अजय विद्युत।
यह कहानी है बॉलीवुड की पहली महिला कोरियोग्राफर की। फिल्मी दुनिया में वह ‘मास्टरजी’ के नाम से मशहूर थीं। बतौर कोरियोग्राफर उनका फिल्मी सफर चालीस सालों का रहा। उन्होंने चार हजार से भी ज्यादा गाने कोरियोग्राफ किए।
सरोज खान (22 नवंबर 1948 – 3 जुलाई 2020) बॉलीवुड की अलग ही शख्सियत थीं। बचपन से ही बेहद गरीबी देखी। तीन साल की उम्र में परिवार की मदद के लिए बाल कलाकार के तौर पर हिंदी फिल्मों की दुनिया में आईं। किशोरावस्था आने से पहले ही ग्रुप डांसर बन गईं। और फिर एक लंबा संघर्ष… तब जाकर वह अपनी मंजिल तक पहुंचीं और कोरियोग्राफर बनीं। कई पीढ़ियों के लोगों के दिल पर सरोज खान के कोरियोग्राफ किए गानों का जादू चला।
चाहने वालों में टीन एजर से सीनियर सिटिजन तक
उनके चाहने वालों में टीन एजर से लेकर सीनियर सिटिजन तक हैं और उनके कोरियोग्राफ किए गीतों को जब भी गुनगुनाते हैं या कहीं एफएम पर सुन भर लेते हैं, पूरा दृश्य उनकी आंखों के सामने जीवंत हो उठता है। जैसे- तेजाब का एक दो तीन, बेटा का धक धक करने लगा, मिस्टर इंडिया का काटे नहीं कटते ये दिन ये रात, चालबाज का कहते हैं मुझको हवा हवाई, चांदनी का मेरे हाथों में नौ नौ चूड़ियां हैं… और, ओ मेरी चांदनी, दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे का मेंहदी लगा के रखना… और, जरा सा झूम लूं मैं तथा देवदास का मार डाला। माधुरी दीक्षित और श्रीदेवी की तो वो फेवरेट थीं। उन्होंने एक टीवी इंटरव्यू में अपनी जिंदगी के कई पन्ने साझा किए।
जब मैं तीन बरस की हुई
‘मैं एक गरीब खानदान की बेटी हूं। हम लोग रिफ्यूजी (शरणार्थी) थे। हिंदुस्तान- पाकिस्तान का बंटवारा होने पर मम्मी डैडी पाकिस्तान से भारत आ गए। मैं बाम्बे में एक साल बाद पैदा हुई। मेरे माता पिता के पास कुछ भी नहीं था। मतबल उन्हें पाकिस्तान में अपना सब कुछ छोड़कर निकलना पड़ा था। ऐसे हालात में घर संभालना थोड़ा मुश्किल था। जब मैं तीन बरस की हुई तो मैं शैडो को देखकर डांस करती थी। हमारे खानदान में किसी को दूर दूर तक डांस नहीं आता। न ही म्युजिक से कोई ताल्लुक है। न फोटोग्राफी से… किसी से भी नहीं। कोई पेंटिंग नहीं बनाता। तो मम्मी ने यह समझा कि मैं फ्रीक हूं। फिर मेरे माता- पिता मुझे डॉक्टर के पास लेकर गए। वह डॉक्टर फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ा हुआ था। उसने कहा कि ‘यह बच्ची डांस करना चाहती है। आप लोग उसे क्यों रोक रहे हैं। वैसे ही आप लोगों को पैसे की जरूरत है तो इसे डांस करने दीजिए।’ इस पर मेरी मम्मी ने कहा कि हम यहां पर किसी को नहीं जानते। डॉक्टर ने कहा, ‘तो कोई बात नहीं है। मैं इंट्रोड्यूस कर दूंगा फिल्म इंडस्ट्री से।’ तो इस तरह मैं फिल्म इंडस्ट्री में आई… अपनी मां और बाप को बचाने के लिए… मेरे पीछे छोटे बच्चे भी थे। मेरी बहनें जो मेरे बाद पैदा हुई थीं, बहुत छोटी थीं।’
उम्र के उस पड़ाव पर…
‘जब मैं साढ़े दस साल की थी मैंने अपने पिता को खो दिया। पहले तो छोटे बच्चे का रोल मिल जाता था फिल्मों में। लेकिन साढ़े दस साल का होना- उम्र का एक ऐसा पड़ाव होता है- जहां फिल्मों के लिहाज से न तो आपकी जरूरत छोटे बच्चों में होती है और न ही बड़ों में। ऐसे में मैंने ग्रुप डांसिंग बांध ली। उसमें… मैं एक ठीक ठाक डांसर थी उस वक्त। और फिर मिस्टर बी सोहनलाल साहब और उनके भाई हीरालाल मद्रास से बाम्बे से आए। तो पहला ही गाना अपलम चपलम मुंबई फिल्म इंडस्ट्री के लिए एक बम की तरह था। तब तक इस इंडस्ट्री में पेड़ को पकड़कर गाना गाना, उसके चारों तरफ घूमना – यही सब चल रहा था। जब अचानक उन लोगों ने देखा कि इस किस्म का भी डांस होता है तो प्रोड्यूसर पागल हो गए। दोनों भाइयों को बहुत काम मिला। इतना काम था कि दोनों भाइयों को खाने पीने की भी फुरसत नहीं थी। रात दिन उनके गाने चलने शुरू हो गए थे। ये दोनों भाई ग्रुप डांसर्स को सेलेक्ट करते थे। उस समय की वास्तविकता यह थी कि ग्रुप डांसर्स को डांस के बारे में खास जानकारी नहीं होती थी। वो ग्रुप डांसर्स को पॉस्चर्स वगैरह कराते थे। ऐसा करते करते उन्होंने बहुत सारी लड़कियों को डांस की ट्रेनिंग दे दी। उसमें मैं भी थी।’
