसभा सीट भाजपा ने उपचुनाव तो जीत ली लेकिन वहां पार्टी का विधायक एक भी नहीं है जबकि 2017 में एक विधायक था।
दलों-चेहरों को जोड़ना इसी रणनीति का हिस्सा
अवसर के रूप में देखा गया है कि वहां दूसरे दलों के कौन से मजबूत चेहरे हैं, जिन्हें साथ जोड़ा जा सकता है। किन लोगों का सामाजिक दृष्टि से क्षेत्र में प्रभाव है। उन्हें चिन्हित किया जाए। इसके साथ ही सीटवार यह भी देखा जा रहा है कि वहां चुनौतियां क्या हैं। कौन सा दल या नेता पार्टी के लिए थ्रैट हो सकता है। इलाकेवार मजबूत सहयोगियों को साथ जोड़ने की मुहिम भी इसी प्लान का हिस्सा है। पार्टी आने वाले दिनों में इसी प्लान के हिसाब से तय रणनाति पर आगे बढ़ेगी।(एएमएपी)



