डॉ. संतोष कुमार तिवारी।

अभी हाल में प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने वाराणसी में काशी विश्वनाथ मन्दिर परिसर के कायाकल्प की योजना के पहले चरण का उदघाटन किया। काशी विश्वनाथ बाबा का विनोबा भावे (1895-1982) के भूदान आन्दोलन पर भी आशीर्वाद रहा।

 

अखिल भारतीय सर्व सेवा संघ, वर्धा ने विनोबा भावे के भूदान आंदोलन पर अनेक पुस्तकें प्रकाशित की हैं। उनमें से एक है ‘पावन प्रसंग’। वर्ष 1955  में इसका दूसरा संस्करण प्रकाशित हुआ। मूल्य था चार आना। इसमें भूदान आन्दोलन के पहले वर्ष की चर्चा है। यह पुस्तक इस URL पर क्लिक करके फ्री में इंटरनेट पर पढ़ी जा सकती है:

https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.347079/page/n3/mode/2up

महात्मा गांधी के सर्वोदय सिद्धान्त पर आधारित आचार्य विनोबा भावे का चलाया हुआ यह प्रसिद्ध आन्दोलन था।  इसमें बड़े भू-स्वामियों से दान रूप में भूमि प्राप्त करके उसे ऐसे लोगों को मुफ्त में दी जाती थी जिनके पास न तो जोतने-बोने के लिए जमीन होती थी और न जिनकी जीविका चलाने का कोई निश्चित तथा विशिष्ट साधन। भूदान आन्दोलन भूमि सुधार करने; कृषि में संस्थागत परिवर्तन लाने का  एक अद्भुत प्रयास था।

आचार्य विनोबा भावे द्वारा भूदान आन्दोलन का प्रारम्भ 18 अप्रैल, 1951 को तत्कालीन आन्ध्र प्रदेश के तेलंगाना क्षेत्र में पोचमपल्ली ग्राम से किया गया।  उस दिन, आचार्य विनोबा भावे को जमीन का पहला दान मिला था। उन्हें यह जमीन तेलंगाना क्षेत्र में स्थित पोचमपल्ली गांव में दान में मिली थी। ये विनोबाजी के भूदान यज्ञ की शुरुआत थी।

पोचमपल्ली ग्राम नलगुडा जिले में था। यह कम्युनिस्ट आंदोलन का गढ़ था। हत्याएँ, लूट आदि से यहां आम बात थीं। विनोबाजी वहां सबसे पहले हरिजन बस्ती में गए। मकानों के भीतर घुसे। नवजात शिशु  को गोद ले लिया। मरीजों की हालत देखी। खाने पीने का सामान देखा। फिर सारी बस्ती उनके साथ हो गई। गाँव में तीस हरिजन परिवार रहते थे।

कोई सोच सकता है कि क्या विनोबा भावे आन्ध्र प्रदेश की तेलुगू भाषा जानते थे? यहाँ यह बता देना आवश्यक है कि विनोबाजी की मराठी, तेलुगु, गुजराती, कन्नड़, हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी और संस्कृत समेत कई भाषाओं पर अच्छी ख़ासी पकड़ थी। उन्होंने संस्कृत में लिखी कई पुस्तकों का सामान्य भाषा में अनुवाद किया। आचार्य विनोबा भावे फ्रेंच और जर्मन भाषाओं के ज्ञाता थे।

Aacharya Vinoba Bhave - Vinoba Bhave - A life Sketch By Dr. Usha Thakkar Vinoba stands as a symbol for the struggle of the good against the evil, of spiritual against the

भगवान विश्वनाथ का आशीर्वाद

पुस्तक के पृष्ठ 39-40 पर लिखा है:

“सर्वोदय सम्मेलन के लिए सेवापुरी पहुँचने के पहले बनारस में पड़ाव था। अब भूदान-यज्ञ को शुरू हुए एक वर्ष होने आया था। विनोबाजी की शुरू से कल्पना थी कि एक वर्ष में एक लाख एकड़ तक भूमि संग्रह हो सकेगी।

“बनारस पहुँचने तक भूदान का आंकड़ा नब्बे हजार के करीब पहुँच गया था। इतने में काशी नरेश का पत्र लेकर एक दूत आ पहुंचा। पत्र में लिखा था:

“जिस महान भावना से प्रेरित हो कर आपने यह कठिन व्रत लिया और अपने उद्देश्य की पूर्ति के हेतु समस्त भारतवर्ष की यात्रा गर्मी-सर्दी से तनिक भी विचलित न होते हुए पाँव पायदे कर रहे हैं, उसको शब्दों द्वारा व्यक्त करना सम्भव नहीं। उसके तो आप मूर्तिमान स्वरूप हो गए हैं। अत: आपके दर्शन से ही लोगों को उसका वास्त्विक परिचय मिलेगा। आपके शुभागमन से सभी का हृदय प्रफुल्लित हो रहा है। जन-समुदाय के सुख-संतोष के लिए भारतीय परम्परा के अनुकूल एक व्यवस्था की झलक लोगों को मिलने लगी है।

“बाबा विश्वनाथ के अनुग्रह से आपका यह भागीरथ प्रयत्न  सफल हो तथा  –

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया।

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।।“

(सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े।)

पत्र के साथ में दस हजार एकड़ का एक दान पत्र भी था।

उत्तर में विनोबाजी ने लिखा:

“प्रेम से अर्पित किया हुआ आपका भूमिदान मिल गया है। उसकी पूर्ति आप करने वाले हैं, यह भी संदेशा हमें मिला है। हम आपसे और एक बात चाहते हैं। आपने स्वयं इस यज्ञ में अपना जो (हिस्सा) दिया है, वैसा अपने मित्रों से भी दिलाएँ। इस तरह यह कार्य सहज गति से उत्तरोत्तर बढ़ता रहेगा।

“आपने अपने पत्र में हमारा प्रयत्न सफल होने के लिए बाबा विश्वनाथ के अनुग्रह की याचना की है। यह आपकी मेरे लिए बहुत भारी मदद हुई। मेरे इस काम के पीछे उन्हीकी प्रेरणा है और वे ही इस महान कार्य को सम्पन्न करने में समर्थ हैं। मैं हूँ उन्ही की चरणरज।“

(लेखक झारखण्ड केन्द्रीय विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त प्रोफेसर हैं)