मेरी फैन बन गयीं वैजयन्तीमाला
‘उस समय मैं बारह साल की रही होऊंगी। मास्टरजी ने देखा मुझे। उन्हें लगा ये शायद कि मैं कुछ कर सकती हूं। उन्होंने मुझे चुनकर बाहर निकाला और सीधे अपना असिस्टेंट बना लिया। पहला ही गाना जो मेरे भाग्य में आया वह शम्मी कपूर और वैजयन्तीमाला पर फिल्माया जाना था। हरमन बेंजामिन अस्स्टिेंट कोरियोग्राफर थे। हरमन बेंजामिन बाद में शशि कपूर और शम्मी कपूर के एक्सक्लूसिव डांस मास्टर बने। लेकिन उस समय बेंजामिन असिस्टेंट कोरियोग्राफर ही थे। तो हम दोनों ने शम्मी कपूर और वैजयन्तीमाला को डांस सिखाया था। वैजयन्तीमाला मास्टरजी से बहुत चिढ़ गई थीं कि अब बच्चे लोगों से भी डांस सीखना पड़ता है। इस पर मास्टरजी ने वैजयन्तीमाला से कहा कि ‘मैं तुमको कुछ नहीं बताऊंगा। ये जितना कर रही है, तुम बस उतना ही करके दे दो।’ तो इस तरह वैजयन्तीमाला मेरी फैन बन गयीं। हालांकि मुझे वैजयन्तीमाला का फैन होना चाहिए था, लेकिन वह मेरी फैन थीं। बल्कि थीं नहीं वह अभी भी मेरी फैन हैं।’
टर्निंग प्वाइंट
‘फिल्म इंडस्ट्री में आगे बढ़ने में कोई किसी की मदद नहीं करता। सुभाष घई के अलावा फिल्म इंडस्ट्री में किसी ने मेरी हेल्प नहीं की। मैं फिल्म इंडस्ट्री में थी, लोग मुझे जानते थे। लेकिन मुझे वह नाम और शोहरत नहीं मिली जो मुझे अपने काम से मिलनी चाहिए थी। सुभाष घई हीरो फिल्म बना रहे थे। उन्होंने उस फिल्म के लिए मुझे बुलाया। वहां से इंडस्ट्री में मेरा नाम और शोहरत होना शुरू हुआ। डिंग डाँग… तू मेरा जानू है… प्यार करने वाले… निंदिया से जागी बहार- ‘हीरो’ फिल्म से लोगों ने एक अच्छी कोरियोग्राफर के रूप में मुझे पहचानना शुरू किया। उन्हें लगा कि अगर यह अच्छी कोरियोग्राफर नहीं होती तो सुभाष घई अपनी फिल्म में इसे न लेते। तो ये एक ऐसी घड़ी थी जिसे टर्निंग प्वाइंट कह सकते हैं।’
एक-दो-तीन के बाद
‘हीरो’ के बाद मुझे फिल्म ‘तेजाब’ का- एकदो तीन- गाना मिला जो माधुरी दीक्षित पर फिल्माया गया था। फिर उसके बाद मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। मैंने इंडस्ट्री में काम तब शुरू किया था जब मधुबाला टॉप पर थीं। तो मैं उस समय आई थी। इसलिए मैंने दिलीप कुमार, राजेन्द्र कुमार, धर्मेंद्र, जीतेंद्र इन सभी को देखा है। खास बात यह कि वे सब के सब एक बढ़िया इंसान थे। आज के दौर की बात करूं तो आजकल ऐसा इंसान कोई नहीं है। वे सब मशीन बन गए हैं… और इनमें महिलाएं भी शामिल हैं। किसी को फिक्र नहीं है और कोई यह याद नहीं रखता कि आप कौन हैं और आप उनसे किस तरह से जुड़े हैं। अब वहां सिर्फ इतना ही बचा है कि- तुम अगर किसी चीज के काम आती हो तो तुम्हारी इज्जत है… और अगर नहीं काम आती हो तो तुम्हारी मदद करने के लिए कोई एक उंगली भी उठाने वाला नहीं है। यह वह समय है।
अपने आर्ट से दिल न लगाओगे तो कुछ न मिलेगा
अल्लाह के बाद अगर किसी चीज को मानते हैं न आप तो अपने रिज्क रोजी को, आर्ट को। यह अनिवार्य है कि आप अपनी कला से दिल लगाएं। अगर आप अपनी कला से दिल नहीं लगाएंगे तो कुछ नहीं हो सकता।
मेरी बेटी की मौत हो गई थी। वह आठ महीने और पांच दिन की थी। दोपहर की नमाज उसको नसीब हुई। तो उसको दफनाकर… और पांच बजे की मेरी ट्रेन थी। कहां जाना था- ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ की लोकेशन पर। और गाना कौन सा करना था- ‘दम मारो दम।’